ये इकॉनमिक सर्वे क्या होता है, जिसमें सरकार सालभर का लेखा-जोखा देती है
आगे की चुनौतियों और समाधान पर सुझाव भी दिए जाते हैं.
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घर की कई चीज़ों का हिसाब-किताब रखने के लिए बहुत से लोग डायरी मेंटेन करते हैं. साल खत्म होने पर देखते हैं कि घर किस तरह चला? हालत सही रही या गड़बड़? कहां खर्च हुआ? कहां बचत हुई? फैसला भी लेते हैं कि आगे कितना हाथ दबाकर चलना है? किस जगह खर्च करना है? अनुमान लगाते हैं कि हालत कैसी रहने वाली है? देश अगर घर है तो इकॉनमिक सर्वे एक तरह की डायरी है. लेकिन इकॉनमिक्स की सॉफिस्टिकेटेड वाली भाषा में. इससे पता चलता है कि देश की अर्थव्यवस्था कैसा परफॉर्म कर रही है.इकॉनमिक सर्वे. आर्थिक सर्वेक्षण. इसमें बीते साल का लेखा-जोखा और आने वाले साल के लिए सुझाव, चुनौतियां और समाधान होते हैं. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 31 जनवरी, 2020 को इकॉनमिक सर्वे पेश कर दिया. बजट 2020 से एक दिन पहले.
कौन तैयार करता है सर्वे? डिपार्टमेंट ऑफ इकॉनमिक अफेयर्स (DEA) में आता है इकॉनमिक डिविज़न. वो इसे तैयार करता है. देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) की देख-रेख में. इस समय CEA हैं कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन. इसके बाद इसे वित्त मंत्री की तरफ से अप्रूव किया जाता है. पहला इकॉनमिक सर्वे 1950-51 में पेश किया गया था. 1964 तक इसे बजट के साथ ही पेश किया जाता था. इसके बाद इसे बजट से एक दिन पहले इसे पेश किया जाने लगा.Delhi: Finance Minister Nirmala Sitharaman tables the Economic Survey in the Parliament. pic.twitter.com/OsvvNxyKaE
— ANI (@ANI) January 31, 2020
अब दो वॉल्यूम में छापा जाता है पिछले कुछ सालों से इसे दो वॉल्यूम में छापा जा रहा है. 2018-19 में वॉल्यूम एक में अर्थव्यवस्था की चुनौतियों पर फोकस था. दूसरे वॉल्यूम में अर्थव्यवस्था के सभी खास सेक्टर्स का रिव्यू था. इकॉनमिक सर्वे क्यों ज़रूरी है? क्योंकि इससे पता चलता है कि अर्थव्यवस्था सही चल रही है या नहीं. कई बार कुछ ज़रूरी मुद्दों की तरफ भी ध्यान दिलाया जाता है. जैसे- 2018 का इकॉनमिक सर्वे गुलाबी रंग के कवर में छापा गया था. जेंडर इक्वॉलिटी पर ज़ोर देने के लिए. यूनिवर्सल बेसिक इनकम की बात भी इसमें कही गई थी. तब वित्त मंत्री अरुण जेटली और CEC अरविंद सुब्रमण्यन थे. क्या सरकार के लिए इसे पेश करना ज़रूरी है? संवैधानिक तौर पर सरकार इसे पेश करने के लिए या इसमें की गई सिफारिशों को मानने के लिए बाध्य नहीं है. अगर सरकार चाहे तो इसमें दिए गए सारे सुझावों को ख़ारिज कर सकती है. फिर भी इसकी एक हैसियत बन चुकी है और ये सर्वे अर्थव्यवस्था के सालभर का लेखा-जोखा लोगों को दे देता है तो सरकारें इसे पेश कर देती हैं.CEA Krishnamurthy Subramanian: We have a slowdown in the Indian economy, part of it is because of the global economy slowing down in 2019. #EconomicSurvey pic.twitter.com/My1mA7aifR
— ANI (@ANI) January 31, 2020
इस बार के इकॉनमिक सर्वे की खास बातें क्या हैं? - इकॉनमिक सर्वे में निर्मला सीतारमण ने बताया कि चालू वित्त वर्ष 2019-20 में जीडीपी ग्रोथ 5 फीसदी ही रहने का अनुमान है. अगले वित्त वर्ष 2020-21 में 6-6.5 फीसदी जीडीपी ग्रोथ का अनुमान है. - फाइनेंशियल सेक्टर की दिक्कतों के चलते निवेश में कमी की वजह से भी चालू वित्त वर्ष में ग्रोथ घटी. - ग्लोबल ग्रोथ डाउन होने की वजह से भारत भी प्रभावित हो रहा है. - सुझाव दिया गया कि 2025 तक पांच ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी का लक्ष्य हासिल करने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर पर 1.4 ट्रिलियन डॉलर खर्च करने की ज़रूरत है. - अप्रैल, 2019 में महंगाई दर 3.2 फीसदी से घटकर दिसंबर 2019 में 2.6 फीसदी रह जाने से पता चलता है कि मांग में कमी की वजह से अर्थव्यवस्था दबाव में है -संपत्ति को बांटने से पहले संपत्ति जुटानी होती है. कारोबारियों को सम्मान से देखना चाहिए. - बिजनेस शुरू करने, प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन, टैक्स भुगतान और कॉन्ट्रैक्ट लागू करने के नियम आसान करने का सुझाव. - सरकारी बैंकों में सुधार लाने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा जानकारी सार्वजनिक की जानी चाहिए. - पांच साल में चार करोड़ रोजगार देने के लिए चीन का फॉर्मूला अपनाने का सुझाव दिया गया है. - 'मेक इन इंडिया' के तहत 'असेंबलिंग इन इंडिया फॉर वर्ल्ड' को शामिल कर रोज़गार और एक्सपोर्ट पर ध्यान देने से 2025 तक 4 करोड़ और 2030 तक 8 करोड़ नौकरियां दी जा सकती हैं.India's share in global commercial services exports up at 3.5 pc
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अर्थात: बजट 2020 पेश करते हुए निर्मला सीतारमण को क्या नहीं करना चाहिए?