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भारत-पाकिस्तान युद्ध की वजह से इस राजा की सारी प्रॉपर्टी योगी आदित्यनाथ सरकार के पास चली गई!

इस कहानी में बहुत सारी ज़मीन है, बहुत सारा पैसा है, नेता-परेता, राजा, कोर्ट, कचहरी सब है.

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सीतापुर के महमूदाबाद क़िले पर राजा आमिर मोहम्मद ख़ां.
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सिद्धांत मोहन
29 दिसंबर 2020 (Updated: 30 दिसंबर 2020, 01:37 PM IST) कॉमेंट्स
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लखनऊ. यहां से लगभग 55 किलोमीटर की दूरी पर एक जगह है. नाम महमूदाबाद. और ये जगह इन दिनों एक अलग ही कहानी जी रही है. यहां के राज परिवार ने अपनी लगभग 420 करोड़ रुपए की सम्पत्ति यूपी सरकार के हाथ गंवा दी है. जी हां. 27 दिसंबर को एडीएम प्रशासन की कोर्ट ने एक आदेश जारी किया. कोर्ट ने महमूदाबाद के राजा की यूपी के सीतापुर, बाराबंकी और लखीमपुर खीरी में मौजूद 422 हेक्टेयर ज़मीन को सरकार द्वारा सील करने का आदेश दिया. इस पूरी सम्पत्ति की क़ीमत का ब्यौरा हम पहले ही बता चुके हैं. 420 करोड़ रुपए. आदेश तो हो गया, लेकिन इस फ़ैसले और मामले की संवैधानिकता पर सवाल उठाए जा रहे हैं. आरोप लगाए जा रहे हैं कि दूसरे पक्ष को सुने बिना कोर्ट ने आदेश जारी कर दिया.
Screen Shot 2020 12 29 At 7.35.33 Pm राजा आमिर मोहम्मद ख़ां (साभार : Instagram/ Mahmudabad)

ये केस तो चल रहा था साल 2007 से. लेकिन पूरी कहानी जानने के लिए कुछ दशक पीछे चलना पड़ेगा. थोड़ा इतिहास जानना होगा. थोड़ी कहानी समझनी होगी. और एक नाम याद करना होगा. मोहम्मद आमिर मोहम्मद ख़ां, जिन्हें राजा महमूदाबाद कहकर पुकारा जाता है. 
कहानी कुछ ऐसी है कि साल 1947 में देश का बंटवारा हुआ. पाकिस्तान बना. इस साल महमूदाबाद के तत्कालीन राजा और आमिर मोहम्मद ख़ां के पिता मोहम्मद आमिर अहमद ख़ां इराक़ चले गए. 10 साल बाद यानी 1957 में वो पाकिस्तान आ गए. पाकिस्तान के नागरिक बन गए. लेकिन उनके बेटे आमिर मोहम्मद ख़ां पाकिस्तान नहीं गए. हिंदुस्तान में ही रहे. भारतीय नागरिक ही बने रहे. 
महमूदाबाद का क़िला महमूदाबाद का क़िला (साभार : Instagram/ Mahmudabad)

