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वेल्लोर विद्रोह: हिंदू सिपाहियों को तिलक और मुस्लिम सिपाहियों को दाढ़ी रखने से रोका, ग़दर छिड़ गया

अंग्रेज़ों के खिलाफ पहली बग़ावत 1857 में नहीं, उससे 51 साल पहले हुई थी. मारे गए थे करीब 500 लोग.

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प्रतीकात्मक फोटो.
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मुबारक
10 जुलाई 2020 (Updated: 10 जुलाई 2020, 06:22 AM IST) कॉमेंट्स
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जब-जब भारत के स्वतंत्रता संग्राम की बात चलती है, 1857 की लड़ाई को पहला प्रयास माना जाता है. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं, उससे 51 साल पहले भी भारतीय सिपाहियों का एक वैसा ही विद्रोह हुआ था. और उसकी तात्कालिक वजह भी 1857 के संग्राम से मिलती-जुलती थी.
तमिलनाडु के वेल्लोर किले में हुई सैनिकों की ये बग़ावत ‘वेल्लोर विद्रोह’ कहलाती है. इसमें लगभग 200 अंग्रेज़ों को मारा या ज़ख़्मी किया गया. विद्रोह चला तो सिर्फ एक दिन था, लेकिन भीषण मारकाट के बाद ख़त्म हुआ था. तारीख थी 10 जुलाई, 1806.

क्या वजह रही कि सैनिक भड़क गए?

अंग्रेज़ी हुकूमत सिपाहियों के लिए नया ड्रेस कोड ले के आई. ये ड्रेस कोड ही बवाल की वजह बना. इसके तहत हिंदू सैनिकों को तिलक लगाने की मनाही कर दी गई. मुसलमान सैनिकों को दाढ़ी कटवाने का हुक्म दिया गया. इतना ही नहीं, सैनिकों को एक गोल हैट पहनना अनिवार्य कर दिया गया. ये हैट, उस हैट जैसा लगता था जिसे यूरोपियन लोग और कन्वर्ट कर गए हिंदुस्तानी ईसाई लोग पहनते थे. और तो और, इस हैट पर एक लेदर की कलगी भी लगानी थी, जो बड़ी अजीब दिखा करती थी.
पहनावे में ये बदलाव सिपाहियों के लिए हज़म करना मुश्किल था.
वेल्लोर का किला.
वेल्लोर का किला.

1806 की शुरुआत में कुछ सिपाहियों ने इसका विरोध किया. उन्हें पकड़ कर कोड़े मारे गए. दो सिपाहियों का किस्सा ख़ास तौर से बताया जाता है, जिनका विरोध सबसे मुखर था. इनमें एक सिपाही हिंदू था, एक मुसलमान. दोनों को सबके सामने 90 कोड़े लगाए गए. उसके बाद उन्हें सेना से बर्खास्त किया गया. 19 सिपाहियों को 50-50 कोड़े लगाए गए और माफ़ी मांगने पर मजबूर किया गया.
असंतोष की आग धधकने लगी थी.

टीपू सुलतान की बेटी की शादी में रचा गया प्लान

सैनिकों के गुस्से की आग में घी डालने का काम टीपू सुलतान के बेटों ने भी किया. 1799 में हुई टीपू सुलतान की मौत के बाद से ही उनका परिवार दरबदर सा था. टीपू सुलतान की पत्नियां, उनके बेटे, कुछ कर्मचारी ईस्ट इंडिया कंपनी के पेंशनर्स के तौर पर वेल्लोर किले के एक हिस्से में रहते थे. टीपू सुलतान की बेटियों में से एक की शादी 9 जुलाई 1806 को थी. किले के अंदर ही. इस शादी में शिरकत के बहाने विद्रोही सैनिक इकट्ठा हुए.
टीपू सुलतान.
टीपू सुलतान.

किले पर कब्ज़ा करने का फैसला हुआ. हालांकि सैनिक जानते थे इस कदम से कंपनी को ज़्यादा नुकसान नहीं होगा. लेकिन वो ये उम्मीद कर रहे थे कि इससे बाकी जनता उत्साहित होगी, एक बड़ा विद्रोह होगा और टीपू सुलतान के वंशजों का शासन लौट आएगा.

