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खुदीराम बोस नाम है हमारा, बता दीजियेगा सबको!

ब्रिटिश राज के खिलाफ हिंदुस्तान के खड़े होने की कहानी.

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ऋषभ
11 अगस्त 2016 (Updated: 14 अगस्त 2020, 04:12 AM IST) कॉमेंट्स
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स्वतंत्रता दिवस के मौके पर पढ़िए कि कैसे कांग्रेस की मजबूरी ने थमा दी नौजवानों के हाथ में बंदूकें.
कांग्रेस के बनने के बाद पढ़े-लिखे लोग थोड़ी फुर्ती में आये. जनता में जाने की बात करने लगे. नहीं तो, 1857 के आस-पास 'पढ़ने-लिखने' वाले लोगों को एकदम झंडू समझा जाता था. बड़े-बूढ़े कहते कि ये लौंडे अंग्रेजों के चक्कर में आ के अपनी सभ्यता का नाश कर रहे हैं. लड़कियों को बिगाड़ रहे हैं. ऐसे में ब्रिटिश राज की बनाई संसदीय व्यवस्था लोग कैसे समझ पाते? हमेशा राजाओं के अंगूठे के नीचे रहने वाले अब कोर्ट, केस-मुकदमा, कानून कैसे समझते? जो समझ गए थे, उन्होंने खूब पैसा पीटा. छोटे किसानों की जमीनें हड़पकर 'जमींदार' बन गए. अब मामला बड़ा दिलचस्प हो गया था.
राजा लोग तो अब अंग्रेजों से हाथ मिला लिए थे. कोई चारा नहीं था. जनता के लिए अब अंग्रेज नया शिगूफा छोड़े. कि जनतंत्र ला रहे हैं. जनता के चुने प्रतिनिधि ब्रिटिश शासकों के साथ बैठेंगे. इसकी आड़ में ड्रामा होने लगा. राजा लोग को अंग्रेज चुन लेते थे. जनता को कुछ समझ नहीं आता. फिर भी कानून पढ़े हुए लोग जैसे फिरोजशाह मेहता और गोपालकृष्ण गोखले सरकार के साथ उठ-बैठ करने लगे. आइये कुछ दिलचस्प वाकयों से जानते हैं कि उस दौरान क्या-क्या हो रहा था:

1. राजा हाथ उठाते, बम्बई का शेर फिरोजशाह मेहता अंग्रेजों की वाट लगा देता

फिरोजशाह मेहता
फिरोजशाह मेहता

जब भी कोई वोटिंग होती तो सारा डिस्कशन अंग्रेजी में होता. राजा लोग अंग्रेज साहब को देखते रहते. जैसे ही उनका हाथ उठता, ये लोग भी अपना हाथ उठा देते. कुछ बुझाता नहीं था. पर फिरोजशाह मेहता को अंग्रेजी आती थी, और इतनी कि अंग्रेज भी शर्मा जाते थे. एक बार अंग्रेज एक बिल लेकर आये. इसमें था कि किसान इसलिए गरीब नहीं हैं कि सरकार कुछ नहीं कर रही है. बल्कि शादी-विवाह और त्योहार पर इतना खर्चा करते हैं कि गरीब हो जाते हैं. अब फिरोजशाह मेहता भड़क गए. निखालिस अंग्रेजी में धर के दिया: जिनको दो जून का खाना नहीं मिलता. जो भरपेट खाना क्या होता है, जानते ही नहीं. वो साल भर में एक बार खुशियां ही मना लेते हैं तो आपको दिक्कत हो रही है? गोपालकृष्ण गोखले ने अंग्रेजों के बजट को पढ़कर उसकी धज्जियां उड़ा दीं. उसमें साफ़ पता चल रहा था कि अंग्रेज सारा खर्चा अपने ऊपर कर रहे हैं. जनता के ऊपर धेला. ये कहना छोटी बात नहीं थी. अंग्रेजों के सामने बैठकर उनकी बातों की धज्जियां उड़ाना. गोखले को ही महात्मा गांधी ने अपना 'राजनीतिक गुरु' माना था.
गोपालकृष्ण गोखले
गोपालकृष्ण गोखले