फिर साल आया 1965. भारत और पाकिस्तान में युद्ध हुआ. और इसके तीन साल पहले 62 में चीन के साथ हुए युद्ध में एक टर्म आया. शत्रु सम्पत्ति. मतलब भारत की सीमा में मौजूद वो सम्पत्ति, जो देश के दुश्मनों की है. 65 के पाकिस्तान वार के बाद भारत सरकार ने नज़र बनायी पाकिस्तान में मौजूद लोगों की उस सम्पत्ति पर, जो भारत में रह गयी. केंद्र सरकार ने कहा कि शत्रु सम्पत्ति पर देश की सरकार का क़ब्ज़ा होगा. और महमूदाबाद के राज परिवार की संपत्ति भी इसमें आ गयी. महमूदाबाद के किले को छोड़कर किसी भी संपत्ति को सील नहीं किया गया. इनसे मिलने वाला किराया कस्टोडियन वसूलने लगा. क़िले के छोटे-से हिस्से में राजा का भी परिवार रहता रहा. 1966 में सुप्रीम कोर्ट का आदेश आया. किले को पूरी तरह खोल दिया गया. कस्टोडियन ने राजा महमूदाबाद के भाई को उसकी देखरेख का जिम्मा सौंप दिया.
मिंट से बातचीत में मौजूदा राजा आमिर मोहम्मद ख़ां बताते हैं,
“जब 1965 में सरकार ने हमारी ज़मीन ले ली थी, उस समय मैं कैम्ब्रिज में था. उस समय सूचना को यहां से वहां पहुंचने में थोड़ा समय लगता था. और जब यहां पर सबकुछ हो गया, उसके एक हफ़्ते बाद मुझे सूचना मिली थी.”
कुछ समय तक पूरी संपत्ति केंद्र सरकार के पास रही. साल आया 1973. तत्कालीन राजा आमिर अहमद ख़ां की मौत हो गयी. एक साल बाद यानी 1974 में उनके बेटे आमिर मोहम्मद ख़ां भारत आए. सामान्य ज्ञान के हिसाब से राजवंश के एकलौते और क़ानूनी वंशज. लेकिन भारत आने पर उन्हें भारतीय नहीं समझा गया. उस समय नए नवेले राजा आमिर मोहम्मद ख़ां तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई से मिले. ख़बरें बताती हैं कि मोरारजी देसाई से आश्वासन मिला कि वो उनका केस देखेंगे. बात नहीं बनी तो आमिर मोहम्मद ख़ां इंदिरा गांधी से भी मिले. केंद्रीय कैबिनेट में मुद्दा उठा. 1980 के आख़िर में आमिर मोहम्मद ख़ां को बताया गया कि उनकी सम्पत्ति उनको वापस की जाएगी, लेकिन मूल सम्पत्ति का महज़ 25 प्रतिशत.
Screen Shot 2020 12 29 At 7.43.59 Pm महमूदाबाद की दुर्लभ लाइब्रेरी (साभार : Mahmudabad.in)

लेकिन अभी भी एक पेच फ़ंसा हुआ था. आमिर मोहम्मद ख़ां को प्रूफ़ देना था कि वो ही क़ानूनी वारिस हैं. बताते हैं कि लखनऊ की ज़िला अदालत ने 1986 में निर्णय दिया और आमिर मोहम्मद ख़ां अपने पिता के क़ानूनी वारिस साबित हो गए.
लेकिन मामला सिर्फ़ 25 प्रतिशत प्रॉपर्टी का नहीं था. आमिर मोहम्मद ख़ां को अपनी पूरी सम्पत्ति को शत्रु सम्पत्ति के लेबल से मुक्त कराना था. इस बीच आमिर मोहम्मद ख़ां दो बार कांग्रेस के टिकट पर उत्तर प्रदेश के सीतापुर की महमूदाबाद सीट से विधायक भी चुने गए. फिर भी सम्पत्ति नहीं पा सके. साल आया 1997. महमूदाबाद के राजा ने बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. कैबिनेट के निर्णय को चुनौती दी. साल 2001 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने राजा आमिर मोहम्मद ख़ां के पक्ष में फ़ैसला दिया. साथ ही केंद्र सरकार को आदेश दिया कि राजा महमूदाबाद की पूरी सम्पत्ति को उन्हें लौटा दिया जाए.
Screen Shot 2020 12 29 At 7.35.52 Pm महमूदाबाद की सम्पत्ति पर सरकार और राज परिवार के बीच बहुत रस्साकशी हुई, और लड़ाई अब भी सुप्रीम कोर्ट में लटकी हुई है.

