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पहाड़ों पर हर साल होने वाली तबाही का जिम्मेदार कौन? प्रकृति या इंसान

बारिश के चलते पिछले 5 सालों में हिमाचल में 7 हज़ार 500 करोड़ रुपये का आर्थिक नुक़सान हुआ है.

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Himachal pradesh floods and land slide
शिमला में भूस्खलन की चपेट में आया मंदिर, कई लोगों की मौत
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आयूष कुमार
16 अगस्त 2023 (Updated: 16 अगस्त 2023, 11:36 PM IST) कॉमेंट्स
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आपके लिए शिमला क्या है? शनिवार-इतवार की छुट्टी. पहाड़ों पर बर्फ. मॉल रोड. अगर हम शिमला को यहीं तक देख पा रहे हैं तो हमें अपनी समझ का दायरा बढ़ाने की जरूरत है. इतिहास में थोड़ा नजर गड़ाने की जरूरत है.

- साल 1864. शिमला को अंग्रेजों ने समर कैपिटल ऑफ इंडिया घोषित किया. 
- साल 1913. शिमला में चीन, तिब्बत और भारत का सम्मेलन हुआ.
- साल 1945. शिमला कॉन्फ्रेंस. जिसमें अंग्रेजों के भारत छोड़ने के बाद की रूपरेखा तय हुई. 
- साल 1972. भारत-पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता. जिसमें ये तय हुआ कि कश्मीर समेत दोनों देशों के विवादों को आपस में शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाया जाएगा.

ये है इस शहर का इतिहास. वही शहर जिसकी दरकती हुईं तस्वीरें हमारे-आपके वॉट्सएप पर एक वायरल क्लिप बनकर रह गई हैं. आज बात होगी हिमाचल उत्तराखंड की. बात होगी पहाड़ों की. और हम समझने की कोशिश करेंगे कि आखिर पहाड़ों पर इन आपदाओं की असल वजह क्या है? क्या वाकई ये प्राकृतिक आपदाएं हैं. या फिर मैन मेड डिज़ास्टर.

हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश, लैंडस्लाइड और बादल फटने की घटनाओं ने भयानक तबाही मचाई हुई है. अब तक पूरे राज्य में क़रीब 60 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. मलबे में फंसे लोगों को रेस्क्यू करने का काम जारी है. आशंका है कि वहां कई शव भी दबे हुए हैं. सूबे में हालात कितने खराब हैं, आपको कुछ उदाहरणों से मालूम होगा -

1. राजधानी शिमला का कृष्णा नगर इलाक़ा. 15 अगस्त को लैंडस्लाइड के चलते यहां कई मकान ढह गए. अपने आस-पास दशकों से रह रहे लोगों के घर ढहते देख पड़ोसी अपनी चीखें नहीं रोक पाए. हमने भूस्खलन के बाद मचा हाहाकार देखा है. लेकिन जब ज़मीन धंसकती है और आपकी आंखों के सामने सब-कुछ नष्ट हो जाता है, वो बेबसी इस वीडियो में शायद पहली बार देखी और सुनी गई. 15 अगस्त की शाम तक इसी जगह से 40-50 लोगों को रेस्क्यू किया गया. घटना की जानकारी मिली तो CM सुखविंदर सिंह सुक्खू भी इलाक़े का दौरा करने पहुंचे.

2. इससे ठीक एक दिन पहले, शिमला के ही समर हिल इलाक़े में बादल फटने के बाद भूस्खलन हुआ. चपेट में इलाक़े का शिव मंदिर भी आ गया, जहां सावन का सोमवार होने के चलते भीड़ कुछ अधिक थी. ज़मीन इतनी तेज़ी से धंसी कि किसी को कुछ करने का मौका नहीं मिला. मंदिर के मलबे से अभी तक कुल 21 शवों को निकाला गया है. इसी इलाक़े में रहने वाले शर्मा परिवार के तीन मंज़िला घर पर सन्नाटा तारी है. क्योंकि इस परिवार के कुल 7 लोग मंदिर के अंदर थे. बचाव कार्य जारी है और जैसे-जैसे शव निकल रहे, ऐसी ही त्रासद कहानियां बाहर आ रही हैं. जैसे, हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर मानसी वर्मा की कहानी. 7 महीने की प्रेग्नेंट थीं. पति के साथ मंदिर में खीर चढ़ाने गई थीं. तीन जानें दब गईं.

