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परमवीर जोगिंदर सिंह की कहानीः जिन्हें युद्धबंदी बनाने वाली चीनी फौज भी सम्मान से भर गई

जानें उनकी पूरी कहानी जिस पर बीते दिनों एक फिल्म भी आई.

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परमवीर जोगिंदर सिंह जिनके जीवन पर 2018 में पंजाबी फिल्म 'सूबेदार जोगिंदर सिंह' आई थी जिसमें गिप्पी ग्रेवाल ने उनकी भूमिका की थी.
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गजेंद्र
26 सितंबर 2019 (Updated: 26 सितंबर 2019, 11:23 AM IST)
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सिने परदे पर पिछले साल उनकी कहानी उतरी थी. एक पंजाबी फ़िल्म में. नाम - 'सूबेदार जोगिंदर सिंह.' नामी एक्टर गिप्पी ग्रेवाल (अरदास, मेल करादे रब्बा, कैरी ऑन जट्टा, जिने मेरा दिल लुटेया) ने इसमें उनका रोल किया. बताया जाता है कि रोल निभाने के लिए पहले 10 किलो वजन कम किया, फिर 25 किलो बढ़ाया. सैनिक के तौर जोगिंदर सिंह का अदम्य साहस भी दिखाया और व्यक्तित्व के आम पहलू भी. प्रोड्यूसर सुमीत सिंह ने कहा कि किसी पंजाबी फिल्म में इतनी बड़ी स्टारकास्ट नहीं दिखी जो इस मूवी में लाई गई. उनके मुताबिक ये पंजाबी सिनेमा की पहली मेग्नम ओपस है जिसने देश के महान वीरों में से एक सूबेदार सिंह को ट्रिब्यूट दी.
फिल्म की शूटिंग कारगिल, द्रास, राजस्थान और असम की लोकेशंस पर हुई. प्रमुख हिस्सा 14,000 फुट की ऊंचाई पर शूट किया गया. बताया जाता है कि वहां पहुंचने में एक्टर्स और क्रू को कई घंटों की पैदल या गाड़ी से जर्नी करनी पड़ती थी. अप्रैल, 2018 में मूवी रिलीज़ हुई.

इस बायोपिक की तमाम जानकारियों में सबसे अधिक वजनी है सूबेदार जोगिंदर सिंह की कहानी जिसका अंत सबसे अधिक द्रवित करता है. ये है उनकी वो कहानीः

#1. बात पंजाब से शुरू होती है

पंजाब में, फरीदकोट जिले में, मोगा के एक गांव मेहला कलां में किसान शेर सिंह और बीबी कृष्ण कौर रहते थे. मूल रूप से वे होशियारपुर के मुनका गांव से आए थे. उन्हीं के घर बेटे जोगिंदर का जन्म 26 सितंबर 1921 को हुआ. जोगिंदर नाथू आला गांव की प्राइमरी स्कूल और फिर दरौली गांव की मिडिल स्कूल में पढ़े. ये कहा जाता है कि उनके पिता की ख़ुद की ज़मीन थी, लेकिन फिर ये भी बताया जाता है कि उनका परिवार बहुत समृद्ध नहीं था औऱ इसलिए वो पढ़ाई ठीक से कर नहीं पाए. यही कारण था जो उन्होंने सोचा कि उनके लिए सेना ठीक स्थान हो सकती है. फिर 28 सितंबर 1936 को वे सिख रेजीमेंट में सिपाही के तौर पर भर्ती हो गए. सेना में आने के बाद वे पढ़े, परीक्षाएं दीं और सम्मानित जगह बनाई. वे अपनी यूनिट के एजुकेशन इंस्ट्रक्टर बनाए गए. उनका विवाह भी बीबी गुरदयाल कौर से हो चुका था जो कोट कपूरा के पास कोठे रारा सिंह गांव के सैनी सिख परिवार से थीं.
सूबेदार जोगिंदर सिंह.
सूबेदार जोगिंदर सिंह.

