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'धुरंधर' जितनी आसान नहीं करेंसी प्लेट की चोरी, भारत की बैंक नोट सुरक्षा अभेद किले से कम नहीं

Dhurandhar Movie में दिखा currency plate चोरी का रोमांच भले ही थियेटर में ताली बजवा दे, लेकिन असली दुनिया में भारत की banknote printing बेहद कड़े सिस्टम के तहत चलती है. देवास, नासिक, मैसूर और सालबोनी की प्रिंटिंग प्रेस में RBI और SPMCIL की दोहरी निगरानी रहती है. यहां master plates, security paper, watermark, security thread, microtext और color-shift ink जैसे फीचर नोटों को नकली गैंग से बचाते हैं.

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dhurandhar currency plates
धुरंधर में currency plates चोरी... रियल लाइफ में ऐसा मुमकिन है क्या?
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दिग्विजय सिंह
11 दिसंबर 2025 (Updated: 11 दिसंबर 2025, 11:20 AM IST)
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‘धुरंधर’ फिल्म का वो सीन याद है जिसमें ISI और कुछ पाकिस्तानी कारोबारियों के हाथों में भारत की करेंसी प्लेट्स लग जाती हैं. फिल्म की कहानी के मुताबिक ये करेंसी प्लेट किसी इंडियन मिनिस्टर की मेहरबानी से पाकिस्तान के हाथ लगी. जैसे ही स्क्रीन पर प्लेट्स का जिक्र आता है, थिएटर में सिहरन दौड़ जाती है. क्योंकि दर्शक समझते हैं कि असली दुनिया में अगर करेंसी प्लेट्स गलत हाथों में चली जाएं तो पूरा सिस्टम हिल सकता है. फिल्म में ये सब मसाला था, लेकिन इसी बहाने असली दुनिया के नोट सिस्टम के बारे में जानने को बहुत कुछ है. आखिर भारत में नोट छापता कौन है, प्लेट्स किसके पास रहती हैं, और उनकी सुरक्षा कैसी होती है.

Dhurandhar
धुरंधर फिल्म का सीन क्यों हो रहा वायरल (फोटो- Jio Studios)

अब फिल्म के उस काल्पनिक रोमांच से सीधे असली सिस्टम की ओर चलते हैं, जहां हर कदम पर कड़ी निगरानी और चौकसी है.

भारत में नोटों का पूरा खेल कौन संभालता है

सबसे पहले ये समझ लें कि नोट छपाई सिर्फ कागज पर रंग लगाने का मामला नहीं है. इसकी जड़ में दो संस्थाएं हैं जिनके हाथ में पूरे सिस्टम की कमान रहती है. एक तरफ है भारतीय रिजर्व बैंक जो नोटों के डिजाइन, साइज, कलर, सिक्योरिटी फीचर और प्रोडक्शन की जरूरत तय करता है. दूसरी तरफ है सिक्योरिटी प्रिंटिंग एंड मिंटिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड जिसे आप एसपीएमसीआईएल कहते हैं. यही वह सरकारी कंपनी है जो देश के सिक्के, पासपोर्ट, डाक टिकट और दो प्रमुख बैंक नोट प्रेस चलाती है.

इसके अलावा दो और प्रेस हैं जिन्हें रिजर्व बैंक सीधे चलाता है. मतलब नोट निर्माण का सिस्टम दोहरी निगरानी में रहता है. एक तरफ नीति बनाने वाला आरबीआई और दूसरी तरफ जमीन पर प्रिंटिंग करने वाली सरकारी प्रेस.

नोट छापने के चार बड़े ठिकाने

देश में चार जगहें हैं जहां असली नोट बनते हैं.

  1. देवास, मध्य प्रदेश
  2. नासिक, महाराष्ट्र
  3. मैसूर, कर्नाटक
  4. सालबोनी, पश्चिम बंगाल

देवास और नासिक की जिम्मेदारी एसपीएमसीआईएल के पास है. मैसूर और सालबोनी रिजर्व बैंक की बैंक नोट प्रेस हैं. हर जगह की मशीनें, कागज, इंक और सिक्योरिटी टेक्नोलॉजी अलग अलग लेवल पर टेस्टेड और एप्रूव्ड होती हैं. इन प्रेसों के बाहर आम आदमी तो छोड़िए, बड़े अधिकारियों को भी तय नियमों से ही अंदर जाने की इजाजत मिलती है.

