The Lallantop
Advertisement

लड़के के दाढ़ी-मूंछ नहीं आती तो क्या वो मर्द नहीं होता?

दाढ़ी का हल्का होना या न होना पुरुषों को बहुत परेशान करता है. उपाय क्या है?

Advertisement
Img The Lallantop
शाहरुख और अनिल ने 1995 में आई फ़िल्म त्रिमूर्ति में साथ काम किया था.
pic
लल्लनटॉप
13 सितंबर 2017 (Updated: 13 सितंबर 2017, 11:22 AM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
मेड इन इंडिया
एक दिल चाहिए दैट्स मेड इन इंडिया

अलीशा चिनॉय के इस गाने को आए 20 साल हो गए. गाने में अलीशा को अपने सपनों के राजकुमार की तलाश है. राजकुमारी एक के बाद एक लड़के को रिजेक्ट किए जा रही है. फिर वो प्यार ढूंढते-ढूंढते तांत्रिक के पास पहुंचती है. तांत्रिक मंत्र फूंकता हुआ एक तसले के ऊपर मौजूद धुएं में लेफ़्ट-राइट हाथ घुमा रहा है. तभी एक लड़का उस तसले में दिखाई देने लगता है. पहले तो सिर्फ़ उसकी फ़िट बॉडी दिखती है और फिर दिखाई देता है चेहरा. 'चिकना' चेहरा यानी क्लीन शेव, छाती पर भी कोई बाल नहीं. राजकुमारी अलीशा उस लड़के को देखकर मुग्ध हो जाती है.
फिटनेस प्रोमोटर हैं आजकल मिलिंद. नंगे पांव ही भागते रहते हैं.
फिटनेस प्रमोटर हैं आजकल मिलिंद. नंगे पांव ही भागते रहते हैं.


पापा और मूंछें
अनिल कपूर और मूंछें साथ में कुछ ऐसे हैं जैसे दिन में सूरज. जितना हम सूर्य ग्रहण देखकर अचंभित होते हैं, कुछ वैसे ही अचंभित हुए थे अनिल कपूर के फैन्स, जब उन्होंने 1991 की लम्हे फ़िल्म में अनिल कपूर को बिना मूंछों के देखा था.
फिल्म लम्हे में अनिल कपूर
फिल्म लम्हे में अनिल कपूर


हमारे पापा लोगों पर भी मूंछें इतनी ही ज़रूरी थीं. मुझे याद है जब मेरे पापा ने एक प्ले के लिए अपनी मूंछें उड़वा दी थीं. मुझे इस चीज़ से इतनी दिक्कत हुई थी कि मैंने उन्हें पापा बुलाने से इनकार कर दिया था. लेकिन लड़के वही पसंद आते थे जो बिलकुल क्लीन शेव रहते थे. हमारे दिमाग में ये बात बनी हुई थी कि मूंछें पुराने ज़माने के मर्दों के लिए है, वहीं दाढ़ी तो गुंडों की होती है.
मिलिंद सोमन और जो दूसरे क्लीन शेव लड़के हमें टीवी पर दिखते थे, इनका ये लुक 90 के दशक में बिलकुल नया था. क्योंकि इंडिया, वो भी खासकर उत्तर भारत में 'मर्दानगी' का मतलब मूंछें हुआ करती थीं. एक पुरुष की बहादुरी और उसके गुरूर का पैमाना उसकी मूंछें सेट करती थीं.
अमोल पालेकर राम प्रसाद के किरदार में (बाएं) और भवानी शंकर यानी उत्पल दत्त
अमोल पालेकर राम प्रसाद के किरदार में (बाएं) और भवानी शंकर यानी उत्पल दत्त


वहीं पुरानी वाली गोलमाल फिल्म में अमोल पालेकर का किरदार याद करिए. भवानी शंकर को मूंछों वाले मर्द ही पसंद थे. इसलिए अमोल पालेकर के किरदार को राम प्रसाद और लक्ष्मण प्रसाद के बीच कूदते रहना पड़ता है. अपनी नौकरी बचाने के लिए राम प्रसाद को मूंछें तो रखनी ही होती हैं, साथ में उन मूंछों की इज्ज़त रखने के लिए नशे, गाली, अंग्रेजी, खेलों और लड़कियों से दूर भी रहना पड़ता है.
मूंछ नहीं तो कुछ नहीं
ये तो फिल्मों और टीवी की बात थी. अब बात गांवों की. गांवों में औरतें हों या पुरुष, उनके मत्थे शारीरिक काम खूब आता है. गांवों में पुरुषों और औरतों का भेद भी साफ़ है, उनके भूमिकाओं के बीच एक मोटी लकीर है. ऐसे में पौरुष और स्त्रीत्व के बीच की लकीर भी मोटी है. यहां पुरुषों के शरीर तगड़े, ज्यादा मेहनत करने, ज्यादा बोझ उठाने के लिए ट्रेन्ड होते हैं. ऐसा होना पुरुष होना होता है. अगर जात तथाकथित 'नीची' है, तब तो आदमी मूंछें न भी रखे, चल जाएगा. मगर खानदानी लोग रौबदार मूंछें जरूर रखते हैं. उनकी मूंछें ही उनकी पहचान होती हैं. मूंछें ये बताती हैं कि वे तथाकथित 'ऊंची' जात के 'खानदानी' लोग हैं.

ये वीडियो ‘खबर लहरिया’ khabarlahariya.org
 से लिया गया है.

मूंछें मेंटेन करने में पैसे लगते हैं. 'ऊंची' जात वाले को एक 'नीची' जात का 'नाई' लगता है. तेल लगता है. समय लगता है. हमारे साथी खबर लहरिया का वीडियो देखिये. बिना मूंछों वाला आदमी 'भड़वा' होता है, ये सुनकर हमें हमारी मानसिकता का पता चलता है. कि मर्द का 'मर्द' दिखना हमारे लिए कितना ज़रूरी है.
'शहरी चूज़े'
श्री श्री हनी सिंह जी अपनी एक्स गर्लफ्रेंड को कोसते हुए गाते हैं कि उसे 'फुकरा सा शहरी चूज़ा' मिलेगा. गांवों और शहरों के मर्दों में जैसे मर्दानगी को लेकर छत्तीस का आंकड़ा हो. गांव वालों को लगता है शहर के चिकने लड़के असली मर्द नहीं होते. शहरी लड़कों को लगता है मूंछों वाले मर्द उम्रदराज और गंदे होते हैं. पिछले 5 साल घटा दें तो फिल्मों में किसी हीरो की दाढ़ी मूंछें नहीं दिखीं. एक अनिल कपूर को छोड़ दें तो. मगर उन्हीं अनिल कपूर के शरीर के बालों पर कितना मजाक उड़ा है, ये याद नहीं दिलाना होगा.
'मूंछें मुड़ा दूंगा'
ये एक आम पंक्ति है जो मूंछ वाले लोग अपनी बात में वजन लाने के लिए कहते हैं. अगर मैं गलत साबित हुआ तो मूंछें मुड़ा लूंगा. अगले को पता है कि ये मूंछें आदमी के लिए कितनी जरूरी हैं. इसलिए वो विश्वास कर लेता. अगले को मालूम है कि मूंछें मर्दानगी हैं और मर्दानगी पुरुष की पहचान. अगले को पता है कि मूंछ कट जाना, लिंग कट जाने का रूपक है. कटा तो मर्दानगी गई.

(फिल्म शराबी का सीन: 'मूछें हो तो नत्थूलाल जी जैसी हों, वरना न हों)

मूंछें रखना या न रखना हम चुन सकते हैं. मगर मूंछों या दाढ़ी का आना हम चुन नहीं सकते. सब कुदरत का खेल है. या यूं कहें, हॉर्मोन्स का. मगर जिन लड़कों को वयस्क होने के बाद भी दाढ़ी मूंछें नहीं आतीं, उन्हें घृणित नजरों से देखते हैं. चूंकि मर्द को 'औरत' पुकारा जाना उसके लिए सबसे बड़ी गाली है. उस लड़के को 'चिकना', 'लौंडिया', 'छक्का' बुलाने में लोग कोई कसर नहीं छोड़ते.
मूंछें आती कैसे हैं?
राम सिंह चौहान, जिनके पास दुनिया की सबसे लंबी मूछें होने का रिकॉर्ड है. इनकी मूछ 4 मीटर से ज्यादा लंबी है (सोर्स: यूट्यूब)
राम सिंह चौहान, जिनके पास दुनिया की सबसे लंबी मूंछें होने का रिकॉर्ड है. इनकी मूंछ 4 मीटर से ज्यादा लंबी है (सोर्स: यूट्यूब)


इंसानों के शरीर में एक हॉर्मोन होता है 'डाई-हाइड्रो-टेस्टोस्टेरोन' यानी DHT. जिसके शरीर में ज्यादा DHT होता है उनके चेहरे पर अधिक बाल आते हैं. कुछ पुरुषों में कम DHT होता है. उनके चेहरे पर दाढ़ी या मूंछ नहीं आती. ये उनकी बेचैनी का कारण बनता है. उन्हें लगता है वो मर्द नहीं हैं. कोई कहता है रेजर घिसा करो. कोई कहता है फलां चीज खाओ. इसी उलझन में लड़के स्टेरॉइड की गोलियां लेते हैं. मगर इसके साइड इफ़ेक्ट होते हैं.
युवाओं में दाढ़ी की वापसी
मूछें, दाढ़ी और काजल. रणवीर रोज अपना स्टाइल बदलते हैं.
मूंछें, दाढ़ी और काजल. रणवीर रोज अपना स्टाइल बदलते हैं.


पांच साल पहले सोशल मीडिया पर 'नो शेव नवंबर' का चलन शुरू हुआ. यानी कई पुरुष नवंबर के पूरे महीने अपनी दाढ़ी नहीं काटते. इसका उद्देश्य लोगों को कैंसर के मरीज़ों के बारे में जागरुक करना था. दाढ़ी जितनी घनी और बड़ी हो उतनी अच्छी.
इस सोशल मीडिया पर फैले कैंपेन का मकसद था कि जो पैसा आप अपनी दाढ़ी को सजाने-संवारने में खर्च करते हैं, उस पैसे को कैंसर के मरीज़ों की मदद में लगाया जाए. ये 'नो शेव नवंबर' तो लोग अब स्टाइल दिखाने के लिए मनाते हैं.
फ़ैशन के नियम-कायदे समय-समय पर बदलते रहते हैं. इसलिए दाढ़ी रखो, चाहे मूंछें रखो या बिलकुल क्लीन शेव रहो, क्या ही फ़र्क पड़ता है. लेकिन इंडियन लोगों का एक बड़ा हिस्सा मूंछों को हमेशा मर्द की शान मानता आया है और आज भी मान रहा है.



ये भी पढ़ें:

दाऊद को छोड़ो, इस मुच्छड़ ठाकुर की धूम मची है पाकिस्तान में

औरत बने आदमी, और आदमी बनी औरत के बीच हुई अनोखी शादी

Advertisement