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क्या नूपुर शर्मा पर कार्रवाई अरब देशों के दबाव में आकार की गई है?

पूर्व भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा के द्वारा मोहम्मद पैगंबर पर दिए गए आपत्तिजनक बयान पर खाड़ी देशों ने नाराजगी जाहिर कर, केंद्र से मामले में कार्रवाई करने की मांग की. वहीं बढ़ते विवाद को देखते हुए बीजेपी ने नूपुर शर्मा को पार्टी से निलंबित कर दिया है.

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Nupur Sharma
नूपुर शर्मा (फोटो: आजतक)
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अभिनव पाण्डेय
7 जून 2022 (Updated: 7 जून 2022, 08:13 PM IST) कॉमेंट्स
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नमस्कार. मैं हूं निखिल और आप देख रहे हैं दी लल्लनटॉप शो. भारत में संवाद की प्राचीन और  गौरवशाली परंपरा रही है. धर्म और समाज के जटिल से जटिल मुद्दों पर लंबी लंबी बहसें होती थीं. बहस के दौरान विद्वान अपने मत के समर्थन में कोई भी तर्क प्रस्तुत कर सकते थे, बस एक शर्त थी - भाषा की मर्यादा और संयम बना रहे. संवाद में क्रोध या घृणा के लिए कोई जगह नहीं होती थी. आपने आदि शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच शास्त्रार्थ का किस्सा सुना होगा. दोनों के बीच शास्त्रार्थ में निर्णायक बनीं मंडन मिश्र की पत्नी भारती. मंडन मिश्र और आदि शंकराचार्य - दोनों प्रकांड पंडित थे और 16 दिन तक कोई हारा नहीं. कहा जाता है कि तब भारती ने अपने ही पति के खिलाफ जाते हुए आदि शंकराचार्य को विजयी घोषित कर दिया था. सभा दंग रह गई. तब भारती ने बताया कि मंडन मिश्र के गले में पड़ी माला के फूल क्रोध के ताप से सूख गए हैं. क्योंकि वो हार रहे थे. लेकिन आदि शंकराचार्य के गले में पड़ी माला के फूल अब भी ताज़े हैं.

ये कहानी यहां से और आगे जाती है. लेकिन कहानी के इस पहले हिस्से का सबक बड़ा अहम है. कि किसी जटिल बहस में क्रोध या किसी दूसरे दुर्गुण को लाने का परिणाम अच्छा नहीं होता. आज हम डिबेट के नाम पर जो देख रहे हैं, उसकी तुलना मंडन मिश्र और आदि शंकराचार्य के शास्त्रार्थ करना बेवकूफी होगी. लेकिन सबक यहां भी लागू है. बहस के दौरान क्रोध या घृणा से कही गई बातों का परिणाम अच्छा नहीं होता. सवाल ये नहीं है कि क्या कोई धर्म या धार्मिक शख्सीयत आलोचना से ऊपर हो सकता है. सवाल ये है, कि आलोचना का तरीका क्या होगा. उसका मंच क्या होगा. उसके लिए शब्द कौनसे होंगे. नुपुर शर्मा प्रवक्ता से पूर्व प्रवक्ता हो गईं. अब निलंबित भी हैं. नवीन जिंदल तो पार्टी से ही रुखसत कर दिए गए. लेकिन उन्होंने जो किया, उसे भारत लगातार दूसरे दिन भुगतता रहा. पैगम्बर मुहम्मद के अपमान को लेकर 5 जून को खाड़ी देशों ने भारत के राजदूतों को बुला बुलाकर विरोध दर्ज कराया. विदेश मंत्रालय के अधिकारियों को रातभर जागकर बयान जारी करने पड़े. क्योंकि बात सिर्फ भारतीय सामान के बॉयकॉट की नहीं थी. इतनी मेहनत से साधे गए अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर आंच आने लगी थी. आज, यानी कि 6 जून को इन सारी बातों की गूंज घरेलू राजनीति में तो सुनी ही जा रही है, पूरी दुनिया में छपे और छप रहे अखबारों में इस कांड का ज़िक्र भी हो रहा है. जहां भारत की विदेश नीति की सफलता का ज़िक्र हो रहा था, वहां अब डैमेज कंट्रोल के लिए उठाए गए कदमों की बात हो रही है.

'ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए, औरन को शीतल करें, आपहूं शीतल होए.' 

कबीर दास के सबसे प्रचलित दोहों में से एक है. आमतौर पर कक्षा 6-7 में बच्चों को पढ़ा दिया जाता है. लाइनें इतनी सरल हैं कि हमेशा याद रहती हैं. दुर्भाग्यवश आजकल टीवी डिबेट के वक्त इसका मतलब हर कोई भूल जाता है. लाइनें बदल कर हो जाती हैं, ऐसी वाणी बोलिए सबसे झगड़ा होए. पंचम स्वर पर कोई एंकर सवाल करता है. उद्वेलित उन्माद के सप्तम स्वर पर वक्ता, प्रवक्ता और नेता जवाब देते हैं. बात का बतंगड़ बनता है. और बतंगड़ बड़े विवाद की शक्ल भी लेते हैं. कई बार वो भौगोलिक सीमाओं के पार भी पहुंच जाते हैं.  

मामला क्या है?

इंटरनेट के जमाने में एक बयान क्या कर सकता है. बीजेपी प्रवक्ता से पूर्व प्रवक्ता हो चुकी नूपुर शर्मा के तौर उदाहरण हम सबके सामने है. हुआ क्या अब तक आप जान चुके होंगे. रिमांडर के लिए बता देते हैं. नूपुर शर्मा ने एक टीवी डिबेट के दौरान ज्ञानवापी मसले पर इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की. धीरे-धीरे वीडियो की वो क्लिप वायरल होने लगी. दिल्ली बीजेपी के प्रवक्ता रहे नवीन जिंदल ने उसी अमर्यादित टिप्पणी पर ट्वीट कर, विवाद को और बढ़ा दिया.  देश के अलग-अलग हिस्सों में मुस्लिम समुदाय उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने लगा. नुपूर शर्मा के मुताबिक उन्हें जान से मारने की धमकी भी मिलने लगी. कानपुर दंगा भी उसी बयान को लेकर शुरू हुए विवाद में हुआ. नूपुर शर्मा पर कार्रवाई करने की मांग विपक्ष के कई नेता करते रहे. एक हफ्ते तक सबकुछ चला. धीरे-धीरे बात अरब के मुल्कों तक पहुंच गई.  

चुंकि पैंगबर मोहम्मद को मानने वाले दुनिया भर के मुसलमान हैं और उन्हें अपने आराध्य पर की टिप्पणी नागवार गुजरी. पहले अरब देशों के मौलवियों ने सोशल मीडिया पर ट्वीट कर बयान की मजम्मत की. अरब के देशों में भारतीय सामानों के बहिष्कार की मुहिम चलाने की बात होने लगी. आंच भारत और वेस्ट एशिया रीजन के मुल्कों से संबंध पर पड़ने लगी. एक बयान अंतार्राष्ट्रीय स्तर फजीहत का विषय बन गया. मामला डिप्लोमेसी यानी कूटनीतिक स्तर तक पहुंच गया. मीडिल ईस्ट में ज्यादातर देश मुस्लिम आबादी वाले हैं. कतर, कुवैत, ईरान, सउदी अरब, ओमान, यूएई जैसे देशों की प्रतिक्राएं सामने आने लगी. दो देशों के बीच कूटनितिक संबंध होने पर आपत्ति भी कूटनीतिक तरीके से जताई जाती है. वो आपत्ति कई तरीके से हो सकती है. हो सकता है कि चिट्टी लिखकर संबंधित देश के दूतावास से आपत्ति दर्ज कराई जाए. कई बार फोन कॉल के जरिए भी शिकायत की जाती है. डिप्लोमेटिक कॉम्यूनिकेशन का हाईएस्ट फॉर्म होता है कि कोई देश दूसरे देश राजदूत या उच्चायुक्त को तलब करके आपत्ति जताए. इसका मतबल ये होता है कि आपके देश के राजदूत को बाकयदा सदेह बुलाया जाएगा. डिस्पेलजर जताते हुए जवाब मांगा जाता है.