2. पर नौजवानों को अपना हक़ छीन के लेना था, मांग के नहीं

पर जनता के लिए ये काफी नहीं था. 1890 के बाद एक नयी जमात पैदा हुयी थी. इन्होंने अंग्रेजों का खून-खराबा नहीं देखा था. पर अपने बड़े-बूढ़ों को अंग्रेजों से मनुहार करते जरूर देखा था. इसके साथ ही इन लोगों ने इटली और फ्रांस की क्रांति के बारे में भी पढ़ा था. इनको ये बातचीत का तरीका पसंद नहीं आया. इनका वही था. हक़ की लड़ाई है, हक़ से जीतेंगे. इनको क्रन्तिकारी कहते थे.
1904 में विनायक सावरकर ने 'अभिनव भारत' के नाम से संस्था बनाई. क्रांतिकारियों के लिए. अप्रैल 1908 में 20 साल के प्रफुल्ल चाकी और 18 के खुदीराम बोस ने मुजफ्फरपुर के जज किंग्सफोर्ड पर बम फेंक दिया. जज बच गया. प्रफुल्ल ने घबराहट में खुद को गोली मार ली. खुदीराम बोस को फांसी हुई. 11 अगस्त 1908 को.
रस्सी में बंधे इस छोकरे की तस्वीर ने हर हिन्दुस्तानी से कह दिया:

खुदीराम बोस नाम है हमारा. बता दीजियेगा सबको.


भारत का सबसे कम उम्र का क्रांतिकारी: खुदीराम बोस
भारत का सबसे कम उम्र का क्रांतिकारी: खुदीराम बोस

3. बंगाल का बंटवारा हुआ, दर्द पूरे देश को हुआ

इसी वक़्त बंगाल इन सारी गतिविधियों का केंद्र बन गया था. वहां पर अंग्रेजों ने अपना मुख्यालय बनाया था. तो वो कला, साहित्य और विज्ञान का मक्का बन गया था. सारे लोग वहीं पढ़ने जाते थे. धीरे-धीरे अंग्रेजों का नशा फटने लगा. डर गए कि ये हाल रहा तो इंडिया को छोड़ना पड़ेगा. तुरंत कर्जन ने निर्णय लिया कि बंगाल को बाँट देते हैं. पूर्वी बंगाल और पश्चिमी बंगाल में. इसके लिए पूर्वी बंगाल में रह रहे मुसलमानों को भड़काने का काम होने लगा. वहीं पश्चिम बंगाल में रह रहे लोगों को हिंदी, बंगाली और उड़िया भाषा के नाम पर बरगलाया जाने लगा.
पर बंगाल को बांटने पर अपने देसी नेता भड़क गए. बवाल हो गया. ऐलान हुआ कि अब से ब्रिटिश सामान खरीदना बंद. सब कुछ हिंदुस्तान में बनेगा. अंग्रेज सारा कच्चा माल यहां से ब्रिटेन ले जाते और वहां की फैक्ट्री में बनाकर यहीं बेचते. तुरंत कॉलेज खोले गए. प्रफुल्ल चन्द्र रे ने तो केमिकल इंडस्ट्री ही लगा दी. टैगोर का शान्तिनिकेतन था ही. विदेशी कपड़ों में खुलेआम आग लगायी जाने लगी. इसको 1905 का स्वदेशी आन्दोलन कहा गया. 1857 के बाद पहली बार हर क्लास की जनता अंग्रेजों के खिलाफ सड़क पर उतरी थी.
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कांग्रेस में भी दो दल हो गए. एक जो पहले की तरह अंग्रेजों से प्रेम से बात करने में यकीन रखता था और दूसरा जो अपना हक़ छीन लेने की बेताबी में था. 1907 में कांग्रेस इन्हीं दो दलों में टूट गयी. अंग्रेजबड़े खुश हुए. कि अपना काम हो गया. पर पिछले तीस साल से लड़ रहे बाल गंगाधर तिलक सदमे में आ गए. आपस की ये जंग उनकी कल्पना से बाहर की चीज थी. पर उनके चेलों ने अपने-अपने तरीके से लड़ाई लड़नी शुरू कर दी थी.

