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गद्दाफी के लीबिया में अब क्या कांड हो गया?

डेनियल ने गद्दाफ़ी के देश में 05 हज़ार लोगों की जान ली, कैसे मची तबाही?

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डेनियल ने गद्दाफ़ी के देश में 05 हज़ार लोगों की जान ली, कैसे मची तबाही?
डेनियल ने गद्दाफ़ी के देश में 5 हज़ार लोगों की जान ली, कैसे मची तबाही?
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साजिद खान
13 सितंबर 2023 (Published: 07:58 PM IST) कॉमेंट्स
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लीबिया में भयानक बाढ़ आई हुई है. जिन सड़कों पर कभी ज़िंदगी दौड़ती थी. वहां तबाही पसरी है. गाड़ियां मलबे का हिस्सा बन चुकीं हैं. कच्चे मकानों का पता बदल चुका है. जो घर थोड़े मज़बूत थे. वे जीर्ण-शीर्ण सी काया लिए अकेले खड़े हैं. एक भरे-पूरे शहर की शक्ल कंकाल सी हो गई है. जो कुछ लोग बच गए हैं, उनके पास बस बेबसी बची है.

बाढ़ में डूबी लीबिया की सड़कें 

11 सितंबर को लीबिया के डेर्ना शहर में नज़ारा डरावना था. जनमानस में लीबिया की पहचान मुअम्मार गद्दाफ़ी से है. गद्दाफ़ी ने 42 बरसों तक शासन चलाया. फिर 2011 में अरब क्रांति हुई. भीड़ ने उसकी हत्या कर दी. फिर पावर हासिल करने के लिए लोग आपस में भिड़े. सिविल वॉर हुआ. लीबिया के पूरब में बसा डेर्ना इस पूरी कवायद का गवाह रहा है. इसने घेराबंदी से लेकर नरसंहार तक का दंश झेला.
अब ये शहर डेनियल चक्रवात की मार झेलने को मजबूर है. चक्रवात के बाद आई बाढ़ 05 हज़ार से अधिक लोगों की जान ले चुकी है. 10 हज़ार लोग लापता बताए जा रहे हैं.

मुअम्मर गद्दाफी 

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, असली नुकसान कई गुना ज्यादा हो सकता है. मलबे में हज़ारों लोग फंसे हो सकते हैं. लेकिन उन तक मदद पहुंचने में काफी समय लग रहा है. इसकी सबसे बड़ी वजह लीबिया का इंटरनल झगड़ा है. दरअसल, जिस इलाके में बाढ़ आई है, वहां पर विद्रोही जनरल खलीफ़ा हफ़्तार का कब्ज़ा है. वो वहां से सरकार भी चलाते हैं. इंटरनैशनल कम्युनिटी ने उन्हें मान्यता दी है. जिन्हें दी है, उनका हफ़्तार से उन्नीस का आंकड़ा चलता है. इसके चलते संकट और गहरा गया है.

लीबिया, अफ़्रीका महाद्वीप के उत्तर में है. भूमध्यसागर के किनारे पर. इसी समंदर के मुहाने पर डेर्ना बसा है. 89 हज़ार की आबादी वाला शहर हालिया बाढ़ में डूबा हुआ है. इलाके का दौरा कर लौटे एक मंत्री ने कहा, ‘वहां क़यामत आई हुई है. लोगों के शव समंदर, घाटियों और इमारतों तक में बिखरे पड़े हैं. 25 फीसदी डेर्ना खत्म हो चुका है.’

