बहुत समय पहले की बात है. राजा चित्रकेतु की रानियां थीं एक करोड़, पर बच्चा एकौ नहीं. राजा बहुत उदास रहता था. एक दिन अंगिरा नाम के ऋषि उनके महल में आए और चेहरा देखकर सारी प्रॉब्लम समझ गए. उन्होंने उनकी पहली पत्नी कृतद्युति को प्रसाद दिया और जल्द ही महल में सुंदर से लल्ले की किलकारियां गूंजने लगीं.
इससे हुआ यह कि राजा का कृतद्युति के लिए खोया हुआ प्यार वापस आ गया जिससे दूसरी रानियों को जलन होने लगी. जलन की मारी रानियों ने छोटे से से बच्चे को ज़हर दे दिया. सबको पहले लगा कि मुन्ना सोया हुआ है, पर सच सामने आते ही राजा और रानी को बहुत शॉक लगा.
रानी का रो-रोकर बुरा हाल हो गया और राजा का दिमाग सटकने लगा. तब ऋषि अंगिरा और नारद जी प्रकट हुए. पहले तो उन्होंने चित्रकेतु को प्रेम से समझाया. फिर उन्होंने बच्चे की आत्मा को बुलाकर उससे रिक्वेस्ट की कि वह शरीर में वापस आ जाए. आत्मा ने कहा,हम इंसान थोड़े ही हैं कि लोगों से अटैचमेंट हो जाए. हम भला क्यों वापस आएं? और हो गई आत्मा छू.
यह देख चित्रकेतु का मोह टूटा और वो तपस्या करने लगे. भगवान ने खुश होकर उनको थमाया वीजा-पासपोर्ट और बोले कि मृत्युलोक के अलावा भी तुम जहां चाहो, घूम सकते हो. घूमते हुए चित्रकेतु पहुंचे शंकर जी के पास. वहां उन्होंने देखा कि शंकर जी बड़े प्यार से पार्वती को गले लगाए बैठे हैं.
यह देख चित्रकेतु ने कुछ ऐसे रिमार्क्स किए कि पार्वती जी आहत हो गईं. उन्होंने चित्रकेतु को शाप दिया कि वो अपने अगले जन्म में नीच और अधर्मी बनकर पैदा होगा. इसीलिए चित्रकेतु अगले जन्म में वृत्रासुर बनकर पैदा हुआ. इसी वृत्रासुर का बाद में इंद्र से युद्ध हुआ और उसने उन्हें ऐसी टफ फाइट दी कि सब चकित रह गए.
(श्रीमद्भगवत महापुराण)