The Lallantop
Advertisement

सोनाली फोगाट को जो ड्रग्स दिया गया, वो इस काम में इस्तेमाल होता है?

MDMA का ये काम आपको दहलाकर रख देगा!

Advertisement
symbolic image
सांकेतिक तस्वीर (सोर्स: पीटीआई)
pic
आस्था राठौर
30 अगस्त 2022 (Updated: 30 अगस्त 2022, 07:58 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

सोनाली फोगाट (Sonali Phogat) के कथित मर्डर ने सबको हैरत में डाल दिया है. इसी केस में अब चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं. पुलिस का बयान आया कि सोनाली को पानी में ड्रग्स मिलाकर दिए गए थे. साथ ही उनके होटल के कमरे से ड्रग्स बरामद भी की गई थीं. इस मामले में जब पुलिस ने आरोपी सुधीर पाल से दो गवाहों के सामने कड़ी पूछताछ की, तब होटल के स्टाफ बॉय से MDMA ड्रग खरीदने की बात सामने आई.

MDMA का नाम आते ही बवाल मच गया - ड्रग्स का नाम सामने आने पर ऐसा अमूमन होता है. पर ऐसा क्यों? क्या होता है MDMA और क्या है इस सिंथेटिक ड्रग की कहानी? आइए जानते हैं - 

सिंथेटिक ड्रग्स क्या है?

सबसे पहले ड्रग/ड्रग्स का मतलब क्लियर कर लेते हैं. ड्रग्स दवाइयों के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द भी है. मतलब केवल नशे वाली चीजों के लिए ही ड्रग्स का इस्तेमाल नहीं करते हैं. दवा की दुकान पर भी अक्सर केमिस्ट और ड्रगिस्ट लिखा मिलता है. अब नशे वाली ड्रग है, तो उसको नारकोटिक्स कहा जाएगा, फिर उस हिसाब से बने कायदे-कानूनों से उसका वर्गीकरण और उसकी जांच होगी. 

सिंथेटिक ड्रग्स वो केमिकल कंपाउंड होते हैं जिन्हें लैब/ प्रयोगशाला में बनाया जाता है. मतलब पेड़ की छाल, फूल, फलों के बीज और अलां-फलां चीजों में नहीं मिलता. सिंथेटिक इसलिए ही कहते हैं. इन्हें कमर्शियल तौर पर ड्रग निर्माता वैध तरीके से बनाते हैं. लेकिन इन्हीं ड्रग्स को को कई बार लैब्स में गैरकानूनी तरीके से बनाकर अवैध बाजारों में बेचा भी जाता है.

क्या होता है MDMA?

MDMA तो होती है शार्ट फॉर्म - पूरा नाम है मिथाईलीन-डाईऑक्सी-मेथएम्फेटामीन. कई बार इसको मेथ भी कहते हैं. सिंथेटिक ड्रग है. इसके और भी नाम हैं. टैबलेट के रूप में मिलने वाले MDMA को एक्स्टैसी कहते हैं. और अगर बुरादे या क्रिस्टल के रूप में मिले तो मैंडी भी कहते हैं. विकिपीडिया पर टहलकर आएंगे तो एक नाम मॉली भी लिखा मिलेगा.

क्या काम करता है?

MDMA मूलतः इंसान के मूड, भूख, सेक्शुअल ऐक्टिविटी और बाकी तमाम जुड़ी चीजों पर काम करता है. ऐसे समझिए कि सेरोटोनिन और नॉरएपिनेफ्रीन जैसे मूड से जुड़े जो हार्मोन्स होते हैं, उनके साथ काम करता है. आनंद आने की जो फीलिंग होती है, या जो आत्मविश्वास की फीलिंग होती है, ये उनपर काम करता है. 

और क्या होता है?

- हार्ट रेट और ब्लड प्रेशर बढ़ता है 
- यूफोरिक माने बहुत उत्साहित फील होता है 
- बेहद भावुक महसूस होता है 
- ज्यादा पसीना आता है 
- फील होता है जैसे समय धीमे कट रहा हो 
- शरीर में पानी की कमी महसूस होती है  
- मांसपेशियों में दर्द 
- दांतों का आपस में रगड़ना और जकड़ना; इसे ब्रक्सिस्म (Bruxism) कहते हैं
- हेलुसिनेशंस होते हैं - मतलब बहुत कन्फ्यूजन होता है

और ड्रग्स डॉट कॉम की रिपोर्ट की मानें तो कुछ समय के लिए व्यक्ति को ये भी लगता है कि उसकी ऊर्जा बहुत ज्यादा है. चूंकि ये ड्रग है, तो ये इंसान को सचमुच में फ़ील नहीं होता है, ये दिमाग का छलावा होता है. नशा उतरता है तो और ज्यादा बुरा फ़ील होता है.  

