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CM योगी के नजूल संपत्ति विधेयक में क्या है जिस पर BJP विपक्ष के सामने 'बंट' गई?

इस बिल को Yogi Govt ने विधानसभा में पास करा लिया था. लेकिन विधान परिषद में इसे बीजेपी के सदस्यों ने ही अटका दिया.

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Yogi Adityanath
सेलेक्ट कमेटी को भेजा गया नजूल संपत्ति बिल. (फोटो- PTI)
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सौरभ
2 अगस्त 2024 (Updated: 2 अगस्त 2024, 10:54 PM IST) कॉमेंट्स
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उत्तर प्रदेश में एक बिल योगी सरकार के लिए मुसीबत बन गया है. ना उगलते बन रहा है ना निगलते बन रहा. कहा जा रहा है कि बिल ने उत्तर प्रदेश में बीजेपी के अंदर की कलह की कलई खोल कर रख दी. योगी सरकार ने विधेयक विधानसभा से पास करा लिया. लेकिन जब विधान परिषद में पहुंचा तो विपक्ष छोड़िए बीजेपी के लोगों ने ही बिल अटका दिया. कहा कि बिल को समीक्षा की जरूरत है. इसे सेलेक्ट कमेटी में डाला जाना चाहिए. ध्वनिमत से बिल सेलेक्ट कमेटी के पास भेज दिया गया. यानी दो महीने के लिए बिल लटक गया.

बिल का नाम है “उत्तर प्रदेश नजूल संपत्ति (सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए प्रबंधन और उपयोग) विधेयक, 2024”. इस बिल पर विपक्ष तो हमलावर रहा ही, बीजेपी के सहयोगियों ने भी विरोध जता दिया. इतना ही नहीं, बीजेपी के अपने ही विधायकों ने बिल पर नाराज़गी जता दी. उनका कहना है कि बिल पर उनको आपत्ति थी इसीलिए ये तरीका निकाला कि विधान परिषद में बिल को रोक दिया जाए. सवाल है कि इस बिल में ऐसा क्या है जो बीजेपी को पार्टी के अंदर ही विरोध का सामना करना पड़ रहा है.

नजूल की जमीन क्या होती है?

विधेयक के बारे में जानने से पहले ये समझने की जरूरत है कि नजूल की जमीन क्या होती है. नजूल की जमीन वो जमीन होती है जिसका कोई वारिस नहीं होता. ऐसी जमीनों पर सरकार का आधिपत्य हो जाता है. आज़ादी के पहले अंग्रेज मनमुताबिक जमीन पर कब्जा कर लेते थे. ऐसा अंग्रेजों के खिलाफ बगावत करने वाली रियासतों के साथ ज्यादा होता था. आज़ादी के बाद जिन्होंने रिकॉर्ड के साथ इन जमीनों पर दावा किया, उन्हें सरकार ने जमीनें सौंप दीं. जिन पर किसी ने दावा नहीं किया वो नजूल की जमीनें हो गईं. इन्हीं जमीनों के लिए योगी सरकार बिल लेकर आई है.

उत्तर प्रदेश नजूल संपत्ति (सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए प्रबंधन और उपयोग) विधेयक, 2024

इस बिल को पहले सरकारी भाषा में समझते हैं. उत्तर प्रदेश नजूल संपत्ति विधेयक, 2024 का उद्देश्य नजूल भूमि को निजी स्वामित्व में ना देकर उसे विनियमित करना है. नजूल की जमीन सरकारी स्वामित्व वाली होती है, लेकिन राज्य की संपत्ति के रूप में सीधे प्रबंधित नहीं है. इस विधेयक के तहत, नजूल भूमि को निजी व्यक्तियों या संस्थाओं को हस्तांतरित करने के लिए की जा रही अदालती कार्यवाही या आवेदन रद्द कर दिए जाएंगे. जिससे यह सुनिश्चित होगा कि ये भूमि सरकारी नियंत्रण में रहे. यदि स्वामित्व परिवर्तन की उम्मीद में पैसों का भुगतान किया जा चुका है तो विधेयक जमा तिथि से भारतीय स्टेट बैंक द्वारा निर्धारित दर पर ब्याज के साथ रिफंड को अनिवार्य बनाता है.

अब इसको सरल भाषा में समझने की कोशिश करते हैं. कुल मिलाकर विधेयक पास होने के बाद नजूल की सारी जमीनों की मालिक सरकार हो जाएगी. नजूल की जमीन का मालिकाना हक किसी भी व्यक्ति या संस्था को नहीं दिया जाएगा. अभी तक जो व्यवस्था है, उसके मुताबिक सरकार नजूल की जमीन की मालिक होती है. और लीज पर जमीन देती है. यानी मालिक तो सरकार है, लेकिन जमीन का इस्तेमाल कोई और कर सकता है. नए विधेयक के मुताबिक सरकार जमीन की मालिक तो पहले से ही है, अब इस्तेमाल भी सरकार ही करेगी.

जिनके पास नजूल की जमीन पहले से है उनकी लीज़ नहीं बढ़ाई जाएगी. जिन्होंने नजूल की जमीन पर अपना मालिकाना हक हासिल करने के लिए जो आवेदन किया है, उसे रद्द कर दिया जाएगा. जिन्होंने नजूल की जमीन पर स्वामित्व हासिल करने के लिए अदालत का सहारा लिया है, उनके मुकदमे रद्द हो जाएंगे. और जिन्होंने इस नजूल की जमीन के लिए आवेदन किया हुआ है और पैसों का भुगतान भी कर चुके हैं, उनके पैसे SBI द्वारा निर्धारित दर से सूत समेत वापस कर दिए जाएंगे. लेकिन जमीन तो सरकार के पास ही रहेगी.

