The Lallantop
Advertisement

अग्निपथ योजना के विरोध में प्रदर्शन करते युवाओं की मोदी सरकार से क्या मांग है?

अग्निपथ योजना पर सवाल क्यों उठाए जा रहे हैं?

Advertisement
अग्निपथ योजना पर सवाल क्यों उठाए जा रहे हैं?
अग्निपथ योजना पर सवाल क्यों उठाए जा रहे हैं? (फोटो-आजतक)
16 जून 2022 (Updated: 16 जून 2022, 23:34 IST)
Updated: 16 जून 2022 23:34 IST
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने गाजे-बाजे के साथ अग्निपथ योजना का ऐलान करते हुए कहा था कि देश का युवा सेना का बहुत सम्मान करता है और अग्निपथ योजना के तहत देश के युवाओं को सेना में शामिल होने का मौका दिया जा रहा है. लेकिन बीते दो दिनों से आ रही तस्वीरें यही बता रही हैं कि युवा सेना में शामिल तो होना चाहते हैं, लेकिन अग्निपथ के मार्फत नहीं. वो पुराने तरीके से भर्ती दोबारा शुरू करने की मांग कर रहे हैं. आज हम समझेंगे कि क्या इस योजना पर उठाए जा रहे हर प्रश्न में दम है? या फिर कुछ कोरी लफ्फाज़ी है.

अग्निपथ योजना. सरकार ने क्रांतिकारी कदम के तौर पर इसे पेश किया. योजना का पथ जब तक तैयार होता, भर्ती निकलती, उससे पहले योजना की अग्नि सड़कों और रेल की पटरियों पर नजर आने लगी. लगतार दूसरे दिन देश के अलग-अलग हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुआ. आज वाला प्रदर्शन कल से ज़्यादा जगहों पर हुआ और ज़्यादा उग्र था.

उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और उत्तराखंड. हर जगह हजारों की संख्या में सेना में शामिल होने की तमन्ना रखने वालों का झुंड सड़कों पर दिखा. मगर सबसे ज्यादा आक्रोश बिहार में नजर आया. सिर्फ छपरा नहीं, कैमूर जिले के भभुआ रोड स्टेशन पर भी खड़ी ट्रेन की एक बोगी में आग लगा दी. छात्रों ने यहां पहले रेलवे ट्रैक को जाम किया था. छात्रों की संख्या जैसे-जैसे बढ़ती गई, आवेश बढ़ता गया. इंटरसिटी ट्रेन जो भभुआ रोड से पटना को जाती है, उस पर छात्रों ने अपना गुस्सा उतार दिया.  
यहां पुलिस ने लाठीचार्ज कर जब छात्रों को खदेड़ने की कोशिश की तो पथराव हुआ, जिसमें पुलिसवाले घायल हो गए. एक SI के सिर पर पत्थर लगा. पूर्वी चंपारण ज़िले में तो यात्रियों से भरी ट्रेन के एसी कोच पर पथराव किया गया. कई कोच के शीशे फूट गए, घंटों तक रेल मार्ग बाधित हुआ. इसके अलावा बक्सर, आरा, बेगुसराय, भागलपुर, जहानाबाद और सिवान में ट्रेनों को रोककर उग्र प्रदर्शन हुए. 

