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रूस को 1100 साल पीछे क्यों ले जाना चाहते हैं पुतिन?

9 वीं सदी में 'क्यीवन रूस' नाम एक नया साम्राज्य अस्तित्व में आया था

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यूक्रेन में 10वीं सदी के शासक व्लादिमीर द ग्रेट का इतिहास दोहराना चाहते हैं पुतिन (तस्वीर: AFP)
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3 मार्च 2022 (Updated: 2 मार्च 2022, 04:29 IST)
Updated: 2 मार्च 2022 04:29 IST
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क्रेमलिन के बाहर व्लादिमीर

साल 2010 में एक फ़िल्म रिलीज़ हुई. नाम था राजनीति. बाकी तो फ़िल्म में जो था सो था ही. लेकिन एक मार्के का डायलॉग था,


“राजनीति में मुर्दे गाड़े नहीं जाते हैं बल्कि उन्हें जिंदा रखा जाता है. ताकि टाइम आने पर वो बोल सकें”

नवंबर का महीना था. और साल था 2016. यूक्रेन से क्रीमिया को अलग किए हुए एक साल से कुछ अधिक वक्त गुजर चुका था. क्रीमिया पर कब्जा करने के बाद पुतिन अगला दांव चलने की फ़िराक में थे. जिसके लिए उन्हें एक मुर्दे की तलाश थी. जिसे ज़िंदा किया जा सके. उस रोज़ क्रेमलिन की दीवार के ठीक बाहर एक आयोजन रखा गया. जिसमें पुतिन, रूस के प्रधानमंत्री दमित्री मेदवेदेव सहित रूस के सभी धार्मिक लीडर इकट्ठा थे.

पुतिन एक बटन दबाते हैं. और एक पर्दा हिलता है. पर्दे के पीछे से उजागर होती है एक मूर्ति. जिसके एक हाथ में क्रॉस और एक में तलवार थी. मूर्ति का अनावरण होता है और इसी के साथ पुतिन फ़रमाते हैं, ‘एक रूस, महान रूस’. 2016 में पुतिन ने जिस मूर्ति का अनावरण किया. वो दरअसल एक डुप्लीकेट थी. क्योंकि एक ऐसा ही एक स्टैच्यू यूक्रेन की राजधानी क्यीव में नीपा नदी के किनारे बना हुआ था.


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मॉस्को में व्लादिमीर द ग्रेट की मूर्ति (तस्वीर: AFP)


ये मूर्ति थी व्लादिमीर प्रथम की. कौन हैं ये? और यूक्रेन और रूस के इतिहास में इनका क्या महत्व है. ये समझने के लिए 2009 की एक घटना सुनिए. जब 2008 में पुतिन ने अपना दूसरा प्रेसिडेंशियल टर्म पूरा किया. इसके बाद संविधान उन्हें लगातार तीसरी बार राष्ट्रपति बनने की इजाज़त नहीं देता था. इसलिए पुतिन ने अपने प्रधानमंत्री को राष्ट्रपति बनाकर प्रधानमंत्री का पद खुद अपना लिया. इस मौक़े पर तिखोन शेवकुनोव, जिसे रूस में संत का दर्ज़ा प्राप्त था, ने कहा,
“जो कोई भी रूस से प्रेम करता है. और उसका भला चाहता है. उसे व्लादिमीर के लिए प्रार्थना करनी चाहिए. व्लादिमीर रूस को ईश्वर की देन है.”
ऐसा कहते हुए तिखोन का इशारा दो तरफ़ था. व्लादिमीर, पुतिन का पहला नाम तो है ही, साथ ही 10 वीं शताब्दी के शासक व्लादिमीर द ग्रेट का नाम भी है. जिन्हें आधुनिक रूस के जन्मदाता के तौर पर रूस में बड़ा सम्मान प्राप्त है. अपने इस बयान से तिखोन पुतिन को ब्लादिमीर द ग्रेट के समकक्ष खड़ा करने की कोशिश कर रहे थे. 'क्यीवन रूस’ साम्राज्य की शुरुआत इस कहानी की शुरुआत हुई 8वीं सदी के दूसरे हाफ़ में. तब पूर्वी यूरोप में एक साम्राज्य का उदय हुआ. इस साम्राज्य का नाम था ''क्यीवन रूस'' (खुश की तरह बोला जाएगा). और ये स्लाविक भाषा बोलने वाले वैरेंजियन ट्रेडर्स और ईस्टर्न स्लाविक ट्राइब्स ने बसाया था. यूक्रेन-रूस युद्ध में आप बार-बार स्लाव शब्द का ज़िक्र सुनेंगे. स्लाव दरअसल मध्य और पूर्वी यूरोप में मौजूद स्लाविक भाषा बोलने वाले लोगों को कहा जाता है. स्लाविक, भारोपीय परिवार की भाषा है. इनमें आधुनिक यूक्रेन, रशिया, बेलारूस, पोलिश, चेक, रोमानिया, बुल्गेरिया, अल्बेनिया, यूनान, मेसिडोनिया, क्रोएशिया आदि देशों के लोग शामिल हैं.
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क्यीवन रूस,9 वीं शताब्दी और व्लादिमीर द ग्रेट (तस्वीर: Wikimedia Commons)