इस मसले पर कतर, कुवैत, ईरान ने डिप्लोमेटिग कॉम्यूनिकेशन हाईएस्ट फॉर्म का इस्तेमाल किया. हिंदुस्तान के राजदूतों को तलब किया गया. जबकि सउदी अरब, ओमान, यूएई, बहरीन जैसे देशों ने बयान जारी करके निंदा की. सबसे पहले बात कतर की करते हैं. कतर की प्रतिक्राए ऐसे वक्त में आई जब देश के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू उसकी राजधानी दोहा में मौजूद थे. उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के व्यापार को बढ़ावा देने के लिए भारतीय व्यापार जगत के नेताओं के साथ खाड़ी देशों के सपन्न मुल्क कतर में हाई-प्रोफाइल दौरे पर थे.

क़तर के विदेश मंत्रालय की ओर से जारी किए गए बयान में भारत की सत्तारूढ़ पार्टी के नेता के विवादास्पद बयान पर कड़ी नाराज़गी जताई गई. भारतीय राजदूत दीपक मित्तल को तलब किया गया. उनकी तरफ से सबसे पहले बीजेपी की सस्पेंशन की कार्रवाई का स्वागत किया. उसके लिखा

इस तरह की इस्लामोफोबिक टिप्पणियों को बिना सजा के जारी रखने की अनुमति देना, मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा है. इससे हिंसा और नफरत का माहौल बन सकता है. भारत सरकार से कतर मामले में सार्वजनिक माफी और इन टिप्पणियों की तत्काल निंदा की उम्मीद कर रहा है. साथ ही पूछा गया कि क्या भारत सरकार ऐसे बयानों से इत्तेफाक रखती है.

कतर के अलावा कुवैत के विदेश मंत्रालय ने भी भारतीय राजदूत सिबी जॉर्ज को रविवार को तलब किया. एशिया मामलों के सहायक विदेश मंत्री द्वारा एक आधिकारिक विरोध नोट सौंपा गया. नोट में बीजेपी प्रवक्ता के बयान की निंदा की और त्वरित कार्रवाई की मांग की गई.

भारत सरकार की तरफ से इसका जवाब दिया गया. लिखित तौर पर विदेश मंत्रालय ने कहा, भारत सरकार सभी धर्मों का पूरा सम्मान करती है.राजदूत ने साफ किया कि ट्वीट या बयान किसी भी तरह से भारत सरकार के मंतव्य को नहीं दर्शाता. और एक लाइन लिखी गई जिसकी खूब चर्चा है. These are the view of fringe elements. मतलब ये कि पैगंबर मोहम्मद पर अराजक या असमाजिक तत्वों द्वारा टिप्पणी की गई. दिलचस्प बात ये रही कि भारत सरकार के राजदूत सत्तारूढ दल बीजेपी के ही पूर्व प्रवक्ताओं को असमाजिक तत्व बताते हुए उनके बयान से किनारा कर लिया. तब तक बीजेपी ने नूपुर शर्मा को पार्टी से निलंबित कर दिया था और नवीन जिंदल को भी पार्टी से निकाला जा चुका था.

ईरान ने भी बयान की निंदा की है. समाचार चैनल ईरान इंटरनेशनल इंग्लिश के अनुसार ईरान के विदेश मंत्रालय ने तेहरान में भारतीय राजदूत को बुलाकर विरोध जताया है. सउदी अरब ने राजदूत को तलब नहीं किया, मगर बयान के जरिए विरोध जताया. ऐसी प्रतिक्रिआएं बहरीन और यूएई जैसे मुल्कों से भी आई. अफगानिस्तान, पाकिस्तान ने मौके पर चौका लगाने की कोशिश की. पाकिस्तान को जवाब उसी की भाषा में दिया गया. साफ कह दिया गया कि अपने देश में अल्पसंख्यकों की चिंता करिए.

