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रूस के फाइटर जेट ने अमेरिका का ड्रोन मारा, अब क्या होने वाला है?

क्या नेटो हमला करेगा?

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क्या नेटो हमला करेगा?
क्या नेटो हमला करेगा?
15 मार्च 2023 (Updated: 15 मार्च 2023, 22:14 IST)
Updated: 15 मार्च 2023 22:14 IST
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रूस-अमेरिका के बीच सीधा टकराव हुआ है. 14 मार्च को एक रूसी जेट ने अमेरिकी ड्रोन पर हमला किया है. ये हमला उस वक्त हुआ जब अमेरिका का ड्रोन ब्लैक सी के ऊपर उड़ रहा था. इसमें ड्रोन पूरी तरह नष्ट होकर समंदर में गिर गया. रूस की इस हरकत पर अमेरिका आग बबूला हुआ है. रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद ये पहली ऐसी घटना है जिसमें रूस और अमेरिका पहली बार आमने-सामने आए हैं. ये घटना कैसे हुई? क्या इसे नेटो पर हमला माना जाएगा? और इसका रूस-यूक्रेन युद्ध पर क्या असर पड़ेगा?

पहले ये मैप देखिए. 

ब्लैक सी का मैप (Google Map)

रोमानिया, जोर्जिया, तुर्किए और यूक्रेन के बीचो-बीच एक आकृति दिख रही है. ये ब्लैक सी है. इसे काला सागर भी कहा जाता है. काला सागर की सतह में ऑक्सीजन की भारी कमी होती है. कहा जाता है कि कोई जहाज़ अगर गलती से इस सागर में खो गई तो उसका बचना नामुमकिन सा होता है. और क्या ख़ास है इसके बारे में. इस सागर का इस्तेमाल सभी सीमावर्ती देश व्यापार के लिए करते हैं. जहाज़ों से सामान लाया ले जाया जाता है. रूस के लिए ये अहम क्यों है? कैथरीन द ग्रेट रूस की महारानी थीं. उन्होंने साल 1783 में क्रीमिया पर कब्ज़ा किया, और लाल सागर में गरम पानी के बंदरगाह खोजे. 

उस वक्त रूस और ऑटोमन साम्राज्य के बीच कब्ज़े को लेकर नोकझोंक हुआ करती थी. समय बदला. सोवियत संघ का पतन हुआ. दुनिया में अमेरिका नई ताकत बनकर उभरा. और उसी कालान्तर में नेटो का भी गठन हो चुका था. काला सागर की सीमा से छूते हुए देश बुल्गारिया और रोमानिया नेटो में शामिल हो हुए. नेटो पर अमेरिका का प्रभुत्व था. एक देश और नेटो का सदस्य बना जो काला सागर से सीमा साझा करता था. वो देश था तुर्किए. लेकिन उसकी रूस से दोस्ती थी. इसलिए अमेरिका अपना प्रभाव उस इलाके पर डालने के लिए तुर्किए का इस्तेमाल नहीं कर सकता था. लेकिन वक्त बदलने के साथ तुर्किए भी नेटो में शामिल हो गया. अब रूस का काला सागर से कंट्रोल जाता जा रहा था. काला सागर में नेटो की मिसाइलों के परीक्षण होना. ड्रोन का गश्त करना आम बात हो गई थी. इस बात से रूस नाराज़ रहने लगा. वो इसे एक ख़तरे के तौर पर देख रहा था, साल 2014 में उसने क्रीमिया पर कब्ज़ा किया. जानकार कहते हैं कि रूस का क्रीमिया पर कब्ज़ा करने की एक वजह थी कि वो काला सागर में अपना प्रभाव बढ़ा सके.

अब जानते हैं काला सागर में अमेरिका की क्या रूचि है? काला सागर बुल्गारिया, जॉर्जिया, रोमानिया, रूस, तुर्की और यूक्रेन से घिरा है. ये सभी नेटो देश हैं. नेटो देशों और रूस के बीच इस टकराव के कारण काला सागर और भी अहम हो जाता है. और इसका महत्व समुद्री फ्लैशपॉइंट के रूप में बढ़ जाती है. 2014 में क्रीमिया में कब्ज़े के बाद अमेरिका, ब्रिटेन और दूसरे नेटो सदस्य देशों ने यूक्रेन के समर्थन में अपने युद्धपोत सागर में दाखिल किए हैं, और अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है. रूस हमेशा नेटो युद्धपोतों की आवाजाही को क्षेत्र को अस्थिर करने वाला कदम बताता आया है.

