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आचार्य महाप्रज्ञ कौन हैं, जिनको लेकर पीएम मोदी ने कई ट्वीट किए

आचार्य महाप्रज्ञ के आध्यात्मिक सफर पर एक नजर.

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आचार्य महाप्रज्ञ (फोटो: ट्विटर)
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आदित्य
19 जून 2020 (Updated: 19 जून 2020, 09:08 AM IST) कॉमेंट्स
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पीएम नरेंद्र मोदी ने संत आचार्य महाप्रज्ञ की जन्म शताब्दी पर उन्हें याद किया है. उनको लेकर कई बातें कहीं. कई ट्वीट किए. पीएम ने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ ने जितनी गहराई से अध्यात्म पर लिखा है, उतना ही व्यापक विजन उन्होंने फिलॉसफी, राजनीति, साइकोलॉजी और इकोनॉमिक्स जैसे विषयों पर भी दिया है. इन विषयों पर उन्होंने संस्कृत, हिन्दी, गुजराती, इंग्लिश में 300 से ज्यादा किताबें लिखी हैं. पीएम ने लिखा कि आचार्य ने योग के जरिए लाखों-करोड़ों लोगों को डिप्रेशन-फ्री जिंदगी जीने की कला सिखाई. आइए जानते हैं, कौन हैं संत आचार्य महाप्रज्ञ 14 जून, 1920 को राजस्थान के झुंझुनू के एक गांव में एक बच्चे का जन्म हुआ. नाम रखा गया नथमल. नथमल के बचपन में ही उनके पिता गुजर गए. इसके बाद मां ने ही उनका लालन-पालन किया. मां बालू धार्मिक प्रवृति की थीं, तो नथमल को शुरू से ही धार्मिक संस्कार मिले. 1931 में नथमल ने तेरापंथ के आचार्य कालूगणी से दीक्षा ली. नथमल अब नथमल से मुनि नथमल बन गए. हिंदी, मारवाड़ी, प्राकृत, संस्कृत आदि भाषाओं में निपुण होते गए. भारतीय और वेस्ट की फिलॉसफी पर पकड़ बनाते गए. आचार्य तुलसी नथमल के ज्ञान से इतने प्रभावित हुए कि उन्हें 'महाप्रज्ञ' कहना कहना शुरू किया. ये 1978 की बात है. 1979 में जब नथमल युवाचार्य बने, तो वह 'युवाचार्य महाप्रज्ञ' के नाम से जाने लगे. आचार्य के बाद सबसे बड़ी पदवी होती है युवाचार्य की. युवाचार्य महाप्रज्ञ, आचार्य तुलसी के बहुत नजदीक रहे. 1994 में आचार्य तुलसी ने खुद आचार्य का पद त्यागते हुए महाप्रज्ञ को आचार्य घोषित कर दिया. अब नथमल 'आचार्य महाप्रज्ञ' बन गए थे. 1995 में वे जैन धर्म के श्वेताम्बर तेरापंथ संघ के दसवें आचार्य बने. 2010 में वह निर्वाण की ओर बढ़ चले. महाप्रज्ञ का 'अणुव्रत' और 'प्रेक्षा ध्यान' महाप्रज्ञ ने अणुव्रत आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाई, जिसे आचार्य तुलसी ने 1949 में शुरू किया था. इसे जैन धर्म में जीवन शक्ति की उपस्थिति का सकारात्मक प्रमाण माना जाता है. इसमें नौ सूत्र और 13 सूत्रीय कार्यक्रम शामिल थे. इस सबके जरिए आत्म-शुद्धि और आत्म-नियंत्रण के जरिए चरित्र विकास पर ध्यान दिया जाता है. 1970 में आचार्य महाप्रज्ञ ने 'प्रेक्षा ध्यान' प्रणाली का नया रूप तैयार किया. जैन विश्व भारती यूनिवर्सिटी जैन विश्व भारती यूनिवर्सिटी की स्थापना में आचार्य महाप्रज्ञ की प्रमुख भूमिका रही. कई साल तक आचार्य महाप्रज्ञ इस यूनिवर्सिटी के प्रमुख रहे. इस यूनिवर्सिटी का उद्देश्य प्राचीन भारतीय परंपराओं में छिपी सच्चाइयों और मूल्यों का पता लगाना और बताना है. ख़ास कर जैन परंपरा में. 300 से ज्यादा किताबें लिखीं 22 साल की उम्र से ही लिखने वाले आचार्य महाप्रज्ञ अपने अंतिम क्षण तक लिखते रहे. 300 से ज्यादा किताबें लिखीं. इनमें से अधिकतर किताब अध्यात्म, ध्यान, मन, कर्म, मंत्र, साधना, योग, अहिंसा, जैन दर्शन, जैन इतिहास आदि विषयों को लेकर रहीं. आधुनिक विवेकानंद राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' ने आचार्य महाप्रज्ञ को लेकर कहा था-
महाप्रज्ञ आधुनिक विवेकानंद हैं. हमने विवेकानंद को नहीं देखा है, उनके बारे में सिर्फ पढ़ा और सुना है. लेकिन अब हम विवेकानंद को उनके विजन के जरिए देख सकते हैं.
भारत के पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी आचार्य महाप्रज्ञ को लेकर अक्सर कहते थे- मैं महाप्रज्ञ के साहित्य का बहुत बड़ा प्रेमी हूं.
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