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उत्तराखंड में जैसा हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट तबाह हुआ, वैसे प्रोजेक्ट क्या काम करते हैं?

जानिए जल विद्युत परियोजनाओं के बारे में सब कुछ.

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Hyderopower
उत्तराखंड के धौलीगंगा में जलविद्युत परियोजना तबाह हो गई. फोटो- PTI
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Varun Kumar
8 फ़रवरी 2021 (Updated: 8 फ़रवरी 2021, 09:54 AM IST)
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7 फरवरी 2021. उत्तराखंड में नंदा देवी पहाड़ का ग्लेशियर टूटा. धौलीगंगा और ऋषिगंगा नदी में ओवरफ्लो हुआ और यहां बना ऋषिगंगा हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट ध्वस्त हो गया. 5 किलोमीटर दूर बना NTPC का एक दूसरा हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट भी बर्बाद हो गया. आखिर ये हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट क्या होते हैं और कैसे काम करते हैं? चलिए बताते हैं- पानी से बिजली का बनना हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट, पनबिजली परियोजनाएं या जलविद्युत परियोजनाएं. चाहे जो कह लीजिए. मतलब है पानी से बिजली का बनना. किसी के भी जेहन में पहला सवाल यही आएगा कि आखिर पानी से बिजली कैसे बनती है. इसके लिए नदी के रास्ते में बांध बनाए जाते हैं जहां पानी को रोका जाता है. इस रुके हुए पानी को जैसे ही थोड़ा रास्ता मिलता है ये तेजी से निकलता है. इसी तेज पानी से टरबाइन घूमते हैं जो जेनरेटर से बिजली पैदा करते हैं. इस बिजली को स्टोर किया जाता है और जरूरत के हिसाब से डिस्ट्रीब्यूट किया जाता है. पर्यावरण के लिए अधिक अनुकूल होती है जल विद्युत? जल विद्युत के पक्ष में सबसे पहला तर्क यही होता है कि ये पर्यावरण के लिए अधिक अनुकूल होती है. पानी के अलावा परमाणु उर्जा (यूरेनियम), जीवाश्म ईंधन (पेट्रोल, डीजल, कोयला आदि) और सौर ऊर्जा (सूरज की रौशनी) से भी बिजली बनाई जाती है. हालांकि downtoearth की एक रिपोर्ट में ACS की पत्रिका एनवायरनमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी के हवाले से बताया गया है कि जलविद्युत परियोजनाओं में भी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है. 104 देशों के 1,473 जलविद्युत परियोजनाओं पर अध्ययन के बाद ये रिपोर्ट तैयार की गई है. भारत में जल विद्युत की क्या स्थिति है? भारत सरकार के विद्युत मंत्रालय ने 27 जनवरी 2020 को एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसके मुताबिक भारत में 12.2 प्रतिशत बिजली पानी से तैयार की जाती है. भारत में कुल 3 लाख 75 हजार 323 मेगावॉट बिजली पैदा की जाती है जिसमें से 45 हजार 798 मेगावॉट बिजली पानी से बनती है. पानी से बनने वाली बिजली अपेक्षाकृत सस्ती होती है लिहाजा सरकार का ध्यान अब जल विद्युत पर अधिक है. कुछ आंकडे देखिए- # भारत में पहला जल विद्युत संयंत्र 1897 में लगाया गया था. ये पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले में है और इसकी क्षमता 130 किलोवॉट है. # विद्युत मंत्रालय की साइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक भारत की हाइड्रोपावर क्षमता 1 लाख 45 हजार मेगावॉट है. और 85 हजार मेगावॉट की मांग को जलविद्युत के द्वारा पूरा किया जा सकता है. # धौलीगंगा जल विद्युत संयंत्र की क्षमता 280 मेगावॉट है. ये प्रोजेक्ट 2005 में तैयार हुआ था. भारत के उत्तरी राज्यों को यहां से 1.83 रुपये प्रति किलोवॉट के हिसाब से बिजली दी जाती है. # अमेरिका और चीन के बाद भारत में दुनिया के सबसे अधिक बांध हैं. इनके जरिए बिजली तो बनाई ही जाती है, साथ ही खेती के लिए भी सिंचाई परियोजनाएं निकाली जाती हैं. # साल 2030 तक देश में बनने वाली बिजली में से 40 प्रतिशत बिजली बिना जीवाश्म ईंधन से लेने का लक्ष्य है. हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट जरूरी क्यों हैं? पानी से बिजली बनती है तो पानी खत्म नहीं होता. पानी से मिलने वाली ऊर्जा को अक्षय ऊर्जा कहते हैं. यानी जो कभी खत्म नहीं होती. जबकि एक दिन जीवाश्म ईंधन खत्म हो जाएंगे. यानी कोयले, डीजल और गैस आदि से बिजली नहीं बनाई जा सकेगी. ऐसी स्थिति में पानी, धूप और परमाणु बिजली ही इंसान के काम आएंगी. भविष्य को ध्यान में रखते हुए मनुष्य ऐसी ही अक्षय ऊर्जा तकनीकों पर काम कर रहा है और उन्हें बेहतर बना रहा है. दूसरी सबसे बड़ी बात ये है कि हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट सस्ते होते हैं. कम पैसे लगते हैं, एक बार ही खर्च होता है, यानी पानी से बनने वाली बिजली साफ सुथरी होने के साथ-साथ जेब के लिए भी बेहतर होती है. हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट पर चिताएं भी कम नहीं जैसे-जैसे हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट बन रहे हैं, मेगावॉट और गीगावॉट्स वाली परियोजनाएं तैयार की जा रही हैं, वैसे-वैसे इनको लेकर चिंताएं भी सामने आ रही हैं. कई एक्सपर्ट्स का मानना है कि ऐसी परियोजनाएं पानी के मूल तत्वों को नुकसान पहुंचाती हैं. पानी में रहने वाले जीव जन्तुओं को नुकसान पहुंचाती हैं और हजारों-लाखों लोगों के विस्थापन का कारण बनती हैं. जैसा हमने ऊपर बताया कि कुछ एक्सपर्ट ये भी मानते हैं कि इस तरह के प्रोजेक्ट से ग्रीन हाउस गैेस भी निकलती हैं जिसके कारण पर्यावरण को नुकसान होता है, ग्लोबल वार्मिंग होती है और ग्लेशियर भी पिघलते हैं.

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