लीबिया का नक्शा (गूगल मैप्स)

हालांकि, स्थानीय पत्रकार मोहम्मद अल्गर्ज एक वीभत्स सच्चाई बयां करते हैं. 12 सितंबर को उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर लिखा,

‘आधा डेर्ना भूमध्यसागर में विलीन हो चुका है. डेनियल तूफान के बाद हुई भारी बारिश के चलते दो बांध धराशायी हो गए. इन्हें 1980 के दशक में यूगोस्लाविया के इंजीनियर्स ने बनाया था. ऐसी बारिश पहले कभी नहीं देखी. मिनटों के अंदर घरों में पानी भर गया. डेर्ना, अलबएदा और साउसा में 10 हज़ार से अधिक लोग लापता हैं. ये 2023 में भूमध्यसागर में दिख रहा जलवायु परिवर्तन है. तुर्की और क़तर से मदद मिली है. गुड ओल्ड यूरोप से अभी तक कुछ भी नहीं आया है.’

अल्गर्ज ने एक पोस्ट में ये भी बताया कि डेर्ना के बांधों को लेकर पहले भी चिंता जताई गई थी. मगर इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. इसकी वजह समझने के लिए इतिहास में चलना होगा.
18वीं सदी में डेर्ना पर ऑटोमन साम्राज्य का राज था.

19वीं सदी की शुरुआत में अमेरिका, वेस्ट एशिया में अपना सामान बेचने निकला. उसके जहाज भूमध्यसागर के रास्ते आते थे. लेकिन मोरक्को, अल्जीरिया और लीबिया के समुद्री लुटेरे उनको लूट लिया करते थे. 1801 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति थॉमस जैफ़रसन ने समुद्री बेड़े को लड़ाई के लिए उतार दिया. पहली लड़ाई में उनकी बुरी हार हुई.

दूसरा हमला 1805 में किया गया. तब अमेरिकी जनरल विलियम ईटन ईजिप्ट के रास्ते अपनी सेना लेकर डेर्ना में घुसे. माइकल ओरेन ने अपनी किताब ‘पावर, फ़ेथ एंड फ़ेन्टसी’ में लिखा, ‘ईटन घोड़े पर सवार होकर होकर डेर्ना के प्रवेशद्वार पर पहुंचे. बोले, सरेंडर करो. शहर के गवर्नर ने कहा, मेरा सिर या तुम्हारा. और, फिर ईटन ने शहर पर कब्जा कर लिया.’

डेर्ना, अमेरिका और वेस्ट एशिया के बीच व्यापार का अहम पड़ाव रहा. यहां पर अमेरिका ने अपनी फौज़ तैनात की. वे अपने जहाजों को सिक्योरिटी देते थे. लेकिन उनके लिए फ़ुल कंट्रोल बनाए रखना मुश्किल रहा. 20वीं सदी की शुरुआत में ऑटोमन साम्राज्य कमज़ोर होने लगा था. 1911 में इटली ने लीबिया पर हमला कर दिया. उसने अपना जहाज डेर्ना के तट पर ही उतारा था. इस लड़ाई में इटली जीत गया. उसका शासन 1941 तक चला. इस दौरान डेढ़ लाख से अधिक इतालवी मूल के लोग लीबिया में बसाए गए. और इससे कई गुना ज्यादा स्थानीय लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया. एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1911 में लीबिया की कुल आबादी 12 लाख थी. 1933 में ये घटकर 08 लाख 25 हज़ार पर आ चुकी थी.

मित्र राष्ट्रों ने 1942 में लीबिया को आज़ाद करा लिया. लेकिन सत्ता की चाबी उन्हीं के पास रही. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद कंट्रोल को लेकर उनके बीच तकरार हुई. आख़िरकार, 1951 में यूनाइटेड नेशंस के निर्देश पर लीबिया को आज़ादी मिल गई. किंग इदरिस पहले राजा बने. उनकी डोर अमेरिका के हाथों में थी. वो अपने हिसाब से उनका इस्तेमाल करना चाहता था. दरअसल, 1950 के दशक में लीबिया में कच्चे तेल का भंडार मिला था. इसके बाद तो पूरा खेल ही बदल गया. वेस्ट ने राजा को सपोर्ट दिया. इदरिस ने अपनी वफ़ादारी बखूबी साबित की. वेस्ट की तेल कंपनियों को औने-पौने दाम पर तेल बेचा. इस लूट के बावजूद लीबिया के पास बहुत सारा पैसा आ रहा था. इसका बहुत छोटा हिस्सा आम जनता के पास पहुंचा, बाकी पैसों को इदरिस ने अपने पसंदीदा लोगों में बांटा. लीबिया के संसाधन कुछ चुनिंदा लोगों की जेबें भरने का काम कर रहे थे. इससे लोगों में गुस्सा पनपा.

