वेबसाइट जो है, बस दो नसल की होती है. एक होती है पेड, दूसरी फ्री. और ये सारा खेल इन्हीं दोनों का है. कब कोई फ्री साइट पेड हो जाती है और कब किसी फ्री साइट का सीईओ लालच का तालाब बन जाता है, पता ही नहीं चलता. Free Basic की कहानी थोड़ी टेढ़ी है.
बाहर से देखो तो बुनियादी जरूरत पूरी करता है Free Basic, और अंदर आओ तो एक से बढ़कर एक काइंयापन इसमें छुपा बैठा है. आखिर में क्या लागू होगा, वो अलग बात है मगर अभी तो खुद को पाक-साफ बता रहा है ये Free Basic.
हम हिंदुस्तानियों का ये तमाशा आज का नहीं है, ज़माने से चला आ रहा है. फेसबुक पर तो ये लड़ाई आपटार्ड और भक्त की भी नहीं थी. यहां तो सभी राष्ट्रभक्त थे. ये लड़ाई थी पढ़े लिखों और जाहिलों के बीच. जाहिल जो कि बिना लॉजिक के होते थे और इनसे सबकी फटती थी. वो नोटिफाई करते थे और बाकी के लोग रिपीट करते थे. अब ऐसे में फ्री बेसिक के लागू होने पर हिंदुस्तान में फेसबुक का इंटरनेट पर एकछत्र राज हो जाएगा और छोटी साइट्स को फेसबुक के टुकड़ों पर पलना होगा. बहरहाल, अभी ऐसा हुआ नहीं है और कहानी अभी भी चल रही है. लेकिन शुरू तब हुई थी, जब जकरबर्ग ने इंडिया में आकर Free Basic नाम का चूरन चटाने का काम शुरू किया. तब, जब हिंदुस्तानी किसी भी चीज़ में 'फ्री' नाम सुनकर उस पे टूट पड़ता था और फ्री की फिनाइल भी पीने से नहीं चूकता था.
गुरु अगर 'गैंग्स ऑफ़ वासेपुर' को रटे नहीं हो तो बताय दें कि ये जो अभी इत्ता लम्बा पढ़ मारे हो इसको पीयूष मिश्रा की आवाज़ में पढ़ के देखो. माजरा एकदम क्रिस्टल किलियर हो जाएगा. और जो इसको तुम शुरू से पीयूष मिश्रा की आवाज़ में पढ़े हो तो कसम गुलाल के अर्धनारीश्वर की, तुमको याद रक्खेंगे हम गुरु! अब मुद्दे पे आते हैं और इस 'फ्री बेसिक' बनाम 'नेट न्यूट्रेलिटी' वाले मल्लयुद्ध को जज करते हैं.
हम बतावेंगे तुमको कि काहे ये फ्री बेसिक वैसा ही फ्री है, जैसे 2 रुपिये के बुढ़िया के बाल खरीदने पर 20 रुपिये का जाली नोट फ्री मिलता था. कागज कलम औ दवात लेके बइठो. हो सके तो मुट्ठी में थोड़े चावल के दाने भी भींच लेओ.
1. फ्री इंटरनेट देने के कई मॉडल उपलब्ध हैं. ये फेसबुक के मॉडल से अलग हैं और बाकी साइट्स को फेसबुक की हां या ना का मोहताज नहीं बनाते. ना ही इसमें ISP माने इन्टरनेट सर्विस प्रोवाइडर का कोई दखल होता है.
मिसाल के तौर पर मोज़िला ने 'रेटिंग' व्यवस्था की तरफदारी करते हुए कहा है कि फ्री इंटरनेट खुद कंपनी दिलाए और इस दौरान उसे अपना विज्ञापन दिखाने का पूरा हक हो. ऐसे में कंपनी अपने ग्राहकों को तय टाइम में तय मात्रा में इंटरनेट इस्तेमाल करने की छूट दे सकती है.
मोज़िला ने दूसरी तरकीब बताते हुए कहा कि उपभोक्ता किसी साइट को मुफ़्त में इस्तेमाल करें, बशर्ते उन्हें एक सीमित अवधि का विज्ञापन देखना होगा.
इन दोनों ही हालातों में कम से कम किसी का हक़ मारा जा रहा है, ऐसा नहीं लगता. ऐड का क्या है, हम बॉलीवुड के फैन हैं. फिल्म के बीच में ऐड के हम आदी हो गए हैं. इंटरनेट पे भी देख लेंगे.
एयरसेल ने नए कस्टमर को पहले तीन महीने मुफ्त इंटरनेट देने का प्लान चालू किया है.