4. शहादत रंग लाई, आंखों में पानी भर जनता ने कहा - जिंदाबाद

मदनलाल धींगरा ने लन्दन जाकर कर्ज़न वाइली को गोली मार दी. पूरे बंगाल, पंजाब, यूपी, महाराष्ट्र वाले इलाके में क्रांतिकारियों का गुट बन गया. पर हथियार थे नहीं हाथ में. प्लान हुआ कि जितना है उसी से काम चलाएंगे. मारेंगे जरूर. पकड़े जायेंगे तो फांसी को दिल से लगा लेंगे. जब जनता में ये बात फैलेगी तो उनमें रोष जागेगा. हमें अपने मरने की फिक्र नहीं है. उस रोष की जरूरत है देश को.
मदन लाल धींगरा
मदन लाल धींगरा

पर इन लड़कों को गाइड करने वाला कोई नहीं था. सब अपने मन और समझ से चलते थे. यहां ये जरूर कहना होगा कि उस वक़्त के बड़े नेताओं ने अपनी जिम्मेदारी नहीं समझी. दिल से सब उन लड़कों की बड़ाई करते थे. पर बाहर कोई नहीं बोलता उनके पक्ष में. अंग्रेजों ने बड़ा ही खतरनाक तरीका अख्तियार किया. इनको सीधा डाकू की तरह ट्रीट करने लगे. 1906-08 के 2 साल में 200 लड़कों को मार दिया गया. एक पूरी जांबाज पीढ़ी साफ़ हो गयी. पर ये लड़के अपना काम कर गए थे. देश हमेशा उनका शुक्रगुजार रहेगा. जनता एकदम से बौखला गयी. जो जहां था, वहीं से जिंदाबाद के नारे लगाता.

5. ग़दर तो हो ही रहा था, अपनों ने धोखा दे दिया

क्रांतिकारियों की गतिविधियां एकदम कम हो गयीं. अंग्रेजों ने एकदम डर का माहौल बना दिया. बाकी नेता अपना वही काम करते रहे. बातचीत. पर वो भी अब ढंग से नहीं हो पाती. अंग्रेज एकदम सुनते ही नहीं. पर ये आग सुलग रही थी. ठंडी नहीं हुई थी. देश के बाहर बहुत सारे लोग गए थे काम करने. सबसे ज्यादा पंजाबी लोग कनाडा में थे. वहां जब अमेरिका के संपर्क में आये तो आज़ादी का मतलब समझ में आया. वहां हाथ में पैसा था ही. प्लान बनने लगा कि अब जंग कर के ही हिंदुस्तान आज़ाद कराया जायेगा. इसको 'ग़दर' कहा गया.
लाला हरदयाल, करतार सिंह सराभा जैसे नेता इसमें एकदम आग झोंक दिए थे. इनको पूरा अंदाज़ा था कि हिंदुस्तान में एकदम सही माहौल होगा. कनाडा के अपने भाइयों का जोश देखकर महीने भर के अन्दर अंग्रेजों को भगा दिया जायेगा. 1914 में पहला विश्व युद्ध शुरू हो गया था. अंग्रेजों ने हिन्दुस्तानियों का सपोर्ट लिया. ये कह के कि लड़ाई के बाद आपके बारे में सोचेंगे. ग़दर वालों को ये मौका मुफीद लगा. पर उनको ये नहीं पता था कि देश अभी टूटा हुआ है. इनसे अभी नहीं हो पायेगा. जब तक ग़दर वाले इंडिया आ के क्रांति शुरू करते, उनके प्लान के बारे में अंग्रेजों को बता दिया गया. ग़दर वाले जब आये तो ब्रिटिश आर्मी तैयार बैठी थी. लगभग सारे क्रांतिकारियों को मार दिया गया. जो बच गए उनको एकदम पहरे में रख दिया गया.
ग़दर के क्रांतिकारी
ग़दर के क्रांतिकारी

विश्व युद्ध ख़त्म हुआ. स्थितियां बदलीं. अंग्रेजों की. वो ज्यादा मजबूत हो गए. हिंदुस्तान हक्का-बक्का था. उसके साथ धोखा हुआ था. अंग्रेजों ने भारत के लिए कुछ भी करने से मना कर दिया. पर तब तक कुछ और होने वाला था. एक हाड़-मांस का बना नंगा फ़कीर देश में घूम रहा था. सबका हाल-चाल ले रहा था. अपने तरकश को तौल रहा था. मोहनदास करमचंद गांधी आ चुके थे.
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ये पढ़ेंगे अगली क़िस्त में.
तब तक पिछली किस्तें पढ़िए:

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