The Lallantop
Advertisement

पुलिस गलत तरीके से पकड़ ले तो क्या करें, मुआवजा कैसे मांगें, नियम जान लीजिए

सुशांत के हेल्पर रहे दीपेश ने अवैध हिरासत का आरोप लगाकर किस नियम के तहत 10 लाख मुआवजा मांगा है

Advertisement
0c33ba54 F195 4ad1 Af43 720ea67c5e74
गिरफ्तार किए गए शख्स के कई अधिकार होते हैं, पुलिस इनका पालन न करे तो कोर्ट की मदद ली जा सकती है.
pic
लल्लनटॉप
27 अक्तूबर 2020 (Updated: 28 अक्तूबर 2020, 12:17 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
बाॅलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) बॉलीवुड में ड्रग्स के एंगल से जांच कर रहा है. अब तक 23 गिरफ्तारियां हो चुकी हैं. इनमें सुशांत के हेल्पर रहे दीपेश सावंत भी हैं, जो फिलहाल जमानत पर हैं. हाल में इन्होंने NCB पर अवैध रूप से हिरासत में रखने का आरोप लगाया है और बाॅम्बे हाई कोर्ट में याचिका देकर 10 लाख रुपए का मुआवजा मांगा है. आइए, आपको बताते हैं कि अवैध हिरासत आखिर होती क्या है और किस धारा के तहत मुआवजा मांगा जा सकता है. पहले दीपेश के केस से जुड़ी ये बातें जान लीजिए  दीपेश सावंत को NCB ने NDPS ACT, 1985 की धारा 20B, 23, 29 और 30 के तहत अरेस्ट किया था. दीपेश ने हाई कोर्ट में दाखिल याचिका में आरोप लगाया है कि उसे 4 सितंबर की रात 10 बजे पकड़ा गया, लेकिन 5 सितंबर की रात 8 बजे गिरफ्तार दिखाया गया. 6 सितंबर की दोपहर डेढ़ बजे कोर्ट में पेश किया गया. मतलब NCB 36 घंटे हिरासत में रखने के बाद मजिस्ट्रेट के यहां पेश किया. दीपेश के वकील राजेंद्र राठौर ने आरोप लगाया कि NCB ने ऐसा करके संविधान के अनुच्छेद-21 और 22 यानी मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया. अब जानिए, गिरफ्तारी कहते किसे हैं? गिरफ्तारी का सीधा-सा मतलब है कि किसी ऐसे व्यक्ति को पकड़ना, जिसने अपराध किया है या उसके ज़रिए अपराध किए जाने का शक है. गिफ्तारी में उस शख्स के कई अधिकार निलंबित हो जाते हैं. गिरफ्तारी के लिए ये देखना होता है कि अपराध किस तरह का है. मतलब संज्ञेय है या असंज्ञेय. इसी से पता लगता है कि क्राइम ज़मानती है या गैर-ज़मानती. जमानती अपराध मतलब, जिसमें थाने से ही जमानत मिल जाती है. गैर-जमानती अपराधों में बेल का फैसला अदालत करती है.
अपने आप गिरफ्तारी- संज्ञेय अपराध होने के बाद या होने की आशंका हो तो पुलिस सीधे गिरफ्तार कर सकती है. preventive Arrest के लिए पुलिस को CrPC की धारा-151(1) में बिना वॉरंट अरेस्ट करने के अधिकार दिए गए हैं. शिकायत पर- पुलिस ऐसे अपराध की शिकायत मिलने पर भी किसी को अरेस्ट कर सकती है, जिसमें 7 साल या उससे ज्यादा की सजा का नियम हो. यह बात CrPC की धारा-41 में बताई गई है. वॉरंट के आधार पर- अगर किसी को गिरफ़्तार करने के लिए कोर्ट ने अरेस्ट वॉरंट किया है तो पुलिस उसे अरेस्ट कर सकती है. उसकी प्रॉपर्टी की तलाशी ले सकती है. जरूरत पड़ने पर सामान ज़ब्त भी कर सकती है.
गिरफ्तारी पर संविधान क्या कहता है?
पहली बात, संविधान का अनुच्छेद- 21 कहता है कि किसी भी व्यक्ति को कानूनी प्रक्रिया के अतिरिक्त उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता. हर किसी को जीवन जीने का अधिकार है और यह मौलिक अधिकार है. दूसरी बात, संविधान के अनुच्छेद-22 के मुताबिक, गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को 24 घंटे के अंदर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होता है. गिरफ्तारी से पहले इसका कारण बताना भी जरूरी होता है. 24 घंटे से ज्यादा भी हिरासत में रख सकती है पुलिस?  अब सवाल उठता है कि क्या पुलिस 24 घंटे से अधिक समय तक किसी व्यक्ति को हिरासत में रख सकती है? इस पर कानून के जानकार और बाॅम्बे हाई कोर्ट के वकील दीपक डोंगरे कहते हैं,
