चेन्नई में भी लड़ा गया था पहला विश्व युद्ध
किस्सा तब का जब विश्व युद्ध के दौरान अचानक एक जहाज ने इंडिया पर हमला कर दिया. और हीरो बना चेंपाकरन.
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फोटो - thelallantop
पहला विश्व युद्ध दो गुटों के बीच लड़ा गया था. एक गुट में थे - फ्रांस, ब्रिटेन, रूस और जापान जैसे देश, जिन्हें एलाइड पावर्स कहा जाता था और दूसरा ग्रुप था जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी और बुल्गारिया का. इस ग्रुप को सेंट्रल पावर्स कहा जाता था. हालांकि भारत इनमें से किसी भी गुट में शामिल नहीं था, पर ये भी कहने की बात नहीं कि भारत पर उस समय ब्रिटेन का राज था, जो भारतीय सैनिकों को जबरदस्ती अपनी ओर से लड़ने पर मजबूर कर रहा था. ब्रिटेन के राज को भारत में कमजोर करने के लिए जर्मनी के ही एक जहाज ने भारत पर अटैक किया था.
ये अटैक 22 सितंबर, 1914 को ठीक 'मद्रास डे' के एक महीने बाद हुआ था. 'मद्रास डे' हर साल मद्रास शहर के बसने की याद में 22 अगस्त को मनाया जाता है. हुआ ये था कि जर्मनी का एक जहाज अचानक से मद्रास आया और शहर के तट पर बम बरसाने शुरू कर दिए. इस जहाज का नाम था, SMS एम्डेन.
जर्मनी के हमले ने चेन्नई को दो महान विरासतें दीं. एक, तमिलों की नायाब बहादुरी और दूसरा एक धांसू देशभक्त चेंपाकरन पिल्लई, जिनकी बहादुरी को दूसरे विश्व युद्ध के समय सुभाष चंद्र बोस के समांतर आंका जाता है. सुभाष की तरह चेंपाकरन ने भी भारत की आजादी की लड़ाई के लिए ब्रिटेन की दूसरे देशों से दुश्मनी का फायदा उठाया था.
एम्डेन माने बहादुर

कैप्टन कार्ल वॉन मुलर
भारत में अंग्रेजों से बदला लेने के लिए 22 सितम्बर की रात जर्मनी का एम्डेन नाम का शिप लेकर कैप्टन कार्ल वॉन मुलर अपनी बड़ी सी फ्लीट के साथ आया और बंगाल की खाड़ी में घुस गया. फिर हिंद महासागर में मद्रास के तट तक उसने जबरदस्त तबाही तो मचाई ही मचाई, साथ ही बुमराह नाम की तेल कंपनी का 3.5 लाख गैलन तेल वहां रखा हुआ था. उसे भी तबाह कर दिया.
एम्डेन ने करीब 130 शेल बंदरगाह पर बरसाए. और दो बड़े टैंकों को तहस-नहस कर दिया. उसने दो दूसरे टैंकों को भी काफी नुकसान पहुंचाया. दो जहाज भी ध्वस्त कर दिए. इसके अलावा दो जहाजों को भारी नुकसान भी पहुंचाया. मद्रास के जनरल पोस्ट ऑफिस और मद्रास सेलिंग क्लब की बिल्डिंग भी इस हमले में टूट गई. और बंदरगाह के पास की बहुत सी इंपॉर्टेंट सड़कें भी इस हमले में टूट गईं. आज भी मद्रास के उस हिस्से में इस हमले के निशान देखे जा सकते हैं.
पर कुछ अनसुलझे सवाल अब भी हैं
जबकि कुछ हिस्टोरियन लोगों के लिए आज भी ये छकाने वाली बात है कि एम्डेन ने बस मद्रास को ही टारगेट क्यों किया और इस हमले को आगे क्यों नहीं बढ़ाया गया.
सारे हिंद महासागर में सक्सेजफुली अटैक करने वाले इस जहाज ने इंडिया से इंडोनेशिया तक कई जगहों पर बम बरसाए थे. इस जहाज की बहादुरी इतनी फेमस हुई थी कि जो भी कोई इंसान कोई बड़ा चैलेंज एक्सेप्ट करने को तैयार होता तो उसे लोग 'एम्डेन' नाम से पुकारने लगते. यानी कि एम्डेन बन गया था बहादुरी का प्रतीक.
मिला एक देशभक्त चेंपाकारामन पिल्लई
ऐम्डेन के अलावा एक और महारथी जिसे इस युद्ध के कारण लीजेंड की तरह याद किया जाता है, वो है चेंपाकारामन पिल्लई. चेंपाकरन भी एक तमिल था और ये चेंपाकरन ही एम्डेन को लेकर इंडिया तक आया था और उसने ही मद्रास के बंदरगाह पर हमला करने में मदद की थी. हालांकि कुछ हिस्टोरियंस इस क्लेम को सही नहीं मानते हैं.
चाहे चेंपाकरन का रोल इस अटैक में प्रूव होता हो या नहीं, इस बात के बहुत से दूसरे भी सबूत हैं कि ये युवा क्रांतिकारी ही जर्मनी की मदद ब्रिटिशों के खिलाफ भारत के लिए लाया था. यहां तक कि इनकी मदद का ही नतीजा था कि 1915 में काबुल में भारत की पहली प्रांतीय सरकार बन सकी थी, भले ही ज्यादा दिन चल न सकी हो. आखिरी में जब ये प्रयास असफल हुआ तो इसमें भाग लेने वाले लोग ब्रिटिश सरकार के बदले का शिकार भी हुए और उन्हें कड़ी सजा मिली.
कुछ सोर्सेज के हिसाब से चेंपाकरन का रोल सुभाष चंद्र बोस के इंडियन नेशनल आर्मी बनाने और सपोर्ट जुटाने में भी इंपार्टेंट था. कहते हैं दूसरे विश्व युद्ध के लिए इंडिया के लिए देश से बाहर सपोर्ट जुटाने में उन्होंने पूरी ताकत लगा दी थी. 2008 में चेंपाकरन का एक मेमोरियल गांधी मंडपम के पास अड्यार में बनाया गया. उस आदमी का मेमोरियल जिसने मद्रास पर हमला करने में जर्मनी की मदद की क्योंकि जर्मनी भी अंग्रेजों का दुश्मन था. अड्यार के गांधी मंडपम में 2008 में तमिलनाडु के उस वक्त चीफ मिनिस्टर रहे करुणानिधि ने चेंपाकरन की मूर्ति लगवाई थी.