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कौन थे राजा महेंद्र प्रताप सिंह, जिनके नाम पर अलीगढ़ में यूनिवर्सिटी बनने जा रही है?

इनका एक अफगानिस्तान कनेक्शन भी है.

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राजा महेंद्र प्रताप सिंह. (फाइल फोटो- India Today)
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अभिषेक त्रिपाठी
9 सितंबर 2021 (Updated: 15 सितंबर 2021, 05:12 PM IST) कॉमेंट्स
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अलीगढ़ का ज़िक्र होता है तो दो बातें दिमाग में आती हैं – ताला और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी. इस ख़बर में इन दोनों की बात नहीं होगी. बात होगी एक नई यूनिवर्सिटी की, जो अलीगढ़ में बनने जा रही है. 2019 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अलीगढ़ में एक नई यूनिवर्सिटी बनवाने की बात कही थी. कोविड काल में काम अटक गया. अब 14 सितंबर 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस नई यूनिवर्सिटी की नींव रखेंगे. यूनिवर्सिटी का नाम राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर होगा. और यही आज का विषय है. हम बात करेंगे राजा महेंद्र प्रताप सिंह की. वो कौन थे? इतिहास में उनका क्या योगदान रहा? और उनके नाम पर बन रहे विश्वविद्यालय का खाका कैसा होगा? हाथरस, मुरसान और महेंद्र प्रताप बात 19वीं सदी की है. वो रियासतों का दौर था. उत्तर प्रदेश के हाथरस में उस वक्त मुरसान रियासत हुआ करती थी. यहीं पर दिसंबर 1886 में घनश्याम सिंह नाम के जाट के घर तीसरा बेटा हुआ. नाम रखा गया – महेंद्र प्रताप. हाथरस के राजा हरनारायण सिंह के कोई पुत्र न था. लिहाजा उन्होंने महेंद्र प्रताप को गोद ले लिया. महेंद्र प्रताप को देश में ही अच्छी तालीम दिलाई गई. उस वक्त उन्होंने बीए तक पढ़ाई की थी. हालांकि बीए की फाइनल परीक्षा नहीं दे सके थे. वो 16 बरस के थे और कॉलेज चल ही रहा था, तभी जिंद रियासत की बलवीर कौर से उनका विवाह हो गया. कहते हैं कि जब महेंद्र प्रताप और बलवीर कौर का ब्याह हुआ, तो बारात संगरूर जानी थी. ऐसे में हाथरस से संगरूर के बीच 2 स्पेशल ट्रेन चलाई गई थीं. सिर्फ इस शादी के लिए. धूम-धाम से शादी हुई. कांग्रेस अधिवेशन में भागीदारी महेंद्र प्रताप सिंह के लिए 1906 का साल अहम साबित हुआ. कलकत्ता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन होना था. महेंद्र प्रताप घर वालों की इच्छा के ख़िलाफ जाकर उस अधिवेशन में शामिल हुए और वहां से उनकी ज़िंदगी बदल गई. वहां से वे राष्ट्रभक्ति और स्वदेशी के रंग में रंगकर लौटे. उन्होंने स्वदेशी को बढ़ावा देने, लोगों को शिक्षित करने पर जोर देना शुरू किया. 1909 में वृंदावन में विश्वविद्यालय खुलवाया, जिसे तकनीकी शिक्षा देने वाला देश का पहला सेंटर माना जाता है. आज जिस जमीन पर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी है, वो जमीन राजा महेंद्र प्रताप सिंह की ही दान की हुई है. इसीलिए हाल के दिनों में यूनिवर्सिटी का नाम उनके नाम पर रखने की मांग काफी तेज हुई. हालांकि अब UP सरकार ने उनके नाम पर नई यूनिवर्सिटी बनाने का ही फैसला कर लिया है. अफगानिस्तान कनेक्शन कहा जाता है कि मैसर्स थॉमस कुक एंड संस के मालिक बिना पासपोर्ट के अपनी कंपनी के स्टीमर से महेंद्र प्रताप को इंग्लैंड ले गए थे. वहां पर उनकी मुलाकात जर्मनी के शासक कैसर से हुई. वहां से वो अफगानिस्तान गए. फिर बुडापेस्ट, बुल्गारिया, टर्की होकर हेरात पहुंचे, जहां अफगानिस्तान के बादशाह से मुलाकात की और वहीं से एक दिसंबर 1915 को काबुल से भारत के लिए अस्थायी सरकार की घोषणा की. वे खुद और प्रधानमंत्री मौलाना बरकतुल्ला खां राष्ट्रपति बने. यही दौर था, जब अफगानिस्तान ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया था. मदद मांगने के लिए राजा महेंद्र प्रताप रूस गए और लेनिन से मिले. लेनिन ने कोई मदद नहीं की. इसके बाद 1920 से 1946 तक वे विदेशों में भ्रमण करते रहे. विश्व मैत्री संघ की स्थापना की. फिर 1946 में भारत लौटे. 1957 में बनी दूसरी लोकसभा में वे सांसद भी रहे. 29 अप्रैल 1979 को उनका निधन हो गया. कैसी होगी यूनिवर्सिटी? अब राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर अलीगढ़ में राज्य स्तरीय विश्वविद्यालय बनाया जा रहा है. कोल तहसील के लोढ़ा और मुसईपुर गांवों में यूनिवर्सिटी के लिए जमीन प्रस्तावित की गई थी. जिला प्रशासन इसके लिए 37 एकड़ सरकारी भूमि दे रहा है. इसके अलावा 10 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया जाएगा. यूनिवर्सिटी 100 करोड़ रुपये से अधिक की लागत से बनकर तैयार हो रही है. अभी पहली किश्त के तौर पर 10 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं. कहा जा रहा है कि दो साल के भीतर जनवरी 2023 तक ये परियोजना पूरी हो जाएगी. यूनिवर्सिटी बनने के बाद इसमें अलीगढ़, हाथरस, कासगंज व एटा के लगभग 395 कॉलेज शामिल होंगे.

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