The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • Lallankhas
  • Tarikh How an American Smuggler escaped from Tihar and dropped chocolates

जब तिहाड़ जेल के ऊपर हुई चॉकलेट की बारिश!

डेनियल हेली वैलकॉट जूनियर, 60 के दशक में भारत का मोस्ट वांटेड स्मगलर था.

Advertisement
Tihar and Apache
1964 में तिहाड़ से भागा एक कैदी प्लेन चुराकर पाकिस्तान भागा और जेल के ऊपर चॉकलेट गिराकर गया (तस्वीर: Brave Heart/Creative Common License)
pic
कमल
2 अगस्त 2022 (Updated: 2 अगस्त 2022, 06:12 PM IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

20 सितम्बर, 1962. दिल्ली के अशोका होटल में एक आदमी ठहरा हुआ था. एक अमेरिकी बिजनेसमैन. जिसका दिल्ली में काफी रसूख था. देर रात दरवाजे पर एक दस्तक होती है. बाहर पुलिस थी. तलाशी में कमरे से बन्दूक के 766 कारतूस मिले. पुलिस ने तुरंत हिरासत में ले लिया. इसके बाद पुलिस पहुंची सफदरजंग एयरपोर्ट. वहां पाइपर अपाचे खड़ा था. एक ट्विन इंजन- चार सीटर प्लेन. जिसे पर्सनल नीड के लिए काम में लाया जाता था. इसमें पुलिस को 40 बक्से मिले. हर बक्से में 250 कारतूस. स्मगलिंग और आर्म्स एक्ट का केस था. आदमी सीधे तिहाड़ पहुंचा दिया गया.

अब इसके ठीक एक साल बाद का घटनाक्रम देखिए. 23 सितम्बर,1963 की बात है. तिहाड़ जेल के ऊपर वही पाइपर अपाचे मंडरा रहा था. जिसमें कारतूस के बक्से मिले थे. और हो रही थी बारिश. पानी की नहीं. बल्कि चॉकलेट और सिगरटों की. ये कहानी है एक अमेरिकन स्मगलर की. तिहाड़ के इतिहास में जेल से भागने वाला पहला शख्स. जो दो बार भारतीय अधिकारियों के हत्थे चढ़ा और दोनों बार फरार हो गया. इतना ही नहीं एक भारतीय कंपनी को 60 हजार का चूना भी लगा गया. कंपनी का नाम, टाटा ग्रुप.

आज 2 अगस्त है और आज की तारीख का संबंध है डेनियल हेली वैलकॉट जूनियर से. 

कौन था डेनियल हेली वैलकॉट जूनियर?

डेनियल हेली वैलकॉट के बारे में सिर्फ कुछ बातें ही पक्के से कही जा सकती जा सकती है. पहली है उसके जन्म की तारीख. नवम्बर 26, 1927 को वैलकॉट की पैदाइश हुई थी. अमेरिका के टेक्सॉस राज्य में. इसके आगे की कहानी वैलकॉट के हिसाब से बदलती रहती थी. कभी वो एक जज का बेटा हो जाता था तो कभी ऑलिवर वैलकॉट का वंशज. अमेरिका जब ब्रिटेन से आजाद हुआ तो13 कॉलोनियों ने एक दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए. इस दस्तावेज़ का नाम है US डिक्लेरेशन ऑफ़ इंडिपेंडेंस. ऑलिवर वैलकॉट इस दस्तावेज़ पर साइन करने वालों में से एक थे. 

दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान वैलकॉट अमेरिकन नेवी का हिस्सा रहा. जंग खत्म होने के बाद वो सैन फ्रांसिस्को पहुंचा. लम्बी हाइट, नीली आंखों वाला वैलकॉट दिखने में काफी आकर्षक था. सैन फ्रांसिस्को में उसने एक अमीर लड़की से शादी की. साथ ही एक कंपनी भी शुरू की. माल ढोने वाली इस कंपनी का नाम था, ट्रांस अटलांटिक एयरलाइंस. लेकिन वैलकॉट ने इस कंपनी के जरिए रिफ्यूजियों को सीमा पार कराना शुरू कर दिया. और धीरे-धीरे जानवरों के स्मगलिंग शुरू कर दी. अब देखिए भारत से उसका कनेक्शन कैसे बना?