OIC भी नहीं रहा पीछे 

एक बयान OIC यानी Organisation of Islamic Cooperation की तरफ से भी आया. जो 57 मुस्लिम देशों का संगठन है. ओआईसी की तरफ से कहा गया कि भारत में मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा में बढ़ोतरी हुई है. संगठन ने भारत के कई राज्यों के शिक्षण संस्थाओं में हिजाब बैन और मुस्लिमों की संपत्तियों को नुकसान पहुंचाए जाने का जिक्र करते हुए कहा कि मुस्लिमों पर पाबंदी लगाई जा रही है. ट्वीट में आगे लिखा गया. OIC अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार परिषद से मुसलमानों को टारगेट करने के मामलों को संबोधित करने के लिए आवश्यक कदम उठाने का आव्हान करता है. OIC की तरफ से आए बयान पर भारत सरकार ने तीखी प्रतिक्रिया दी. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने ओआईसी महासचिव की टिप्पणी को खारिज कर दिया. कहा यह खेदजनक है कि ओआईसी सचिवालय ने एक बार फिर से प्रेरित, भ्रामक और शरारतीपूर्ण टिप्पणी की है. ये केवल निहित स्वार्थों के इशारे पर अपनाए जा रहे  विभाजनकारी एजेंडे को दिखाता है. हम ओआईसी सचिवालय से अपने सांप्रदायिक दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने से रोकने और सभी धर्मों के प्रति उचित सम्मान दिखाने का आग्रह करेंगे.

कुल मिलाकर लब्बोलुआब ये रहा कि जिस तरह के बयान आए, उसी तरह के जवाब दिए गए. नूपुर शर्मा, नवीन जिंदल पर कार्रवाई हुई, अरब मुल्कों को जवाब दिया गया. भारत सरकार ने स्टैंड क्लियर कर दिया. अब यहां से कुछ सवाल ? पहला ये कि क्या अरब मुल्कों का दबाव ना होता तो कार्रवाई ना की जाती है? अरब मुल्कों की प्रतिक्रिओं को इतनी तरजीह क्यों दी गई?

जवाब है भारत और खाड़ी देशों के बीच ऐतिहासिक रूप से रिश्ते काफी मजबूत रहे हैं. भारत अपनी जरूरत के ऑयल एक बहुत बड़ा हिस्सा इन्हीं देशों से इंपोर्ट करता है, इसके अलावा विदेश मंत्रालय के डेटा के मुताबिक, लगभग 76 लाख भारतीय मिडिल ईस्ट देशों में काम करते हैं. कोरोना महामारी की चोट से अभी तक भारतीय अर्थव्यवस्था पूरी तरह उबर नहीं पाई है. ऐसे में अगर यह मामला ज्यादा तूल पकड़ता है, इससे देश की आर्थिक सेहत को काफी नुकसान पहुंच सकता है. भारत अपनी जरूरत का कुल 52.7% तेल इन्हीं देशों से इंपोर्ट करता है. खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) जिसमें कुवैत, कतर, सऊदी अरब, बहरीन, ओमान और यूएई शामिल हैं, 2020-21 में भारत ने 90 अरब डॉलर का व्यापार किया था. इसके अलावा भारत को फॉरेन रिजर्व का एक बड़ा हिस्सा यहीं से मिलता है. आपको याद होना चाहिए. अनुच्छेद 370 को जब हटाया गया, पाकिस्तान ने पुरजोर विरोध किया. मगर तब मिडिल ईस्ट के ज्यादातर देश भारत के साथ खड़े थे.  यहां तक कि OIC ने भी मुस्लिम कंट्री होने के बावजूद पाकिस्तान को तरहीज नहीं दी थी.

अरब देशों का दखल देश की हार है या जीत?

