इज़रायल से दोस्ती पर सऊदी राजपरिवार में खटपट क्यों?
प्रिंस तुर्की अल-फ़ैसल ने कहा, बिना फिलिस्तीन की आज़ादी के इज़रायल से कोई डील नहीं.
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इज़रायली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू और सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस बिन सलमान (एपी)
अभी कुछ रोज़ पहले सऊदी अरब से एक मीटिंग की ख़बर आई थी. पता चला कि एक VVIP मेहमान क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान से मिलने सऊदी पहुंचा. इस सीक्रेट मीटिंग का ऐंगल था, सऊदी और इज़रायल का बढ़ता याराना. इस दोस्ती की ख़बर से जानकारों को कोई हैरानी नहीं हुई. उनका कहना है कि इज़रायल और सऊदी परदे के पीछे तो दोस्त हैं ही. ये दोस्ती पब्लिक हो जाए, तो कोई हैरानी नहीं.मगर फिर बीते रोज़ सऊदी से एक और प्रिंस की ख़बर आई. इन राजकुमार ने एक मीटिंग में ख़ूब आतिशबाज़ बयान दिए. इज़रायल को हत्यारा बताया. उसपर फिलिस्तीन को ग़ुलाम बनाकर रखने का आरोप लगाया. ख़ूब खरी-खोटी सुनाई. और फिर ताना देते हुए बोले इतना कुछ करने के बाद भी इज़रायल सोचता है कि वो हमसे, यानी सऊदी से दोस्ती कर सकता है.
इस कॉन्ट्रास्ट का क्या मतलब निकलता है?
अब सोचिए, एक तरफ सऊदी के क्राउन प्रिंस MBS हैं. जो इज़रायल के लिए रेड कार्पेट बिछा रहे हैं. दूसरी तरफ उनके ही परिवार का एक राजकुमार इज़रायल पर सरेआम भड़क रहा है. इस कॉन्ट्रास्ट का क्या मतलब निकलता है? क्या इज़रायल से दोस्ती के सवाल पर सऊदी राजशाही में फूट पड़ गई है? क्या MBS अपने परिवार के खिलाफ़ जाकर इज़रायल से दोस्ती करने में कामयाब होंगे?
शुरुआत करते हैं एक अरबपति से. इज़रायल के एक बिज़नस टाइकून हैं. नाम है, हाइम सेबां. आपने पावर रेंजर्स देखी है? वो 90s की सुपरहीरो वाली ऐक्शन सीरीज़. उसको हाइम सेबां के ही प्रॉडक्शन हाउस ने बनाया है. अक्टूबर 2020 की बात है. एक रोज़ हाइम सेबां का एक बयान पूरी इंटरनैशनल मीडिया में फ्लैश होने लगा.

इज़रायली उद्योगपति हाइम सेबां. (एएफपी)
ये बयान जुड़ा था सऊदी क्राउन प्रिंस MBS से. हाइम के मुताबिक, MBS ने उन्हें एक सनसनीखेज़ बात बताई. कहा कि बहरीन और UAE की तरह वो इज़रायल से रिश्ते नहीं सुधार सकते. उसके साथ कोई पीस डील नहीं कर सकते. क्योंकि ऐसा करने पर वो मार डाले जाएंगे. किसके हाथों मारे जाने का डर है MBS को? हाइम के मुताबिक, उन्हें ईरान और क़तर के अलावा अपने ही लोगों के हाथों क़त्ल हो जाने का अंदेशा है.
अगर सच में ही MBS ने हाइम को ये बात कही, तो इस बयान का हाईलाइट न तो ईरान है, न ही क़तर. इसका हाईलाइट है MBS का अपने ही लोगों के हाथों मार दिए जाने का डर. यहां अपने लोगों का मतलब सऊदी की जनता नहीं है. इसका मतलब है, महल के भीतर मारे जाने की आशंका. किसके हाथों? अपने ही खानदान के लोगों के हाथों.
क्यों है MBS को ये डर?
क्या उनकी बॉडी लैंग्वेज़, उनकी पॉलिसी में भी ये डर दिखता है? जवाब है, हां. और इस जवाब का संकेत छुपा है, अब्राहम अकॉर्ड्स में. अब्राहम अकॉर्ड्स माने, इज़रायल का बहरीन और UAE के साथ हुआ ऐतिहासिक शांति समझौता. इस डील को अपना नाम मिला है, अब्राहम से. यहूदी, ईसाई और इस्लाम धर्म के साझा पूर्वज. वो कनेक्शन, जो सदियों पुरानी दुश्मनी से परे इन तीनों धर्मों को आपस में जोड़ता है.