इस तरह के प्रदर्शन से पूरे बिहार में अफरातफरी का माहौल बना रहा. नवादा जिले में तो प्रदर्शनकारियों ने जिला बीजेपी के दफ्तर में जमकर तोड़फोड़ की. टायर जलाकर दफ्तर के अंदर फेंक दिया. जिससे पूरे ऑफिस में आग लग गई. सबसे पहले प्रजातंत्र चौक को जाम किया गया. फिर नवादा रेलवे स्टेशन पर हंगामा हुआ. मालगोदाम रेलवे क्रासिंग के पास जाम लगाया गया. जब पुलिस ने वहां से खदेड़ा तो प्रदर्शनकारी बीजेपी के ऑफिस पहुंच गए. बीजेपी विधायक अरुणा देवी की गाड़ी में भी तोड़फोड़ की गई. 
बीजेपी विधायक अरुणा देवी के मुताबिक प्रदर्शनकारी बीजेपी का झंडा देखकर आग बबूला हो गए. जिस तरह का उग्र प्रदर्शन बिहार में हुआ, उसे देखते हुए रेलवे ने बिहार जाने वाली 30 ट्रेनों को रद्द कर दिया. कई घंटों देरी से चलीं. बिहार के अलावा उत्तर प्रदेश के अलीगढ़, मथुरा, बुलंदशहर जैसे जिलों में विरोध हुआ. उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के कई जिलों से प्रदर्शन की तस्वीरें आई. मध्य प्रदेश के ग्वालियर में उग्र प्रदर्शनकारियों ने रेल की पटरी उखाड़ दी. जमकर उत्पात मचाया. 

सबसे पहले प्रदर्शनकारियों ने बिरला नगर रेलवे स्टेशन में तोड़फोड़ की. उसके बाद बड़ी संख्या में युवा ग्वालियर रेलवे स्टेशन पर पहुंचे. यहां भिंड इंदौर रतलाम इंटरसिटी और बुंदेलखंड एक्सप्रेस में भी तोड़फोड़ की. यार्ड में रखी ट्रेनों पर भी जमकर पत्थर बरसाए. कई ट्रेनों के शीशे पूरी तरह टूट गए. हालात को देखते हुए कई ट्रेनों को रद्द कर दिया गया. अप और डाउन दोनों दिशाओं में ट्रैक को बंद किया गया.

उत्पात की तस्वीरें हरियाणा के पलवल से भी आईं. हिंसक प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर जमकर पथराव किया और 5 गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया. ज़िला कलेक्टर के आवास पर उत्पात मचाया गया. वहां भी आगजनी की. काबू पाने के लिए पुलिस को हवाई फायरिंग भी करनी पड़ी. मगर तब तक पुलिसवाले घायल हो चुके थे. 

जो खुद सैनिक बनने के इच्छुक हैं. उन्हें सिपाही को इस तरह से घायल करके क्या मिला? वर्दी के लिए आंदोलन कर रहे हैं और वर्दीवालों पर पथराव! ट्रेन में आग लगा देना, पटरियों को उखाड़ना, बसों को तोड़ना, आस-पास के लोगों को आतंकित करना देना. ये प्रदर्शन का कौन सा तरीका है? किसी भी सभ्य समाज में इस तरह के हिंसक प्रदर्शन की जगह नहीं होनी चाहिए. संवाद के ज़रिए भी मसले का समाधान खोजा जा सकता है. सरकार को इस पर पहल के लिए सोचना चाहिए और युवाओं को भी समझना चाहिए. 

ये समझ आ रहा है कि जिस उत्साह की बात सरकार कर रही थी, वो कम से कम सड़कों पर तो नज़र नहीं आ रहा है. युवा, सेना की नौकरी को सिर्फ राष्ट्रीय सुरक्षा या कौशल विकास नहीं, बेहतर रोज़गार के एक मौके की तरह भी देखते हैं. युवा चार साल बाद समाज में लौटने को लेकर असहज हैं. सबसे बड़ा सवाल ये कि पुरानी भर्तियों का क्या होगा? 

चुनाव तय समय पर हो जाता है तो फिर भर्तियां क्यों नहीं? 15 जून के लल्लनटॉप शो में अग्निपथ योजना पर बात की गई थी उस शो में हमारे दर्शक विपिन कुमार ने भी इसी से जुड़ा कमेंट किया. लिखा, 

‘सर आपने एक प्वाइंट मिस कर दिया, एयरफोर्स की दो वैकेंसी पेंडिग है. एक का 2019 में नोटिफिकेशन आया था. उसमें 20 साल सर्विस पीरियड मेंशन था. उस वैकेंसी का पूरा रिक्रूटमेंट प्रोसेस - रिटेन, फिजिकल, मेडिकल और एक PSL यानी प्रोविजनल सलेक्ट लिस्ट भी आ गई थी. बस ज्वाइनिंग बाकी है. हमारा क्या होगा?’

यही वो सवाल और चिताएं हैं जो युवाओं को सड़क पर ले आई है. सरकार की तरफ से ये क्लीयर नहीं किया गया कि पुरानी भर्तियां जैसे एयरफोर्स में एयरमैन की, उनका क्या होगा? क्योंकि चाहे थल सेना के सैनिक हों या फिर जलसेना के सेलर या फिर एयरफोर्स के एयरमैन. अब सभी की भर्तियां अग्निपथ योजना के तहत ही की जाएंगी. ऐसे में क्या युवा ये मान लें कि जो भर्तियां पेंडिग थी वो कैंसिल हो गई है? या फिर सरकार की तरफ से इस पर स्थिति साफ की जाएगी.

क्योंकि ये सवाल उन लाखों छात्रों का है जो 12वीं के बाद एयरफोर्स के ग्रुप X और Y में भर्ती होने के लिए तैयारी शुरू कर देते हैं.

साल 2020 और 2021 की भर्ती प्रक्रिया अब तक पूरी नहीं हो पाई है. इसकी वजह से ये छात्र सोशल मीडिया पर लगातार कैंपेन चलाकर जल्द से जल्द रिजल्ट और एनरोलमेंट लिस्ट जारी करने की मांग बीते कई दिनों से कर रहे थे. अब पहले इसे समझ लीजिए कि ग्रुप X और Y की भर्ती क्या होती थी? इन ग्रुप्स के कर्मचारियों को एयरमैन कहा जाता है. एयरफोर्स की ओर से साल में दो बार इनकी भर्ती के लिए परीक्षा कराई जाती थी. जो कि हर साल जनवरी और जुलाई में आयोजित होती थी. जनवरी में होने वाली परीक्षा को इनटेक-1 और जुलाई में होने वाली परीक्षा को इनटेक-2 कहते थे. ग्रुप X में एयरमैन टेक्निकल ट्रेड का काम करते थे. जबकि Y ग्रुप में नॉन टेक्निकल काम. भर्ती की पूरी प्रक्रिया केंद्रीय वायुसैनिक चयन बोर्ड  यानी CASB की तरफ से पूरी कराई जाती रही है.

हमने इन दोनों भर्तियों का आधिकारिक स्टेटस जानने की कोशिश की. एयरफोर्स वेबसाइट पर गए. जहां हमें लिखा मिला. प्रशासनिक वजहों से दोनों भर्तियों का एनरोलमेंट और रिजल्ट में देरी हुई है. कैंडिटेड अपने ईमेल और CASB की ऑफिशियल वेबसाइट पर नजर रखें. ये आखिरी अपडेट 31 मई का है. सरकार की तरफ से इस पर कोई नई प्रतिक्रिया नहीं आई. सरकार की तरफ से यही संकेत हैं कि अब जो भी होगा, अग्निपथ के मार्फत होगा. इसका मतलब क्या ये है कि चल रही भर्तियां भी रद्द होंगी, इसपर सरकार शांत है.

अब आते हैं कुछ सीधे सवालों पर –

अग्निवीरों की भर्ती कब शुरू होगी?

सरकार ने कहा है कि अग्निवीरों की भर्ती ऐलान से 90 दिनों के भीतर शुरू हो जाएगी. छह महीने के भीतर पहले चरण के अग्निवीर ट्रेनिंग सेंटर पहुंच जाएंगे. सेना में तकरीबन 40 हज़ार, नौसेना में 3 हज़ार और वायुसेना में साढ़े तीन हज़ार अग्निवीरों को लिया जाएगा.

एक और सवाल अग्निवीरों की पढ़ाई का क्या होगा?

