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हादिया के 'लव जिहाद' केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला निराश करने वाला है

किस तरह एक युवा, वयस्क लड़की को देश के लोग और सिस्टम दिन-ब-दिन तोड़ रहे है.

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हादिया का बार-बार कहना है, 'मुझे मेरी स्वतंत्रता चाहिए. मैं अपने पति के साथ रहना चाहती हूं.'
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रुचिका
28 नवंबर 2017 (Updated: 28 नवंबर 2017, 10:21 AM IST) कॉमेंट्स
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हादिया बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले को दो नज़रिये से देखा जा सकता है. राष्ट्रीय जांच एजेंसी(NIA) और हादिया के पिता अशोकन केएम के नज़रिये से ये कथित 'लव जिहाद' का मामला है. दूसरे नज़रिये से देखा जाए तो ये एक महिला की स्वतंत्रता के अधिकार की लड़ाई है- जहां वो सामाज की बदनामी के परे, प्यार को चुनना चाहती है, एक धर्म को गले लगाना चाहती है और अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनना चाहती है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अधूरा फ़ैसला सुनाया है.
सुप्रीम कोर्ट ने हादिया को उसकी होम्योपैथी की पढ़ाई फिर से शुरू करने की 'अनुमति' दी है. इससे उसने पिता के इस तर्क को खारिज कर दिया है कि हादिया मानसिक रूप से अस्थिर है. ऐसा होने से हादिया अपने कॉलेज डीन की 'गार्डियनशिप' में आ गई है. एक एडल्ट होकर उसे वो स्वंतत्रता नहीं दी जा रही, जो भारतीय संविधान के मुताबिक हर नागरिक का मौलिक अधिकार है.
27 नवंबर को सर्वोच्च न्यायालय ने फ़ैसला सुनाया कि हादिया अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए फिर से तमिलनाडु में सेलम शहर के होम्योपैथी कॉलेज जाएगी. लेकिन उसकी मदद की गुहार और स्वतंत्रता की दलीलों पर खास ध्यान नहीं दिया. हादिया का बार-बार कहना है, 'मुझे मेरी स्वतंत्रता चाहिए. मैं अपने पति के साथ रहना चाहती हूं.'
अखिला/ हादिया
इस्लाम अपनाने से पहले हादिया का नाम अखिला था.

हादिया की शादी शफ़ीन जहान से हुई थी. इस शादी को केरल उच्च न्यायालय ने मई 2017 में 'रद्द' कर दिया था. हादिया की दिल से इच्छा है कि वो फिर से अपने पति के साथ हो जाए. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसकी इस ख्वाहिश पर अगले साल जनवरी तक ताला लगा दिया है. तब बेंच इस तरफ़ की कहानी सुनने के लिए फिर से बैठेगी.
हादिया का कहना है, 'मैं अपने पति से मिलना चाहती हूं. मैं अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहती हूं और अपनी ज़िंदगी एक अच्छे नागरिक की तरह अपने मुताबिक जीना चाहती हूं. मैं पिछले 11 महीने से गैरकानूनी हिरासत में थी.'
जब से केरल उच्च न्यायालय ने शफ़ीन जहान और हादिया की शादी को रद्द किया है, तब से हादिया को घर में नज़रबंद हुए 6 महीने से ऊपर हो चुके थे. अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्र की सुरक्षा और हादिया के पिता की चिंता को देखते हुए, NIA को जांच के आदेश दिए थे.
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हादिया अपने पति शफ़ीन के साथ.

भारतीय न्यायपालिका का इस पर सुनवाई करना, 'लव जिहाद' जैसी चीज़ को वैध करार देना है. जिसका कोई मतलब नही बनता. ऐसा करना किसी का उसकी पसंद से धर्म चुनने का अधिकार छीनना है.
ऊपर से NIA और हादिया के पिता के लिए हादिया का इस्लाम अपनाना सबसे बड़ा विवाद है. जैसे कि एक महिला अपनी पसंद से धर्म तभी चुनेगी और इस्लाम तभी अपनाएगी जब वो दिमाग से पैदल होगी, न की तब जब वो पूरे होशो-हवास में होगी.
अदालत में हादिया की सुनवाई खाली तभी हुई जब उसके वकील कपिल सिब्बल ने आग्रह किया. उन्होंने दुख व्यक्त किया कि कुछ कट्टर देशभक्त टीवी चैनलों की गुस्साई रिपोर्टिंग ने इसे लव जिहाद की कहानी बना दिया. जिससे एक एडल्ट महिला का अपने फ़ैसले खुद लेना का अधिकार छीना गया.
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हादिया ने शफ़ीन जहान से शादी करने के लिए अपना धर्म बदला और इस्लाम अपनाया था.

हादिया ये बात बार-बार कहती आ रही है कि उसने इस्लाम अपनी मर्ज़ी से कबूला है और इसके लिए किसी ने उसे फ़ोर्स नहीं किया. हांलाकि NIA और उसके पिता इस बात पर अड़े हुए हैं कि हादिया का ब्रेनवॉश किया गया है और इसलिए वो सही फ़ैसले नहीं ले पा रही है.
हांलाकि हादिया को उसकी पढ़ाई चालू रखने का आदेश देकर सुप्रीम कोर्ट ने कम से कम याचिकाकर्ताओं के दावे का एक हिस्सा तो खारिज कर दिया है.
हांलाकि इस बात पर भी सवाल खड़े किए जाने चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट ने एक महिला का अपना जीवनसाथी खुद चुनने का अधिकार उससे छीना है. जबकि भारतीय कानून के अंदर स्पेशल मैरिज एक्ट, दो अलग-अलग धर्म के लोगों को शादी करने की अनुमति देता है. यहां पर ये एक्ट किसी काम नहीं आएगा क्योंकि हादिया ने शफ़ीन जहान से शादी करने के लिए अपना धर्म बदला और इस्लाम अपनाया था.
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हादिया और शफ़ीन की शादी 19 दिसंबर, 2016 को हुई थी.

30 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने ये मामला हादिया को एक एडल्ट के नज़रिये से देखते हुए अपने हाथ में लिया. जबकि NIA और आर्मी से रिटायर्ड अशोकन केएम को कथित तौर पर ये ऐसा मामला लग रहा था, जिसमें महिलाओं को बहला-फुसलाकर इस्लामिक देश भेजा जाता है.
इस पूरे मामले को देखें तो 24 साल की अखिला अगर इस्लाम अपनाकर हादिया बनी, तो भी उसने आर्टिकल 25-28 का ही पालन किया है, जिसमें उसे अपनी मर्ज़ी से अपना धर्म चुनने का अधिकार है.
सुप्रीम कोर्ट ने उसे अपने पिता की गार्डियनशिप से निकालकर राज्य की गार्डियनशिप में डाल दिया है. ये उन सारी महिलाओं की दलीलों पर क्या असर डालेगा जो पितृसत्ता, धार्मिक कट्टरपंथियों और राष्ट्रीय सुरक्षा व्यवस्था से लड़ रही हैं, अपने प्यार के पास वापस जाने के लिए?
सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले ने हादिया को आधी जीत दिलाई है. उसे आधी स्वतंत्रता मिली है. क्योंकि वो एक सेक्यूलर लोकतांत्रिक देश की नागरिक होकर जिस मौलिक स्वतंत्रता की मांग कर रही थी, वो उसे अब तक नहीं मिली है.

ये आर्टिकल 'DailyO' का है. इसे रुचिका ने 'दी लल्लनटॉप' के लिए हिंदी में ट्रांसलेट किया है.




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