अब्राहम अकॉर्ड्स (वाइट हाउस)
इस अब्राहम अकॉर्ड्स का खुलासा किया था डॉनल्ड ट्रंप ने. 13 अगस्त को जब उनका ये ऐलान आया, तो सबसे ज़्यादा सदमे में था सऊदी अरब. वहां गद्दी पर हैं किंग सलमान. ट्रंप के ऐलान से पहले न तो किंग सलमान और न ही उनके सलाहकारों को इस डील की रत्तीभर भी भनक थी. किंग सलमान 84 साल के बुजुर्ग हैं. उस पीढ़ी के हैं, जिन्होंने आज़ाद फिलिस्तीन के सवाल पर इज़रायल से युद्ध लड़ा है. इज़रायल का बहिष्कार किया है. उन्हें इल्म भी नहीं था कि उनका अपना बेटा MBS पिछले कई महीनों से पक रही इस खिचड़ी का एक बड़ा खिलाड़ी था.

अब्राहम अकॉर्ड्स माने, इज़रायल का बहरीन और UAE के साथ हुआ ऐतिहासिक शांति समझौता. (एएफपी)
अब सवाल है कि MBS ने इस डील को अपने पिता समेत पूरी सऊदी राजशाही से छुपाकर क्यों रखा?
इसलिए कि इस डील में फिलिस्तीन की आज़ादी का कोई ज़िक्र नहीं था. न ही इज़रायल ने फिलिस्तीनी इलाकों पर से अपना कब्ज़ा ख़त्म करने की बात मानी थी. MBS जानते थे कि किंग सलमान शायद इस डील को मंज़ूर नहीं करेंगे. उनके दबाव में UAE और बहरीन कभी इस डील को ओके न करते. इसीलिए उन्होंने आख़िरी मोमेंट तक अपने पिता और समूची सऊदी राजशाही से ये बात छुपाकर रखी.
आप पूछेंगे कि MBS के इस डील को सपोर्ट करने की बात इतनी पुख़्ता क्यों है? देखिए, बहरीन की अपनी कोई स्वतंत्र विदेश नीति नहीं है. दशकों से सऊदी एक अभिभावक की तरह बहरीन की नीतियां तय करता रहा है. कुछेक अपवादों को छोड़कर UAE भी अपनी पॉलिसीज़ सऊदी के साथ मैनेज करके चलता है. अब सऊदी की गद्दी के वारिस हैं MBS. उनके पिता बस नाम के ही शासक हैं. असलियत में सारी नीतियां MBS ही तय करते हैं. ऐसे में ये मुमकिन ही नहीं कि MBS के अप्रूवल बिना वो दोनों इज़रायल से डील करें.

सऊदी किंग सलमान (एपी)
मगर अब्राहम अकॉर्ड पर हमको किंग सलमान और सऊदी राजपरिवार का MBS के साथ कन्फ्लिक्ट साफ़ दिखता है. कैसे? ट्रंप द्वारा इस समझौते की घोषणा के बाद सऊदी के विदेश मंत्री प्रिंस फ़ैसल बिन फरहान का बयान आया. उन्होंने दोहराया कि सऊदी अब भी एक आज़ाद फिलिस्तीनी देश के गठन के प्रति समर्पित है. इसके बाद आया प्रिंस तुर्की अल-फ़ैसल का एक लेख. सऊदी के सरकारी अख़बार 'अशराक़ अल-अवसात' में छपे इस कॉलम में प्रिंस तुर्की ने लिखा था-
अगर कोई भी अरब देश UAE की तरह ऐसी डील करना चाहता है, तो उसे बदले में इज़रायल से एक बड़ी कीमत मांगनी चाहिए. सऊदी केवल एक ही शर्त पर इज़रायल से रिश्ते सुधार सकता है. एक आज़ाद संप्रभु फिलिस्तीनी देश बने, जिसकी राजधानी हो जेरूसलेम.

सऊदी के विदेश मंत्री प्रिंस फ़ैसल बिन फरहान. (एएफपी)
कौन हैं प्रिंस तुर्की अल-फ़ैसल?
वो अमेरिका में सऊदी के राजदूत रह चुके हैं. सऊदी के पूर्व इंटेलिजेंस चीफ भी हैं. वो किंग सलमान के सलाहकार हैं. उन्हें सुल्तान का नज़दीकी माना जाता है. उन्होंने लेख में जो लिखा, उसे किंग सलमान का भी स्टैंड माना गया. क्यों? इसकी वजह है MBS का ट्रैक रेकॉर्ड. वो 2015 से सत्ता में हैं. तब से अबतक वो सऊदी राजपरिवार में कइयों का सफ़ाया कर चुके हैं. रॉयल फैमिली के 300 से ज़्यादा लोगों को MBS जेल में फिंकवा चुके हैं. ऐसे में ये मुमकिन ही नहीं कि किंग सलमान के अप्रूवल बिना सऊदी राजशाही का कोई आदमी MBS के स्टैंड को चुनौती देने की हिम्मत करे.