अग्निवीर एक वालेंटियर स्कीम है. अर्थात, इसमें कोई व्यक्ति अपनी मर्ज़ी से शामिल होगा. वो नियमित शिक्षा या सेना में करियर में से एक को चुनेगा. सीधी भर्ती में भी सेना में इस उम्र के युवा शामिल होते हैं.

ये बात साफ है कि सेना जैसे फुल टाइम पेश के साथ पढ़ाई जारी रखना चुनौती हो सकता है. और चार साल बाद सेना से लौटकर पढ़ाई दोबारा शुरू करना भी मुश्किल ही होगा. ऐसे में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने कहा है कि वो तीन साल का ''स्किल बेस्ड बैचलर डिग्री प्रोग्राम'' लेकर आएगा. जो कौशल अग्निवीर अपनी सेवा के दौरान हासिल करेंगे, उसे ये डिग्री प्रोग्राम मान्यता देगा. इसके लिए सेना, नौसेना और वायुसेना Indira Gandhi National Open University (IGNOU)के साथ एक MOU करेंगी.

इसके अलावा अग्निवीरों को एक स्किल सर्टिफिकेट दिया जाएगा और नई शिक्षा नीति के तहत क्रेडिट पॉइंट्स जो आगे की पढ़ाई में काम आएंगे. क्रेडिट पॉइंट वाला ये सिस्टम कैसे काम करेगा, ये आने वाले समय में मालूम चलेगा.

अग्निवीरों के चलते रेजिमेंटल सिस्टम पर असर पड़ेगा? तो जवाब है

रेजिमेंटल सिस्टम थलसेना में है. और वहां भी सिर्फ कुछ रेजिमेंट ऐसी हैं, जहां किसी एक क्षेत्र या समुदाय के लोगों को लिया जाता है, मिसाल के लिए गोरखा या जाट. 80 फीसदी रेजिमेंट्स पहले से ऑल इंडिया ऑल क्लास हैं और इनका प्रदर्शन उम्दा रहा है. फिर अनुशासन या बहादुरी के मामले में अलग अलग बैकग्राउंड से आने वाले सैनिक, या सेवा में कम साल बिताने वाले सैनिक उन्नीस साबित हुए, ऐसी कोई मिसाल अब तक नहीं रही.

फौज में अब तक उत्तर भारत और पहाड़ी इलाकों का बोलबाला रहा. अब देश के सभी इलाकों को बराबर मौका मिलेगा. ये भी संभव है कि सिंगल क्लास रेजिमेंट्स में संबंधित क्षेत्र या समुदाय वाले अग्निवीरों को भेजा जाए. ऐसे में रेजिमेंट की अलहदा संस्कृति और ऐतिहासिक गौरव पर आंच नहीं आएगी.

एक और अहम सवाल अग्निवीरों के चलते सेना में अनुभव की कमी हो जाएगी?

सेना में स्पेशलिस्ट पद जैसे एक अनुभवी रायफलमैन, तोपची या एयरक्राफ्ट मेंटेनेंस क्रू तैयार करने में 7 से आठ साल तक लग जाते हैं. ऐसे में ये स्पष्ट है कि चार साल बाद स्थायी काडर में रह जाने वाले अग्निवीर ही आगे चलकर स्पेशलिस्ट बनते हैं. अग्निपथ योजना के बाद भी स्पेशलिस्ट तैयार करने में सेना उतने ही संसाधन खर्च करेगी. साथ में सेना का ये मानना है कि स्पेशलिस्ट अपने से कनिष्ठ अग्निवीरों को ग्रूम करते रहेंगे. सेना 1:1 रेशियो चाहती है. एक युवा सैनिक पर एक स्पेशलिस्ट/अनुभवी सैनिक.

