इराक में ऐसा क्या हुआ कि ईरान समर्थक भीड़ अमेरिकी दूतावास में घुस गई?
104 एकड़ में फैले अपने दूतावास की हिफ़ाजत के लिए अमेरिका को इराक के बाहर से कमांडो भेजने पड़े.


इनके मुताबिक, PM महदी ने कहा है कि कानून बनाकर अमेरिकी सेना को इराक से वापस भेजा जाएगा. इन प्रदर्शनों के पीछे ईरान का हाथ माना जा रहा है. इराक के अंदर इतना बड़ा प्रोटेस्ट आयोजित करवाना, अमेरिकी दूतावास को निशाना बनाना, और इराकी PM को आश्वासन देने को मज़बूर करना. ये चीजें बताती हैं कि ईरान का कितना असर है यहां.
31 दिसंबर को इराक में क्या हुआ? बगदाद स्थित अमेरिकी दूतावास का ये कंपाउंड 104 एकड़ में फैला है. अपने एरिया में ये वैटिकन सिटी जितना लंबा-चौड़ा बताया जाता है. कहते हैं, ये दुनिया का सबसे बड़ा डिप्लोमैटिक कॉम्प्लेक्स है. 31 दिसंबर को इसके आगे सैकड़ों लोग जमा हो गए. उन्होंने ऐम्बैसी के बाहर एक चेकपॉइंट को फूंक दिया. फिर गेट तोड़कर दूतावास के कंपाउंड में घुस गए. इन्होंने दूतावास की रिसेप्शन बिल्डिंग में आग लगा दी. भीड़ 'डेथ टू अमेरिका' के नारे लगा रही थी. ये ईरान की इस्लामिक क्रांति के समय का नारा है. अमेरिका के प्रति नफ़रत से डूबा हुआ. प्रोटेस्टर्स ने पत्थरबाज़ी की. बाहर ये सब हो रहा था, अंदर दूतावास में सैकड़ों अमेरिकी डिप्लोमैट्स फंसे हुए थे. यहां की स्थिति पर ईरान को चेताते हुए ट्रंप ने ट्वीट किया-Reports out of Baghdad indicate that the Iran-backed “protestors” at the US embassy are now withdrawing, but only after US soldiers fired tear gas on some of them. | pic.twitter.com/OZzw79aPt6
— Mike (@Doranimated) January 1, 2020
अगर हमारे किसी प्रतिष्ठान पर किसी की जान जाती है या कोई नुकसान होता है, तो ईरान को पूरी तरह से इसके लिए जिम्मेदार माना जाएगा. उन्होंने बहुत बड़ी कीमत चुकानी होगी. ये धमकी नहीं है, चेतावनी है.
अमेरिका ने दूतावास की हिफ़ाजत के लिए फोर्सेज़ भेजीं ऐसा नहीं कि बगदाद में अमेरिकी फ़ौज नहीं है. करीब 5,200 अमेरिकी सैनिक हैं इराक में. इनके अलावा कई सिविलियन भी हैं. ज़्यादातर अमेरिकी सैनिक बगदाद के उत्तरपश्चिम में एक सैन्य ठिकाने पर तैनात हैं. बाकी कुर्दों के कब्ज़े वाले उत्तरी हिस्से में. इनके अलावा, बगदाद के दूतावास और इरबिल के अमेरिकी कॉन्स्यूलेट को मिलाकर लगभग अमेरिकी 486 स्टाफ भी हैं. ज़्यादातर बगदाद में हैं. यहां की स्थितियां बिगड़ीं, तो 31 दिसंबर को अमेरिकी रक्षा मुख्यालय 'पेंटागन' ने ऐम्बैसी के लिए अतिरिक्त फोर्सेज़ भेजी. इनमें कुवैत से भेजे गए 120 के करीब अमेरिकी 'स्पेशल पर्पस मरीन एयर-ग्राउंड टास्क फोर्स' भी शामिल थे.....Iran will be held fully responsible for lives lost, or damage incurred, at any of our facilities. They will pay a very BIG PRICE! This is not a Warning, it is a Threat. Happy New Year!