Piper Apache
पाइपर अपाचे (सांकेतिक तस्वीर: Fly-by-Owen/ Wikimedia Commons)

1962 में ट्रांस अटलांटिक एयरवेज को एयर इंडिया से एक कॉन्ट्रैक्ट मिला. इस कॉन्ट्रैक्ट के तहत वैलकॉट के प्लेन रेलवे का कार्गो ढोने में लग गए. सामान भारत और अफ़ग़ानिस्तान के बीच ट्रांसफर होता था. इसी के चलते वैलकॉट ने भारत को कुछ समय के लिए अपना घर बना लिया. यहां वो प्रतिष्ठित कारोबारी था. महंगे होटलों में रहना, ऊंचे लोगों में उठना बैठना. भारत में वो जहां भी जाता अपने पाइपर अपाचे प्लेन से ट्रेवल करता था. 

सब सही चल रहा था. फिर सितम्बर महीने में भारतीय इंटेलिजेंस को एक खबर मिली. अलग-अलग रियासतों में जो नाम के राजा थे, उनका प्रिवी पर्स बंधा था. इंटेलिजेंस को पता चला कि उन तक हथियार पहुंच रहे हैं. और वो भी विदेश से स्मगलिंग के जरिए. इसी मामले में सितम्बर, 1962 में पुलिस ने छापा मारा और उन्हें डेनियल हेली वैलकॉट के पास कारतूस मिले. मुकदमा चला. और वैलकॉट को तिहाड़ भेज दिया गया. उसके प्लेन भी जब्त कर लिए गए.

तिहाड़ में हुई चॉकलेट की बारिश 

अपने रसूख के चलते एक महीने के अंदर वैलकॉट को जमानत मिल गयी. जमानत मिलते ही वैलकॉट ने वाघा बॉर्डर के रास्ते पाकिस्तान भागने की कोशिश की. दिल्ली वापिस लाकर वैलकॉट पर दोबारा मुक़दमा चलाया गया. साल 1962, भारत चीन युद्ध की शुरुआत हो चुकी थी. वैलकॉट ने सोचा फायदा उठाना चाहिए. उसने मजिस्ट्रेट से कहा कि अगर उसे कुछ रियायत मिले तो वो अपने प्लेन जंग में इस्तेमाल के लिए दे देगा. वैलकॉट को इसका फायदा भी मिला. आर्म्स एक्ट में उसकी सजा, जेल में काटे दिनों के बराबर कर दी गई. लेकिन उसके लिए मुसीबत अभी भी ख़त्म नहीं हुई थी. टाटा कंपनी का उस पर 60 हजार का बकाया था. इसके चलते कभी जेल कभी बेल वाला हिसाब रहा. वैलकॉट टाटा का बकाया चुकाने में देर कर रहा था. इसलिए अधिकारी उसके खिलाफ नॉन बेलेबल वारंट लेने की कोशिश में थे. वैलकॉट को इस बात की खबर थी. इसलिए उसने एक नया प्लान बनाया. 

वैलकॉट का पाइपर अपाचे प्लेन सफदरजंग एयरपोर्ट पे खड़ा था. उसने अधिकारियों से कहा कि प्लेन को रोज़ स्टार्ट करना पड़ता है. वरना वो ख़राब हो जाएगा. इसलिए वैलकॉट को रोज़ प्लेन तक जाने की इजाजत मिल गयी. हर सुबह जाकर वो एक बार प्लेन को स्टार्ट करके देखता. 23 सितम्बर 1963 की सुबह वैलकॉट रोज़ की तरह प्लेन तक पहुंचा. कांस्टेबल नजर रखे हुए थे. वैलकॉट ने प्लेन स्टार्ट किया और रनवे पे दौड़ा दिया. कॉन्स्टेबल पीछे भागे, प्लेन फुर्र चुका था. 