लेकिन अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि आज हम इसकी चर्चा क्यों कर रहे हैं? दरअसल 14 मार्च 2022 को काला सागर के ऊपर अमेरिकी ड्रोन, रूसी लड़ाकू विमान से टकराने के बाद काला सागर में समा गया है. अमेरिका ने कहा है कि दो रशियन Su-27 फाइटर जेट्स ने अमेरिकी ड्रोन को पहले 40 मिनट तक घेरा फिर उसके ऊपर से फ्यूल गिराया. फ्यूल की वजह से ड्रोन के प्रोपैलर को नुकसान पहुंचा जिसकी वजह से ड्रोन क्षतिग्रस्त हुआ  और ब्लैक सी में गिरा गया.

घटना के बाद रूस और अमेरिका के बीच टकराव की आशंका बढ़ गई है. अमेरिकी एयरफोर्स के जनरल जेम्स हैकर ने इसे गैरजिम्मेदार बताया है. उन्होंने कहा कि इसे प्रोफेशनल वर्कआउट भी नहीं कहा जा सकता. उनके दोनों एयरक्राफ्ट भी क्रैश हो सकते थे. रूस पहले भी इस तरह की हरकतें करता रहा है. हम इस मामले की जांच कर रहे हैं. अमेरिका ने ये भी कहा है कि उनका ड्रोन अंतरराष्ट्रीय हवाई क्षेत्र में नियमित संचालन कर रहा था. रूस को इंटरनेशनल एयरस्पेस में उड़ान भरते वक्त और भी सजग रहने की ज़रूरत है. वहीं यूक्रेन के एक अधिकारी ने कहा है कि ये घटना बताती है कि पुतिन जंग का दायरा बढ़ाना चाहते हैं.

MQ-9 Reaper (AFP)

काला सागर के ऊपर रूसी और अमेरिकी विमान अक्सर उड़ान भरते रहते हैं. लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है जब दोनों आमने-सामने आ गए. रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते काला सागर में पिछले कई महीनों से तनाव बना हुआ है. पेंटागन ने कहा कि यूक्रेन जंग के बाद से रूस और अमेरिकी सेनाओं के बीच ये पहला फिजिकल संपर्क हुआ है. साथ ही अमेरिका ने रूसी राजदूत अनातोली एंटोनोव को तलब भी किया है.

रूस का क्या कहना है?

रूस ने अमेरिका के आरोपों से पल्ला झाड़ लिया है. रूस का कहना है कि अमेरिकी ड्रोन ने करतब दिखाते हुए टर्न लिया, जिससे वो क्रैश हो गया. अमेरिकी ड्रोन तप रूसी एयरक्राफ्ट्स से संपर्क में तक नहीं आया था. रूसी रक्षा मंत्रालय ने ये भी कहा कि MQ-9 रीपर ड्रोन ने उड़ान के दौरान अपने ट्रांसपोन्डर्स बंद कर रहे थे, ताकि उसे कोई ट्रैक न कर सके. अमेरिका ने मामले पर जब रूसी राजदूत को तलब किया तब उनका जवाब आया कि अमेरिकी विमानों का रूसी सीमा के पास होने से कोई लेना-देना नहीं है. उन्होंने ये भी कहा कि रूस अमेरिका से टकराव नहीं चाहता है.

अब जाते- जाते जानते जाइए कि जो ड्रोन अब समुद्र में समा चुका है वो किस काम आता है?

अमेरिका पिछले कई दशकों से ड्रोन का इस्तेमाल कर रहा है. मिलिट्री टेक्नोलॉजी के विकास के साथ ही ड्रोन का इस्तेमाल दुश्मन को मार गिराने में भी होने लगा. 1999 में कोसोवो वॉर में सर्बिया के सैनिकों के गुप्त ठिकानों का पता लगाने के लिए पहली बार सर्विलांस ड्रोन का इस्तेमाल किया गया. 2001 में अमेरिका ने 9/11 के हमले के बाद ड्रोन हथियारों का इस्तेमाल बढ़ा दिया.

हाल में अमेरिका का जो ड्रोन समुद्र में गिरा है उसका नाम है  MQ-9 रीपर ड्रोन. इसका इस्तेमाल सर्विलांस माने निगरानी रखने में किया जाता रहा है. इसे दूर से बैठकर कंट्रोल किया जाता है. इसमें कोई चालक नहीं होता. इसकी लंबाई 20 मीटर है. ये समुद्री स्तर से 15 किलोमीटर की उंचाई तक उड़ान भरने में सक्षम है. और 24 घंटे तक लगातार उड़ सकता है. इन्हीं ड्रोन्स का इस्तेमाल जंगलों में लगी आग को काबू में करने के लिए भी किया जाता है. समुद्र में गिरने के बाद इसे अभी तक बरामद नहीं किया गया है. अमेरिकी अधिकारियों ने कहा है कि उसे ढूंढने की कोशिश की जा रही है. ताकि वो गलत हाथों में ना पहुंच जाए.

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