#2. कश्मीर में भी तैनात थे जोगिंदर सिंह

ब्रिटिश इंडियन आर्मी के लिए वे बर्मा जैसे मोर्चो पर लड़े. भारत के आज़ाद होने के बाद 1948 में जब कश्मीर में पाकिस्तानी कबीलाइयों ने हमला किया तो वहां मुकाबला करने वाली सिख रेजीमेंट का हिस्सा भी वे थे.

#3. शुरू हुआ भारत-चीन युद्ध

फिर अगस्त 1962 का समय आया जब चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने भारत पर हमला कर दिया था. उसने अक्साई चिन और पूर्वी सीमा (नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी) पर अपना दावा ठोका था. चीनी सेना ने थगला रिज पर कब्जा कर लिया. रक्षा मंत्री वी. के. कृष्ण मेनन ने प्रधानमंत्री नेहरू की सहमति से 22 सितंबर को सेनाध्यक्ष को आदेश दिए कि थगला रिज से चीन को बाहर खदेड़ा जाए. भारतीय सेना की नई IV Corps ने इस असंभव काम के लिए टुकड़ियों को इकट्ठा किया. हालांकि चीनी सेना ज्यादा नियंत्रण वाली स्थिति में थी.
नेहरू और मेनन.
नेहरू और मेनन.

#4. सिख बटालियन चीन के सामने खड़ी हुई

चीनी सेना ने 20 अक्टूबर को नमखा चू सेक्टर और लद्दाख समेत पूर्वी सीमा के अन्य हिस्सों पर एक साथ हमले शुरू कर दिए. तीन दिनों में उसने बहुत सारी जमीन पर कब्जा कर लिया और धोला-थगला से भारतीय उपस्थिति को बाहर कर दिया. अब चीन को तवांग पर कब्जा करना था जो उसकी सबसे बड़ी चाहत थी. उसे तवांग पहुंचने से रोकने का काम भारतीय सेना की पहली सिख बटालियन को दिया गया था.

#5. सूबेदार जोगिंदर सिंह की एंट्री

चीन ने अपनी सेना की एक पूरी डिविजन बमला इलाके में जमा करनी शुरू कर दी जहां से तवांग पैदल जाने का एक रास्ता सिर्फ 26 किलोमीटर का था. लेकिन बमला के उस रास्ते से 3 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में ट्विन पीक्स नाम की एक जगह थी जिस पर खड़े होकर मैकमोहन लाइन तक चीन की हर हरकत पर नजर रखी जा सकती थी. अब दुश्मन को बमला से ट्विन पीक्स तक पहुंचने से रोकना. इन दोनों के बीच एक महत्वपूर्ण जगह थी जिसका नाम था आईबी रिज.
ट्विन पीक्स से एक किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में टॉन्गपेंग ला पर पहली सिख बटालियन की एक डेल्टा कंपनी ने अपना बेस बनाया था जिसके कमांडर थे लेफ्टिनेंट हरीपाल कौशिक. उनकी डेल्टा कंपनी की 11वीं प्लाटून आईबी रिज पर तैनात थी जिसके कमांडर थे सूबेदार जोगिंदर सिंह. सिखों की इस पलटन को तोपों और गोलाबारी से कवर देने के लिए 7वीं बंगाल माउंटेन बैटरी मौजूद थी.
भारत पर चीन के हमले की तब की एक खबर.
भारत पर चीन के हमले की तब की एक खबर.

#6. सुबह के धुंधलके में मोर्टारों के मुंह खुले

ये 20 अक्टूबर की भोर थी जब असम राइफल्स की बमला आउटपोस्ट के एक जेसीओ ने देखा कि बॉर्डर के पार सैकड़ों की तादाद में चीनी फौज जमा हो रही है. उसने 11वीं प्लाटून को सावधान कर दिया. जोगिंदर सिंह ने तुंरत हलवदार सुचा सिंह के नेतृत्व ने एक सेक्शन बमला पोस्ट भेजा. फिर उन्होंने अपने कंपनी हेडक्वार्टर से 'सेकेंड लाइन' गोला-बारूद मुहैया कराने के लिए कहा. फिर सब अपने-अपने हथियारों के साथ तैयार बैठ गए.
अब 23 अक्टूबर की सुबह 4.30 बजे चीनी सेना ने मोर्टार और एंटी-टैंक बंदूकों का मुंह खोल दिया ताकि भारतीय बंकर नष्ट किए जा सकें. फिर 6 बजे उन्होंने असम राइफल्स की पोस्ट पर हमला बोला. सुचा सिंह ने वहां मुकाबला किया लेकिन फिर अपनी टुकड़ी के साथ आईबी रिज की पलटन के साथ आ मिले. सुबह की पहली किरण के साथ फिर चीनी सेना ने आईबी रिज पर आक्रमण कर दिया ताकि ट्विन पीक्स को हथिया लिया जाए.

