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चंद्रयान 2 के लैंडर विक्रम में दिक्कत कहां आई?

दिल छोटा करने की बात नहीं है.

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के सिवन. ISRO के डायरेक्टर. और वो क्षण जब उन्होंने बताया कि लैंडर से संपर्क टूट गया है.
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आयुष
7 सितंबर 2019 (Updated: 7 सितंबर 2019, 09:09 AM IST)
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चंद्रयान-2. श्रीहरिकोटा से रवाना हुआ हमारा मिशन. इसे चांद के साउथ पोल रीजन में पहुंचना था. पहुंचने के लिए चंद्रयान-2 ने 48 दिन की यात्रा तय की. इस यात्रा की तैयारी में हमने एक दशक से ज़्यादा समय लगाया था. लेकिन अपने आखिरी कुछ मिनटों के सफर में चंद्रयान-2 का लैंडर विक्रम दिक्कत में पड़ गया.
विक्रम कब और कहां होगा, सब पहले से मिनट और सेकेंड के लेवल पर फिक्स था. और विक्रम उसी प्लान के हिसाब से चल रहा था. दिक्कत कहां हुई? ये समझने के लिए बेहतर होगा कि हम पहले ये समझें कि अंतिम स्टेज में आखिर चल क्या रहा था.
चल ये रहा था कि विक्रम चांद की सतह से 35 किमी दूर एक ऑर्बिट में चक्कर काट रहा था. चक्कर क्यों काट रहा था? ताकि सही समय देख कर अपने तय लैंडिंग स्पॉट की ओर बढ़ सके. डिसेंट कर सके.
फिर क्या हुआ? ये जानने के लिए एक नज़र मारते हैं. विक्रम के आखिरी स्टेज के अपडेट्स पर. और ISRO के बैंगलोर स्थित मिशन कंट्रोल सेंटर पर. मिशन कंट्रोल सेंटर, जहां से चंद्रयान-2 की मूवमेंट्स पर नज़र रखी जा रही थी.
टाइमलाइन(7 सितंबर. रात का समय)
01:04- ISRO के बैंगलोर सेंटर से दृश्य दिखाई देने शुरू होते हैं. विक्रम चांद की सतह के 35 किमी ऊपर चक्कर काट रहा है. विक्रम को कुछ ही देर में चांद की सतह के लिए रवाना होना है. टीवी पर टिकर चलने लगते हैं. विक्रम 1:35 के बाद चांद ही सतह की ओर डिसेंट करेगा. और 1:53 पर चांद की सतह को छुएगा.
01:22- प्रधानमंत्री मोदी ISRO के हेडक्वार्टर पहुंचते हैं. के. सिवन उन्हें मिशन सेंटर में उनकी सीट छोड़ कर आते हैं. फुटेज में स्कूल से आए बच्चे भी दिखाई दे रहे हैं.
1:36 -  डिसेंट शुरू होने का समय 1 मिनट 40 सेकंड दिखाया जा रहा है.
1:37 - डिसेंट शुरू होता है. विक्रम चांद की सतह की ओर आगे बढ़ता है.
सबसे क्रूशियल फेस. यहां से सब ऑटोमेटिक होना है. कोई इंसान अब कुछ नहीं कर सकता. यात्रा की शुरूआत में विक्रम की रफ्तार लगभग 21600 किमी/घंटे थी. अब रफ्तार कम करने का काम शुरू होता है. इसी को ब्रेकिंग कहते हैं. पहले रफ ब्रेकिंग होती है. विक्रम के चार थ्रस्ट इंजन विक्रम की स्पीड कम करने के लिए शुरू हो जाते हैं. अगले 15 मिनट में सेफ लैंडिंग के लिए विक्रम की रफ्तार को करीब 7 किमी/घंटे पे लाना है. ISRO के शब्दों में कहूं तो 'टैरिफाइंग 15 मिनट्स'.