हां. पुलिस चाहे तो किसी व्यक्ति को 24 घंटे से अधिक समय तक हिरासत में रख सकती है लेकिन इसके लिए मजिस्ट्रेट से इजाजत लेनी होगी.
गिरफ्तार व्यक्ति के क्या-क्या अधिकार हैं? पहला- क्रिमिनल प्रोसीजर कोड (CrPC) की धारा-50A तहत गिरफ्तार व्यक्ति को अधिकार मिलता है कि वह इसकी जानकारी अपने परिवार या रिश्तेदार को दे सके. दूसरा- CrPC की धारा-41D के मुताबिक, गिरफ़्तार व्यक्ति को पुलिस जांच के दौरान कभी भी अपने वकील से मिलने का अधिकार दिया गया है. वह अपने रिश्तेदारों से भी बातचीत कर सकता है. तीसरा- अगर गिरफ्तार किया गया व्यक्ति गरीब है, उसके पास इतने पैसे नहीं है कि खुद के लिए वकील रख सके तो ऐसे में कोर्ट मुफ्त में वकील मुहैया कराता है. हिरासत और गिरफ्तारी में क्या फर्क है? हिरासत और गिरफ्तारी में मुख्य अंतर इस बात का है कि व्यक्ति पर चार्ज लगाया गया है या नहीं. अगर पुलिस ने शक के आधार पर किसी को पकड़ा है, आरोप नहीं लगाए हैं तो पूछताछ के बाद उसे छोड़ा भी जा सकता है. लेकिन गिरफ्तारी तभी हो सकती है जब उसके खिलाफ आरोप लगा दिए गए हों. हिरासत यानी कस्टडी भी दो तरह की होती है. पहली- पुलिस कस्टडी और दूसरी- ज्यूडिशियल कस्टडी. जब पुलिस को किसी व्यक्ति के खिलाफ सूचना या शिकायत मिलती है, या शक होता है तो पुलिस उसे गिरफ्तार करके हवालात में रखती है, इसे 'पुलिस हिरासत' कहते हैं. जरूरी बात ये कि पुलिस कस्टडी के समय जेल में नहीं, थाने में रखा जाता है. पुलिस आरोपी से जानकारी उगलवाने, जांच की कड़ियां जोड़ने के लिए मजिस्ट्रेट से एक बार में 15 दिन की कस्टडी मांग सकती है. आपने सुना होगा कि कोर्ट ने फलां आदमी को 14 दिन की ज्यूडिशियल कस्टडी यानी न्यायिक हिरासत में भेज दिया है. ऐसी कस्टडी में आरोपी को मजिस्ट्रेट के आदेश पर जेल में रखा जाता है. लेकिन मामला अगर देश की अखंडता या सुरक्षा से जुड़ा हो और केस Unlawful activities (prevention) act (UAPA) कानून 1967 के तहत दर्ज हो तो नियम सख्त हो जाते हैं. इस कानून के तहत जांच एजेंसियां बिना वॉरंट किसी को हिरासत में ले सकती हैं. पुलिस कस्टडी 30 दिन और न्यायिक हिरासत 90 दिनों तक की हो सकती है. ऐसे मामलों में जमानत भी आसानी से नहीं मिलती . पुलिस पकड़ ले, पर कोर्ट में पेश न करे तो क्या करें? कहां जाएं? नियमों को नजरअंदाज करके कस्टडी में रखने को अवैध हिरासत कहते हैं. अगर किसी को ग़लत तरीके से गिरफ़्तार किया गया हो, हिरासत में अवैध तरीके से रखा गया हो, और 24 घंटे के भीतर कोर्ट में पेश नहीं किया गया हो तो वह शख़्स या उसका कोई करीबी कोर्ट में हैबियस कॉर्पस की याचिका डाल सकता है. संविधान के अनुच्छेद-226 में 'हैबियस काॅर्पस' का जिक्र है. हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट इन याचिकाओं को प्राथमिकता पर सुनते हैं. इसमें दोषियों को दंड और पीड़ित को मुआवजे का भी प्रावधान है. मुआवजा मांगने का क्या नियम है? अगर किसी को लगता है कि उसकी गिरफ्तारी अवैध है तो वह रिहाई के साथ-साथ मुआवजे की भी मांग कर सकता है. CrPC की धारा-357 के तहत व्यक्ति मुआवजे के लिए कोर्ट में आवेदन कर सकता है. इसरो में 1994 के कथित जासूसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायण को 2018 में राहत देते हुए 50 लाख का मुआवजा केरल सरकार से दिलवाया था. बाद में केरल सरकार ने 1.30 करोड़ अतिरिक्त मुआवजा भी दिया था. केरल पुलिस ने बिना ठोस सबूत नंबी नारायण को दो महीने जेल में रखा था. इसी कानून के तहत सुशांत सिंह राजपूत के हेल्पर दीपेश ने NCB से 10 लाख रुपए मुआवजे के रूप में मांगे हैं.

(यह स्टोरी हमारे यहां इंटर्नशिप कर रहे बृज द्विवेदी ने लिखी है)

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement