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महाराष्ट्र में ये दो चीज़ें अभी भी बीजेपी का खेल ख़राब कर सकती हैं

बहुमत साबित करने के चक्कर में भाजपा लड़खड़ा न जाए.

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देवेंद्र फड़णवीस ने सुबह-सुबह सीएम पद की शपथ ले ली. लेकिन असल लड़ाई तो अब सामने आएगी और इस लड़ाई में दो ऐसी चीज़ें हैं जो खेल को बदल भी सकती हैं
देवेंद्र फड़णवीस ने सुबह-सुबह सीएम पद की शपथ ले ली. लेकिन असल लड़ाई तो अब सामने आएगी और इस लड़ाई में दो ऐसी चीज़ें हैं जो खेल को बदल भी सकती हैं
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सुमित
25 नवंबर 2019 (Updated: 25 नवंबर 2019, 01:12 PM IST) कॉमेंट्स
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महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस सीएम बन चुके हैं. और उनके डिप्टी बने हैं एनसीपी के अजित पवार. यानी बीजेपी और अजित पवार वाली एनसीपी की सरकार बन चुकी है. बीजेपी ने 173 विधायकों के समर्थन का दावा किया है. इनमें बीजेपी के 105, एनसीपी के 54 और 14 निर्दलीय विधायक शामिल हैं. दूसरी तरफ एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार का दावा है कि पार्टी के ज्यादातर विधायक उनके पास हैं. यानी बीजेपी को समर्थन देने के मुद्दे पर NCP बंटी हुई है. अब अगर शरद पवार के दावे को सही मानें तो बीजेपी के सामने सरकार को बचाए रखने की बड़ी चुनौती होगी.


# सरकार बचाने के लिए पास करना होगा फ्लोर टेस्ट

सरकार चलाने के लिए मुख्यमंत्री और उनकी कैबिनेट के पास सदन का भरोसा होना चाहिए. सदन के भरोसे का मतलब कुल सदस्यों के 50 फीसदी से कम से कम एक ज़्यादा विधायक का समर्थन. अब कैसे पता चलेगा कि कितने विधायक सरकार के साथ हैं? इसी के लिए होता है फ्लोर टेस्ट. इसमें विधानसभा में वोटिंग कराई जाती है. बीजेपी के प्रवक्ता शहनवाज हुसैन ने कहा है कि सरकार 30 नवंबर को बहुमत साबित करेगी. इसके बाद से फ्लोर टेस्ट न्यूज़ कीवर्ड बना हुआ है.


एक बारगी लग रहा था कि आदित्य ठाकरे को ही कहीं सिंहासन ना मिल जाए, लेकिन ठाकरे की बात बनी नहीं और आख़िरकार बात बिगड़ते बिगड़ते बिगड़ ही गई
एक बारगी लग रहा था कि आदित्य ठाकरे को ही कहीं सिंहासन ना मिल जाए, लेकिन ठाकरे की बात बनी नहीं और आख़िरकार बात बिगड़ते बिगड़ते बिगड़ ही गई

# इसमें क्या होता है?

फ्लोर टेस्ट के दौरान विधायक अलग-अलग तरह से वोट करते हैं – मौखिक, ईवीएम या बैलेट पेपर के ज़रिए. बहुमत साबित नहीं होने का मतलब है कि सरकार सदन का भरोसा खो चुकी है. इसके बाद मुख्यमंत्री सहित पूरी कैबिनेट के पास इस्तीफे के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं बचता. कई बार सरकारें जब ये देखती हैं कि उनके पास पर्याप्त संख्या में विधायक नहीं हैं, तो विश्वास मत से पहले ही इस्तीफा हो जाता है. जैसा कि कर्नाटक के मामले में हुआ था. बहुमत साबित नहीं कर पाने की वजह से येदियुरप्पा को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा था.

तकनीकी रूप से देखें तो किसी राज्य के मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करता है. स्पष्ट बहुमत वाले मुख्यमंत्रियों के मामले में विश्वास मत की कार्यवाही महज़ एक औपचारिकता होती है. लेकिन जब किसी पार्टी के पास स्पष्ट बहुमत नहीं होता तब राज्यपाल उस पार्टी के नेता को सीएम पद की शपथ दिलाते हैं जो बहुमत होने का दावा करता है.

तो दावा किया भाजपा ने. मुख्यमंत्री बन गए देवेंद्र फडणवीस. अब? अब आया फ्लोर टेस्ट. सदन को विश्वास दिलाइए कि आपके पास मैजिकल नम्बर्स हैं. विश्वास मत की प्रोसिडिंग के लिए विधायकों को पहुंचना होगा विधानसभा. महाराष्ट्र विधानसभा में 288 सीटें हैं. बहुमत के लिए 145 का आंकड़ा चाहिए. मान लीजिए कि किसी पार्टी के विधायक विधानसभा में नहीं पहुंचे. ऐसे में बहुमत का आंकड़ा नीचे खिसक आएगा. उदाहरण के लिए अगर सदन में 20 विधायक नहीं पहुंचे, तो विधानसभा में विधायकों की संख्या हो जाएगी. 268. यानी बहुमत के लिए चाहिए 135.


#अब इस फ्लोर टेस्ट के लिए जरूरी क्या-क्या ज़रूरी चीज़ें हैं?

प्रोटेम स्पीकर

महाराष्ट्र में फ्लोर टेस्ट कब होगा इस पर सुप्रीम कोर्ट 26 नवंबर की सुबह फैसला देगा. इसके बाद राज्यपाल विधानसभा का संक्षिप्त सत्र बुलाएंगे. राज्यपाल प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति करेंगे. परंपरा के मुताबिक, सदन के सबसे वरिष्ठ विधायक को प्रोटेम स्पीकर बनाया जाता है. इस हिसाब से कांग्रेस के बालासाहेब थोराट सबसे सीनियर हैं.

यदि वरिष्ठता के आधार पर थोराट प्रोटेम स्पीकर चुने जाते हैं. तब, फ्लोर टेस्ट के दौरान टाई की स्थिति में वह अपने वोट का इस्तेमाल कर सकते. ऐसे में तय है कि वह अपनी पार्टी लाइन फॉलो करते हुए कांग्रेस-एनसीपी-शिवसेना का साथ देंगे. इसका नुकसान बीजेपी को हो सकता है.

हालांकि, राज्यपाल सबसे सीनियर सदस्य को प्रोटेम स्पीकर बनाने के लिए बाध्य नहीं होते हैं.


# और ऐसा पहली बार नहीं होगा

2018 में कर्नाटक के राज्यपाल वजुभाई वाला ने भाजपा नेता केजी बोपैया को प्रोटेम स्पीकर बना दिया था जबकि कांग्रेस के आरवी देशपांडे सबसे वरिष्ठ सदस्य थे. तब राज्यपाल ने कहा था कि उन्हें नामों की सूची जो मिली थी, उसमें से ही प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया गया है. कांग्रेस दलील देती रही लेकिन सुप्रीम कोर्ट तक ने इस मामले में ज़रूरी योग्यता या परंपरा का ध्यान नहीं रखा. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट का लाइव प्रसारण लोकल चैनलों पर करने का निर्देश दिया था.

शिवसेना एड़ी गड़ाकर अपनी शर्तों पर अड़ी रही. भाजपा ने मान मनौव्वल काफ़ी की लेकिन बात बनी नहीं.

शिवसेना एड़ी गड़ाकर अपनी शर्तों पर अड़ी रही. भाजपा ने मान मनौव्वल काफ़ी की लेकिन बात बनी नहीं.

इसी तरह 2016 में उत्तराखंड में जब फ्लोर टेस्ट हो रहा था तब तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत को बहुमत साबित करना था और सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को ऑब्ज़र्वर के तौर पर मौजूद रहने के लिए कहा था.

प्रोटेम स्पीकर की मुख्य ज़िम्मेदारी होती है विधायकों को शपथ दिलवाने की. प्रोटेम स्पीकर की देखरेख में ही विधानसभा स्पीकर का चुनाव होता है. सदन में क्लियर मेजॉरिटी की स्थिति में सत्ताधारी दल के नेता स्पीकर चुन लिये जाते हैं. आमतौर पर स्पीकर ही फ्लोर टेस्ट करवाते हैं. लेकिन बीते कुछ सालों में राज्य विधानसभाओं में प्रोटेम स्पीकर्स ने ही फ्लोर टेस्ट करवाए हैं. 2017 में गोवा और मणिपुर और 2018 में मेघालय विधानसभा में प्रोटेम स्पीकर्स ने ही फ्लोर टेस्ट करवाए थे.


# दूसरी ज़रूरी चीज़- व्हिप

पहले जान लीजिए व्हिप क्या है. उसके बाद बताते हैं कि ये ज़रूरी क्यों है.
व्हिप का मतलब होता है ‘कोड़ा.’ मल्लब हंटर. कभी अनुशासन बनाए रखने के लिए कोड़े का इस्तेमाल होता था. संसद और विधानसभाओं में  व्हिप का काम भी इसी तरह का होता है. पार्टी अनुशासन बनाए रखने के लिए आदेश देना. अगर कोई पार्टी व्हिप जारी करती है तो इसका सीधा मतलब है कि उस पार्टी के सभी सदस्यों को किसी भी हाल में सदन पहुंचना होगा. भारत की संसदीय परंपरा में तीन तरह की व्हिप का ज़िक्र मिलता है.
वन लाइन व्हिप - इससे सांसदों को पार्टी लाइन का समर्थन करने के लिए कहा जाता है.
टू लाइन व्हिप - इससे वोटिंग के वक्त सांसदों को सदन में मौजूद रहने को कहा जाता है.
थ्री लाइन व्हिप - इससे सांसदों को पार्टी लाइन पर वोट डालने को कहा जाता है.

इनमें सबसे बड़ी होती है थ्री लाइन व्हिप. कोई सदस्य थ्री लाइन व्हिप के खिलाफ तभी जा सकता है जब उसके साथ उसकी पार्टी के कम से कम एक तिहाई सदस्य ऐसा करें. पार्टी व्हिप के खिलाफ जाने पर दलबदल कानून लागू हो जाता है. इसमें विधायकी या सांसदी तक छिन सकती है. व्हिप जारी करने का मकसद होता है संख्याबल के हिसाब से कुनबे को मज़बूत बनाए रखना.


#महाराष्ट्र में क्यों इतना क्रूशियल है व्हिप

अब महाराष्ट्र में फ्लोर टेस्ट होने वाला है. व्हिप जारी होगा. पार्टियां अपने-अपने विधायकों के लिए व्हिप जारी करेंगी. लेकिन नज़र है सबकी NCP पर. चाचा-भतीजा दोनों अपनी डफली, अपना राग कर रहे हैं. NCP में व्हिप कौन जारी करेगा. यही तय करेगा कि महाराष्ट्र में सरकार कौन बनाएगा.


चाचा शरद पवार बाकियों को साथ लेकर चलने की जुगत भिड़ाते ही रहे. लेकिन भतीजे ने खेल कर दिया

चाचा शरद पवार बाकियों को साथ लेकर चलने की जुगत भिड़ाते ही रहे. लेकिन भतीजे ने खेल कर दिया
# क्या कहते हैं एक्सपर्ट?

विश्वासमत के दौरान विधानसभा के अंदर अजित पवार की क्या हैसियत होगी? फ्लोर टेस्ट में व्हिप का क्या गणित होगा इसपर जानकार क्या कहते हैं?


पहला सवाल यही कि NCP में अब व्हिप  जारी करने का अधिकार है किसके पास?
इसके जवाब में जानकारों का कहना है:
व्हिप  जारी करने का अधिकार पार्टी की ओर से नियुक्त पदाधिकारी के पास होगा. इसकी नियुक्ति विधानसभा में शपथ लेने के बाद होगी. और नियुक्ति के बाद इसकी जानकारी स्पीकर को दी जाएगी.
यानी फिलहाल अभी अजित पवार के निर्देश का कोई क़ानूनी महत्त्व नहीं है.
दूसरा बड़ा सवाल ये है कि अगर अजित पवार व्हिप  जारी करते हैं तो क्या शरद पवार के साथ जो हैं उन विधायकों की सदस्यता जा सकती है?
इस पर जानकार क्या कहते हैं ये भी समझ लीजिए -
तर्क 1 - अगर अजित पवार को पार्टी विधायकों ने बहुमत से निकाल दिया है तो फिर उनकी व्हिप का कोई मतलब वैसे भी नहीं बनता है? और जब तक विधानसभा का गठन होगा नहीं तब तक व्हिप  जारी होगी कैसे?

तर्क 2 - अजित पवार जब ख़ुद NCP विधायक दल के नेता नहीं हैं तो फिर उनका कोई आदेश वैसे भी पार्टी पर लागू होगा नहीं. और जब तक विधानसभा का गठन होगा नहीं, तब तक पुराना कोई आदेश कोई मतलब नहीं रखता. शपथ लेने के बाद NCP जो आदेश जारी करेगी वही क़ानूनी प्रभाव में आएगा.


अब एक बेहद ज़रूरी सवाल व्हिप  के बारे में और है. और वो ये है कि अगर शरद पवार कैंप के दो तिहाई विधायक एक साथ किसी भी आदेश का उल्लंघन करते हैं तब क्या होगा?
इसके बारे में जानकारों के तर्क जानें इससे पहले एक चीज़ और समझ लीजिए.
जीतने के बाद विधायकों के दूसरी पार्टी में जाने के लिए वैसे तो दल बदल क़ानून है. लेकिन कुछ ऐसी परिस्थितियां भी हैं जब ये क़ानून लागू नहीं होता है.
-  जब पूरी की पूरी राजनीतिक पार्टी अन्य राजनीति पार्टी के साथ मिल जाती है.
- अगर किसी पार्टी के सभी निर्वाचित सदस्य एक नई पार्टी बना लेते हैं.
- अगर किसी पार्टी के सदस्य दो पार्टियों का विलय स्वीकार नहीं करते और विलय के समय अलग ग्रुप में रहना स्वीकार करते है.
- जब किसी पार्टी के दो तिहाई सदस्य अलग होकर दूसरी पार्टी में शामिल हो जाते हैं.
एनसीपी के 54 विधायक हैं, अगर अजित पवार 36 विधायकों का समर्थन हासिल कर लेते हैं, तो दल-बदल क़ानून उन पर लागू नहीं होगा. अगर वो इतने नंबर नहीं ला पाते, तो उनकी सदस्यता जा सकती है. प्रेस कॉन्फ़्रेंस में शरद पवार ने दावा किया है कि अजित पवार के पास सिर्फ़ 10-11 विधायक हैं.
तर्क 1 - जब दो तिहाई विधायक शरद पवार के साथ रहेंगे तो पार्टी भी उनके पास रहेगी और व्हिप भी उन्हीं का होगा. जिसे शरद पवार चीफ़ व्हिप  बनाएंगे उनका आदेश मानना होगा.
तर्क 2 - पार्टी के अंदर अगर इस तरह की स्थिति आ जाती है कि पार्टी है किसकी? शरद पवार की या अजित पवार की? तो ऐसे में चुनाव आयोग की भी भूमिका सामने आ सकती है. जो भी ये दावा करता है कि पार्टी उसकी है उसे नए चुने गए विधायकों से लेकर पार्टी के संगठन तक हर जगह ये साबित करना होगा कि पार्टी अपना नेता किसे मानती है.
जनता ने जब भरपूर मन से अपना-अपना विधायक चुना होगा तो क्या पता होगा कि चुनाव जीतने के बाद उनके विधायक ऐसे दर-ब-दर मारे-मारे फिरेंगे. जानवरों की तरह बाड़ेबंदी में रहेंगे. इस होटल उस रेस्तरां भागते रहेंगे. बसों में बैठकर इधर से उधर ले जाए जाएंगे, सिर्फ़ इस डर से कि कहीं कोई और ना ख़रीद ले
जनता ने जब भरपूर मन से अपना-अपना विधायक चुना होगा तो क्या पता होगा कि चुनाव जीतने के बाद उनके विधायक ऐसे दर-ब-दर मारे-मारे फिरेंगे. जानवरों की तरह बाड़ेबंदी में रहेंगे. इस होटल उस रेस्तरां भागते रहेंगे. बसों में बैठकर इधर से उधर ले जाए जाएंगे, सिर्फ़ इस डर से कि कहीं कोई और ना ख़रीद ले

# व्हिप जारी करना पार्टी का अधिकार

सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट जितेंद्र मोहन शर्मा का कहना है कि व्हिप पार्टी की ओर से जारी की जाती है और पार्टी जिसको जब तक अधिकार देती है तब तक वो व्हिप जारी कर सकता है. व्हिप जारी करने का अधिकार अजित पवार का खुद का अधिकार नहीं है. वो पार्टी का अधिकार है.

उन्होंने कहा कि अजित पवार न ही अब विधायक दल के नेता हैं और न ही उनके पास दो तिहाई विधायक बचे हैं, जिसके आधार पर वह व्हिप जारी करने का दावा कर सकें. ऐसे में जो विधायक एनसीपी के नए विधायक दल के नेता जयंत पाटिल के निर्देश पर विधानसभा में वोट नहीं करेंगे, तो उनके खिलाफ दल-बदल कानून के तहत कार्रवाई की जा सकती है.

महाराष्ट्र में फडणवीस सरकार के खिलाफ शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. तीनों पार्टियों की रिट पिटीशन पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एनवी रमन्ना की अगुवाई वाली 3 जजों की बेंच मामले की सुनवाई कर रही है. इस बेंच में  जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस संजीव खन्ना भी शामिल हैं.




ये भी देखें:

दी लल्लनटॉप शो: देवेंद्र फडणवीस के मु्ख्यमंत्री की शपथ लेने से पहले कांग्रेस-NCP में क्या बात चल रही थी? एपिसोड 351

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