— Donald J. Trump (@realDonaldTrump) December 31, 2019
अमेरिकी फोर्सेज़ ने प्रोटेस्टर्स को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले दागे. तब जाकर प्रदर्शनकारी हटे. दूतावास के सामने पैदा हुआ संकट भले अभी ख़त्म हो गया हो. मगर दूतावास की सुरक्षा में सेंध लगना, इतनी बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारियों का उसके दूतावास तक पहुंच जाना, ऐम्बैसी के परिसर में घुसक आगजनी और तोड़-फोड़ करना, ये अमेरिका के लिए बहुत बड़ा झटका हैं. उसके लिए इराक में मौजूद अपने डिप्लोमैट्स की सुरक्षा बड़ा मसला बन गई है.
इराक में बिल्कुल अकेला दिख रहा है अमेरिका साल 2003 में अमेरिका ने इराक पर हमला किया. इस बात को 16 साल हो चुके हैं. तब से ही अमेरिका वहां बना हुआ है. मगर असर और समर्थन में ईरान उससे कहीं आगे दिख है. मौजूदा प्रदर्शनों से जुड़ी ख़बरों के मुताबिक, प्रदर्शनकारियों में कई लोग इराकी सेना की वर्दी में भी देखे गए. वो दूतावास कंपाउंड पर हो रहे हमले में शामिल बताए जा रहे हैं. ऊपर से प्रधानमंत्री द्वारा प्रोटेस्टर्स को दिया गया आश्वसान. इराक के अंदर अमेरिका के आने वाले दिन काफी मुश्किल नज़र आ रहे हैं.U.S. Marines assigned to Special Purpose Marine Air-Ground Task Force-Crisis Response-Central Command deploy to Iraq to bolster security at the US Embassy and ensure the safety of American citizens, Dec. 31. pic.twitter.com/qD84tgKyYI
— U.S. Central Command (@CENTCOM) December 31, 2019
वो दो मौके, जब अमेरिकी दूतावास पर हमले हुएKataib Hezbollah protesters breaching the gates of the US embassy in Baghdad. They say they will stay till US troops leave. It’s the biggest US embassy in the world & supposedly secure but hard to see how diplomats can remain now pic.twitter.com/17VkjQA71W
— Liz Sly (@LizSly) December 31, 2019
1. 1979 का ईरान हॉस्टेज क्राइसिस इस घटना प्लॉट 1979 में हुए अमेरिकी दूतावास संकट से काफी मिलता है. तब ईरान की राजधानी तेहरान में स्थित अमेरिकी दूतावास पर भीड़ ने हमला कर दिया था. 52 अमेरिकी एक साल से ज़्यादा वक़्त तक बंधक बनाकर रखे गए थे. उसके बाद से ही ईरान और अमेरिका के बीच दुश्मनी बढ़ी. दोनों के बीच कूटनीतिक रिश्ते ख़त्म हुए. नेटफ्लिक्स पर एक फिल्म है- अर्गो. वो 1979 के 'ईरान हॉस्टेज क्राइसिस' पर बनी है. अच्छी फिल्म है. समय मिले, तो देखिएगा.
2. 2012 का बेनग़ाजी हमला11 सितंबर, 2012. इस दिन लीबिया के बेनग़ाजी में अमेरिकी दूतावास पर हमला हुआ था. हमलावरों ने US मिशन को फूंक दिया. लीबिया में अमेरिका के तत्कालीन राजदूत क्रिस्टोफर स्टीवन्स समेत चार अमेरिकी नागरिक हमले में मारे गए. पहले अमेरिका को लगा कि ये हमला भीड़ ने किया है. एक विडियो बना था इस्लाम और पैगंबर मुहम्मद पर. अमेरिका को लगा इसी विडियो पर गुस्साई भीड़ ने ये हमला किया है. मगर बाद में बताया गया कि ये आतंकवादी हमला था.Iran killed an American contractor, wounding many. We strongly responded, and always will. Now Iran is orchestrating an attack on the U.S. Embassy in Iraq. They will be held fully responsible. In addition, we expect Iraq to use its forces to protect the Embassy, and so notified!
— Donald J. Trump (@realDonaldTrump) December 31, 2019
बगदाद वाले प्रोटेस्ट के पीछे तात्कालिक वजह क्या थी? उत्तरी इराक में किरकुक नाम की जगह है. इसके पास एक इराकी मिलिटरी बेस है. यहां इराक के अलावा अमेरिकी सेना की भी मौजूदगी रहती है. 27 दिसंबर को करीब 30 रॉकेट दागे गए इसपर. इसमें एक अमेरिकी कॉन्ट्रैक्टर मारा गया. इनके अलावा चार अमेरिकी और दो इराकी घायल भी हुए. अमेरिका ने उंगली उठाई 'क़ताइब हेजबुल्लाह' पर. ये एक मिलिशिया फोर्स है. इसके ईरान से करीबी रिश्ते हैं. इन्होंने अमेरिका द्वारा लगाए गए इल्ज़ामों से इनकार किया. फिर भी अमेरिका ने जवाबी हमला किया. पांच ऐसी जगहों पर, जो इस 'क़ताइब हेजबुल्लाह' का इलाका मानी जाती हैं. ईरान के मुताबिक, इस हमले में 31 के करीब लोग मारे गए.
अमेरिका के इन हवाई हमलों पर ख़ूब गुस्सा पैदा हुआ इराक में. इतना कि ख़ुद अमेरिका को भी इसका अंदाज़ा नहीं था. यही नाराज़गी अमेरिकी दूतावास को टारगेट करने की वजह बनी. और अब, माहौल ऐसा बनता दिख रहा है कि इराक के लोग समूची अमेरिकी सेना को अपने यहां से बाहर निकाल देना चाहते हैं. इसमें इराकी सरकार का रवैया भी अमेरिका के लिए चिंता की बात है. पहले भी कई बार प्रदर्शनकारियों ने दूतावास तक पहुंचने की कोशिश की है. मगर इराकी सुरक्षाबल उन्हें यहां तक पहुंचने नहीं देते थे. मगर इस बार उन्होंने इन प्रदर्शनकारियों को दूतावास तक आने दिया.The US conducted airstrikes in Iraq over the objections of the Iraqi government. Now Iraqi protesters broke into the US Embassy. Trump’s malpractice in the region is making us less safe. Time for Congress to stop this foolish rush to war.
— Tim Kaine (@timkaine) December 31, 2019
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ये मिलिशिया क्या है? 'मिलिशिया' का मतलब होता है, ऐसी मिलिटरी जो आम नागरिकों को जमाकर बनाई गई हो. ज़रूरत पड़ने पर ये मुख्य सेना की मदद करते हैं. इनको सेना से इतर सेना समझिए. इराक में कई मिलिशिया ग्रुप हैं. इनका एक संगठन है- पॉपुलर मोबलाइज़ेशन फोर्सेज़ (PMF). इस संगठन के अंदर तकरीबन 30 मिलिशिया ग्रुप्स हैं. सबका अलग लीडर. सबके अपने रास्ते. कुल मिलाकर PMF के अंदर डेढ़ लाख तक लड़ाके हैं.Spoke today with Iraqi Prime Minister al-Mahdi, who agreed that #Iraq
— Secretary Pompeo (@SecPompeo) January 1, 2020
would continue to uphold its responsibility to keep U.S. personnel secure and would move the Iran-backed attackers away from @USEmbBaghdad
. We’ll continue cooperation to hold #Iran
and its proxies responsible.
क्यों बनाया गया था PMF? 2014 में ISIS (इस्लामिक स्टेट) ने इराकी सेना को मोसुल से खदेड़ दिया. इसके बाद इराक के सबसे बड़े शिया धर्मगुरु ग्रैंड अयातुल्लाह अली अल-सिस्तानी ने अपील की. कहा, ISIS से लड़ने के लिए सारे सही-सलामत और दम-खम वाले इराकी पुरुष इकट्ठा हो जाएं. ISIS को हराने में PMF की बड़ी भूमिका रही. इसी के बूते साल 2016 में इराकी संसद ने ऐलान किया कि PMF इराकी सिक्यॉरिटी फोर्सेज़ का स्वतंत्र हिस्सा है. 2018 के चुनाव में PMF ने अपने उम्मीदवार भी उतारे. इस तरह इराकी संसद के अंदर और बाहर, दोनों जगहों पर इन्होंने अपनी पकड़ बनाई.