फिर अगस्त 1969 आया. एक रोज़ किंग इदरिस विदेश गए. पीठ पीछे 27 साल के आर्मी अफ़सर मुअम्मार गद्दाफ़ी ने सत्ता हथिया ली. गद्दाफ़ी के शासन में पहली बार डेर्ना पर ध्यान दिया गया. वादी डेर्ना नदी शहर के बीच से बहती है. थोड़ी सी बारिश में पूरे शहर में बाढ़ आ जाती थी. गद्दाफ़ी ने वहां बांध बनवाए. कच्चे तेल से होने वाली आमदनी भी यहां पहुंची. लोगों के लिए सरकारी अपार्टमेंट्स बनवाए गए. सड़कें बेहतर की गईं. डेर्ना में कामभर की तरक्की दिखी. इन सबके बरक्स कुछ और भी खेल चल रहे थे. डेर्ना में कट्टर मुस्लिमों की संख्या भी कम नहीं थी. वहां से बड़ी संख्या में लोग अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत संघ और इराक़ में अमेरिका के ख़िलाफ़ लड़ने गए.

कई ऐसे भी थे, जो गद्दाफ़ी को पसंद नहीं करते थे. उनके ख़िलाफ़ गद्दाफ़ी की खुफिया एजेंसी ने ख़तरनाक कैंपेन चला रखा. यही वजह रही कि जब 2011 में लीबिया में क्रांति हुई, तब डेर्ना क्रांति का गढ़ था. अमेरिका के नेतृत्व वाली नेटो सेना ने प्रदर्शनकारियों का साथ दिया. अक्टूबर 2011 में गद्दाफ़ी की हत्या हो गई. कहा गया कि अब लोकतंत्र आएगा. लीबिया का नसीब सुधर जाएगा. लेकिन वैसा कुछ नहीं हुआ.

गद्दाफ़ी के पतन के बाद क्रांति के फल को लेकर बंदरबांट शुरू हुई. अलग-अलग धड़े सरकार चलाने का दावा करने लगे. इसका फायदा उठाया, इस्लामी आतंकी संगठनों ने. उन्होंने लीबिया के बड़े हिस्से को अपने कंट्रोल में ले लिया. उनमें डेर्ना भी था.

फिर आया 2014 का साल. गद्दाफ़ी की सेना में जनरल रहे खलीफ़ा हफ़्तार लीबिया लौटे. उन्होंने 1978 में चाड के ख़िलाफ़ जंग को लीड किया था. लेकिन इस लड़ाई में उन्हें युद्धबंदी बना लिया गया. गद्दाफ़ी ने उनकी मदद नहीं की. नाराज़ हफ़्तार जब क़ैद से छूटे तो अमेरिका चले गए. उन्होंने अमेरिका की खुफिया एजेंसी CIA से हाथ मिला लिया. कई बार गद्दाफ़ी को मरवाने की कोशिश भी की. मगर फ़ेल रहे. 2011 की अरब क्रांति में उन्हें मौका मिला. विद्रोहियों के एक धड़े की कमान संभाली.

गद्दाफ़ी की मौत के बाद जनरल नेशनल कांग्रेस (GNC) का गठन हुआ. लेकिन चुनी हुई सरकार समस्याओं को सुलझाने में नाकाम साबित हो रही थी. आतंकी हमले हो रहे थे. विद्रोही गुट आपस में लड़ रहे थे. लीबिया अस्थिर था. हफ़्तार ने GNC का विरोध किया. सिविल वॉर शुरू हुआ.

फिर 2014 में लीबिया दो हिस्सों में बंट गया. दो सरकार बनी. पश्चिमी लीबिया की संसद का नाम था, गवर्नमेंट ऑफ़ नेशनल अकॉर्ड (GNA). उसका हेडक़्वार्टर त्रिपोली में था. उन्हें तुर्की, क़तर और इटली का सपोर्ट मिला. इस सरकार को यूएन ने भी मान्यता दी. दूसरी का कंट्रोल पूर्वी लीबिया में था. उसने नाम रखा, हाउस ऑफ़ रेप्रजेंटेटिव्स (HoR). इनका हेडक़्वार्टर तोबरुक में बनाया गया. खलीफ़ा हफ़्तार के नेतृत्व वाली लीबियन नेशनल आर्मी ने पूरब वाली सरकार का समर्थन किया. उन्हें ईजिप्ट, रूस, जॉर्डन और यूएई का साथ मिला. वेस्ट और ईस्ट की सरकारों के बीच फ़ुल कंट्रोल को लेकर झगड़ा शुरू हुआ. अभी भी चल रहा है. लेकिन एकीकृत सरकार का गठन अभी तक नहीं हो सका है.

ये तो हुआ पूरे लीबिया का मसला. अब डेर्ना पर लौटते हैं.

2011 के बाद ये शहर इस्लामी चरमपंथियों के कब्ज़े में था. 2014 में इस्लामिक स्टेट यहां आ गया. वे हफ़्तार की सेना के लिए चुनौती बन गए थे. तब हफ़्तार ने यूएई और जॉर्डन से मदद मांगी. उन्होंने हवाई हमले किए. और, हफ़्तार की सेना ने शहर की घेराबंदी कर दी. तीन बरसों तक सीज़ बरकरार रहा. इसके बाद हिंसक हमला हुआ. आतंकियों के साथ-साथ आम जनता भी इसकी चपेट में आई. 2019 की शुरुआत में हफ़्तार ने डेर्ना को जीत लिया. इसकी असली कीमत डेर्ना के आम नागरिकों ने चुकाई थी. शहर पूरी तरह तबाह हो चुका था. डेर्ना को पटरी पर लाने के लिए करोड़ों की दरकार थी. मगर हफ़्तार को शहर के रहवासियों पर शक़ था. इसलिए, उसके इंफ़्रास्ट्रक्चर पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. नतीजतन, बांध टूटा और अब पूरा शहर बर्बादी की कगार पर पहुंच गया है.

इस मामले में ताज़ा अपडेट्स क्या हैं?

- बाढ़ से मरने वालों की संख्या 05 हज़ार 300 के पार पहुंच गई है. लोगों को सामूहिक क़ब्रों में दफ़नाया जा रहा है. 34 हज़ार से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं. डेर्ना की कुल आबादी लगभग 90 हज़ार है.

- डेनियल तूफान आने से पहले तक डेर्ना में एक भी ढंग का अस्पताल नहीं था. घायलों को समय पर इलाज नहीं मिल पा रहा है. इसके चलते हताहतों की संख्या बढ़ने की आशंका है.

- त्रिपोली-बेस्ड इंटरनैशनल मान्यता प्राप्त सरकार ने मदद की पेशकश की है. एक प्लेन भी डेर्ना भेजा है. लेकिन दोनों सरकारों के बीच फिलहाल कोई बातचीत नहीं हुई है. दूसरे देशों को मदद पहुंचाने के लिए त्रिपोली वाली सरकार की परमिशन लेनी पड़ती है. इसकी वजह से भी सर्च एंड रेस्क्यू में मुश्किल आ रही है.

- कई देशों ने अपनी सेना को स्टैंड-बाय पर रखा है. वे इजाज़त का इंतज़ार कर रहे हैं.

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