प्रिंस तुर्की अल-फ़ैसल (एएफपी)
आप कहेंगे कि ये पुरानी ख़बर हम आपको आज क्यों बता रहे हैं?
क्योंकि एकबार फिर प्रिंस तुर्की अल-फ़ैसल ने MBS की किरकिरी करवाई है. ये हुआ 6 दिसंबर को. मौका था, बहरीन का एक सुरक्षा सम्मेलन. इज़रायल के विदेश मंत्री गाबी अशकेनाज़ी भी विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये इस मीटिंग में शामिल थे.
मीटिंग में बोलने की बारी थी प्रिंस तुर्की की. उनके स्पीच की शुरुआत ही अटैकिंग थी. बोले-
इज़रायल दावा तो नैतिकता का करता है. कहता है कि वो शांति दूत है. मगर असलियत में इज़रायल ने फिलिस्तीन को ग़ुलाम बनाया हुआ है. वो मनमर्ज़ी के इल्ज़ाम लगाकर फिलिस्तीनियों को टॉर्चर कैंप्स में रखता है. बूढ़े-जवान, औरत-मर्द, सबको यातनाएं देता है. सैकड़ों फिलिस्तीनी इसी तरह इज़रायली यातना शिविरों में सड़ाए जा रहे हैं.प्रिंस तुर्की ने कहा-
इज़रायल मासूमों के घर तोड़ता है. जिसे चाहता है, उसे मार डालता है. इतना ही नहीं, प्रिंस तुर्की ने ये भी कहा कि इज़रायल के पास सीक्रेट न्यूक्लियर हथियारों का जख़ीरा है. कि इज़रायली मीडिया सऊदी अरब को किसी शैतान की तरह पेश करती है. उसका अपमान करती है.प्रिंस तुर्की बोले-
इज़रायल जताता है कि वो छोटा सा देश है. उसके अस्तित्व पर ख़तरा है. उसके चारों तरफ खून के प्यासे हत्यारे बसे हैं, जो कि उसका समूल सफ़ाया करना चाहते हैं. और ये सब कहने के बावजूद इज़रायल हमारे साथ दोस्ती करना चाहता है. मैं इज़रायल से कहना चाहता हूं कि आप पेन किलर्स खिलाकर हमारे जख़्म नहीं भर सकते.इसके बाद प्रिंस तुर्की ने दिया एक आश्वासन. बोले-
फिलिस्तीन पर सऊदी का स्टैंड बिल्कुल नहीं बदला. इज़रायल एक आज़ाद फिलिस्तीन देश का गठन होने दे. 1967 में जीते हुए फिलिस्तीनी इलाके खाली करे. इसके बाद ही सऊदी के साथ उसके रिश्ते सुधर सकते हैं.

फिलिस्तीन और इज़रायल के बीच झगड़े की सबसे प्रमुख वजह जेरूसलम मानी जाती है. (गूगल मैप्स)
अब प्रिंस तुर्की की भाषा देखिए और इसकी तुलना कीजिए MBS के साथ
जनवरी 2017 में सत्ता संभालने के बाद से ही डॉनल्ड ट्रंप मिडिल ईस्ट के लिए ख़ासे उत्साहित थे. उनका दावा था कि वो इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष का परफ़ेक्ट हल निकालेंगे. इसपर 2018 में MBS का बयान आया. उन्होंने कहा-
पिछले कई दशकों से फिलिस्तीनी नेतृत्व एक-के-बाद-एक मौके चूकता रहा. शांति कायम करने के तमाम प्रस्ताव ठुकराता रहा. अब वक़्त आ गया है कि फिलिस्तीन अमेरिका द्वारा दिया गया प्रपोजल स्वीकार करे. बातचीत के लिए तैयार हो. या फिर अपना मुंह बंद करे और शिकायत करना छोड़ दे.शट अप ऐंड स्टॉप कम्प्लेनिंग. ये थे MBS के शब्द. वो भी उस डील के पक्ष में, जिसमें फिलिस्तीनी अधिकारों की कोई परवाह नहीं की गई. यहां तक कि जेरूसलेम को इज़रायल की राजधानी भी मान लिया गया. फिर 2018 में ही MBS ने एक और बड़ा फैसला लिया. उन्होंने एयर इंडिया को सऊदी हवाई क्षेत्र होते हुए टेल अविव जाने की परमिशन दे दी.