चौथी से पांचवी सदी के बीच मध्य यूरोप से जब स्लाव लोग पूर्वी यूरोप पहुंचे. तो ये लोग बसने के नए ठिकाने ढूंढ रहे होते या व्यापार की खोज़ में होते. ये लोग अपने साथ ग़ुलामों को लेकर चलते. जो अपने कंधे में नाव लेकर ढोया करते थे. इन्हीं नावों से ये लोग अलग-अलग इलाक़ों में पहुंचते. चप्पू चलाने की क्रिया (row) के चलते ही इन लोगों का नाम पड़ा ‘रूस’. नीपा नदी के सहारे ये लोग वहां पहुंचे, जहां आज यूक्रेन की राजधानी क्यीव है.
'क्यीवन रूस’ का राज्य तब दक्षिण में ब्लैक सी, पूर्व में वोल्गा नदी और पश्चिम में पोलेंड और लिथुएनिया तक फैला हुआ था. 882 में साम्राज्य की राजधानी बना क्यीव. और क्यीव को राजधानी बनाने वाले शासक का नाम था ओलेग. 'क्यीवन रूस' ही वो साम्राज्य था, जो आगे चलकर यूक्रेन, रूस और बेलारूस में बंट गया.
912 में शासक ओलेग ने बायजेंटीन एंपायर के साथ संधि की और क्यीवीयन रूस को बायजेंटीन साम्राज्य के समकक्ष लाकर खड़ा कर दिया. ओलेग के बाद साम्राज्य का शासक बना ईगोर. नए साम्राज्य के पास बहुतायत में फर, बी-वैक्स, और शहद का भंडार था. और ईगोर के पास पूर्वी यूरोप के तीन बड़े ट्रेड रूट्स पर आधिपत्य था. ये तीन रूट्स थे, बल्टिक सागर, नीपा नदी और जर्मनी तक का ट्रेड रूट. 'व्लादिमीर द ग्रेट'

941 में ईगोर ने बायजेंटीन एंपायर की राजधानी कॉन्स्टंटिनपोल पर हमला कर उसे अपने कब्जे में ले लिया. और 944 में कैस्पियन समंदर में अरब शासकों को भी युद्ध में हराया. फिर 945 में ईगोर की भी मृत्यु हो गई. ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार ईगोर की मृत्यु का कारण बना उसका लालच. वो एक ही महीने में दो-दो बार ट्रिब्यूट यानी तोहफ़ा वसूलने की फ़िराक में था. और जब ऐसा करने वो क़बीलाई इलाक़ों में पहुंचा. तो उन लोगों ने ग़ुस्से में उसकी दोनों टांगों को पेड़ से बांध कर लकड़ी की तरह बीच से चीर दिया.


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व्लादिमीर और रोगनेडा (तस्वीर: Wikimedia Commons)