#7. सूबेदार सिंह की चतुर रणनीति

इंडियन एयरफोर्स के फ्लाइंग ऑफिसर रहे और हिस्टोरियन एमपी अनिल कुमार ने अपने एक लेख में सूबेदार सिंह के बारे में लिखा कि उन्होंने वहां की भौगोलिक स्थिति को बहुत अच्छे से समझा था और स्थानीय संसाधनों का अच्छा इस्तेमाल करते हुए आईबी रिज पर चतुर प्लानिंग के साथ बंकर और खंदकें बनाई थीं. उनकी पलटन के पास सिर्फ चार दिन का राशन था. उन लोगों के जूते और कपड़े सर्दियों और उस लोकेशन के हिसाब से अच्छे नहीं थे. हिमालय की ठंड रीढ़ में सिहरन दौड़ाने वाली थी लेकिन जोगिंदर ने अपने आदमियों को प्रोत्साहित किया, उनको फोकस बनाए रखने के लिए प्रेरित किया. इतना तैयार किया कि वे अऩुभवी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सैनिकों को यादगार टक्कर दें.

युद्ध की एक सुबह भीषण ठंड में चाय के क्षण गुजारते सिख जवान, वहीं दूसरी ओर अन्य सिख पलटन इन्हीं कठिन परिस्थितियों में दुश्मनों का सामने करने में जुटी थी. (फोटोः लैरी बरोज़/पिंटरेस्ट)

सूबेदार जोगिंदर सिंह को ये पता था कि चीनी फौज बमला से तीखी चढ़ाई करके आ रही है और वे लोग ज्यादा मजबूत आईबी रिज पर बैठे हैं. यानी सिख पलटन अपनी पुरानी पड़ चुकी ली एनफील्ड 303 राइफल्स से भी दुश्मन को कुचल सकते हैं. इसके अलावा उनके पास गोलियां कम थीं इसलिए उन्होंने अपने सैनिकों से कहा कि हर गोली का हिसाब होना चाहिए. जब तक दुश्मन रेंज में न आ जाए तब तक फायर रोक कर रखो उसके बाद चलाओ.

#8. चीनी हमले की पहली और दूसरी लहर

जल्द ही इस फ्रंट पर लड़ाई शुरू हो गई. पहले हमले में करीब 200 चीनी सैनिक सामने थे, वहीं भारतीय पलटन छोटी सी. लेकिन बताया जाता है कि जोगिंदर सिंह और उनके साथियों ने चीनी सेना का बुरा हाल किया. उनके बहुत सारे सैनिक घायल हो गए. उनका जवाब इतना प्रखर था कि चीनी सेना को पहले छुपना पड़ा और उसके बाद पीछे हटना पड़ा. लेकिन इसमें भारतीय पलटन को भी नुकसान पहुंचा. इसके बाद जोगिंदर ने टॉन्गपेंग ला के कमांड सेंटर से और गोला-बारूद भिजवाने के लिए कहा. ये हो रहा था कि 200 की क्षमता वाली एक और चीनी टुकड़ी फिर से एकत्रित हुई और दूसरी बार फिर से आक्रमण कर दिया.

#9. जोगिंदर सिंह को गोली लगी

इस बीच भारतीय पलटन की नजरों में आए बगैर एक चीनी टोली ऊपर चढ़ गई. भयंकर गोलीबारी हुई. जोगिंदर को मशीनगन से जांघ में गोली लगी. वे एक बंकर में घुसे और वहां पट्टी बांधी. एकदम विपरीत हालात में भी वे पीछे नहीं हटे और अपने साथियों को चिल्लाकर निर्देश देते रहे. जब उनका गनर शहीद हो गया तो उन्होंने 2-इंच वाली मोर्टार खुद ले ली और कई राउंड दुश्मन पर चलाए. उनकी पलटन ने बहुत सारे चीनी सैनिकों को मार दिया था लेकिन उनके भी ज्यादातर लोग मारे जा चुके थे या बुरी तरह घायल थे.
भारत-चीन युद्ध का एक दृश्य. (फोटोः पिंटरेस्ट)
भारत-चीन युद्ध का एक दृश्य. (फोटोः पिंटरेस्ट)

#10. बेयोनेट लेकर चीनी सैनिकों से भिड़ गए

कुछ विराम के बाद चीनी फौज की 200 सैनिकों की टुकड़ी फिर इकट्ठी हो चुकी थी और वे आईबी रिज को छीनने जा रहे थे. हिस्टोरियन अनिल कुमार लिखते हैं कि डेल्टा कंपनी के कमांडर लेफ्टिनेंट हरीपाल कौशिक ने आने वाला खतरा भांपते हुए रेडियो पर संदेश भेजा जिसे रिसीव करके सूबेदार जोगिंदर सिंह ने 'जी साब' कहा, जो अपनी पलटन को भेजे उनके आखिरी शब्द थे. कुछ देर बाद उनकी पलटन के पास बारूद खत्म हो चुका था. सूबेदार सिंह ने इसके अपनी पलटन के बचे-खुचे सैनिकों को तैयार किया और आखिरी धावा शत्रु पर बोला. बताया जाता है कि उन्होंने अपनी-अपनी बंदूकों पर बेयोनेट यानी चाकू लगाकर, 'जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल' के नारे लगाते हुए चीनी सैनिकों पर हमला कर दिया और कईयों को मार गिराया. लेकिन चीनी सैनिक आते गए. बुरी तरह से घायल सूबेदार जोगिंदर सिंह को युद्धबंदी बना लिया गया. वहां से तीन भारतीय सैनिक बच निकले थे जिन्होंने जाकर कई घंटों की इस लड़ाई की कहानी बताई.
परमवीर जोगिंदर सिंह जी, और फिल्म में उनके रूप में पंजाबी एक्टर गिप्पी ग्रेवाल.
परमवीर जोगिंदर सिंह जी, और फिल्म में उनके रूप में पंजाबी एक्टर गिप्पी ग्रेवाल.

#11. उन्हें परमवीर गति मिली

उसके कुछ ही देर बाद पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के बंदी के तौर पर सूबेदार जोगिंदर सिंह की मृत्यु हो गई. इस अदम्य साहस से लिए उन्हें मरणोपरांत भारत का सबसे ऊंचा वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र प्रदान किया गया.

#12. दुश्मन आर्मी सम्मान से भर गई

जब चीनी आर्मी को पता चला कि सूबेदार सिंह को परमवीर चक्र का अलंकरण मिला है तो वे भी सम्मान से भर गए. चीन ने पूरे सैन्य सम्मान के साथ 17 मई 1963 को उनकी अस्थियां उनकी बटालियन के सुपुर्द कर दीं. उनका अस्थि कलश मेरठ में सिख रेजीमेंट के सेंटर लाया गया. अगले दिन गुरुद्वारा साहिब में उनकी श्रद्धांजलि सभा हुई. फिर एक सैरेमनी आयोजित की गई जहां पर वो कलश उनकी पत्नी गुरदयाल कौर और बेटे को सौंप दिया गया.
तवांग के वॉर मेमोरियल में लगी सूबेदार जोगिंदर सिंह की प्रतिमा.
तवांग के वॉर मेमोरियल में लगी सूबेदार जोगिंदर सिंह की प्रतिमा.

भारतीय सेना ने उनकी वीरता की स्मृति के तौर पर आईबी रिज पर ही स्मारक बनाया.
फिल्म 'सूबेदार जोगिंदर सिंह' का ट्रेलर:



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