इस कांड के चलते देश के सामने नहीं आए इमरान!
Imran Khan ने अंतिम समय पर अपना भाषण क्यों टाल दिया?
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Imran Khan ने अंतिम समय पर अपना भाषण क्यों टाल दिया? (प्रतीकात्मक तस्वीर, AP)
‘अमेरिका के इतिहास में पहली बार लिंचिंग को फ़ेडरल हेट क्राइम घोषित किया जा रहा है. और, हम ये एमेट टिल के नाम पर कर रहे हैं. ये एक ऐतिहासिक अन्याय को ठीक करने की कोशिश है.’
अमेरिका में लिंचिंग का इतिहास क्या रहा है? इसके लिए हमें लिंचिंग की परिभाषा समझनी होगी. लिंचिंग एक तरह की हिंसा है. इसे गैर-न्यायिक हत्या भी कहते हैं. इसके तहत, आरोपी की बिना किसी सुनवाई के हत्या कर दी जाती है. कानूनी परिभाषा के मुताबिक, जब तीन या तीन से अधिक व्यक्ति मिलकर कथित न्याय, और ये न्याय भीड़ का होता है, देने के लिए किसी की हत्या कर दें, तो उसे लिंचिंग कहा जा सकता है. अमेरिका में 1770 के दशक में रेवॉल्युशनरी वॉर शुरू हुआ. इस दौरान चार्ल्स लिंच नाम के एक ज़मींदार ने एक अदालत की स्थापना की थी. इसमें विरोधियों को सज़ा दी जाती थी. इस अदालत को कानूनी मान्यता नहीं थी. और, ना ही इनमें तय विधि का पालन होता था. चार्ल्स लिंच के नाम पर कानून को लिंच लॉ कहा गया. और, पूरी प्रक्रिया को लिंचिंग. कालांतर में लिंचिंग का इस्तेमाल अश्वेत समुदाय को आतंकित करने और उन्हें काबू में रखने के लिए किया जाने लगा. अमेरिका में लिंचिंग का एक तय पैटर्न दिखता है. जिस भी अश्वेत व्यक्ति से दिक्कत होती, सबसे पहले उसके ऊपर आरोप लगाया जाता. अधिकतर मामलों में आरोप बाद में झूठे साबित हुए. फिर पुलिस उस व्यक्ति को पकड़ने पहुंचती. उसी समय भीड़ भी इकट्ठा हो जाती. भीड़ आरोपी को पुलिस के चंगुल से खींच लेती थी. फिर उसे भर दम पीटा जाता. आरोपी को हर तरह से टॉर्चर करने के बाद उसे पेड़ से लटका दिया जाता था. कई बार तो आरोपी को आग से जला दिया जाता था. लिंचिंग में शामिल लोग मांस और हड्डियों को निशानी के तौर पर ले जाते थे. कई मामलों में पुलिस और कानूनी एजेंसियां भी लिंचिंग में सहयोग करतीं थीं. अगर आरोपी को गिरफ़्तार कर जेल में बंद कर दिया जाता, फिर भी उसके कानूनी अधिकारों की कोई गारंटी नहीं होती थी. पुलिस अक्सर आरोपी के सेल के दरवाज़े को खुला छोड़ दिया करती थी. इसके बाद बाकी क़ैदी आरोपी को पीट-पीटकर मार देते थे. पीड़ितों पर किस तरह के आरोप लगाए जाते थे? लिंचिंग के मामले में दो तरह के आरोपों का इस्तेमाल सबसे अधिक होता था. पहला, यौन शोषण. और दूसरा, हत्या. इक़्वल इनीशिएटिव जस्टिस (EJI) की एक रिपोर्ट के अनुसार, लिंचिंग के 30 प्रतिशत मामलों में हत्या का आरोप लगाया गया. जबकि, 25 प्रतिशत मामलों में आरोपी पर यौन दुर्व्यवहार का इलज़ाम लगाया गया. जानकारों की मानें तो लिंचिंग के जरिए वाइट कम्युनिटी एक साथ कई संदेश दिया करती थी. इतिहासकार बॉब स्मीड ने अपनी किताब ब्लड जस्टिस: द लिंचिंग ऑफ़ मैक चार्ल्स पार्कर में लिखा है,Today, @POTUS will sign my Emmett Till #AntilynchingAct into law.