PMF की शिया मिलिशिया का रिश्ता ईरान से है PMF में शामिल ज़्यादातर मिलिशिया संगठन शियाओं के हैं. इनकी ईरान के प्रति निष्ठा है. ये ईरान से समर्थन पाते हैं. ISIS चूंकि ईरान और अमेरिका, दोनों का कॉमन दुश्मन था, तो वो लड़ाई इन्होंने साथ-साथ लड़ी. वो समय ऐसा था कि जो साथ मिल जाए, ले लो. लेकिन ISIS के हारने के बाद ईरान और उससे समर्थन पाने वाले इन हथियारबंद संगठनों का फोकस फिर से अमेरिका पर शिफ्ट हो गया. वैसे भी, इराक पर प्रभाव बनाने को लेकर ईरान और अमेरिका में बहुत लंबे समय से होड़ रही है. बीते कुछ समय में दोनों मुल्कों के बीच तनाव भी बढ़ा है. इस बढ़ते टेंशन के बीच इराक की शिया मिलिशिया भी अमेरिका को निशाना बनाने लगी. इनकी ओर से अमेरिकी ठिकानों के पास रॉकेट दागे जाने लगे. इराकी सरकार का भी जोर नहीं था इनपर. मगर, अमेरिका लगातार महदी सरकार को मिलिशिया को काबू में करने का अल्टीमेटम दे रहा था.
महदी ने कंट्रोल करने की कोशिश की, नाकाम रहे ऐसे में 1 जुलाई, 2019 को इराक के PM ने एक आदेश जारी किया. कहा कि PMF ख़ुद को इराक के अधीन लाए. इसके लिए 31 जुलाई तक की समयसीमा दी गई. कहा गया कि अगर इस तारीख़ तक इन्होंने इराकी स्टेट की अधीनता नहीं मानी, तो उन्हें बागी समझा जाएगा. उनसे पहले PM रहे हैदर अल-अबादी ने भी मार्च 2018 में PMF पर नियंत्रण बनाने की ऐसी ही कोशिश की थी. मगर वो कामयाब नहीं हुए. महदी भी नाकाम रहे.“US get out, free free Iran... death to America, long live Islamic Republic of Iran, long live Khamenei,” members of Iran-backed Hashd al-Shaabi chant in front of US Embassy in Baghdad.#Iraq
— Baxtiyar Goran (@BaxtiyarGoran) January 1, 2020
pic.twitter.com/YUs4HBMbTd
...और इराक में सरकार विरोधी प्रदर्शन शुरू हुए अक्टूबर महीने में इराक के अंदर बड़े स्तर पर प्रदर्शन शुरू हुए. कई बार हिंसक भी हुए ये प्रोटेस्ट. प्रदर्शन के सबसे बड़े मुद्दे थे- भ्रष्टाचार, बर्बाद अर्थव्यवस्था और ईरान का बढ़ता असर. 500 से ज़्यादा लोग मारे गए. हज़ारों लोग जख़्मी हुए. PM महदी अमेरिका के करीबी माने जाते हैं. इन प्रदर्शनों की वजह से उनकी स्थिति कमज़ोर हो गई. नवंबर 2019 में उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा. उनकी जगह कौन लेगा, इसपर नाम तय नहीं हुआ है अभी तक. इस अस्थिरता और अव्यवस्था में मिलिशिया और मज़बूत हो गया.BREAKING - Hundreds of Kataib Hezbollah supporters are swarming the US embassy in Baghdad. No attempt to stop them by Iraqi forced guarding the Green Zone. No way out for diplomats. V. dangerous situation pic.twitter.com/sUgTI8iXHb
— Liz Sly (@LizSly) December 31, 2019
बराक ओबामा के समय ईरान के साथ तनाव कम हुआ था. न्यूक्लियर डील के बाद चीजें बेहतर हुई थीं. मगर डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद दोनों देश ट्विटर पर एक-दूसरे को धमकियां देते हैं. ट्रंप प्रशासन ने न केवल न्यूक्लियर डील से ख़ुद को अलग किया, बल्कि ईरान पर कई सारे आर्थिक प्रतिबंध भी लाद दिए. इन तनावों का असर इराक में भी दिख रहा है. यहां ईरान इन मिलिशिया ग्रुप्स के साथ मिलकर अमेरिका को निशाना बना रहा है. अमेरिका को अलग-थलग कर रहा है. ईरान अपनी कोशिशों में कामयाब होता भी दिख रहा है. बगदाद के अमेरिकी दूतावास का संकट फिलहाल भले ख़त्म हो गया हो. मगर इससे ईरान अपना जो कंट्रोल दिखाना चाहता था, वो मेसेज चला गया है.
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