ये ED आखिर क्या बला है, जिससे आजकल लोग CBI से ज्यादा थर्राए रहते हैं?
जानिए, कैसे और क्या काम करता है ईडी.
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देश में वित्तीय घोटालों और पैसों के हेरफेर के मामलों की जांच की जिम्मेदारी ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय की ही है. शिवसेना के नेता संजय राउत (बाएं) इन दिनों पत्नी को ईडी का नोटिस मिलने से भड़के हुए हैं. (फोटो- PTI)
"ईडी के पास दिल्ली और सभी रीजनल ऑफिसों में इन-हाउस फॉरेंसिक लैब हैं. इससे पहले ई-दस्तावेजों को जांच के लिए अलग अलग केंद्रीय फॉरेंसिक लैब्स में भेजा जाता था. नतीजे देर में आते थे, जिनके कारण जांच प्रभावित होती थी. अब तो जोनल ऑफिसों को भी इलेक्ट्रोनिक डेटा कलेक्ट करने वाली किट दी गई हैं ताकि बाहरी एक्सपर्ट्स को बुलाने की जरूरत ना पड़े."कैसे काम करता है ईडी? प्रवर्तन का मतलब होता है, बाध्य करना या लागू करना. और निदेशालय (निदेश+आलय) का मतलब होता है ऐसा घर जहां से किसी कानून, विधि या उसके स्वरूप को बताया जाए. मुख्य तौर पर दो वित्तीय कानूनों को लागू कराने के लिए ईडी जतन करता है. इसके लिए उसके पास अपने अधिकारी तो होते ही हैं, साथ ही डेप्युटेशन (प्रतिनियुक्ति) पर अलग-अलग जांच एजेंसियों से, जैसे- इनकम टैक्स से, पुलिस से, या और कुछ अन्य विभागों से भी अफसरों को लिया जाता है. 64 साल पुराना इतिहास है प्रवर्तन निदेशालय का एक मई 1956 को प्रवर्तन निदेशालय की स्थापना की गई थी. दरअसल तब विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम 1947 के तहत मामलों से निपटने के लिए आर्थिक मामलों के विभाग में एक 'प्रवर्तन इकाई' का गठन किया गया था. तब इसके दो ऑफिस बने थे. मुंबई और कोलकाता. 1957 में प्रवर्तन इकाई का नाम बदलकर प्रवर्तन निदेशालय कर दिया गया. उसी साल चेन्नई में एक और शाखा खोली गई. 1960 में इसके नियंत्रण को आर्थिक मामलों के विभाग से राजस्व विभाग में शिफ्ट कर दिया गया. 1973 से 1977 तक चार सालों तक ईडी, कार्मिक और प्रशासनिक सुधार विभाग के अधिकार में भी रहा था. ईडी में शिकायत कैसे की जाती है? ईडी में लिखित शिकायत कोई भी दे सकता है लेकिन शुरुआती जांच के बाद ही एजेंसी अपनी ओर से मामला दर्ज करती है. इसके अलावा कोर्ट भी अगर केस में मनी लॉन्ड्रिंग का एंगल देखता है, तो ईडी को मामला सौंप सकता है. उसके बाद ईडी अपनी जांच को आगे बढ़ाता है. ईडी कितनों को सजा दिलवा पाता है? संसद में एक सवाल के जवाब में अनुराग ठाकुर ने बताया कि देश में PMLA की 66 कोर्ट हैं. इसके बावजूद दिसंबर 2019 में टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट में बताया गया था कि एंटी मनी लॉन्ड्रिंग लॉ के तहत पिछले 14 सालों में केवल 13 लोगों को दोषी साबित करवाया जा सका है. ईडी की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, 31 मार्च 2015 को फेमा 1999 के तहत लंबित मामलों की संख्या 4776 थी. वहीं PMLA 2002 के तहत दर्ज 1326 मामले लंबित थे. साल 2015 से 31 अक्टूबर 2019 तक PMLA के तहत एजेंसी ने 757 केस दर्ज किए थे. 2019-2020 में ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग के 103 मामले PMLA के तहत दर्ज किए. इससे पहले 2018-19 में 195, 2017-18 में 148, 2016-17 में 200 और 2015-16 में 200 मामले दर्ज किए थे. लंबी और जटिल जांच प्रक्रिया के कारण अधिकतर मामले लंबित ही हैं, और किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे हैं. ईडी के डायरेक्टर रहे कर्नल सिंह ने इस बारे में कहा,
"अक्सर लोग कहते हैं कि मनी लॉन्ड्रिंग केसों में एजेंसी का कन्विक्शन रेट काफी खराब है. कन्विक्शन रेट मतलब, कुल मामलों में से वो मामले, जिनमें आरोपियों को दोषी साबित करवाया जा चुका है. जांच की लंबी अवधि के कारण चंद मामलों का फैसला कोर्ट में हो पाया है. साल 2018 तक 15 केसों में फैसला हो सका, जिनमें से 14 में दोष भी सिद्ध हो गया. यानी एजेंसी का कन्विक्शन रेट 93.33 प्रतिशत है, जो किसी दूसरी जांच एजेंसी से बेहतर है."कौन से हाई प्रोफाईल मामलों की जांच कर रहा है? वित्तीय घोटालों से जुड़े मामलों में ईडी की जांच चलती है. इनमें कई हाई प्रोफाइल केस भी हैं. कुछ चुनिंदा केसों की बात करें तो नीरव मोदी और विजय माल्या जैसों के केस तो ईडी हैंडल कर ही रहा है. हाल फिलहाल में चर्चित बाइक बोट घोटाले की भी जांच ईडी कर रहा है. इसके अलावा जम्मू-कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन घोटाला मामले की जांच, जिसमें फारूक अब्दुल्ला का भी नाम है, वह भी ईडी के ही पास है. पीएमसी बैंक मनी लॉन्ड्रिंग केस की जांच का जिम्मा भी ईडी को ही सौंपा गया है. यही नहीं पीएफआई संगठन से जुड़ी एक जांच भी ईडी के ही पास है. जिन भी केसों में पैसों का हेरफेर होने का आरोप है, उन सभी में सबूत जुटाने का जिम्मा ईडी का ही है.