For the first time in U.S. history, we are finally make lynching a FEDERAL hate crime. And we are doing it in Emmett Till’s name. It’s time to right this historic injustice. pic.twitter.com/2SR92ufCKU — Bobby L. Rush (@RepBobbyRush) March 29, 2022
भीड़ ने लिंचिंग को एक सांकेतिक प्रथा में बदल दिया था. इसमें अश्वेत पीड़ित को पूरे समुदाय का प्रतिनिधिबना दिया जाता था. इसके ज़रिए उन्हें अनुशासित रखने की कोशिश की जाती थी. अश्वेत आबादी को चेतावनी दी जाती थी कि वे वाइट सुप्रीमेसी को चुनौती देने की कोशिश ना करें.’ अमेरिका में 1881 से 1968 के बीच लिंचिंग के लगभग पांच हज़ार मामले दर्ज़ हुए. इन मामलों में तीन-चौथाई से अधिक पीड़ित अश्वेत थे. लिंचिंग करने वालों के साथ क्या होता था? अधिकतर मामलों में आरोपी वाइट होते थे. उनकी संख्या सैकड़ों में होती थी. एक तो उनकी पहचान मुश्किल होती थी. और, अगर पहचान हो भी जाती थी तो उनके ऊपर कोई छोटा-मोटा चार्ज़ लगाया जाता था. EJI की रिपोर्ट के अनुसार, एक प्रतिशत से भी कम मामले में दोषियों को सज़ा मिली. अमेरिका में लिंचिंग के ख़िलाफ़ कानून बनाने की मुहिम 1900 के दशक में शुरू हो चुकी थी. अभी तक लगभग दो सौ बार इसके ख़िलाफ़ बिल पेश करने की कोशिश हुई. लेकिन हर बार नाकाम रही. अब जाकर ये कोशिश सफ़ल हुई है. अमेरिका ने तो अपने यहां लिंचिंग के ख़िलाफ़ कानून बना दिया है. दुनिया के कई देशों में भीड़ द्वारा न्याय का चलन बढ़ा है. इसमें अफ़्रीका और एशिया के अल्प-विकसित से विकासशील देश तक शामिल हैं. उम्मीद की जा सकती है कि इन देशों में भी लिंचिंग जैसे घृणित अपराध के ख़िलाफ़ सख़्त कदम उठाए जाएंगे. लिंचिंग के चैप्टर को यहीं पर विराम देते हैं. अब चलते हैं सोलोमन आईलैंड्स की तरफ़. सोलोमन आईलैंड्स प्रशांत महासागर में बसा एक द्वीपीय देश है. ये ऑस्ट्रेलिया और न्यू ज़ीलैंड के पास पड़ता है. सेकेंड वर्ल्ड वॉर के दौरान इस द्वीप की अहमियत काफ़ी बढ़ गई थी. (हम दुनियादारी में सोलोमन आईलैंड्स के बारे में विस्तार से बता चुके हैं. आपको उस ऐपिसोड का लिंक डिस्क्रिप्शन में मिलेगा.) अभी हम हालिया घटना का ज़िक्र कर लेते हैं. पिछले हफ़्ते सोलोमन आईलैंड्स सरकार का सीक्रेट दस्तावेज़ लीक हुआ था. इससे पता चला था कि चीन सोलोमन आईलैंड्स में अपना मिलिटरी बेस बनाने की तैयारी कर रहा है. अभी डील का पूरा मजमून स्पष्ट नहीं हो सका है. हालांकि, इसने ऑस्ट्रेलिया की चिंताएं बढ़ा दीं है. पिछले कुछ सालों से ऑस्ट्रेलिया और चीन के रिश्ते खराब हुए हैं. ऑस्ट्रेलिया ने यूके और अमेरिका के साथ ऑकस डील की है. इसके तहत, ऑस्ट्रेलिया को परमाणु ऊर्जा से संचालित होने वाली पनडुब्बियां मिलने वालीं है. इस डील के लिए उसने फ़्रांस से बना-बनाया सौदा रद्द कर दिया था. जानकारों का मानना था कि ऑस्ट्रेलिया प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़त रोकने के लिए ऐसा कर रहा है. अगर सोलोमन आईलैंड्स में चीन के मिलिटरी बेस