यूपी का वो IAS अधिकारी जो अपने म्यूजिक वीडियोज के लिए चर्चा में है
आज रिलीज हो रहा है चौथा म्यूजिक एल्बम.
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आईएएस डॉ हरिओम का चौथा म्यूजिक एल्बम आने जा रहा है.
अब आईएएस हैं तो बात पढ़ाई-लिखाई से ही शुरू होगी
अमेठी जिले में पड़ता है कटारी गांव. यहीं से शुरू होती है डॉ. हरिओम की कहानी. यहीं उनका जन्म हुआ. 12वीं तक की पढ़ाई गांव के या गांव के आसपास पड़ने वाले सरकारी स्कूलों से ही की. माने सरकारी स्कूलों से भी आईएएस निकलते हैं. वैसे थे हरिओम भी बचपन से ही एकदम पढ़ाकू किस्म के. टॉपर रहते थे. हर बार फर्स्ट. जैसा कि सभी पढ़ाकू बच्चों को सुनने को मिलता है- बड़े होकर अधिकारी बन जाओगे. ऐसे ही पढ़ते रहो. वही उन्हें भी सुनने को मिलता था. मगर इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस. आईएएस. इस नाम की भी कोई बला होती है, ये इन्होंने तब सुना जब वे इलाहाबाद पहुंचे. ग्रैजुएशन करने. 1989 में. हरिओम खुद कहते हैं कि 12वीं तक तो उन्हें कोई हवा ही नहीं थी आईएएस वाईएएस की. उनके पिता भी बस इतना जानते थे कि जिले में एक कलेक्टर होता है जो जिले में सबसे बड़ा अधिकारी होता है. अब क्योंकि वो पढ़ने लिखने में अच्छे थे. स्कूल के मास्टर उनकी तारीफ करते रहते थे. सो उनके पिता यही कहते थे- मेहनत करते रहो, कलेक्टर बन जाओगे.

डॉ. हरिओम ने इलाहाबाद से ग्रैजुएशन किया.
हरिओम बताते हैं कि जब वो इलाहाबाद बीए करने पहुंचे तो उनको कमरा मिला अमरनाथ झा हॉस्टल में. इस हॉस्टल में एकदम पढ़ाकू किस्म के लड़के ही रहते थे. यही उनको पता चला कि सबको आईएएस बनने का कीड़ा काटे हुए है. उनसे कुछ लड़कों ने कहा कि तुम तो गांव से आए हो. क्या करोगे यहां तो उन्होंने कहा- कुछ अच्छा ही करेंगे.
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की जब बात हो तो वो छात्र राजनीति. बम, कट्टा, बवाल के बिना कैसे पूरी हो सकती है. हालांकि हरिओम बताते हैं कि वो इन सभी चीजों से दूर रहते थे. वो तमाम सम्मेलनों, डिबेट्स और अन्य कार्यक्रमों मे जरूर हिस्सा लेते थे, मगर राजनीति में उन्हें कोई मजा नहीं आता था. माने इंटेलेक्चुअल इंट्रेस्ट तो था मगर इलेक्शन को लेकर कोई इंट्रेस्ट नहीं था. हां, कभी कभार झंडा-बैनर लेकर वो भी निकल जाते थे. हॉस्टल में रहकर इनसे कैसे बचा जा सकता है.

पत्नी मालविका और दो बेटियां हैं हरिओम के परिवार में.
फिर वो पहुंचे जेएनयू. जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी. 1992 से 1997. पांच साल यहां गुजारे. यहां उन्होंने एमए और एमफिल किया. हिंदी लिटरेचर में. हरिओम अपने जेएनयू के सफर को स्वर्णिम सफर बताते हैं. इसके कई कारण हैं. पहला इलाहाबाद में जो आईएएस बनने का चसका उन्हें लग गया था, वो यहां परवान चढ़ा. तैयारी तो इलाहाबाद में ही शुरू हो गई थी, मगर एग्जाम में अटेम्प्ट जेएनयू में रहते हुए किया. 1997 में उन्होंने मैदान मार लिया. आईएएस में सेलेक्शन हो गया. फिर यहीं उन्हें भाभीजी मिलीं. माने उनकी लाइफ पार्टनर. मालविका. वो उनकी क्लासमेट थीं. और वो भी गाती हैं. लोक गीत. वो भी बहुत अच्छे से.
जेएनयू में हाल-फिलहाल में जो बवाल हुआ, आरोप लगे. उसको हरिओम राजनीति से प्रेरित बताते हैं. वो कहते हैं- किसी घटना को लेकर पूरे इंस्टीट्यूट को खारिज करना गलत है. कोई आदमी हो सकता है, ग्रुप हो सकता है. उसको बोलिए. मगर इसके बिना पर पूरे इंस्टीट्यूट पर कीचड़ उछालना एकदम सही नहीं है. जेएनयू के माहौल पर बोले कि वो एकदम अलग है. वहां कोई किसी को सर नहीं बोलता है. सीनियर, जूनियर सब एक दूसरे नाम से बुलाते हैं. कोई जाकर किसी मास्टर के पैर नहीं छूता है. कोई लड़की अगर हंस दी तो मतलब कोई खराबी ही होगी या कोई लड़का लड़की के साथ घूम रहा है तो कोई संबंध ही होगा. ये सब वहां कोई नहीं सोंचता है. यही दकियानूसी खयाल वहां नहीं होते हैं. इसीलिए लोगों को जेएनयू अच्छा लगता है. और शायद इसीलिए कुछ लोगों को खराब लगता है. जेएनयू के बाद भी उन्होंने पढ़ाई से नाता नहीं तोड़ा. सर्विस में रहते हुए उन्होंने हिंदी में ही पीएचडी भी कर डाली.

जेएनयू से हरिओम ने एमए और एमफिल किया.
अब सर्विस की कुछ बात, जब योगी को किया गिरफ्तार
जेएनयू में एमफिल का एग्जाम देते-देते ही उन्होंने सिविल गिरा दिया था. अधिकारी बन चुके थे. ट्रेनिंग के बाद पहली पोस्टिंग मिली रुद्र प्रयाग में. तब उत्तराखंड अलग नहीं हुआ था. ये जिला यूपी में ही आता था. वहां एसडीएम बने. बतौर डीएम हरिओम की तैनाती 2002 में हुई. इलाहाबाद के पास पड़ता है कौशांबी जिला. वहां पर. फिर वो लगातार 11 जिलों में डीएम रहे. इलाहाबाद, कानपुर, मुरादाबाद, सहारनपुर, मिर्जापुर, फतेहपुर आदि आदि...मगर चर्चा में हरिओम आए गोरखपुर में अपनी तैनाती के दौरान.
बात 2007 की है. उस वक्त गोरखपुर में सांप्रदायिक तनाव का माहौल था. तब योगी सांसद थे गोरखपुर के. धरने का ऐलान कर दिया. धरना होने पर हिंसा और भड़कने की उम्मीद थी. सो प्रशासन ने योगी को शहर में घुसने से पहले ही रोक लिया. वहां हंगामा होने लगा तो डीएम हरिओम ने सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने और आदेशों का पालन न करने के आरोप में योगी को गिरफ्तार करने के निर्देश दिए थे. योगी को इसके बाद 11 दिन जेल में रहना पड़ा था. इसी घटना के बाद जब योगी संसद पहुंचे तो फफक-फफक कर रोने लगे थे. कहा था कि कैसे एक सांसद को 11 दिन तक जेल में रखा जा सकता है. हालांकि इस गिरफ्तारी के 24 घंटे बाद ही हरिओम को सस्पेंड कर दिया गया था. रातोंरात उनकी जगह चार्ज संभालने के लिए तब सीतापुर के डीएम राकेश गोयल को हेलिकॉप्टर से गोरखपुर भेजा गया था. फिलहाल डॉ. हरिओम लखनऊ में पोस्टेड हैं. सेक्रेटरी जनरल, एडमिनिस्ट्रेशन, उत्तर प्रदेश.

गाने के शौक को स्कूल, कॉलेज से लेकर नौकरी तक संवारते रहे हरिओम.
योगी वाली घटना के बारे में हरिओम कहते हैं -
एक डीएम के नाते जो आपका फर्ज होता है, जब हालात तनावपूर्ण होते हैं तो करना पड़ता है. मैं अपनी जिम्मेदारी निभा रहा था. हमारा तो काम ही शांति व्यवस्था बनाए रखना है. इट्स अ पार्ट ऑफ ड्यूटी. हमारे जैसे लोग जहां भी होंगे, अपना फर्ज निभाएंगे.अब बात उनके गाने के शौक की
गाने का चसका भी उन्हें बचपन में अपने गांव कटारी में ही लग गया था. हरिओम बताते हैं कि तब जो गांव में लोक संगीत सुनने को मिलता था. नाटक-नौटंकी, कव्वाली होती थी. मंदिरों में भजन-कीर्तन होता था. इन सबमें उन्हें संगीत बहुत सही लगता था. तो शुरुआत यहीं से हो गई थी. फिल्मी गाने गुनगुनाते रहते थे. फिर जैसा हर मोहल्ले में होता है कि जो बच्चा नाचने-गाने में अच्छा हो, उसे उसका टैलंट दिखाने के लिए लोग पकड़-पकड़कर ले जाते थे. वैसा ही हरिओम के साथ होता था. गांव के लोग उन्हें गाने के लिए ले जाते थे. खैर ये बात आजके जमाने के लोग नहीं समझ पाएंगे. फोन से फुर्सत कहां है किसी को. मगर पहले तो ऐसे ही एंटरटेनमेंट होता था. बाकी हरिओम का जलवा स्कूल में भी टाइट था. 26 जनवरी हो या 15 अगस्त. एक गाना उनका तो होता ही था.