3. 14 अगस्त को ही शिमला में एक और जगह पर भूस्खलन हुआ - फागली. यहां पांच लोगों की मौत हो गई. सोलन ज़िले में भी 7 लोगों के मर जाने की ख़बर है. CM सुखविंदर सिंह सुक्खू ने बताया है कि अब तक के आकलन के मुताबिक प्राकृतिक आपदा से 10 हज़ार करोड़ रुपये का नुक़सान हो चुका है.

हिमाचल से अब चले आइए उत्तराखंड. वहां भी हालात क़ाबू से बाहर हैं. भारी बारिश और बादल फटने की वजह से नदियां ऊफ़ान पर हैं. भूस्खलन के चलते गिरे मलबे से सड़कें अटी पड़ी हैं. पेड़ और पुल टूटने की ख़बर हर तीन घंटे में आ रही है. राज्य में अब तक छह लोगों की मौत हो गई है और रेस्क्यू टीम्स की तमाम कोशिशों के बावजूद सात लोग अभी तक लापता हैं. उत्तरकाशी, जोशीमठ और ऋषिकेश सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं. उत्तरकाशी के गांवों में पानी घुसा, तो उसके साथ एक महिला की लाश मिली. जो दो दिन से लापता बताई जा रही थीं. ऋषिकेश में लक्षमण झूले के पास एक 14 साल की बच्ची की फूली हुई लाश मिली.

15 अगस्त को ही रुद्रप्रयाग के मद्महेश्वर मंदिर के मार्ग पर एक पुल ढह जाने से 100 से ज़्यादा तीर्थयात्री फंस गए थे. SDRF के जवानों ने उन्हें बचाया. NH, SH और कई ग्रामीण सड़कों को फिर से खोलने के प्रयास फिर से शुरू किए गए हैं. मगर मौसम विभाग लगातार चेतावनी जारी कर रहा है.  आधिकारिक अनुमान के मुताबिक़, इस मॉनसून सीज़न में अब तक बारिश से संबंधित घटनाओं की वजह से 52 लोगों की मौत हो गई है.

हिमाचल हो या उत्तराखंड. 52.. 21.. या 5. ये बस संख्या नहीं. ज़िंदा लोग हैं.. थे. हिमाचल और उत्तराखंड को मिला दें, तो 120 जिंदगियां सालाना त्रासदी का फिर शिकार हो गईं. सालाना त्रासदी हम इसलिए कह रहे हैं कि ये कोई पहली बार की घटना नहीं है. हर साल हम ख़बरें पढ़ते ही हैं कि भारी बारिश से उत्तराखंड में फ़लां जगह पूरी सड़क ही ढह गई. होटेल ढह गए, घर ढहने से इतने लोग मर गए. फिर हमने इससे क्या सीखा? और कुछ नहीं, तो आपको दोनों राज्यों की स्थिति ही बता देते हैं.

हिमाचल प्रदेश के राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण यानी State Disaster Management Authority के रिपोर्ट किए गए आंकड़ों में कहा गया है कि 2017 और 2022 के बीच, मॉनसून-संबंधित आपदाओं में 1 हज़ार 893 से ज़्यादा लोगों की जान चली गई. पांच सालों में क़रीब 19 सौ लोग. माने हर साल 400 के आस-पास सांस लेते लोग. हिमाचल के लिए हाल में सबसे ख़तरनाक़ साल था, 2021. 476 लोगों की मौत हो गई और 700 से ज़्यादा घायल हो गए थे.

और केवल आदमी ही क्यों, मॉनसून-संबंधी आपदाओं के चलते 5 सालों में 3 हज़ार 300 से ज़्यादा मवेशियों की मौत हुई है. SDRF निदेशक सुदेश कुमार मोख्ता के मुताबिक़, पिछले साल केवल जुलाई महीने में 580 से ज़्यादा जानवरों की मौत रिपोर्ट की गई थी. और, ज़िंदगियों जैसी सेंटिमेंटल चीज़ों को छोड़ भी दें, तो प्रदेश में मॉनसून के कारण इन पांच सालों में 7 हज़ार 500 करोड़ रुपये का आर्थिक नुक़सान भी हुआ है.

हिमाचल की ज़्यादातर घटनाओं में एक बात सामने आ रही है, कि बादल फटा, आसमान से पानी ऐसा गिरा कि सबकुछ बहाकर ले गया. लेकिन जब दी लल्लनटॉप ने हिमाचल यूनिवर्सिटी में पत्रकारिता के प्रोफ़ेसर और वरिष्ठ पत्रकार शशिकांत से बात की, तो उन्होंने बताया कि थोड़ी सी ज़्यादा बारिश को भी हम अब बादल फटना कहने लगे हैं. लेकिन तबाही के लिए पानी से ज़्यादा, मलबा ज़िम्मेदार है. उनका कहना है कि पहाड़ों पर भारी कंस्ट्रक्शन बढ़ा है. नाले चोक हुए हैं. मलबा पहाड़ों पर जमा है. इसलिए थोड़ी सी ज्यादा बारिश होने पर ये मलबा नीचे गिरता है और हम कह देते हैं कि बादल फटने से हादसा हो गया. शिमला के समरहिल इलाके में स्थित प्रसिद्ध शिव मंदिर में जो हुआ, इसकी भी यही वजह दिखती है. शशिकांत कहते हैं कि मंदिर एक नाले के किनारे पर बना था. ऊपर से पानी आया और साथ में अपने मलबा भी लेकर आया. और यही वजह बनी इतने बड़े हादसे की.

हिमाचल में शशिकांत एक और महत्वपूर्ण बात की ओर ध्यान दिलाते हैं. टूरिज़्म को बढ़ावा देने के नाम पर सड़कें चौड़ी की जा रही हैं. जहां 2-लेन हैं, वहां 4-लेन सड़क बनाई जा रही है. इसी सिलसिले में वो शिमला-कालका नेशनल हाईवे के निर्माण का जिक्र करते हैं और गंभीर सवाल उठाते हैं. कहते हैं कि पहाड़ों में जब सड़कें बनाई जाती हैं, तो किनारे-किनारे रिटेनिंग वॉल बनाई जाती है. यही दीवार सड़क को हादसे से बचाती है. पानी आने पर सड़क धंसे न और टूटे न. ये रिटेनिंग वॉल आमतौर पर कंक्रीट की बनती हैं. लेकिन शिमला-कालका हाईवे पर कॉन्ट्रैक्टर ने एक्सपेरिमेंट किया. क्या किया? रिटेनिंग वॉल पत्थर की बनाई गईं. जिसमें सीमेंट से चुनाई हुई और अंदर मिट्टी भरी हुई थी. नतीजा ये रहा कि सड़क थोड़ा भी पानी बर्दाश्त नहीं कर पा रही.

हिमाचल का हाल आपने सुना. अब उत्तराखंड का हाल सुनिए. 1991 के उत्तरकाशी भूकंप भूल जाएं. 1998 के मालपा भूस्खलन भी भूल जाएं, 1999 का चमोली भूकंप भी छोड़ दें और हमारी स्मृतियों में सबसे ताज़ा 2013 की त्रासदी भी छोड़ दें. तब भी, SDRF के आंकड़ों की कहें तो बीते 20 सालों में उत्तराखंड में 5 हज़ार 731 लोगों की मौत हुई है. सबसे ज़्यादा मौतें भारी बारिश, बादल फटने या ग्लेशियर फटने की वजह से आई बाढ़ और भूस्खलन से हुई हैं. अगर केदारनाथ बाढ़ की संख्या को हटा भी दिया जाए, तो हर साल प्राकृतिक आपदाओं से औसतन 80 लोगों की जान गई.

यहां क्या कारण हैं? हिमालय भूविज्ञान संस्थान के डॉ. सुशील कुमार ने PTI को बताया कि हिमालय श्रृंखला, बहुत नई हैं (young है). इसकी ऊपरी सतह पर 30-50 फीट तक केवल मिट्टी होती है. और ज़रा सी बारिश से ही भूस्खलन का ख़तरा सच हो जाता है. उन्होंने ये भी कहा कि जिस हिसाब से निर्माण कार्य चल रहा है, आने वाला समय अच्छी ख़बरें लाएगा -- इसमें संशय है. ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट के निर्माण के लिए पहाड़ियों की कटाई हो रही है. चार धाम यात्रा के चलते तीर्थयात्रियों की भीड़ बढ़ी है और टिहरी बांध के जलग्रहण क्षेत्र में बढ़ोतरी हुई है. इन सब की वजह से इलाका और संवेदनशील होता जा रहा है.

अब चूंकि बात आ ही गई है, तो इस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए. चार धाम प्रोजेक्ट. मोदी सरकार की एक पसंदीदा प्रोजेक्ट. मक़सद है कि चार प्रमुख तीर्थ स्थलों - यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ - को जोड़ा जाए. नैशनल सेक्योरिटी के लिहाज़ से भी ये प्रोजेक्ट अहम बताया जाता है. ये 2-लेन सड़कें, फ़ीडर सड़कों को तौर पर काम कर सकती है. भारत-चीन सीमा को देहरादून और मेरठ के सेना शिविरों से जोड़ती है, जहां मिसाइल बेस और भारी मशीनरी स्थित हैं. नैशनल सेक्योरिटी एक तरफ़, लेकिन प्रोजेक्ट के दौरान पर्यावरण संकट की भी आशंकाएं जताई गई थीं. मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया था और कोर्ट ने एक 26-सदस्यीय कमिटी बनाई थी. कमेटी का काम - 826 किलोमीटर के इस प्रोजेक्ट का राज्य पर क्या असर होगा, वो बताएं. पैनल के अध्यक्ष रवि चोपड़ा समेत पांच लोगों ने कहा था कि नुक़सान हो सकता है. भूस्खलन, जंगलों की हानि, हिमालय से निकली नदियों और वन्यजीवों के लिए ख़तरा हो सकता है. हालांकि, इसी समिती के 21 सदस्यों का कहना था कि नुक़सान को कम किया जा सकता है.

हिमाचल और उत्तराखंड को हम दिल्ली के प्रवासी केवल दो नज़रों से देखते हैं - धार्मिक और ख़ूबसूरत. और, टूरिज़्म को धर्म से जोड़ने से इन जगहों पर लगातार भीड़ बढ़ रही है.

तिया-पांचा तो हमने आपको बता दिया. कितने लोग इस साल मरे, कितने बीते 10 साल में मरे. कितना नुक़सान हुआ. लेकिन यहां एक बात रेखांकित करने वाली है. इन घटनाओं के दो स्टेकहोल्डर्स हैं. दो जवाबदेह हैं. सरकार और समाज. समाज, माने हम और आप. सरकार कितनी सजग है, उसका ब्योरा हम दे ही रहे हैं. समाज का ब्योरा आपको अपने आस-पास तलाशना है. हम मोहित चौहान के गाने बजाते हुए चल देते हैं - फिर से उड़ चला.. ख़्वाबों के परिंदे.. सफ़रनामा.. 
उड़ चलने में कोई हर्ज़ नहीं है. लेकिन हम ये भूल जाते हैं कि हम वहां मेहमान हैं. पर्यटन के नाम पर हमने पैसे दे दिए, तो हमें लगने लगता है कि जो चाहें, जैसे चाहें कर सकते हैं. जिस तरह का ग़ैर-ज़िम्मेदाराना बर्ताव हम वहां करते हैं, वो भी इन त्रासदियों का हिस्सा है. हर साल आप ख़बरें देखते होंगे, मनाली में जाम. देहरादून में जाम. बीते अप्रैल की ही ख़बर बता देते हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, 11 अप्रैल को विकेंड के दौरान दिल्ली-चंदीगढ़ से क़रीब 30 हज़ार गाड़ियां हिमाचल में पहुंच गईं.

ये टूरिस्ट जो पहाड़ घूमने जाते हैं, वो हैं कौन. वो हैं दिल्ली-नोएडा और इसके आसपास बसे हम और आप. जो अपने वीकेंड को पहाड़ों पर मनाने की होड़ में जुटे हुए हैं. हम जाते हैं तो और कूड़ा छोड़कर आते हैं. बर्फीले इलाकों में एक चिप्स का पैकेट, एक पानी की बॉटल, हजारों साल तक वैसी ही बनी रह सकती है. यानी एक वो सारा कूड़ा जो हम पहाड़ों पर छोड़कर आ रहे हैं वो मलबे में तब्दील हो रहा है. जरा सोचिए कि लाखों पर्यटकों को झेलने के बाद पहाड़ों पर कितना कूड़ा इक्ट्ठा हो रहा होगा. धड़ाधड़ सड़कों और होटलों के निर्माण से कितना मलबा तैयार हो रहा होगा. और यही मलबा जब बारिश के साथ ऊपर से नीचे आता है तो रास्ते में आने वाले मकान, इमारत, गाड़ियां सबकुछ बहा ले जाता है. जिसकी बानगी आज हमें देखने को मिल रही है.

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