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उत्तर प्रदेश के शहरों में क्यों गुल है बिजली, कहां गए सारे बिजली कर्मचारी?

हड़ताल पर हैं. लेकिन क्यों? पूरा मामला समझिए.

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यूपी के तमाम जिलों में बिजली गुल चल रही है. (बाएं) वाराणसी में हड़ताल पर बैठे बिजली विभाग के कर्मचारी. (फोटो- India Today/PTI)
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अभिषेक त्रिपाठी
6 अक्तूबर 2020 (Updated: 6 अक्तूबर 2020, 12:34 PM IST) कॉमेंट्स
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उत्तर प्रदेश के कई जिलों की बत्ती गुल है. लखनऊ, प्रयागराज, बरेली, मेरठ, वाराणसी, देवरिया, गोरखपुर, चंदौली, आजमगढ़, मऊ, मिर्जापुर और नोएडा के भी कई हिस्से इसमें शामिल हैं. समस्या सोमवार सुबह से शुरू हुई. मंगलवार सुबह तक भी कई जगह बिजली नहीं आई. बत्ती नहीं तो पानी भी नहीं. लोगों ने बिजली विभाग को फोन खटखटाने शुरू किए. लेकिन वहां न तो फोन उठाने वाला कोई था, न उनकी समस्या हल करने वाला. कहां गए सारे बिजली कर्मचारी? हड़ताल पर. उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (UPPCL) के करीब 15 लाख कर्मचारियों ने हड़ताल कर दी है. क्यों हैं हड़ताल पर? क्या मांग है? आइए जानते हैं.

UPPCL और इसकी पांच डिवीज़न

उत्तर प्रदेश में बिजली बांटने का काम करती है UPPCL. इसकी पांच डिवीज़न हैं. ये सूबे के ही अलग-अलग हिस्सों में बिजली वितरण का काम देखती हैं.
1. पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम 2. पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम 3. मध्यांचल विद्युत वितरण निगम 4. दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम 5. केस्को
इनमें से एक डिवीज़न के निजीकरण का प्रस्ताव है- पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम. यह कंपनी पूर्वी उत्तर प्रदेश में बिजली आपूर्ति देखती है. इसके अंतर्गत आने वाले शहरों में प्रदेश के राजनीतिक रूप से दो सबसे अहम शहर भी शामिल हैं- वाराणसी और गोरखपुर. बनारस पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र है तो गोरखपुर सीएम योगी का गृह क्षेत्र है.

क्यों है निजीकरण का प्रस्ताव

उत्तर प्रदेश में विद्युत वितरण कंपनियां काफी नुकसान में चल रही हैं. बिज़नेस स्टैंडर्ड की एक ख़बर के मुताबिक, मार्च-2020 तक पांचों वितरण कंपनियों का कुल नुकसान 800 करोड़ रुपए के आस-पास था. इस नुकसान से उबरने के लिए ही एक डिवीज़न के निजीकरण की योजना लाई गई.

हड़ताल क्यों है?

हड़ताल इसीलिए है, क्योंकि कर्मचारी निजीकरण के पक्ष में नहीं हैं. विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के कन्वीनर अवधेश कुमार ने इकॉनमिक टाइम्स को बताया -
ओडिशा, दिल्ली, औरंगाबाद, नागपुर, उज्जैन, ग्वालियर जैसे शहरों में निजीकरण का मॉडल फ्लॉप रहा है. बिजली विभाग का निजीकरण जनता के पक्ष में भी नहीं है, क्योंकि इससे बिजली महंगी होगी. इससे सिर्फ बिज़नेस घरानों को ही फायदा होगा.
कर्मचारियों को ये भी डर है कि निजीकरण के बाद वे अपनी नौकरी को लेकर भी पहले की तरह आश्वस्त नहीं रह पाएंगे.

कर्मचारियों की मांगें क्या हैं?

पहली मांग है कि बिजली विभाग में सुधार के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं, मगर बिना कर्मचारियों को विश्वास में लिए कोई निजीकरण न हो. कर्मचारी संगठन का कहना है कि बिलिंग, कनेक्शन और उपभोक्ता सेवाओं में सुधार के लिए जो भी कदम उठाए जाएंगे, उसमें वे सरकार के साथ हैं. निजीकरण के विरोध में कर्मचारियों ने काम का बहिष्कार तो अब किया है, लेकिन इसका विरोध वे करीब महीने भर से कर रहे हैं. कर्मचारियों की एक और मांग इसी से जुड़ी है. वे चाहते हैं कि इस पूरे आंदोलन के चलते किसी भी कर्मचारी के खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई न की जाए. हड़ताली कर्मचारियों का आरोप है कि
सरकार को कर्मचारी संगठनों के साथ 5 अप्रैल 2018 को हुए समझौते का पालन करना चाहिए. इस समझौते में प्रावधान था कि निजीकरण से जुड़ा कोई भी फैसला लेने से पहले सरकार कर्मचारियों को विश्वास में लेगी. लेकिन फिलहाल ऐसा नहीं हो रहा है.

सरकार का क्या कहना है?

ख़बर है कि प्रदेश के ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा के हस्तक्षेप के बाद निजीकरण का प्रस्ताव फिलहाल वापस लिया जा सकता है. सरकार कर्मचारियों को ये भरोसा भी दिलाना चाह रही है कि बिना उनको भरोसे में लिए ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जाएगा. मंगलवार को विद्युत कर्मचारी समिति, पावर कॉर्पोरेशन और सरकार के बीच बातचीत भी हुई. लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकला और रजामंदी पर हस्ताक्षर नहीं हो सके. अधिकारियों का कहना है कि ऐसे में उनका यह आंदोलन जारी रहेगा. बता दें कि बिजली कर्मचारियों की हड़ताल की वजह से सोमवार को लखनऊ में डिप्टी सीएम, ऊर्जा मंत्री समेत करीब 36 मंत्रियों और 150 विधायकों के घरों की बिजली भी गुल हो गई थी. आनन फानन में इसे बहाल कराया गया था.

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