देखें उनके एल्बम का वीडियो-
ये गाने का शौक कॉलेज में भी जारी रहा. माने 12वीं पास करने के बाद जब वो इलाहाबाद पहंचे. ग्रैजुएशन करने. यहां भी वो तमाम कॉम्पिटिशंस में फिल्मी गाने गाते रहे. मगर इसी बीच उन्हें नया नशा चढ़ा. गज़ल सुनने का. हरिओम बताते हैं कि उस वक्त गुलाम अली साहब बड़े हिट थे. दिल में इक लहर सी उठी है...हंगामा है क्यों बरपा...हर लड़के के कानों में बज रहा था. सो वो कैसे बच जाते. उसी समय वो निकाह फिल्म आई थी. वही सल्मा आगा वाली. पाकिस्तानी हिरोइनी. इसी में चुपके-चुपके रात दिन, आंसू बहाना याद है गज़ल डाल दी गई. गुलाम अली की. तो इस तरह ये गज़ल भी तब हर लड़के की जुबान पर पहुंच गई. उनका भी गज़लों से याराना बढ़ता गया. उसी वक्त जगजीत सिंह भी आ गए और छा गए. अपनी गज़ल होठों से छू लो तुम, मेरा गीत अमर कर दो...तुमको देखा तो ये खयाल आया वगैरह के लिए. तो इस तरह हरिओम फिल्मी गानों से गज़लों की तरफ आ गए. गज़लें गाने की कोशिश करने लगे.
फिर जब जेएनयू पहुंचे तो गज़लों का चसका लग ही चुका था. सो पहुंच गए स्टेज पर और गज़लें गाकर सुना डालीं जनता को. संगीत तो सीखा नहीं था, मगर सुन-सुन कर खुद को इतनी ट्रेनिंग दे दी थी कि गा लें. मेहंदी हसन की गज़लें, जगजीत सिंह की गज़लें खूब गाईं. और इस तरह वो नॉन स्टॉप पढ़ाई के साथ गाना गाते रहे और अपना गला पकाते रहे. नौकरी में आने के बाद भी ये शौक जारी रहा. और 2006 में उनका पहला म्यूजिक एल्बम सबके सामने आया. नाम था रंग पैराहन. तभी जब वो गोरखपुर में डीएम थे. दूसरा एल्बम आया 2011 में. नाम है इंतिसाब. जब वो कानपुर के डीएम थे. तीसरा एल्बम आया अप्रैल 2015 में. नाम है रौशनी के पंख. और अब आ रहा है उनका चौथा एल्बम. नाम है रंग का दरिया. इसकी पहली गज़ल 21 जनवरी को रिलीज हो रही है. नए एल्बम में 6 गज़लें होंगी. 21 तारीख को पहली गज़ल सबके सामने आएगी. बोल हैं- रो चुके जिनके लिए रोना था. वीडियो के साथ. डिजिटल फॉर्मैट में. कैसट-वैसट का जमाना तो गया ना. बाकी की 5 गज़लें धीरे-धीरे रिलीज होती रहेंगी.
देखें उनका लेटेस्ट म्यूजिक एल्बम-
इन सब के बावजूद एक सवाल उठता है कि अधिकारी होने के बावजूद वो गाने के लिए समय कैसे निकाल लेते हैं. इसका जवाब देते हुए हरिओम बताते हैं कि इसका टाइम फालतू के काम ना करके निकलता है. दूसरों की बुराई में समय बेकार नहीं करने की वजह से बचता है. लोगों का निंदा रस में बहुत टाइम जाता है. मैं उस समय को इन अच्छी चीजों में लगाता हूं.
चार किताबें भी लिख चुके हैं
डॉ. हरिओम गज़लें गाने के साथ लिखते भी हैं. उनकी चार किताबें अब तक पब्लिश हो चुकी हैं. पहली का नाम है धूप का परचम. इसमें गज़लें हैं. ये किताब 2002 में आ गई थी. दूसरी किताब आई अमरीका मेरी जान. इसमें कहानियां हैं. तीसरी किताब फिर कविताओं की आई. चौथी किताब आई 2016 में. इसमें भी गज़लें हैं. और अब पांचवीं किताब पर भी वो लगे हुए हैं.
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