साल 2002 में केंद्र सरकार ने इस फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. मामले की सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने साल 2005 में बेहद बहसतलब फ़ैसला दिया. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा कि राजा आमिर मोहम्मद ख़ां भारत के नागरिक हैं, और राजा की सारी सम्पत्ति उन्हें सौंप देनी चाहिए. राज परिवार की तरफ़ इस केस को सुप्रीम कोर्ट में लड़ चुके वक़ील नीरज गुप्ता बताते हैं,
“सुप्रीम कोर्ट ने इस समय केंद्र सरकार पर 5 लाख रुपयों का जुर्माना भी लगाया था. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि केंद्र सरकार की कार्रवाई की वजह से भारत के एक नागरिक को कष्ट पहुंचा है.”
नीरज गुप्ता बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा आदेश दिए जाने के बाद केंद्र सरकार ने राज परिवार को कुछ ही ज़मीन लौटाई. कुछ ज़मीन केंद्र सरकार के पास रह गई. इसे लेकर राजा महमूदाबाद ने केंद्र सरकार के खिलाफ़ अवमानना का केस कर दिया. जिसके बाद बची खुची ज़मीन केंद्र सरकार ने राजा महमूदाबाद को लौटा दी.
अब आगे की कहानी पढ़ने के पहले एक और सामान्य ज्ञान का टर्म जानिए. सीलिंग एक्ट. जिसे देश का सबसे बड़ा सुधार क़ानून कहा जाता है. देश में ज़मींदारी उन्मूलन क़ानून के बाद साल 1961 में देश में सीलिंग एक्ट लागू किया गया. इस क़ानून के तहत देश के किसी भी परिवार को 15 एकड़ से अधिक सिंचाई योग्य भूमि रखने का अधिकार नहीं है. अगर ज़मीन असिंचित है तो ये दायरा 18 एकड़ तक बढ़ सकता है. इससे ज़्यादा ज़मीन का राज्य सरकारें अधिग्रहण कर सकती हैं. और ख़बरें बताती हैं कि यूपी के सीतापुर, बाराबंकी, लखनऊ, महमूदाबाद और लखीमपुर खीरी, उत्तराखंड के कुछ जिलों और साथ में विदेशों में राज परिवार की संपत्ति है. सैकड़ों एकड़. कई सौ करोड़ों में क़ीमत आंकी गई. 
अपने बेटों आमिर ख़ां और अली ख़ां के साथ राजा आमिर मोहम्मद ख़ां अपने बेटों आमिर ख़ां और अली ख़ां के साथ राजा आमिर मोहम्मद ख़ां (साभार : Mahmudabad.in)

साल आया 2007. यूपी सरकार ने सीलिंग एक्ट के तहत नोटिस जारी किया. कहा कि आपके पास 18 एकड़ से बहुत ज़्यादा भूमि है. बाक़ी ज़मीन का राज्य सरकार अधिग्रहण करेगी. नीरज गुप्ता बताते हैं,
“हमने इसके खिलाफ़ सीतापुर में आपत्ति फ़ाइल की. आपत्ति में हमने कहा कि प्रॉपर्टी का बहुत बड़ा हिस्सा वक़्फ़ में है. हमने एक-एक वक़्फ़ का पूरा ब्यौरा दिया. बताया कि ज़मीनों पर हमारा क़ब्ज़ा नहीं है. ज़मीनों पर सामुदायिक काम होते हैं. किसी ज़मीन पर श्मशान हैं, कहीं मंदिर हैं, कहीं मस्जिद हैं. हर जगह का उपयोग जनता कर रही है.”
नीरज गुप्ता बताते हैं कि सीतापुर प्रशासन का पक्षपाती रवैया देखकर हमने केस को ADM लखनऊ में शिफ़्ट करने की दरखास्त लगाई, जो मंज़ूर हो गई. 
लखनऊ में सीलिंग पर कुछ दिनों तक बहस के बाद आया साल 2010. इस साल 5 दशक पुराने शत्रु सम्पत्ति क़ानून में हुए बदलाव ने महमूदाबाद राज परिवार से पूरी सम्पत्ति फिर से केंद्र सरकार के पास लाकर रख दी. केंद्र सरकार द्वारा किए गए नए संशोधन के मुताबिक़, भले ही भारत के नागरिक को शत्रु सम्पत्ति विरासत में ही क्यों न मिली हो, ऐसी प्रॉपर्टी पर सरकार का कस्टोडीयन रहेगा और वही मालिक रहेगा. और क्या नियम थे?
1). भारतीय नागरिक शत्रु संपत्ति विरासत में किसी को दे नहीं सकते.
2). अब तक जितनी भी ऐसी संपत्तियां बेची जा चुकी हैं उन्हें गैरकानूनी घोषित कर दिया गया.
3). दीवानी अदालतों को ज़्यादातर मामलों में शत्रु संपत्ति से जुड़े मुकदमों पर सुनवाई का हक़ नहीं होगा.
4). मामले की सुनवाई सिर्फ हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में ही होगी.
ये सिर पर पहाड़ टूटने जैसा था. सारी ज़मीन फिर से केंद्र सरकार के पास चली गई थी. मिंट से बातचीत में महमूदाबाद के राजा आमिर मोहम्मद ख़ां ने कहा,
“हमने बैंक से उधार लिया था. अपना पैसा लगा दिया था. वक़्फ़ की ज़मीन का विकास किया था. और 2010 में एक सुबह हमने सुना कि सरकार द्वारा जारी किए गए एक अध्यादेश ने शत्रु संपत्ति ऐक्ट में परिवर्तन कर दिया.”
यहीं पर सवाल उठता है कि सरकार ने ऐसा क्यों किया था. भारत सरकार को लगा कि सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला ऐसे तमाम केसेस का भट्टा बिठा देगा. एक नज़ीर बन जाएगा  बाद में मार्च 2017 में इस क़ानून में एक और संशोधन करके इसे 1968 से लागू कर दिया गया था.
महमूदाबाद क़िले का हिस्सा. राजा के वक़ील का कहना है प्रॉपर्टी को सीलिंग में डालने का कोर्ट का फ़ैसला दूसरे पक्ष को सुने बिना लिया गया है. (साभार : Instagram/ Mahmudabad) महमूदाबाद क़िले का हिस्सा. राजा के वक़ील का कहना है प्रॉपर्टी को सीलिंग में डालने का कोर्ट का फ़ैसला दूसरे पक्ष को सुने बिना लिया गया है. (साभार : Instagram/ Mahmudabad)