विधान परिषद में क्या हुआ?

बिल विधान सभा में पास हो गया था. उत्तर प्रदेश में ऊपरी सदन भी है. जिसे विधान परिषद कहा जाता है. वहां बिल को पेश किया यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या ने, जो इन दिनों सीएम योगी से कथित तल्खी को लेकर चर्चा में हैं. मौर्या बिल पेश ही कर रहे थे कि बीजेपी के ही भूपेंद्र चौधरी ने खड़े होकर नजूल संपत्ति विधेयक को सेलेक्ट कमेटी यानी प्रवर समिति के पास समीक्षा के लिए भेजने का प्रस्ताव दे दिया. गौरतलब है कि भूपेंद्र चौधरी ही यूपी में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष हैं. चौधरी के प्रस्ताव को चौतरफा समर्थन मिला. ध्वनिमत से प्रस्ताव पास हो गया. और बिल सेलेक्ट कमेटी के पास पहुंच गया. अब इस बिल पर सेलेक्ट कमेटी की रिपोर्ट के बाद ही कुछ हो सकता है.

अपने तो अपने, सहयोगी भी बिल के खिलाफ हो गए. अपना दल की अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने सोशल मीडिया साइट X पर लिखा,

“नजूल भूमि संबंधी विधेयक को विमर्श के लिए विधान परिषद की प्रवर समिति को आज भेज दिया गया है. व्यापक विमर्श के बिना लाए गए नजूल भूमि संबंधी विधेयक के बारे में मेरा स्पष्ट मानना है कि यह विधेयक न सिर्फ़ ग़ैरज़रूरी है, बल्कि आम जन मानस की भावनाओं के विपरीत भी है. उत्तर प्रदेश सरकार को इस विधेयक को तत्काल वापस लेना चाहिए और इस मामले में जिन अधिकारियों ने गुमराह किया है उनके ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई होनी चाहिए.”

ये तो बाहर की बात है. असल खेल विधानसभा में हुआ. बिल पर चर्चा के दौरान ही बीजेपी के विधायक ने विरोध जता दिया था. प्रयागराज से बीजेपी विधायक हर्षवर्धन बाजपेयी ने सदन में कहा,

“अगर सरकार एक या दो संपत्तियां ले लेती है, तो कुछ नहीं बदलेगा. लेकिन मैं उन लोगों की बात कर रहा हूं जो एक या दो कमरे की झुग्गियों में रहते हैं. प्रयागराज में उन्हें 'सागर पेशा' कहा जाता है. यह शब्द ब्रिटिश राज से आया है, जहां 'शागिर्द पेशा' (सेवा में अनुयायी) को बंगलों के पास जगह दी जाती थी. ये परिवार ब्रिटिश राज के समय से वहां रह रहे हैं. 100 साल से भी पहले से. एक तरफ हम गरीबों को पीएम आवास योजना के तहत घर दे रहे हैं और दूसरी तरफ हम हजारों परिवारों को बाहर निकलने के लिए कह रहे हैं. हम जमीन ले रहे हैं. ये न्यायसंगत नहीं है.”

बीजेपी विधायक का इतना कहना था कि विपक्ष वालों ने जोरदार समर्थन कर दिया. मामला हाथ से जाता देख संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने बाजपेयी से कहा, “आप समझ नहीं रहे हो, पहले (विधेयक) पढ़ तो लो.”

लेकिन बाजपेयी इकलौते विधायक नहीं थे जिन्होंने अपनी ही सरकार के बिल का विरोध किया हो. सीएम योगी की पहली सरकार में मंत्री रह चुके सिद्धार्थनाथ सिंह ने भी बिल की मुखालफत कर दी.

दूसरी तरफ कुंडा से राजा भैया ने सरकार को घेरा. उन्होंने कहा कि हर्षवर्धन बाजपेयी और सिद्धार्थनाथ सिंह पार्टी के हित में ही बिल का विरोध कर रहे हैं. उन्होंने कहा.

“हाई कोर्ट भी नजूल की जमीन पर बना है. क्या उसे भी खाली कराया जाएगा?”

पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी बिल पर विरोध जताते हुए अपनी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा,

“नज़ूल ज़मीन विधेयक दरअसल भाजपा के कुछ लोगों के व्यक्तिगत फ़ायदे के लिए लाया जा रहा है जो अपने आसपास की ज़मीन को हड़पना चाहते हैं. गोरखपुर में ऐसी कई ज़मीने हैं जिन्हें कुछ लोग अपने प्रभाव-क्षेत्र के विस्तार के लिए हथियाना चाहते हैं. आशा है मुख्यमंत्री जी स्वत: संज्ञान लेते हुए ऐसे किसी भी मंसूबे को कामयाब नहीं होने देंगे, खासतौर से गोरखपुर में.”

बहरहाल, उत्तर प्रदेश से जिस तरह की खबरें बीते कुछ दिनों से आ रही थीं, उनके मद्देनजर ये विधेयक सीएम योगी आदित्यनाथ के लिए चिंता का नया सबब बन गया है. फिलहाल तो बिल प्रवर समिति के पास भेजा जा चुका है. लेकिन इस बिल के साथ-साथ पार्टी से उठती विरोध की आवाज़ों से वो कैसे निपटेंगे, देखना दिलचस्प होगा.

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