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PM मोदी ने जिनकी 108 फीट की मूर्ति का अनावरण किया, उनकी पूरी कहानी जान लीजिए

इस मूर्ति का वजन 218 टन है.

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 Nadaprabhu Kempegowda
फोटो: पीआईबी
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11 नवंबर 2022 (Updated: 11 नवंबर 2022, 22:32 IST)
Updated: 11 नवंबर 2022 22:32 IST
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पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने शुक्रवार, 11 नवंबर को बेंगलुरु में नदप्रभु कैम्पेगौड़ा (Nadaprabhu Kempegowda) की मूर्ति का अनावरण किया. मूर्ति 108 फीट ऊंची है. बेंगलुरु के जिस एयरपोर्ट के दूसरे टर्मिनल का उद्घाटन शुक्रवार को पीएम मोदी ने किया, उसका नाम भी कैम्पेगौड़ा इंटरनेशनल एयरपोर्ट है. इन दोनों की कीमत 5 हजार करोड़ बताई जा रही है. दरअसल, कैम्पेगौड़ा ने कर्नाटक की स्थापना की थी. और कर्नाटक में उनकी विशेष पहचान है. तो आज इस रिपोर्ट में हम बात करेंगे कैम्पेगौड़ा की, उनके कामों की और उनके शासनकाल की.

कौन हैं Nadaprabhu Kempegowda?

16वीं शताब्दी में जन्मे कैम्पेगौड़ा विजयनगर साम्राज्य में प्रभावशाली मुखिया थे. आजतक के प्रियंक द्विवेदी की रिपोर्ट के मुताबिक कैम्पेगौड़ा का परिवार तमिलनाडु के कांची से कर्नाटक आया था और उसके बाद उन्होंने विजयनगर में कामकाज संभाला. दावा किया जाता है कि कैम्पेगौड़ा ने बहुत कम उम्र में अपने पिता की मृत्यु के बाद पद संभाला. और इसी दौरान उन्होंने बेंगलुरु की स्थापना की.

फोटो: पीटीआई

बताया जाता है कि एक बार वो अपने मंत्री वीरन्ना और सलाहकार गिद्दे गौड़ा के साथ शिकार पर गए थे. तभी उन्होंने बेंगलुरु को बसाने की कल्पना की थी. वो एक ऐसा शहर बसाना चाहते थे जहां किले, टैंक, छावनी, मंदिर और कारोबार करने की सुविधा हो.

1537 में कैम्पेगौड़ा ने बेंगलुरु शहर को बसाया. इसके बाद उन्होंने अपनी राजधानी को येलहांका से बेंगलुरु शिफ्ट किया. बेंगलुरु को बसाने से पहले उन्होंने राज्य के शिवगंगा और डोम्लूर पर जीत हासिल की.

फोटो: पीआईबी

कैम्पेगौड़ा कन्नड़ थे. कन्नड़ भाषा में उनकी अच्छी पकड़ थी. लेकिन, साथ ही उन्हें कई भाषाओं का ज्ञान था. उन्होंने कई भाषाओं में शिलालेख भी लिखे. बेंगलुरु में कैम्पेगौड़ा ने एक विशाल किला बनाया. किला लाल रंग का था. किले में 8 दरवाजे थे. और खास बता ये थी कि किले के चारों तरफ गहरी खाई थी.

बताया जाता है कि कैम्पेगौड़ा दूर-दराज के इलाकों में रहने वाले कुशल कारीगरों को बेंगलुरु लाए और उन्हें वहां बसाया. टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक एक बार कैम्पेगौड़ा एक विवाद में फंस गए थे. इसके बाद विजयनगर के राजा ने उन्हें जेल में डाल दिया था और उनके अधिकार क्षेत्रों को सील कर दिया था. कैम्पेगौड़ा 5 साल तक जेल में रहे.

फोटो: पीआईबी

कर्नाटक में कैम्पेगौड़ा को सोशल रिफॉर्मर के तौर पर भी याद किया जाता है. दरअसल, मोरासू वोक्कालिंगा में 'बंदी देवारु' नाम की एक प्रथा का चलन था. टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक इस प्रथा के तहत अविवाहित महिलाओं के बाएं हाथ की आखिरी दो उंगलियों को काट दिया जाता था. कैम्पेगौड़ा ने इस प्रथा के खिलाफ आंदोलन किया. इसे खत्म कराने में उनका अहम योगदान माना जाता है.

पीएम मोदी ने आज कैम्पेगौड़ा की जिस मूर्ति का अनावरण किया उसे पद्म भूषण से सम्मानित मूर्तिकार राम वनजी सुतार ने डिजाइन किया है. इस मूर्ति का वजन 218 टन है जिसमें 98 टन कांस्य और 120 टन स्टील है. सुतार ने गुजरात में सरदार पटेल की मूर्ति को भी डिजाइन किया था.

फोटो: पीआईबी

इससे पहले भी कर्नाटक में उनकी मूर्ति स्थापित की जा चुकी है. कैम्पेगौड़ा की मृत्यु के बाद शिवगंगा के गंगाधेश्वर मंदिर में उनकी एक धातु की मूर्ति को स्थापित किया गया था.

वीडियो: कर्नाटक के मुरुगा मठ के महंत को गिरफ्तार करने में इतनी देर क्यों लगी?

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