ये कुछ सवाल हैं जिनके जवाब हमने आपको दिए. ऐसे ही कई सवाल बीजेपी सांसद वरुण गांधी ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को चिट्ठी लिख कर पूछे हैं. विपक्ष तो लगातार हमलावर है ही. राहुल गांधी ने भी ट्वीट कर लिखा

न कोई रैंक, न कोई पेंशन, न 2 साल से कोई direct भर्ती, न 4 साल के बाद स्थिर भविष्य, न सरकार का सेना के प्रति सम्मान, देश के बेरोज़गार युवाओं की आवाज़ सुनिए, इन्हे 'अग्निपथ' पर चला कर इनके संयम की 'अग्निपरीक्षा' मत लीजिए, प्रधानमंत्री जी.

सरकार की तरफ से युवाओं से शांत रहने और किसी के बहकावे में ना आने की अपील की जा रही है. मगर युवाओं के आक्रोश की वजहें और भी कई हैं. दरअसल सैनिक जनरल ड्यूटी में भर्ती के लिए उम्र का दायरा साढ़े सत्रह साल से 21 साल का होता है. यानी युवा के पास उसकी जिंदगी के सबसे अहम सिर्फ साढ़े तीन साल. जब वो सेना में भर्ती का सपना पूरा कर सकता है. लेकिन हुआ क्या ?

2020-21 में 97 भर्ती रैली होनी थी, हुई सिर्फ 47 भर्ती रैली, उसमें भी सिर्फ 4 में सामान्य प्रवेश परीक्षा हुई.
2021-22 में 47 भर्ती रैली की बात हुई, लेकिन हुई सिर्फ चार. एक भी कॉमन एंट्रेस टेस्ट नहीं हुआ.  
दो साल लगातार कोरोना के नाम पर सेना भर्ती रोक दी गई. जबकि इसी दौरान देश में दस राज्यों में विधानसभा चुनाव हो गए

साढ़े तीन साल जिनके पास थे भर्ती के, उनमें से दो साल तो कोरोना के नाम पर सेना भर्ती हुई नहीं. अब फिर जब अग्निपथ योजना सरकार लॉन्च करती है तो फिर से उम्र का दायरा साढ़े सत्रह साल से इक्कीस साल ही रखती है.

लोकसभा के 3 हज़ार 580 पूर्व सांसदों को अभी पेंशन दी जा रही है.

268 पूर्व सांसदों के निधन के बाद उन पर आश्रित को पेंशन दी जा रही है.

राज्यसभा के 508 पूर्व सांसद पेंशन पा रहे हैं.

जबकि राज्यसभा के 219 पूर्व सांसदों के आश्रित को पेंशन दी जा रही है.  

2017-18 के आंकड़ों के मुताबिक देश में जहां पूर्व सांसदों की पेंशन पर हर महीने 58 करोड़ रुपए खर्च हो रहे थे.

2018-19 में पूर्व सांसदों की पेंशन पर खर्च बढ़कर 70 करोड़ 50 लाख रुपए प्रति महीने हो गया.  

साल का हिसाब आप खुद लगा लीजिए. कितना पैसा जा रहा है.  इस पर तुर्रा ये भी है कि हमारे देश में अगर कोई नेता विधायक भी रहे और सांसद भी तो पूर्व विधायक और पूर्व सांसद दोनों की पेंशन पाता है.  

विधायक अगर सांसद बन जाए तो सांसद होने की सैलरी भी पाता है, पूर्व विधायक होने की पेंशन भी. यूपी, एमपी और राजस्थान समेत कई राज्य हैं जहां पूर्व विधायक आठ-आठ कार्यकाल तक की पेंशन पा रहे हैं.  

जब युवा इस तरह की तुलनात्मक सवाल करता है तो जवाब सरकार के नुमाइंदों से भी देते नहीं बनता है. हमारा फिर भी मानना है कि आज जिस तरह के हिंसक प्रदर्शन हुए, वो नहीं होने चाहिए. सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान देश का नुकसान है. जो देशभक्ति की भावना से सेना में जाना चाहते हैं, कम से कम उन्हें तो ये नहीं करना चाहिए.

thumbnail

Advertisement

Advertisement