2. तथाकथित 'फ्री' बेसिक के लिए फेसबुक की जेब से एक रुपिया नहीं हल्का होगा. जी हां. पैसा देंगे ISP. यानी इन्टरनेट सर्विस प्रोवाइडर. और ये ISP पैसा कहां से वसूलेगी? सही जवाब! आपसे. तो अब देख लो. यही है जो है.
3. फ्री बेसिक का मतलब ये नहीं है कि सब के सब इंटरनेट से जुड़ सकेंगे. कोई दिव्यशक्ति तो बंट नहीं रही है कि फोन चालू किया और लगे फेसबुक अपडेट करने. मायाजाल है जिसमें फंसने पर फ़ेसबुक और उसके पार्टनर (माने यारी-दोस्ती में जकरबर्गवा जिस किसी को भी हां कह दे) पैसा देने से अछूते रहेंगे. बाकी सबकी साइट को जनमानस तक पहुंचने के लिए जनमानस को ही पैसा देना पड़ेगा. इसमें फेसबुक को वैसी ही बढ़त हासिल होती है जैसे पाकिस्तान के खिलाफ अपनी टीम में सचिन और सहवाग के होने पे होती थी. गेंदबाजों की कुटम्मस तय थी.
4. कहते हैं कि फ्री बेसिक से भारत में इंटरनेट घर-घर पहुंचेगा. आंकड़ों की चुम्मी लें तो पता चलेगा कि 2015 में नए इंटरनेट उपभोक्ताओं में भारत अव्वल है. ये सब बिना फ्री बेसिक के हुआ है. दो और दो चार समझते हो कि नहीं?
5. फ्री बेसिक 'ओपेन प्लेटफॉर्म' नहीं है. मतलब इसकी गाइलाइंस, नियम कानून और शर्तें फेसबुक तय करेगा.
अब खुद्दै बताओ. कोई ऐसा मकान मालिक देखे हो जिसने अपनी टंकी में से तुमको पानी लेने दिया हो या थोड़ा सा भी तेज भैल्यूम पे गाना चलाने दिया हो?
6. फ्री बेसिक की पूरी कहानी लिखने वाला खुद फेसबुक ही है. लिहाज़ा 'फ्री' शब्द का भरपूर इस्तेमाल किया जा रहा है. ये 'फ्री' शब्द वो रोटी का टुकड़ा है जिसको खाने की चाहत मन में लिए चूहा आता तो है लेकिन जैसे ही भकोसता है, चूहेदानी का खटका बंद हुई जाता है.
7. फेसबुक के पास हर उपभोक्ता का पूरा डेटा (नाम, नंबर, पासवर्ड और जाने क्या क्या) मौजूद रहेगा. कोई ऐसी साइट जो फेसबुक को आपका डेटा न देना चाहे, उसे फ्री बेसिक के तहत कोई राहत नहीं मिलेगी. वैसे गीता में भगवान कृष्ण ने भी कहा है कि फेसबुक यूजर्स का सारा ब्योरा अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी को देती रहती हैं. माने डाकिया खुद्दै चिट्ठी पढ़े ले रहा है भाइयों और बहनों!
8. रिसर्चर की मानें तो लोग ओपन प्लेटफॉर्म पर कम समय के लिए इंटरनेट इस्तेमाल करते हैं जबकि फ्री बेसिक से हम तय साइट्स ज्यादा देर के लिए इस्तेमाल करेंगे. अपने आप में ही ये बेवकूफी मालूम होती है.
9. फेसबुक का कहना है कि फ्री बेसिक में विज्ञापन नहीं होंगे. कहना कानपुर के राजेश श्रीवास्तव का, 'तुम हमसे खेल रहे हो. हम भी वकील हैं यार.'
10. फेसबुक के मुताबिक 32 लाख लोग फ्री बेसिक का समर्थन कर रहे हैं. लोगों की मानें तो उन्हें फेसबुक ने छला है. बिना कोई मैसेज भेजे लोगों को ये आगाह किया जा रहा है कि फलाने ने फ्री बेसिक के समर्थन में मेसेज भेजा है. वैसे ऐसे कर्मों को अफवाह उड़ाना कहते हैं.
(ये आर्टिकल लिख भेजा है हमें केतन ने, जो 'दी लल्लनटॉप' के टॉपमटॉप रीडर हैं. आप भी lallantopmail@gmail.com पर कायदे का कंटेंट भेज सकते हैं. ठीक लगा तो हम छापेंगे. )