Tihar
तिहाड़ जेल (सांकेतिक तस्वीर: इंडिया टुडे) 

पिछली बार वैलकॉट पाकिस्तान की ओर भागा था. लेकिन इस बार प्लेन सफदरजंग से तिहाड़ की ओर उड़ा. तिहाड़ के ऊपर प्लेन ने दो तीन चक्कर लगाए. आखिर में हुई बारिश. वैलकॉट ने तिहाड़ जेल पर चॉकलेट और सिगरटें गिराई. सजा के दौरान यहां उसने कई दोस्त बनाए थे. इस बीच एयरफोर्स के दो हंटर हॉकर जेट वैलकॉट का पीछा करने के लिए उड़े. लेकिन तब तक वैलकॉट सीमा पार कर पाकिस्तान की एयर स्पेस में घुस गया. पाकिस्तान से ही उसने एक प्रेस कांफ्रेंस की. उसने कहा, ‘मैंने सिर्फ एक जुर्म किया है - भारत की लालफीताशाही को दफा करने का”.

पाकिस्तान से भारत आया प्लेन  

इसके बाद भी वैलकॉट ने भारत में स्मगलिंग का काम जारी रखा. वो सोने की स्मगलिंग में उतरा. तिहाड़ में रहते हुए वैलकॉट की मुलाकात जीन क्लॉड डोंज से हुई थी. जीन क्लॉड एक फ्रेंच गोल्ड स्मगलर था. तिहाड़ में रहते हुए दोनों ने गोल्ड स्मगल करने का प्लान बनाया. ये वो दौर था जब भारत में स्मगलिंग आम थी. पश्चिमी सीमा में काफी गैप थे. जहां से सोना, विलायती घड़ियां, दारू, और सिगरेट देश में स्मगल होती थी. एक आंकड़े के अनुसार तब भारत में हर साल 400 करोड़ का सोना स्मगल करके लाया जाता था. 

वैलकॉट और डोंज ने मिलकर फ़र्ज़ी कम्पनियों के नाम से इश्तिहार दिए. और झूठ बोलकर अपने लिए पायलट हायर किए. इन्हीं के जरिए स्मगलिंग का काम किया जाता था. साल 1964 में ऐसा ही एक प्लेन कराची से टेक ऑफ किया. जिसमें 675 स्विस मेड घड़ियां समग्लिंग के लिए रखी हुई थीं. तारीख थी जून 8, सुबह के चार बजे थे. प्लेन को ईरान जाना था. लेकिन पाकिस्तानी एयरस्पेस से अफ़ग़ान सीमा में पहुंचते ही पायलट ने प्लेन को भारत की तरफ मोड़ा. 

पायलट का नाम था कैप्टन मैक्लिस्टर, और को-पायलट था कैप्टन पीटर जॉन फिल्बी. रडार सर्विलेंस से बचने के लिए ये लोग नीचा उड़ रहे थे. दक्षिण की ओर उड़ते हुए ये बॉम्बे तट तक पहुंचे. यहां शहर से 80 किलोमीटर दो लोग को सिग्नल देने की जिम्मेदारी दी गई थी. सिग्नल के लिए लाल हरी साड़ियों का इस्तेमाल होना था. लेकिन जब कैप्टन मैक्लिस्टर ने नीचे देखा तो वहां कोई नहीं था. 