ईगोर की पत्नी का नाम था ओल्गा. उसने अपने पति की हत्या का बदला लिया. और अपने बेटे स्व्यातोस्लाव को गद्दी पर बिठाकर राज करना शुरू कर दिया. कहते है कि वो पहली रूसी साम्राज्ञी थी. जिसने ईसाई धर्म को स्वीकार किया था. इसके बाद उसने अपना नाम बदलकर इलीना कर लिया. 958 में स्व्यातोस्लाव को एक बेटा पैदा हुआ. इसका नाम रखा गया, व्लादिमीर. व्लादिमीर की मां का नाम था मलूशा. नॉर्स मिथकों के अनुसार मलूशा में भविष्य बताने की शक्ति थी. इसीलिए स्व्यातोस्लाव उसे एक गुफा से उठाकर अपने महल में ले आया था.
व्लादिमीर के अलावा स्व्यातोस्लाव के दो और बेटे थे. ओलेग और येरोपोल्क. 969 ने स्व्यातोस्लाव ने अपने राज्य का बंटवारा करते हुए येरोपोल्क को क्यीव का शासन दे दिया. चूंकि व्लादिमीर नाजायज़ औलाद था, इसलिए उसे नोवग्रौड का छोटा राज्य मिला. 972 में स्व्यातोस्लाव की मृत्यु होते ही येरोपोल्क और ओलेग में युद्ध छिड़ गया. ओलेग ने येरोपोल्क के बेटे की हत्या कर डाली. और बदला लेने के लिए येरोपोल्क ने ओलेग की हत्या कर दी. इसके बाद येरोपोल्क ने नोवग्रौड पर नज़र डाली. लेकिन व्लादिमीर को जैसे ही ओलेग की मृत्यु का समाचार मिला वो भागकर नॉर्वे चला गया.
वहां उसने नॉर्स योद्धाओं को इकट्ठा किया और येरोपोल्क पर हमला करने वापस आया. इसी दौरान क्यीव के रास्ते में उसे पोलोस्क राज्य की राजकुमारी के बारे में पता चला. रोगनेडा नाम की ये राजकुमारी येरोपोल्क से ब्याहने वाली थी. इसलिए व्लादिमीर ने पोलोस्क पर हमला किया. और उसके माता -पिता को मारकर रोगनेडा को अगवा कर लिया. इसके बाद साल 978 में व्लादिमीर ने धोखे से येरोपोल्क की हत्या कर दी. और खुद को पूरे ‘क्यीवन रूस’ का शासक घोषित कर दिया. सत्ता संभालने के बाद व्लादिमीर ने अपने पिता के साम्राज्य को आगे बढ़ाया. और वर्तमान यूक्रेन, रूस और बेलारूस तक अपने राज्य को फैला दिया.
नोट: इसीलिए आप देखते हैं कि वर्तमान युद्ध में तीन मुख्य प्लेयर यही हैं. रूस यूक्रेन और बेलारूस.रूस में ईसाई धर्म तब 'क्यीवन रूस' में पेगन धर्मों का प्रसार था. हालांकि व्लादिमीर की दादी ईसाई धर्म को क़बूल कर चुकी थी. लेकिन व्लादिमीर खुद पेग़न धर्मों को ही मानता रहा. उसने अपने जीवन काल में सैकड़ों शादियां की और कई देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाई. ओल्गा के ईसाई धर्म स्वीकार करने के बाद क्यीव में ईसाइयों की जनसंख्या भी अच्छी-ख़ासी हो चुकी थी. लेकिन ये लोग देवी-देवताओं के आगे दी जाने वाली नरबलि की निंदा किया करते थे. जिसके चलते आए दिन जनता में झगड़े बढ़ रहे थे.
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ओल्गा, स्व्यातोस्लाव और ओलेग (तस्वीर: Wikimedia Commons)


साल 978 में व्लादिमीर के राजतिलक के ठीक एक दिन पहले भी ऐसा ही हुआ. पेग़न देवताओं की निंदा करने पर भीड़ ने फ़्योदोर और लोन नाम के दो ईसाइयों की हत्या कर दी. स्लाविक ऐतिहासिक दस्तावेज, ‘द टेल ऑफ़ बाइगॉन ईयर्स’ के अनुसार इस घटना का व्लादिमीर पर गहरा असर पड़ा. उसने ईसाई धर्म में रुचि लेना शुरू किया. और साल 987 में सभी धर्मों को जानने के लिए दुनियाभर में अपने दूत भेजे.
चूंकि ''क्यीवन रूस' एक बड़ा साम्राज्य था. इसलिए सभी धर्मों के लीडर चाहते थे कि व्लादिमीर उनका धर्म अपनाए. शुरुआत में व्लादिमीर ने इस्लाम में रुचि दिखाई लेकिन जब उसे पता चला कि वो लोग शराब नहीं पीते और पोर्क नहीं खाते तो उसने इस्लाम अपनाने का विचार त्याग दिया. उसने कहा, ‘पीना पूरे रूस का आनंद है, इसके बिना तो हम रह ही नहीं सकते’.
दूसरा नंबर यहूदी धर्म का था. व्लादिमीर ने यहूदी प्रचारकों से सवाल जवाब किए. लेकिन आख़िर में उन्हें भी ये कहते हुए ठुकरा दिया कि जेरूसेलम को हार जाना, इस बात का सबूत है कि ईश्वर उनके साथ नहीं है. व्लादिमीर की ईसाई धर्म में रुचि और अधिक हुई, जब उसके दूतों ने कॉन्स्टंटिंपोल का ज़िक्र किया. उन्होंने व्लादिमीर से कहा, ‘कॉन्स्टंटिनपोल के चर्चों को देखकर हमें लगा मानों हम स्वर्ग में हैं.’
क्रीमिया का इतिहास
धर्म को लेकर व्लादिमीर ने अंतिम निर्णय लिया दिल के मसले से. 988 में व्लादिमीर ने क्रीमिया को अपने कब्जे में लिया तो उसने बायजेंटीन के राजा बासिल की बहन, एना का हाथ मांग लिया. जिसे वो पहले से ही दिल दे बैठा था.
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क्रीमिया में व्लादिमीर का बैप्टिज़्म (तस्वीर: Wikimedia Commons)


इससे पहले कभी भी किसी बायजेंटीन राजकुमारी का हाथ किसी नॉर्स शासक के हाथ में नहीं दिया गया था. क्योंकि उन्हें barbarian समझा जाता था. लेकिन व्लादिमीर तब तक बहुत ताकतवर हो चुका था. और सिर्फ़ एक ही चीज़ उसके आड़े आ रही थी, धर्म. 27 साल की सुंदर राजकुमारी से शादी की सम्भावना देखकर व्लादिमीर ने ईसाई धर्म क़बूल करने के ठान ली. इसके बाद क्रीमिया में जनता सहित उसने ईसाई धर्म को अपनाया और उसे बैप्टाइज़ किया गया.
नोट : 2014 में जब रूस ने क्रिमिया और पर हमला किया. तो रूस ने इसी घटना का ज़िक्र करते हुए कहा था कि व्लादिमीर को इसी पुण्य भूमि पर बैप्टाइज़ किया गया. ये इस बात का सबूत है कि क्रीमिया रूस का अभिन्न अंग है.
ईसाई धर्म अपनाने के बाद व्लादिमीर ने पूरे साम्राज्य में धर्म को फैलाया. और पेग़न धर्म के सारे सिम्बल और स्मारकों को तुड़वा डाला. ईसाई धर्म के ध्वज तले व्लादिमीर ने पूरे 'क्यीवन रूस' को एक कर मज़बूत राष्ट्र का गठन किया. बाद में जब ईसाई धर्म पूरे उत्तरी यूरोप में फैला तो व्लादिमीर को इसका बड़ा श्रेय मिला.
मॉडर्न रूस में व्लादिमीर एक नायक की तरह स्थापित हुए. और पुतिन ने बेलारूस सहित यूक्रेन के मसले पे उन्हें एक यूनाइटिंग सिम्बल के तौर पे पेश किया. उन्हीं के साम्राज्य को अखंड रूस का नाम देकर पुतिन यूक्रेन को रूस का हिस्सा बताते हैं. एपिलॉग पुराने सिंबल्स को ज़िंदा करना आधुनिक विस्तारवादी नेताओं के सिलेबस का इसेंशियल हिस्सा है. फिर चाहे 1938 में हिटलर की ‘थाउज़ेंड ईयर थर्ड राइक’ की अवधारणा हो. वर्तमान में चीन के राष्ट्रपति शी जिंगपिंग की ताइवान को लेकर महत्वाकांक्षा हो. या व्लादिमीर पुतिन की एक रूस अखंड रूस वाली भाषा हो.
हालांकि एक सच ये भी है कि जिस अखंड रूस की बात पुतिन करते हैं. वो कभी था और कभी नहीं भी था. उसका कोई सार्व भौमिक अस्तित्व नहीं रहा. साल 1015 में जब व्लादिमीर द ग्रेट की मृत्यु हुई तो उसके उत्तराधिकारियों में सत्ता हो लेकर खींचा तानी होने लगी. इसके बाद क्यीव का साम्राज्य निरंतर कमजोर होता गया. 13 सदी ने मोंगोलो ने ''क्यीवन रूस'' पर हमला किया. और उसके सभी बड़े शहरों को नष्ट कर दिया. जिसके बाद 'क्यीवन रूस' साम्राज्य का अंत हो गया.
विडम्बना ये है कि विस्तारवादियों के लिए गाड़ी पहले लगती है और घोड़ा बाद में. ध्येय पहले आता है, तर्क बाद में. इसलिए मूर्तियां बनाई जाती है और ज़िंदा लोग मारे जाते हैं. इसीलिए फाकिर कहते हैं,
पत्थर के ख़ुदा, पत्थर के सनमपत्थर के ही इंसा पाए हैं
तुम शहर-ए-मुहब्बत कहते होहम जान बचाकर आए हैं

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