क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान. (एपी)
जो अब तक नहीं हुआ, वो MBS के राज में हो रहा था. अटलांटिक मैगज़ीन को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने ये भी कहा कि इज़रायल का अपनी ज़मीन पर अधिकार है. ये बयान सीधा-सीधा इज़रायली दावे का एन्डोर्समेंट था. इज़रायल कहता है कि जहां उसका देश है, वहीं उसके पूर्वज रहते थे. उस ज़मीन पर उसका धार्मिक और नैतिक अधिकार है. यही दावा इज़रायल और फिलिस्तीनी संघर्ष का यक्ष प्रश्न है. अरब देशों ने इज़रायल के इस दावे को कभी नहीं माना. ऐसे में सऊदी के होने वाले राजा का ये बयान बिल्कुल 180 डिग्री बदलाव था.
इज़रायल पर आगे बढ़ने की MBS हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं. मगर दिक्कत ये है कि सऊदी राजशाही के ओल्ड गार्ड्स इसके विरोध में हैं. MBS इन बुजुर्गों से निपट सकते हैं. उन्हें रास्ते से हटवा सकते हैं. मगर परेशानी ये है कि इस सवाल पर उनके पिता भी उनके साथ नहीं. यही वजह है कि UAE और बहरीन के साथ हुई इज़रायली डील के बाद सऊदी के ओल्ड गार्ड्स खुलकर MBS के खिलाफ़ जा रहे हैं.
अब सवाल है कि MBS इस चुनौती से कैसे निपट रहे हैं?
फिलहाल उनकी पॉलिसी है, धैर्य. वो जानते हैं कि आधिकारिक तौर पर इज़रायल से हाथ मिलाना उनकी दावेदारी के लिए ख़तरनाक हो सकता है. इसीलिए वो अंडर द टेबल आगे बढ़ रहे हैं. ये मध्यम मार्ग है. ऐसा करके वो अपने पिता को फिलिस्तीनी मुद्दे पर चेहरा बचाने का मौका भी दे रहे हैं. और, इज़रायल के साथ रिश्ते भी बढ़ा रहे हैं. साथ ही, वो UAE, बहरीन और सूडान जैसे देशों की इज़रायल से डील करवाकर अपने लिए ज़मीन भी बना रहे हैं. जितने ज़्यादा से ज़्यादा अरब देश इज़रायल के साथ होते जाएंगे, उतना ही ये मुद्दा नॉर्मल होता जाएगा.
सोचिए, अगर इज़रायल से दोस्ती करने वालों में आख़िरी अरब मुल्क हो सऊदी, तो क्या सऊदी राजशाही का विरोधी धड़ा MBS को चैलेंज कर सकेगा? उन्हें खलनायक बना सकेगा? उस स्थिति में MBS के पास पब्लिक सपोर्ट भी होगा. बहाना होगा कि इज़रायल के साथ न जाकर ईरान के आगे सऊदी अकेला पड़ सकता है. ऐसे में ख़ुद किंग सलमान भी MBS को रोक नहीं पाएंगे.
जहां तक MBS के उस क़त्ल होने के डर की बात है, सऊदी राजपरिवार में पहले भी कई हत्याएं हो चुकी हैं. 19वीं सदी से ही वहां राजाओं और राजकुमारों के कभी अपने भाई, कभी चाचा-ताऊ, तो कभी भतीजों के हाथों महल के भीतर मारे जाने की हिस्ट्री रही है. जैसे 1975 में किंग फ़ैसल को उनके भतीजे ने गोली मार दी थी. इन हत्याओं का कारण कभी सत्ता संघर्ष रहा, कभी कोई पुरानी खुन्नस.

इज़िप्ट के पूर्व राष्ट्रपति अनवर सादात. (एएफपी)
लेकिन क्या फिलिस्तीन के सवाल पर ऐसी कोई बड़ी हत्या हुई है?
हां, हुई है. मगर सऊदी में नहीं, इज़िप्ट में. वहां राष्ट्रपति थे, अनवर सादात. 1979 में उन्होंने इज़रायल के साथ एक शांति समझौता किया था. ये डील बहुत महंगी पड़ी उन्हें. अक्टूबर 1981 में परेड की सलामी लेते वक़्त सादात की हत्या कर दी गई. मुमकिन है कि इस प्रसंग के चलते MBS ने वो हत्या वाली आशंका जताई हो. वैसे वो बहुत एहतियात बरतते हैं. आलोचक उन्हें पैरानॉइड कहते हैं. MBS को अपनी हत्या का इतना डर रहा है कि उन्होंने सारे संभावित चैलेंजर्स को पहले ही किनारे हटा दिया है. इतने पर भी अगर वो कहते हैं कि इज़रायल से डील करने पर उनकी हत्या हो सकती है, तो समझिए कि ये मामला उन्हें कितना डराता होगा.