Gold
60 में दशक में भारत में हर साल 400 करोड़ का सोना स्मगल होता था (सांकेतिक तस्वीर: Getty)

कुछ देर आसमान में रहने के बाद फ्यूल ख़त्म होने लगा. मजबूरी में प्लेन को मुरुड बीच पर उतरना पड़ा. प्लेन नाक के बल जमीन से टकराया और प्रोपेलर पिचक गए. डर था कि प्लेन आग पकड़ सकता है. इसलिए पायलट और को-पायलट जान बचने के लिए प्लेन से उतरे. तब तक लोगों का जमावड़ा लग चुका था. उन्होंने मैक्लिस्टर और जॉन फिल्बी को दापोली पुलिस थाने तक पहुंचा दिया. 

डेनियल हेली वैलकॉट जूनियर CIA का आदमी था? 

थाने से दो पुलिस अफसर उनके साथ वापिस प्लेन तक आए. दोनों ने बताया कि वो शौकिया उड़ान भरने के लिए अमृतसर से उड़े थे. लेकिन फ्यूल ख़त्म हुआ तो इमरजेंसी लैंडिंग करनी पड़ी. दोनों ने यही कहानी डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के सामने दोहराई. इसके बाद दोनों ने कहा कि जब तक प्लेन की मरम्मत न हो जाए, उसकी निगरानी में लोग लगाएं जाएं. इसके बाद नजर बचाकर दोनों ने प्लेन से स्विस घड़ियों को अपने बैग्स में भरा और चम्पत हो गए. दोनों ने एक बस पकड़ी और बॉम्बे पहुंच गए.

यहां दोनों सैंटा क्रूज़ एयरपोर्ट पहुंचे. दोनों फ़र्ज़ी पासपोर्ट के जरिए पाकिस्तान की एक फ्लाइट में चढ़े. और वापिस कराची चले गए. कराची से दोनों ने लन्दन का रुख किया. लन्दन के रस्ते में मैक्लिस्टर का ईमान जाग गया. उसने जॉन फिल्बी से पीछा छुड़ाया और स्विस एम्बेसी पहुंच गया. उसने इंटरपोल से कांटेक्ट किया. और अपने अपने पार्टनर के सारे काले कारनामों का कच्चा चिट्ठा खोल दिया.

इधर भारत में मुरुड प्लेन हादसा एक बड़ा मुद्दा बन चुका था. डपो विदेशी लोग कैसे भारत की सीमा में घुसे और फिर कहां गायब हो गए, बड़ा सवाल था. मुद्दा देश की संसद में उठा. जब खबर मिली कि मैक्लिस्टर को लन्दन में पकड़ा गया है तो पुलिस अधिकारियों को पूछताछ के लिए भेजा गया. लन्दन जाकर पता चला कि जिसे ये लोग जॉन फिल्बी समझ रहे थे, वो असल में डेनियल हेली वैलकॉट जूनियर था, इंडिया का मोस्ट वांटेड स्मगलर. इसके अगले दो साल तक वैलकॉट हीरे की स्मग्लिंग में लगा रहा. और इसी चक्कर में साल 1966 में वो पुलिस के हत्थे चढ़ गया. इस बार वो श्रीलंका से हीरे स्मगलकर फ़र्ज़ी पासपोर्ट के जरिए देश में घुसा था. इस बार केस चला तो उसे 7 साल की सजा हुई. 

2 अगस्त 1967 यानी आज ही के दिन उसने मद्रास कोर्ट में अपनी सजा कम करवाने के लिए अपील दायर की. यहां भी उसे राहत नहीं मिली. वैलकॉट ने अगले सात साल जेल में गुजारे. बाद के दिनों में वो अपने दोस्तों को बताता था कि वो CIA का एजेंट है और उन्ही के लिए भारत में काम कर रहा था. CIA ने कभी इस बात को नहीं माना. साल 2000 में उसकी गोली मारकर हत्या कर दी गई. तब भी वो ड्रग्स के कारोबार में लगा हुआ था.

इस स्टोरी को लिखने में हमारे साथ इंटर्न कर रहे अनूप प्रजापति ने मदद की है.   

तारीख: 120 घंटे की भूख से उपजा था इंफोसिस का आइडिया!

Advertisement