ये बनता कैसे है?

साल 1912  में एमडीएमए को पहली बार मर्क ग्रुप द्वारा बनाया गया था. इसका उपयोग 1970 के दशक की शुरुआत में मनोचिकित्सा के क्षेत्र में किया गया था और 1980 के दशक में एक स्ट्रीट ड्रग के रूप में लोकप्रिय हो गया. मतलब गली-गली बिकने लगा. अवैध रूप से.

एमडीएमए को बनाने या सिंथेसाइज करने में सैफरॉल का इस्तेमाल किया जाता है. सैफरॉल इस ड्रग के सिंथेसिस में अहम भूमिका निभाता है. सैफरॉल के अलावा और भी कंपाउंड मिलाए जाते हैं. लेकिन पूरा तरीका नहीं बताएंगे. आपको भी पता है क्यों नहीं बताने वाले.

MDMA से खतरा हो सकता है?

हां. इससे मौत हो सकती है और एकदम हो सकती है. और कई सारे ऐसे केस देखे गए हैं, जहां लोगों ने जीवन में पहली ही बार इस ड्रग का इस्तेमाल किया और उनकी मौत हुई.

लेकिन इसके और भी दूसरे खतरे हैं, लम्बे इस्तेमाल से व्यक्ति को डिप्रेशन, भूलने की बीमारी, बेचैनी, नींद न आने की बीमारी, लिवर में दिक्कत, चिड़चिड़ापन, हिस्टीरिया भी हो सकता है. व्यक्ति इस पर निर्भर होने लगता है. उसे लगता है कि नहीं लिया तो दिनचर्या का कोई काम करने की स्थिति में वो नहीं होगा. और चूंकि अवैध मार्केट में इसका दाम इतना ज्यादा है, तो कई मामलों में लोग आर्थिक रूप से इस दवा पर इतना निर्भर हो जाते हैं कि पैसे-कौड़ी की दिक्कत भी देखी गई है.

राम मनोहर लोहिया में प्रोफेसर और साइकेट्रिस्ट, डॉ मनीष कंसल ने दी लल्लनटॉप को बताया,

“एमडीएमए एक सीएनइस (CNS) स्टीमुलेंट ड्रग है जो रेव पार्टीज में इस्तेमाल किया जाता है. ये एक हैबिट फॉर्मिंग ड्रग होता है जो ह्यूमन नर्वस सिस्टम को नुकसान पहुंचाता है. इसे लेने के बाद इंसान को यूफोरिक, एम्पथैटिक, बहुत ज़्यादा खुश, महसूस होता है. इसके लॉन्ग टर्म यूज से एक व्यक्ति को डिप्रेशन, साइकोसिस जैसी बीमारियां हो सकती हैं.” 

भारत में ड्रग्स से जुड़ा एक्ट?

इंडिया में साइकोट्रॉपिक ड्रग्स पर बैन है. एक एक्ट है जो किसी व्यक्ति को किसी भी नारकोटिक दवा या साइकोट्रोपिक पदार्थ का उत्पादन / निर्माण / खेती, कब्जा, बिक्री, खरीद, परिवहन, भंडारण और / या सेवन प्रतिबंधित करता है. नाम है नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्स्टेन्सेस एक्ट, 1985, (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances Act, 1985) जिसे आमतौर पर एनडीपीएस अधिनियम  (NDPS Act) के रूप में जाना जाता है. ये अब तक 4 बार अमेंड किया जा चुका है. 

यह एक्ट पूरे देश में लागू है.  साथ ही, यह भारत के बाहर सभी भारतीय नागरिकों और भारत में रजिस्टर्ड जहाजों और विमानों में सफर करने वाले सभी व्यक्तियों पर भी लागू होता है. 

लेकिन कानून की बात तो है ही, साथ ही बात है आपके स्वास्थ्य की. हम अपील करते हैं, हम ये बार-बार अपील करते हैं कि नशा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, इसकी जद में मत जाइए.

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement