एक तरफ बूढ़े शेर देश में घूम रहे थे, दूसरी तरफ बिस्मिल जैसे लड़कों ने बंदूक उठा ली थी
गांधी जी सविनय अवज्ञा आंदोलन की तैयारी कर रहे थे. वहीं क्रांतिकारी लड़के इंतजार के मूड में नहीं थे.
Advertisement

फोटो - thelallantop
असहयोग आन्दोलन वापस होने के बाद देश में माहौल एकदम ठंडा हो गया था. नए लड़के अपने बड़े-बुजुर्गों की नीतियों को समझ नहीं पा रहे थे. वहीं बुजुर्ग लोग समझ नहीं पा रहे थे कि जनता का उत्साह बनाये रखने के लिए क्या किया जाए. आइये पढ़ते हैं ऐसे में क्या-क्या हुआ:
1.एक तरफ गांधी जी अपना काम कर रहे थे, दूसरी तरफ दंगे शुरू हो गए थे
1922 में गांधी जी ने कांग्रेस के नेताओं का बड़ा हड़काया. वजह थी जाति. ऐसे तो देश में हर जगह जातिगत भेदभाव था. पर गुजरात में गांधीजी ने खुद देखा था इस चीज को. नेताओं से उन्होंने कहा कि आप लोग पहले अपने समाज के हर व्यक्ति को अपने संगठन से जोड़िए. जाति के नाम पर आप इतने लोगों को नहीं छोड़ सकते. सकते में आये नेता तुरंत इस काम में लग गए. कुछ लोगों को हिचकिचाहट थी. पर उसको दरकिनार किया गया. ये एक बड़ा कदम था.
महात्मा गांधी और सरोजिनी नायडू
पर भारत में उस वक़्त एक नई समस्या जन्म ले रही थी. वो थी कम्युनलिज्म. 1925 में भारत में सोलह जगह दंगे हुए. दिल्ली, शोलापुर और अलीगढ में बड़ा भयानक दंगा हुआ. लाउडस्पीकर, बाजा और पत्थरबाज़ी को लेकर लोग भिड़ जाते. इसमें होता यही कि कोई समूह अपना धार्मिक ताजिया या बारात निकालता, दूसरा समूह किसी ना किसी बात पर चिढ़ जाता. इस साल के बाद ये बातें आम हो गईं. उस समय तक मुस्लिम लीग और हिन्दू महासभा ने अपने समर्थक बना लिए थे. धार्मिक आधार पर बातें होती थीं. इसलिए लोग जल्दी उत्तेजित हो जाते.
2.बूढ़े शेरों का नया 'डेरिंग' कदम: स्वराज आन्दोलन
गांधीजी से बहुत सारे नेता नाराज थे. सबके मन में ऊर्जा भड़क रही थी. पर असहाय थे. कुछ कर नहीं पा रहे थे. ऐसे में चित्तरंजन दस और विट्ठलभाई पटेल ने 'स्वराज पार्टी' बनाकर ब्रिटिश सरकार की कौंसिल का चुनाव लड़ने का निश्चय किया. इस बात से कांग्रेस के बाकी नेता नाराज हो गए. उनका कहना था कि ये तो ब्रिटिश राज के सहयोग की बात हो गई. पर स्वराजियों का इरादा कुछ और था. उन्होंने चुनाव जीता. असेंबली पहुंचे. ब्रिटिश राज के हर बिल पर भयानक बहस करते. उनको पानी-पानी कर देते. इन लोगों ने अपनी देशभक्ति साबित कर दी. अपना इरादा साफ़ कर दिया. असेंबली में इनके भाषणों से लोग उत्तेजित हो जाते. पर 1925 में चित्तरंजन दास की मौत के बाद स्वराज आंदोलन भी ठंडा पड़ गया.
चित्तरंजन दास
3.गांधी ने तोड़ा 'नमक कानून', अंग्रेजों का माथा घूम गया
1924 के बाद महात्मा गांधी पूरे देश का दौरा करते रहे. हर जगह घूम-घूमकर लोगों का जागते रहे. साइमन कमीशन आने के बाद उनका प्रयास रंग लाया. अब कांग्रेस को मौका मिला था जनता के सामने अपना पक्ष रखने का. अब पूर्ण स्वराज की मांग होने लगी. 1929 में रावी नदी के किनारे पहली बार तिरंगा झंडा फहराया गया. यहां बड़ा इमोशनल मोमेंट था. कांग्रेस के बड़े नेता मोतीलाल नेहरु के सामने उनके बेटे जवाहर लाल नेहरु ने भाषण दिया था.
तभी ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार बनी. रैमजे मैकडॉनल्ड प्रधानमंत्री बने. उस वक़्त इरविन भारत में वायसरॉय बने थे. गांधीजी ने इरविन को अल्टीमेटम दिया कि हमारे देश के मुद्दे पर बात करिए नहीं तो आंदोलन होगा. इरविन ने एकदम दरकिनार कर दिया. फिर शुरू हुई दांडी यात्रा. इसमें गांधीजी ने पहली ही खबर भिजवा दी अंग्रेज अफसरों को कि 'नमक कानून' तोड़ने जा रहा हूं. गिरफ्तार कर लीजियेगा. अंग्रेजों को ये मजाक लगा. पर जब हजारों लोग गांधी जी के साथ पैदल हो लिए तब मामला गंभीर हो गया. पूरे देश में अपने-अपने तरीके से 'सविनय अवज्ञा' आन्दोलन चलाया गया. जहां नमक बनाने का जुगाड़ नहीं था वहां निर्णय हुआ कि हम लोग टैक्स नहीं देंगे. गांधीजी के इस कदम ने देश को चैतन्य बना दिया.
4. काकोरी काण्ड: नए लड़कों के अंदाज पर जमाना निछावर था
वहीं नए लड़के एकदम क्रांति की तरफ मुड़ गए. पुराने खिलाड़ी रामप्रसाद बिस्मिल और सचिंद्रनाथ सान्याल ने अपने संगठन बनाने शुरू कर दिए. सान्याल की लिखी किताब 'बंदी जीवन' क्रांतिकारियों के लिए गीता थी. ये लोग सिर्फ गोली चलाने में ही भरोसा नहीं करते थे. इनका उद्देश्य था कि अंग्रेजी राज को उखाड़ फेंका जाये. इसकी जगह पर अमेरिका की तर्ज पर यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ इंडिया बनाया जाय जहां सबको वोट का अधिकार रहेगा.
राम प्रसाद बिस्मिल
इन सब चीजों के लिए जनता को समझाना जरूरी था. उसके लिए पैसे चाहिए थे. इनके संगठन हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन ने तय किया कि लखनऊ के पास काकोरी में ट्रेन लूटी जाएगी. ट्रेन तो लूटी गई पर क्रांतिकारी पकड़ लिए गए. अशफाकउल्ला खान, बिस्मिल, रोशन सिंह और राजेंद्र लाहिड़ी को फांसी हुई. चार को अंडमान भेज दिया गया. बाकी को लम्बी सजा हुई . चंद्रशेखर आजाद भाग निकले. उनको कोई नहीं पकड़ पाया.

अशफाक़उल्ला खान
5. भगत सिंह का इन्कलाब और मास्टर सूर्यसेन का ख्वाब
संगठन थोड़ा टूटा. फिर आज़ाद, भगत सिंह, भगवतीचरण वोहरा आदि ने मिलकर इस संगठन का नया नाम हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन रखा गया. इसी बीच साइमन कमीशन आया भारत में. संविधान पर बात करने आये थे. पर कमीशन में एक भी हिन्दुस्तानी नहीं था! सब कुछ वही लोग डिसाइड करनेवाले थे. इसका भारी विरोध हुआ. पंजाब में इसके विरोध प्रदर्शन के दौरान लाला लाजपत राय की हत्या हो गई. इस हत्या का बदला लेने के लिए भगत सिंह ने अपने साथियों के साथ मिलकर ब्रिटिश अफसर सांडर्स को मार दिया. फिर तय हुआ कि क्रांतिकारियों की आवाज जनता तक नहीं पहुंच रही. तय हुआ कि असेंबली में बम फेंके जायेंगे. आवाज के लिए. किसी के ऊपर नहीं. फिर गिरफ़्तारी दी जाएगी. कोर्ट में जिरह के दौरान अपना पक्ष रखा जायेगा. इससे जनता में बढ़िया से सन्देश पहुंचेगा.
ऐसा हुआ भी. जब जिरह के दौरान ये लड़के 'इन्कलाब जिंदाबाद' चिल्लाते तो जनता मतवाली हो जाती. 1931 में जब भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी हुयी तो जनता में एकदम रोष फ़ैल गया. इन लड़कों ने सबको एक जगह ला के खड़ा कर दिया था. इसी दौरान गांधीजी पर भी आरोप लगे कि उन्होंने भगत सिंह को बचाने के लिए कुछ नहीं किया. इस पर कई तरह के विचार हैं. सब अपने विवेक से समझने की जरूरत है.
इसी तरह बंगाल में मास्टर सूर्यसेन की नेतागिरी में क्रांति हुई. यहां भी यही तय हुआ था कि अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते अपनी जान देनी है. क्योंकि जनता को समझाना था. क्रांतिकारियों की इस भावना ने जनता के दिल पर सीधा असर किया. यही वजह है कि आज भी इनके नाम आते ही लोगों के रोयें खड़े हो जाते हैं. सबसे बड़ी बात थी कि ये क्रांतिकारी बहुत ही ज्यादा समझदार थे. इनको कम्युनलिज्म, जाति, भारत में औरतों की स्थिति हर चीज पर बड़ा पता था. अपने समय के नेताओं से ज्यादा. ऐसा माना जाता है कि इनकी शहादत से भारत ने कई अच्छे नेताओं को खो दिया.

मास्टर सूर्यसेन
आगे पढ़ेंगे देश में होनेवाले राजनीतिक बदलाव के बारे में. फिर द्वितीय विश्व-युद्ध भी तो हुआ था.
ये भी पढ़िए:
दिल्ली में 22 हज़ार मुसलमानों को एक ही दिन फांसी पर लटका दिया गया!
कांग्रेस बनाकर अंग्रेजों ने अपना काम लगा लिया
खुदीराम बोस नाम है हमारा, बता दीजियेगा सबको.
गांधी इंडिया के जेम्स बॉन्ड थे या अंग्रेजों के एजेंट ?