विद्रोह, जिसने भयंकर क़त्लेआम मचाया

आधी रात के बाद सिपाहियों ने सबसे पहले अपने अधिकारियों पर हमला बोल दिया. 14 ऑफिसर्स तत्काल मार दिए गए. उसके बाद सैनिक चारों तरफ फ़ैल गए. अंग्रेज़ों को चुन-चुन कर मारा जाने लगा. किले के सेनापति जॉन फैनकोर्ट भी नहीं बच सके. 115 अंग्रेज़ लोगों की हत्या की गई. दर्जनों घायल हो गए. सुबह तक किले पर विद्रोही सिपाहियों का कब्ज़ा हो गया. मैसूर सल्तनत का झंडा किले पर फहरा दिया गया. टीपू के दूसरे नंबर के बेटे फ़तेह हैदरी को राजा घोषित कर दिया गया.

उस बच निकले अंग्रेज़ अधिकारी ने बाज़ी पलट दी

इस तमाम कत्लो-गारत के बीच एक अंग्रेज़ ऑफिसर बचकर भाग निकलने में कामयाब हो गया. उसने आरकोट में मौजूद ब्रिटिश सेना को अलर्ट कर दिया. आरकोट वेल्लोर किले से महज़ 25 किलोमीटर दूर था.
सर रोल्लो गिलेस्पी के नेतृत्व में तत्काल ब्रिटिश सेना वेल्लोर किले के लिए कूच कर गई. विद्रोह के ठीक नौ घंटे बाद भारतीय सिपाहियों को एक और ताज़ा दम सेना का सामना करना था.

अंग्रेज़ों ने बदला तुरंत लिया और क्रूरता से

सर गिलेस्पी ने वेल्लोर पहुंचकर देखा कि कुछ बचे हुए अंग्रेज़ सिपाही अभी भी संघर्ष जारी रखे हुए हैं. भरपूर मात्रा में गोला-बारूद लेकर पहुंचे कमांडर ने किले का गेट उड़ा दिया. ब्रिटिश सेना तेज़ी से अंदर घुसी. ख़ूनी खेल शुरु हो गया. जो भी भारतीय सिपाही नज़र आया, काट डाला गया. किले के अंदर से लगभग 100 सिपाहियों को पकड़ कर बाहर लाया गया. गिलेस्पी के हुक्म पर उन्हें दीवार के सहारे खड़ा करके गोलियों से भून दिया गया. चंद घंटों में ही तकरीबन 350 विद्रोही सिपाही मार डाले गए.
कुछ ज़ख़्मी सिपाहियों पर मुकदमा भी चलाया गया. उनमें से 6 को तोप से उड़ा दिया गया. 5 को फायरिंग स्क्वैड के हवाले किया गया. 8 को फांसी पर लटकाया गया. सेना की वो तीनों टुकड़ियां भंग कर दी गईं, जो इस विद्रोह में शामिल थीं.
विद्रोही सिपाहियों के याद में स्थापित किया गया स्तंभ.
विद्रोही सिपाहियों के याद में स्थापित किया गया स्तंभ.

हालांकि विद्रोही सिपाहियों का जान से जाना मुकम्मल तौर से बेकार गया हो, ऐसा भी नहीं हुआ. नया ड्रेसकोड लागू करने का फैसला कैंसिल कर दिया गया. इसका फरमान सुनाने वाले अंग्रेज़ अधिकारियों को इंग्लैंड वापस भेज दिया गया.
2006 में जब इस विद्रोह को 200 साल पूरे हुए, भारत सरकार ने इस पर एक डाक टिकट भी छापा.

डाक टिकट.

इस विद्रोह के 51 साल बाद, ऐसा ही एक विद्रोह हुआ. थोड़े बड़े पैमाने पर. वो, जिसे भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम कहा जाता है. वेल्लोर का विद्रोह छोटा भले ही था लेकिन उसकी अहमियत इतिहास के लिए बराबर है.


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