अगले कुछ मिनटों में स्पीड और हाइट घटते हुए दिखते हैं. उसी हिसाब से, जैसी उम्मीद थी
1:48- विक्रम ने रफ-ब्रेकिंग फेस पूरा कर लिया. चांद की सतह से करीब 5 किमी ऊपर. मिशन सेंटर में तालियां बजती हैं. अब ब्रेकिंग का अगला चरण शुरू होता है. 30-40 सेकंड बीते ही बीते थे. कमांड सेंटर में असमंजस की स्थिति पैदा हो जाती है.
1:54 - काफी देर हो चुकी थी. अनाउंसमेंट हो रही थी कि आंकड़ों के लिए हमें थोड़ी सी प्रतीक्षा करनी होगी. अब तक लैंडिंग का जो काउंटडाउन चल रहा था वो भी गायब हो जाता है. ISRO के मिशन कंट्रोल रूम में भयंकर सस्पेंस का माहौल छा गया. कमेंटेटर लगातार बता रहे थे कि डिसेंट शुरू हुए कितना समय बीत चुका है.
1:57 - ISRO के चीफ और उनके एक साथी प्रधानमंत्री को कुछ बताते नज़र आ रहे हैं. नहीं पता, क्या बता रहे हैं. इसके बाद चीफ के साथी उनके कंधे पर हांथ रखते हैं. उन्हें हौसला देते हैं.
1:58 - प्रधानमंत्री मोदी अपने कक्ष से नीचे की ओर जाने लगते हैं. लाइव देख रहे लोगों के चेहरों पर तनाव दोगुना हो जाता है.
2:19 - एक अनाउंसमेंट होती है. हम सबको भावुक कर देने वाली अनाउंसमेंट. ISRO के चेयरपर्सन के सिवन एक स्टेटमेंट पढ़ते हैं-
'2.1 किमी की ऊंचाई तक डिसेंट नॉर्मल था. इसके बाद ग्राउंड स्टेशन से लैंडर तक संचार टूट गया, डेटा का विश्लेषण किया जा रहा है.'
विक्रम की गोद में साथ में प्रज्ञान नाम का रोवर भी था
विक्रम की गोद में प्रज्ञान नाम का रोवर भी था
2.1 किमी की ऊंचाई पर जब लैंडर से संचार टूटा तो करोड़ों हिन्दुस्तानियों के दिल टूट गए. लेकिन ज़्यादा दिल छोटा करने की बात नहीं है. संपर्क अभी टूटा भर है. अभी पक्का पता नहीं है कि हुआ क्या है. और अपना ऑर्बिटर अभी भी चांद के चक्कर काट रहा है. ऑर्बिटर चांद की तस्वीरें लेगा. नक्शा तैयार करेगा. और जैसा कि इसरो के एक ऑफिशियल ने कहा है -
' विक्रम और प्रज्ञान यानी सिर्फ 5 प्रतिशत मिशन खतरे में पड़ा है. 95 प्रतिशत हिस्सा यानी ऑर्बिटर अभी भी सफलतापूर्वक चांद के ऑर्बिट में चक्कर काट रहा है'
ये वैसा ही है जैसे केबीसी में किसी बड़े सवाल का गलत जवाब देने के बाद भी कुछ राशि सुरक्षित रहती है. वैसे ये कोई खेल नहीं है, साइंस का मामला है. आखिरी में प्रधानमंत्री मोदी के शब्दों में कहूं तो -
' साइंस में फेलियर जैसी कोई चीज़ नहीं होती. सिर्फ प्रयोग और प्रयास होते हैं. '
असल में हुआ क्या? ये अभी तक नहीं पता है. पता चलने का इंतज़ार करते हैं और उसके बाद निष्कर्ष बनाते हैं.


वीडियो - चंद्रयान 2: लॉन्चिंग से लेकर अब तक की पूरी कहानी। दी लल्लनटॉप शो|Episode 297

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