कार्रवाई सुधार है या देश का झुकना? हमें लगता है कि किसी शिकायत पर की गयी कार्रवाई को हार या जीत मानने से बचना चाहिए. ऐसा करके हम इंसाफ के माहौल को कमजोर करते हैं. अगर हमें लगता है कि हमारे साथ अन्याय हुआ है. तो हम न्याय चाहते हैं. न्याय बिना भेदभाव और दिक्कत के समय पर मिले ऐसी एक सभ्य समाज से अपेक्षा होती है. न्याय देने वाला शिकायत सुनकर राहत देता है. इसका मकसद सुधार होता है. ऐसे में एक नजीर बनती है कि दूसरे ऐसा न करें. इसे जब हम हार जीत से जोड़ते हैं तो सबका नुकसान होता. ये दुश्मनी और नफरत को बढ़ावा देता है, आपसी समझ को कमजोर कर अविश्वास को बढ़ाता है. क्योंकि तब शिकायत पर राहत देने वाले को लगता है कि उसने कुछ गलत कर दिया क्या? दोषी में सुधार और प्रायश्चित की जगह हार की निराशा और द्वेष सक्रिय हो जाता है. राहत पाने वाला खुद को विजेता समझ आक्रामक होता है अहंकारी बन असंतोष की वजह बनता है. इंसाफ देने वाले से जुड़े लोग उससे नाराज होते हैं,उन्हें लगता है कि धोखा हो गया. ऐसे में इंसाफ वाला अपनी साख बचाने के लिए आगे से ऐसे फैसले लेने में संकोच करता है. अंत में होता ये है कि न्याय से चलने वाले समाज का उद्देश्य भटक जाता है.  

इस बार भी ऐसा ही कुछ करने की कोशिश की जा रही है. अपने-अपने तरह के नैरेटिव गढ़े जा रहे हैं. क्या हैं वो नैरेटिव 

1. कुछ लोगों ये साबित कर रहे हैं भारत सरकार पेट्रोलियम पदार्थ की जरूरत के चलते अरब देशों के सामने झुक गयी.
2.कुछ को लग रहा है कि बीजेपी सरकार पर पड़े अन्तराष्ट्रीय दबाव को बर्दाश्त नहीं कर सकी.
3. कुछ को लग रहा है कि बीजेपी कमजोर हो गयी है अपने कार्यकर्ता की नजरों से उतर गयी है.
4.कुछ इसे भारत के कथित सेक्यूलर चरित्र के सामने बीजेपी के कथित कम्यूनल फेस की हार मान रहे हैं.
5. कुछ इतने खुश हैं कि वो दुनियाभर में हो रहे पीएम मोदी के अपमान को बढ़ चढ़ कर दिखा रहे हैं.
6. कुछ इस विभाजनकारी,नफरत वाली सांप्रदायिक राजनीति के मुंह में तमाचा बता रहे हैं.
7. कुछ कहते हैं मौजूदा सरकार की वजह से दुनिया में भारत का मस्तक झुका है.

अब जरा ईमानदारी से देखिए

-  जो जीत का जश्न मना रहे हैं क्या वो देश के बड़े वर्ग में इस धारणा को मजबूत नहीं कर रहे हैं कि इस देश में दो पहचान के लोग हैं जिनमे से एक को भारत की बेइज्जती पर खुशी होती है.
-  क्या यहां ऐसा नहीं लगता कि सरकार और देश एक मान लिया गया है और हम सरकार को नीचा दिखाने के चक्कर में देश को नीचा दिखाने लगते हैं.
-  क्या किसी संप्रभु देश के नागरिकों के लिए ये गर्व का विषय हो सकता है कि बाहरी देशों के दबाव में उनका देश झुके?
-  क्या हमें कुछ भी ऐसा करना चाहिए कि किसी दल का राजनीतिक एजेंडा हमारे देश का चरित्र साबित कर दिया जाए?
-  मानवाधिकार, नैतिकता, कानून के आधार पर अगर कोई देश आपत्ति करता है तो ठीक है लेकिन धार्मिक आधार पर अगर समान धार्मिक विश्वास वाले देश दबाव बनाते हैं तो क्या देश में सांप्रदायिक सोच को और ज्यादा मजबूती नहीं मिलेगी? 

इसलिए हमारा मानना है कि इंसाफ या न्यायपरक फैसले को हार जीत के चश्मे से देखकर विवाद को जन्म नहीं देना चाहिए. विवेक से काम लेना चाहिए. उन लोगों से बिलकुल दूर रहना चाहिए जो समाज में खाई पैदा करने का काम कर रहे हैं, सरकार को उन तत्वों से सख्ती से निपटना चाहिए. जो हिंसा और हिकारत की बात करते हैं. 

वीडियो: नूपुर शर्मा के पैगंबर वाले बयान पर ईरान ने भारत से क्या कह दिया?

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