सीएम केजरीवाल और राजा भैया के पीछे CBI
सीएम केजरीवाल पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को AAP ने खारिज करते हुए कहा, 'CM केजरीवाल के खिलाफ ‘50 से ज्यादा’ केस किए गए और जांच कराई गई, किसी भी केस में कुछ नहीं निकला और इस मामले में भी कुछ नहीं निकलेगा.'

CBI एक्टिव है. खबरों की दुनिया में CBI के कामों को 'शिकंजा' की उपमा दी जाती है. खासतौर पर तब, जब CBI की जांच की जद में राजनीतिक हलकों के लोग आते हैं. और इस हिस्से में बताएंगे कि कौन से हेवीवेट इस बार फंस गए.
पहले इस पते पर ध्यान दीजिए. 6 फ्लैग स्टाफ रोड, सिविल लाइंस, दिल्ली. ये राजधानी के मुख्यमंत्री के सरकारी आवास का एड्रेस है. इस साल अप्रैल के महीने में इस बंगले को लेकर खूब खबरनवीसी हुई. वजह केजरीवाल के इस सरकारी आवास की मरम्मत पर किया गया खर्च. इस मामले में बीजेपी ने आरोप लगाए थे कि सीएम अरविंद केजरीवाल ने अपने सरकारी बंगले की "मरम्मत" पर 45 करोड़ रुपये खर्च किए. तब बीजेपी की ओर से कहा गया कि 'केजरीवाल घर में नहीं 'शीशमहल' में रहते हैं. उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए.' इसके जवाब में आम आदमी पार्टी बीजेपी के मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्री के खर्चों की लिस्ट लेकर सामने हुई. कई दिनों तक आरोप-प्रत्यारोपों का दौर चला.
कुछ दिनों तक सब शांत रहा. फिर CBI आ गई. दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने मई महीने में CBI डायरेक्टर को पत्र लिखकर जांच की मांग की थी. अब गृह मंत्रालय की ओर से मामले की CBI जांच को मंजूरी मिल गई. फिर CBI ने जांच के लिए केस दर्ज कर लिया. और दिल्ली सरकार के अधीन PWD से केजरीवाल के बंगले के रेनोवेशन से संबंधित कागजात मांगे हैं.
सवाल है कि वीके सक्सेना को भनक कैसे लगी थी? दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक 12 मई को विजिलेंस डिपार्टमेंट ने केजरीवाल के बंगले और इसके कैम्पस में बने ऑफिस के रेनोवेशन को लेकर LG विनय सक्सेना को एक रिपोर्ट सौंपी थी. उन्होंने बताया था कि बंगले पर 52.71 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं. और यहीं से बात आगे बढ़ी.
अब बात इस पूरे मामले पर दिल्ली के राजनैतिक माहौल की. केजरीवाल के बंगले में सीबीआई की एंट्री के बाद भारतीय जनता पार्टी फिर से वही बातें दोहरा रही है जो अप्रैल में कही गईं थीं. कि बंगला बनवाने में भ्रष्टाचार हुआ है. आरोपों को आम आदमी पार्टी ने फिर से खारिज किये. कहा कि 'CM केजरीवाल के खिलाफ ‘50 से ज्यादा’ केस किए गए और जांच कराई गई, किसी भी केस में कुछ नहीं निकला और इस मामले में भी कुछ नहीं निकलेगा.'
लेकिन CBI की आंच दिल्ली से करीब 700 किलोमीटर दूर भी पहुंची. प्रतापगढ़ के कुंडा. यहां के विधायक हैं रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया. 1993 से जीतते चले आ रहे हैं. यानी 7 बार से विधायक हैं. कई बार मंत्री रह चुके हैं. लेकिन अब उन्हे CBI की जांच फेस करनी होगी. केस है डीएसपी जिया-उल-हक का मर्डर केस. 26 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने CBI को इस केस की जांच करने का आदेश दिया है और कहा है कि तीन महीने में रिपोर्ट दाखिल करें. डीएसपी जिया-उल-हक हत्याकांड क्या है? संक्षेप में जानिए
2 मार्च, 2013 की बात है. कुंडा विधानसभा क्षेत्र के बलीपुर गांव में ग्राम प्रधान नन्हे यादव की हत्या हुई थी. जिले में डीएसपी के रूप में तैनात थे जिया-उल-हक. वो प्रधान को अस्पताल ले गए. लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका. शव को गांव लाया गया. इस बीच वहां भीड़ इकट्ठा हो गई थी. उन्हीं में से कुछ लोगों ने डीएसपी पर हमला कर दिया था. एक व्यक्ति ने उन्हें गोली मार दी जिससे अधिकारी की मौत हो गई थी. रघुराज प्रताप सिंह उस समय अखिलेश सरकार में खाद्य एवं रसद मंत्री थे. DSP मर्डर केस में दो FIR लिखी गईं. एक SHO मनोज शुक्ला की रिपोर्ट के आधार पर, जिसमें प्रधान नन्हे यादव के भाइयों और बेटे समेत 10 लोगों पर हत्या का आरोप लगा. दूसरी FIR DSP जिया-उल हक की पत्नी परवीन आजाद की शिकायत के आधार पर लिखी गई. इसमें रघुराज प्रताप सिंह और उनके चार बेहद करीबी लोगों के नाम थे. परवीन आजाद ने आरोप लगाया कि उनके पति जिया-उल हक बालू के अवैध खनन की जांच कर रहे थे. जिसका आरोप रघुराज प्रताप सिंह और उनके करीबियों पर था. परवीन आजाद के मुताबिक राजा भैया के करीबी उनके पति को जांच बंद करने का दबाव बना रहे थे, जान से मारने की धमकी दे रहे थे.
इस मामले में सीबीआई ने पहले भी साल 2013 में एक बार जांच की थी, तब रघुराज प्रताप सिंह को क्लीन चिट दी गई. लेकिन ट्रायल कोर्ट ने सीबीआई की क्लोज़र रिपोर्ट को खारिज कर दिया था. ट्रायल कोर्ट के इस फैसले को चुनौती देते हुए CBI इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंच गई. दिसंबर 2022 में हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया. उसने CBI की क्लोजर रिपोर्ट को मान्यता दे दी. इसके खिलाफ परवीन आजाद सुप्रीम कोर्ट पहुंच गईं. सुनवाई हुई और फ्रेश जांच का आदेश आया. रघुराज प्रताप सिंह का कहना है कि वो पहले भी इस केस की जांच के लिए तैयार थे और अब भी तैयार हैं. और तैयार है CBI भी. दिल्ली में भी और यूपी में भी.
लेकिन दिल्ली के एक और नेता हैं. संसद में गाली देते हैं और चुनाव के इंचार्ज बन जाते हैं. जी. हम भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी की बात कर रहे हैं. संसद में बसपा सांसद दानिश अली को भद्दी-भद्दी गालियां दीं. दानिश अली ने लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला चिट्ठी लिखकर सदस्यता निरस्त करने की बात की. लेकिन बिधूड़ी पर कार्रवाई क्या हुई? ओम बिड़ला ने चेतावनी देकर छोड़ दिया. भाजपा ने कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया. और तीसरा आदेश भी जारी कर दिया. आदेश ये कि अब आप राजस्थान जाइए. टोंक विधानसभा क्षेत्र जाइए. सचिन पायलट के इलाके में. और वहाँ की जिम्मेदारी निभाइए. यानी बिधूड़ी एक विधानसभा के चुनाव इंचार्ज हैं. अब बयान आने लगे हैं. TMC सांसद महुआ मोइत्रा. उन्होंने ये खबर मिलते ही एक्स पर लिखा -
"मैं जानती थी! रमेश बिधूड़ी को लोकसभा में मुस्लिम सांसद के खिलाफ अपमाजनक टिप्पणी करने का इनाम मिला है. शो कॉज नोटिस भेजे गए शख्स को नई भूमिका कैसे दी जा सकती है? BJP और PM मोदी जी, क्या ये अल्पसंख्यकों के लिए आपका प्यार है?"
कांग्रेस नेता जयराम रमेश भी अपने तरीके से आए. लिखा -
"सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास... ये सब है बकवास."
लेकिन बिधूड़ी की इस नई नियुक्ति पर प्रतिक्रिया आई दानिश अली की ओर से भी. वो बिधूड़ी की जाति लेकर आ गए. कहा कि अनेक गुर्जर समाज के लोग आए और मुझसे कहा कि बिधूड़ी ने हमारे समाज को शर्मिंदा किया. उनका यह झंडा चलने वाला नहीं है. जिस जिले के वह प्रभारी बने हैं, वहां के लोग जवाब देंगे.
लेकिन बस दानिश नहीं हैं जो बिधूड़ी की जाति तलाश रहे हैं. राजस्थान में उनकी तैनाती भी इसी जातिगत समीकरण के अधीन गिनी जा रही है. बिधूड़ी गुर्जर समुदाय से हैं, सचिन पायलट भी गुर्जर समुदाय से हैं, टोंक में भी गुर्जर अच्छी जनसंख्या में हैं. तो बिधूड़ी भाजपा की पैठ के लिए जमीन तलाश करेंगे , ये बात भी हो रही है.
लेकिन राजस्थान से यही एक डेवलपमेंट नहीं है, जिसने सियासी गलियारों में हल्ला काटा हुआ है. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और सूबे के सीएम गहलोत की बहस से भी अच्छा शोर मचा हुआ है. उपराष्ट्रपति धनखड़ बार-बार राजस्थान जा रहे हैं और वहां के सीएम अशोक गहलोत के ये पसंद नहीं आ रहा है. गहलोत ने साफ कहा है कि उपराष्ट्रपति का इतनी बार राजस्थान आने का क्या मतलब है?
लेकिन अशोक गहलोत के आरोप कितने सही हैं? तथ्य देखिए. उपराष्ट्रपति धनखड़ पिछले 13 महीने में राजस्थान के 17 दौरे कर चुके हैं. 34 कार्यक्रमों में बैठकी कर चुके हैं. 27 सितंबर को भी वो झुंझुनूं, बाड़मेर, बीकानेर और जोधपुर जिले के दौरे पर थे. झुंझुनूं तो उनका गृहजनपद है. इन 4 शहरों में वो पांच कार्यक्रमों में शिरकत कर चुके हैं. कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव हैं. हिसाब लगा लीजिए. लेकिन अशोक गहलोत को भाजपा के खेमे की ओर से जवाब भी मिला है. केन्द्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने पूछा कि उपराष्ट्रपति को मुख्यमंत्री से परमिशन लेकर आना होगा क्या?
राजस्थान की बात हो गई, अब चलते हैं पंजाब. यहां पर कांग्रेस एक बड़े नेता अरेस्ट हो गए हैं. ड्रग्स का केस है. नेता जी हैं सुखपाल सिंह खैरा. कपूरथला ज़िले की भोलाथ विधानसभा से विधायक. जलालाबाद पुलिस ने 28 सितंबर को उनके चंडीगढ़ वाले बंगले पर छापा मारकर उठा लिया. उनके परिवार के एक सदस्य ने खैरा के फ़ेसबुक अकाउंट से लाइव वीडियो बनाया. छापेमारी के दौरान वो पुलिस से बहस करते नज़र आ रहे हैं. पुलिस से वॉरंट मांग रहे हैं, अपनी गिरफ़्तारी का कारण पूछ रहे हैं.
अब पहले केस जानिए, फिर इस अरेस्ट पर हुआ राजनीतिक झगड़ा समझेंगे. मार्च 2015 में मामला फाजिल्का के जलालाबाद में ये केस लिखा गया था. धारा लगी थी Narcotic Drugs and Psychotropic Substances Act, 1985 यानी NDPS एक्ट. इस एक्ट को आपने बार-बार आर्यन खान वाले केस के समय सुना होगा. बहरहाल ... खैरा पर आरोप लगे कि उन्होंने ड्रग्स के पैसे से प्रॉपर्टी खरीदी. आरोप ये भी हैं कि खैरा ने साल 2014 से 2020 के बीच खुद पर साढ़े 6 करोड़ रुपये खर्च किए थे. और ये खर्च चुनावी हलफनामे में दी गई जानकारी से बिल्कुल मेल नहीं खाता था.
अब जब खैरा के अरेस्ट का लाइव वीडियो सामने आया तो कुछ बातें सुनाई दीं. वीडियो में खैरा कहते सुनाई दे रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने इस केस को रद्द कर दिया था. फिर DCP अछरू राम शर्मा खैरा से कहते हैं कि इस साल के अप्रैल में एक SIT का गठन किया गया था और जांच में उनके ख़िलाफ़ ड्रग्स तस्करी के सबूत मिले हैं. 7-8 मिनट की बहस के बाद सुखपाल सिंह को पुलिस वैन में बैठा दिया जाता है. वैन में बैठने से पहले विधायक खैरा मुस्कुरा रहे थे. कहा जा रहा है कि वो फ़ेसबुक लाइव के दर्शकों को संदेश देना चाह रहे थे कि वो बेक़ुसूर हैं.
और इस अरेस्ट के बाद नवजात इंडिया गठबंधन भी फेर में फंस गया है. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भिड़े पड़े हैं. लाइव वीडियो में खुद खैरा पंजाब सरकार मुर्दाबाद के नारे लगा रहे हैं. इधर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अमरिंदर सिंह वारिंग ने एक्स पर लिखा है,
"सुखपाल सिंह खैरा जी की हालिया गिरफ्तारी से बदले की राजनीति की बू आती है. ये विपक्ष को डराने की कोशिश है और मुख्य मुद्दों से ध्यान भटकाने की पंजाब सरकार की चाल है. हम मज़बूती से सुखपाल खैरा के साथ खड़े हैं और इस लड़ाई को आगे तक ले जाएंगे."
कांग्रेस नेता प्रताप सिंह बाजवा भी मैदान में आए. दो दिनों पहले उन्होंने एक बयान देकर हल्ला काट ही दिया था कि आम आदमी पार्टी के 32 विधायक कांग्रेस के संपर्क में हैं. तब सीएम भगवंत मान ने जवाब भी दिया था. कहा था कि आप चुनी हुई सरकार पलटना चाहते हैं, कांग्रेस ने पहले ही आपके मुख्यमंत्री बनने के सपने की भ्रूण हत्या कर दी थी. अब खैरा अरेस्ट हुए तो बाजवा को फिर से मौका मिल गया. खबरों के मुताबिक बाजवा ने कहा कि सुबह 6 बजे पंजाब पुलिस ने खैरा को उनके आवास से गिरफ्तार कर लिया. मेरे भाइयो, दुख की बात यह है कि पुलिस के पास गिरफ्तारी वारंट नहीं था. बाजवा ने कहा कि पंजाब सरकार मेरे बयान का बदला खैरा से निकाल रही है.
आम आदमी पार्टी की ओर से जवाब दिया राज्यसभा सांसद सुशील गुप्ता ने. उन्होंने कहा कि केस तब दर्ज हुआ, जब अकाली दल की सरकार थी, और वो पहली बार कांग्रेस राज में ही अरेस्ट हुए थे. लेकिन तब वो कांग्रेस से जुड़ गए और उन्हें राजनीतिक संरक्षण मिल गया.
आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के युवा नेता इस मामले को लेकर एक्स पर भिड़े पड़े हैं. सबके तीर एक दूसरे की ओर. और समझने वाले INDIA नाम के गठबंधन पर संकट का भी अनुमान लगाने लगे हैं. लेकिन बस यही एक मुद्दा नहीं है, जहां INDIA में शामिल पार्टियों के नेताओं ने आपस में फजीहत कर ली हो. ऐसी ही एक फजीहत बंगाल में भी हुई है. वहां चलते हैं
दरअसल मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कुछ दिनों पहले विदेश यात्रा के लिए गई हुई थीं. दुबई और स्पेन. दुबई में लुलु ग्रुप के अधिकारियों से मिलीं. उनके कुछ प्रोजेक्ट में निवेश की बातचीत हुई. स्पेन में स्पेनिश फुटबॉल लीग ला लीगा के साथ एक MoU साइन किया कि बंगाल में एक फुटबाल अकादमी खोली जाए. देश वापिस आ गईं. लेकिन जब वो वापिस आईं तो उनके घुटने में चोट लग गई. डॉक्टर ने 10 दिन बेड रेस्ट करने की सलाह दी. तो वो आराम करने लगीं.
लेकिन लोकसभा सांसद और कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी को हमला करने का मौका मिल गया. उन्होंने कहा कि मैं उनके भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि वो जल्दी स्वस्थ हों ताकि उन्हें फिर से झूठ बोलने के मौके मिलें. इसके बाद अधीर रंजन ममता की विदेश यात्रा के खर्च पर सवाल उठाने लगे. कहने लगे कि भले ही बंगाल में काम नहीं हो रहा है, लेकिन ममता बनर्जी की सुविधा का पूरा खयाल रखा जा रहा है.
अधीर ने आगे कहा, "मुख्यमंत्री स्पेन के एक होटल में रुकीं, जिसका प्रतिदिन का किराया 3 लाख रुपये का है.निवेशकों को आमंत्रित करने के बहाने वो दौरे पर गईं और मौज-मस्ती करके लौट आईं."
अधीर रंजन के बहानों में बंगाल में फैला हुआ डेंगू भी था. वो कहने लगे कि डेंगू से मरने वाले लोगों के मृत्यु प्रमाण पत्र पर मौत का कारण डेंगू नहीं लिखा जा रहा है। सरकार छुपाना चाह रही है.
TMC के बचाव में आए प्रवक्ता कुणाल घोष. बयान दिया कि नेताओं को INDIA गठबंधन की सीमा में रहना चाहिए. इशारा अधीर रंजन चौधरी पर. कुणाल घोष ने कहा कि ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी इंडिया और कांग्रेस के मुख्य नेताओं का सहयोग कर रहे हैं. और यहां बंगाल में कांग्रेस नेतृत्व CPIM के साथ गठबंधन कर बीजेपी की मदद कर रहा है.
जब गठबंधन पर संकट की बात आती है तो ये आग हर जगह जाती है. INDIA में है तो NDA में भी है. और ये झगड़ा है तमिलनाडु का.
तमिलनाडु की पार्टी ऑल इंडिया द्रविड मुन्नेत्र कड़गम - AIADMK. बीते दिनों इस पार्टी ने तमिल सम्मान के प्रश्न पर भाजपा से अपना गठबंधन तोड़ दिया था. भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के अन्नामलाई पर आरोप लगाए थे. लेकिन खबरें बताती हैं कि भाजपा इस गठबंधन की टूट से बहुत खुश नहीं है. भाजपा ने काम सौंपा है वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन को. कहा कि वो एक AIADMK से गठबंधन टूटने पर एक रिपोर्ट तैयार करें.
AIADMK और के अन्नामलाई की लड़ाई की खबर लंबे समय से आ रही थी. लेकिन इंडियन एक्स्प्रेसस की खबर बताती है कि AIADMK गठबंधन से बाहर चली जाएगी, इसका अंदाज भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को भी नहीं था. रिपोर्ट बताती है कि भाजपा इस कोशिश में भी लगी हुई है कि AIADMK से फिर से दोस्ती हो जाए.
लेकिन अभी हमने बताया कि AIADMK के नेता के अन्नामलाई से खुश नहीं थे. तो इस नाखुशी का कारण क्या होगा? अन्नामलाई ने 11 सितंबर को एक भाषण दिया था. ये भाषण डीएमके नेता उदयनिधि स्टालिन के सनातन धर्म वाले भाषण के विरोध में था. इस भाषण में अन्नामलाई ने द्रविड़ आइकन सीएन अन्नादुरई पर एक टिप्पणी की. कहा कि अन्नादुरई ने साल 1956 में मदुरै में एक कार्यक्रम में हिन्दू धर्म का अपमान किया था. फिर इस टिप्पणी के बाद अन्नादुरई का विरोध शुरू हुआ. वो छिप गए. और माफी मांगकर ही बाहर आ सके.
हालांकि ये अन्नामलाई का अकेला और पहला हमला नहीं था. इसके पहले उन्होंने AIADMK की अध्यक्ष व सीएम रही जयललिता पर भी अटैक किया था. जून 2023 में एक इंटरव्यू में उनसे पूछा गया कि साल 1991-1996 का तमिलनाडु कैसा था. अन्नामलाई ने जवाब दिया कि हमारे कई मुख्यमंत्री जेल में जा चुके हैं. कोर्ट से सजा मिल चुकी है. उन्होंने आगे कहा कि तमिलनाडु सबसे करप्ट राज्य बन चुका है. उनका निशाना साफ जयललिता पर था.
AIADMK इन लगातार हो रहे हमलों से नाराज हुई. उन्होंने सबसे पहले अन्नामलाई से कहना शुरू किया कि अपने बयान के लिए माफी मांगें. अन्नामलाई ने साफ कहा कि उन्होंने सही कहा है, लिहाजा माफी नहीं मांगेंगे. फिर AIADMK ने अन्नामलाई का इस्तीफा मांगा, वो बात भी नहीं मानी गई. फिर AIADMK ने कहा कि वो गठबंधन तोड़ देंगे. फिर भी कहीं से कोई सुध नहीं ली गई. और आखिर में AIADMK के नेताओं का एक दल 22 सितंबर को दिल्ली आया. भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से एक मीटिंग हुई. अन्नामलाई को समझाने की सलाह दी गई. बात बनी नहीं, तभी शायद गठबंधन तोड़ने का ऐलान आ गया. टूटने के बाद भाजपा ने डैमिज कंट्रोल की कोशिश शुरू की है. क्यों? क्योंकि कुछ ही महीनों बाद लोकसभा चुनाव हैं. और भाजपा AIADMK का साथ छोड़ना नहीं चाहती है.
दरअसल राजनीतिक एक्सपर्ट मानते हैं कि AIADMK गले में फंसी हड्डी की तरह है. न निगलते बन रही है, न उगलते. क्योंकि भाजपा राज्य में अपनी अलग पहचान बनाना चाह रही है, लेकिन लोकसभा चुनाव से कुछ महीनों पहले ही गठबंधन की टूट का नुकसान भी नहीं उठाना चाह रही.