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महाराष्ट्र का वो कानून कितना सख्त है, जिसके चलते धीरेंद्र शास्त्री पर शिकायत हुई है?

बिल के खिलाफ़ प्रदर्शन हुए थे. बिल तैयार करने वाले को गोली मार दी गई थी.

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धीरेंद्र शास्त्री और नरेंद्र दाभोलकर के लिए हो रहे प्रदर्शन (फोटो - सोशल मीडिया/PTI)
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17 जनवरी 2023 (Updated: 17 जनवरी 2023, 21:14 IST)
Updated: 17 जनवरी 2023 21:14 IST
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बागेश्वरधाम (Bageshwar Dham) के पीठाधीश्वर धीरेंद्र शास्त्री (Dhirendra Shastri) पर अंधविश्वास फैलाने के आरोप लगे हैं. नागपुर की अंधश्रद्धा उन्मूलन समिति का कहना है कि 'दिव्य दरबार' और 'प्रेत दरबार' की आड़ में धीरेंद्र शास्त्री 'जादू-टोना' करते हैं. देव-धर्म के नाम पर आम लोगों को लूटने, धोखाधड़ी और शोषण भी किया जा रहा है. समिति ने 8 जनवरी और 10 जनवरी को पुलिस में शिकायत भी की है कि धीरेंद्र शास्त्री पर कार्रवाई हो. समिति ने दो क़ानूनों के तहत शिकायत की है.

पहला क़ानून तो है Drugs and Magic Remedies (Objectionable Advertisements) Act, 1954. यानी औषधि और जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 . ये संसद का एक ऐक्ट है, जो जादुई गुणों का दावा करने वाली दवाओं और इलाजों के विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाता है और ऐसा करने को एक संज्ञेय अपराध बनाता है.

इसके अलावा, महाराष्ट्र में एक अलग क़ानून है, जिसके लिए 15-17 सालों तक संघर्ष हुआ. दोनों पक्षों में तर्क-वितर्क हुआ. तब जाकर ये बिल क़ानून बना. 

कानून क्या है?

दूसरे क़ानून का नाम है- महाराष्ट्र मानव बलिदान और अन्य अमानवीय, बुराई और अघोरी प्रथा व काला जादू रोकथान और उन्मूलन ऐक्ट, 2013. (Maharashtra Prevention and Eradication of Human Sacrifice and other Inhuman, Evil and Aghori Practices and Black Magic Act, 2013)

महाराष्ट्र राज्य का एक आपराधिक क़ानून ऐक्ट है. साल 2003 में ऐक्टिविस्ट और महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के संस्थापक नरेंद्र दाभोलकर ने तैयार किया था. जिस साल नरेंद्र की मृत्यु हुई, उसी साल ये क़ानून बना. 2013 में. 'टोना-टोटका', मानव बलि, बीमारियों को 'जादू' के ज़रिए ठीक करने और ऐसे बाक़ी काम. कोई भी ऐसी प्रथा, जो लोगों के अंधविश्वास का फ़ायदा उठाए, वो इस क़ानून के तहत अपराध है.

क़ानून में कुल 12 क्लॉज़ हैं, जो अलग-अलग अपराधों को आइडेंटिफ़ाई करते हैं. इसमें कमसेकम छह महीने और ज़्यादा से ज़्यादा 7 सालों तक की जेल का प्रावधान है. जुर्माने का भी प्रावधान है: 5 हज़ार लेकर 50 हज़ार तक. ये अपराध ग़ैर-ज़मानती और संज्ञेय है.

बिल का विरोध हुआ था

महाराष्ट्र सरकार ने जुलाई 2003 में नरेंद्र दाभोलकर के पहले ड्राफ़्ट को अप्रूव किया था. अगले महीने उस समय के मुख्यमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने इस विधेयक को केंद्र सरकार को अनुसमर्थन के लिए भेजा. हालांकि, अंधविश्वास, ‘काला जादू’, ‘मंत्र’ और ‘जादू-टोना’ जैसे शब्दों को ठीक से परिभाषित न करने के लिए बिल की आलोचना हुई. इसके बाद ऐक्टिविस्ट श्याम मानव ने विधेयक को संशोधित किया. और, विधेयक को पहली बार विधानसभा में 2005 के शीतकालीन सत्र में पेश किया गया.

बिल के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन भी हुए. श्री श्री रविशंकर की आर्ट ऑफ़ लिविंग फाउंडेशन और हिंदू जनजागृति समिति सहित प्रदर्शनकारियों ने विरोध किया. रैली में जनजागृति समिति के एक प्रवक्ता ने कहा कि ये बिल ग़ैर-ज़रूरी है. विदेशी विचारों से प्रेरित है. धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है और दैवीय शक्ति को स्वीकार नहीं करता. ये भी दावा किया कि अगर ये बिल पास हो गया, तो पुलिस को केवल शक के आधार पर तलाशी लेने, ज़ब्त करने या गिरफ़्तार करने का अधिकार मिल जाएगा. 

फिर जुलाई 2008 में महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के कार्यकर्ताओं ने बिल की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए मुंबई में विरोध प्रदर्शन किया. इसी प्रदर्शन में प्रदर्शनकारियों ने ख़ुद को थप्पड़ मारे. कहा कि ये थप्पड़ ख़ुद को याद दिलाने के लिए हैं कि उन्होंने गलत प्रतिनिधियों को चुना था. प्रदर्शन चलते रहे.

भौतिकवादी, सामाजिक कार्यकर्ता, रैशनलिस्ट नरेंद्र दाभोलकर (फोटो - सोशल मीडिया)
दाभोलकर की हत्या

20 अगस्त 2013. बिल तैयार करने वाले और प्रमुख प्रचारक नरेंद्र दाभोलकर सुबह टहलने निकले थे. वहीं उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई. उनकी हत्या के बाद प्रदर्शन और उग्र हो गए और बिल को पारित करने की मांग बढ़ गई. हत्या के चार दिन बाद महाराष्ट्र सरकार ने विधेयक को अध्यादेश के रूप में मंज़ूरी दे दी. अध्यादेश दिसंबर 2013 तक रहा. इसके बाद राज्य विधानमंडल के शीतकालीन सत्र में पेश किया गया और फिर ये कानून बन गया.

इसके बाद सालों से प्रतिबंधित गतिविधियों की सूची लगातार कम होती गई. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक़, 2022 में 6 मानव बलियों के केस आए और ‘टोने-टोटके’ की वजह से 68 मौतें हुईं. अगस्त 2018 में केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने दाभोलकर के शूटरों में से एक आरोपी में को गिरफ़्तार किया था. सज़ा किसी को नहीं हुई है अभी तक.

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