पर बात आगे बढ़ी तो ऑस्ट्रेलिया की बढ़त गौण हो जाएगी. सेकेंड वर्ल्ड वॉर के बाद से ऑस्ट्रेलिया सोलोमन आईलैंड्स का सबसे बड़ा मददगार रहा है. उसने इस द्वीपीय देश के विकास में बड़ी भूमिका निभाई. और, अभी तक वो सोलोमन आईलैंड्स का सबसे बड़ा डिफ़ेंस पार्टनर भी था. चीन ने इसमें सेंध लगा दी है. उसने सोलोमन आईलैंड्स की सरकार का मन बदल दिया है. ये डील इस इलाके की जियो-पॉलिटिक्स में क्या गुल खिलाती है, देखना दिलचस्प होगा. अब पड़ोस की पॉलिटिक्स का हाल समझ लेते हैं. जान लेते हैं, पाकिस्तान के राजनैतिक संकट में क्या नया हुआ? बता दें कि पाकिस्तान में विपक्ष ने प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है. 28 मार्च को प्रस्ताव पटल पर रखा गया. 03 अप्रैल तक इस पर वोटिंग होने की उम्मीद है. अगर विपक्ष ने 172 सांसदों का समर्थन जुटा लिया तो इमरान ख़ान को कुर्सी छोड़नी होगी. ये तो हुई मूल बात. अपडेट क्या हैं? - 30 मार्च को मुत्ताहिदा क़ौमी मूवमेंट-पाकिस्तान (MQM-P) ने इमरान ख़ान को बड़ा झटका दिया. ये पार्टी इमरान सरकार में सहयोगी है. उसके पास नेशनल असेंबली में सात सीटें हैं. MQM-P के झटके का मंच इस्लामाबाद के पार्लियामेंट लॉज में सजा था. 29 मार्च की देर रात पार्लियामेंट लॉज में वीवीआईपी गाड़ियों का जमावड़ा लगना शुरू हुआ. विपक्ष के लगभग सभी बड़े नेता जमा हुए थे. वहां उन्होंने MQM-P के संयोजक डॉ. खालिद मक़बूल सिद्दीकी और दूसरे नेताओं से मुलाक़ात की. ये मुलाक़ात 30 मार्च की सुबह तक चली. बिलावल भुट्टो और विपक्ष के कई नेताओं ने कहा है कि MQM-P के साथ समझौता हो चुका है. विपक्ष का मन था कि समझौते का ऐलान तुरंत हो जाए. लेकिन MQM-P ने कहा, सब्र रखो. इतनी जल्दी भी क्या है. फिर ऐलान हुआ कि एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस बुलाई जाएगी. शाम चार बजे. तय समय पर प्रेस कॉन्फ़्रेंस शुरू हुई. इसमें MQM-P ने इमरान सरकार से समर्थन वापस लेने का ऐलान कर दिया है. पार्टी ने कहा कि ये फ़ैसला देश के हित में लिया गया है. MQM-P के निकलते ही इमरान सरकार ने बहुमत गंवा दिया है. अगर यही स्थिति वोटिंग के दिन तक बनी रही तो क़यामत तय है. - इन सबके बीच प्रधानमंत्री इमरान ख़ान क्या कर रहे हैं? वो अभी तक एक-एक को देख लेने की धमकियां दे रहे थे. अब ‘विदेशी साज़िश’ की बात सुनाते फिर रहे हैं. 27 मार्च को PTI की रैली में इमरान ख़ान ने एक चिट्ठी दिखाने की बात कही थी. उन्होंने कहा था कि ये चिट्ठी विदेशी साज़िश का सबूत है. विपक्ष ने कहा, काग़ज़ है तो दिखा दीजिए. इमरान के मंत्रियों ने पहले कहा कि हम सिर्फ़ चीफ़ जस्टिस को दिखाएंगे. 30 मार्च को इमरान ख़ान के सुर बदल गए. उन्होंने कहा कि मैं वरिष्ठ पत्रकारों के साथ चिट्ठी साझा करूंगा. 30 मार्च को इमरान ख़ान राष्ट्र के नाम संबोधन देने वाले थे. देर शाम उन्होंने अपना फ़ैसला बदल दिया. कहा जा रहा है कि MQM-P के अलगाव के बाद उन्हें नए सिरे से अपना भाषण तैयार करना होगा.