तो 2010 में महमूदाबाद राज परिवार ने दो काम किए. पहला काम ये किया कि ADM लखनऊ की कोर्ट में चल रहे मुक़दमे में उन्होंने ये तथ्य नत्थी कर दिया कि नए क़ानूनी संशोधन के मुताबिक़ ज़मीन अब केंद्र सरकार के पास चली गयी है. और दूसरा काम उन्होंने किया कि सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी. अपने केस का हवाला देते हुए उन्होंने नए संशोधन की संवैधानिकता को चुनौती दी. सुप्रीम कोर्ट वाला मामला अभी तक पेंडिंग है.
और ये जो पूरी राम कहानी है, वो ADM लखनऊ से जुड़े मुद्दे पर है. वक़ील नीरज गुप्ता बताते हैं,
“2010 के संशोधन के आधार पर ADM कोर्ट ने सीतापुर के DM को नोटिस जारी करके जवाब दाख़िल करने को कहा. वो जवाब दाख़िल हुआ 10 साल बाद. नवंबर 2020 में. और एक महीने में, बिना किसी पक्ष को सुने कोर्ट ने 420 हेक्टेयर की ज़मीन की सीलिंग का आदेश दे दिया.”
कहां कितनी सम्पत्ति?
सीतापुर : 182 गांवों में 399.391 हेक्टेयर ज़मीन. क़ीमत लगभग 388 करोड़ रुपए
लखीमपुर खीरी : 31 गांवों में 10.659 हेक्टेयर ज़मीन. क़ीमत लगभग 11 करोड़ रुपए.
बाराबंकी : 20 गांवों में 23.045 हेक्टेयर ज़मीन. क़ीमत लगभग 23 करोड़ रुपए.
वक़ील नीरज गुप्ता कहते हैं,
“ये फ़ैसला किसी तरह से सही नहीं है, क्योंकि इसी मसले पर हमारा मैटर सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है. अब अगर ज़मीन हमारी है, तो उस पर सीलिंग एक्ट लागू होगा या शत्रु सम्पत्ति क़ानून? और अगर केंद्र सरकार की है, तो उसका अधिग्रहण राज्य सरकार कैसे कर सकती है?”
तो यही है कहानी. यही है सारे पेच. 

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