Currency
भारत में 4 जगह छपते हैं नोट (फोटो- इंडिया टुडे)
नोट कैसे जन्म लेता है

फिल्म में तो प्लेट पकड़कर भाग जाना ही पूरा खेल होता है. लेकिन असली दुनिया में नोट बनने का सफर काफी लंबा और सख्त है. आपको समझ में आए इसलिए इसे आसान भाषा में तोड़कर देखते हैं. 

नोट का डिजाइन 

नोट में कौन सी तस्वीर होगी, कौन सा कलर स्कीम होगा, नंबरिंग कैसी होगी और सिक्योरिटी फीचर कितने होंगे, ऐसा सब तय होता है. इस चरण में रिजर्व बैंक और सरकार दोनों की भूमिका होती है.

नोट का कागज 

भारत में करेंसी पेपर बहुत खास होता है. यह साधारण पेपर की तरह बाजार में नहीं मिलता. इसमें कॉटन फाइबर, खास तरह की वॉटरमार्क लेयर, सिक्योरिटी थ्रेड और कुछ माइक्रो लेवल फीचर्स होते हैं. ये पेपर खुद भारत में सिक्योरिटी पेपर मिल में तैयार होता है.

नोट की छपाई/प्रिंटिंग

नोट को कई चरणों में प्रिंट किया जाता है. बैकग्राउंड, मुख्य डिजाइन, नंबरिंग, उभरी छपाई, बार कोड जैसी कई स्टेज होती हैं. हर स्टेज के बाद सैंपल चेक होता है ताकि किसी भी लेयर में गलती न रह जाए.

करेंसी की कटिंग और पैकिंग

जब पूरा शीट तैयार हो जाता है, तब उसे काटकर स्टिकर पैक में पैक किया जाता है. यह पैकिंग भी सिक्योरिटी टीम की मौजूदगी में होती है. फिर इन सीलबंद बॉक्सों को रिजर्व बैंक के चेस्ट्स तक भेजा जाता है.

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करेंसी प्लेट्स क्या होती हैं और कौन संभालता है

नोट प्रिंटिंग की प्लेट्स ऐसे समझें जैसे किसी चीज की असल मुहर. एक बार डिजाइन तय हो गया तो उसी की धातु की प्लेट तैयार की जाती है जिससे लाखों नोट छपते हैं. यही कारण है कि प्लेट्स की सुरक्षा सबसे ऊपर रखी जाती है.

इन प्लेट्स का कंट्रोल प्रेस की एक बेहद सीमित और सर्टिफाइड टीम के पास होता है. प्लेट्स को प्रेस के एक सुरक्षित क्षेत्र में ही रखा जाता है जहां कैमरा, बायोमेट्रिक, गार्ड और रिकॉर्ड बुक- सब कुछ चलता है. किस दिन कौन सी प्लेट इस्तेमाल हुई, कितनी देर तक हुई और वापस कब लॉक की गई, यह सब लिखित और डिजिटल दोनों रिकॉर्ड में मौजूद होता है.

प्लेट के जीवन का एक चक्र तय होता है. जब वह चक्र पूरा हो जाता है, तो उसे नष्ट करने का भी एक तय नियम होता है और नष्ट करने के समय भी टीम मौजूद रहती है.

‘धुरंधर’ जैसी चोरी क्यों संभव नहीं 

धुरंधर में दिखाया गया था कि खलनायक ने प्लेट चुराई और सीमापार भेज दी. असली दुनिया में ऐसा कर पाना लगभग नामुमकिन है. वजह समझिए. 

  • हर प्रेस मल्टी लेयर सुरक्षा के घेरे में होती है. सबसे बाहरी दीवार से लेकर अंदर तक कई लेयर होती हैं.
  • हर लेयर पर अलग गार्ड, कैमरा और एंट्री चेक होता है.
  • सिक्योरिटी जोन ऐसे बनाए गए हैं जहां सिर्फ वही लोग जा सकते हैं जिनकी ड्यूटी वहीं की है.
  • प्लेट्स को प्रेस के बाहर ले जाना तो दूर, प्रेस के अंदर भी एक जोन से दूसरे जोन ले जाना रिकॉर्ड में दर्ज होता है.
  • प्लेट के नुकसान होने या गुम होने पर पूरा सिस्टम रेड अलर्ट में चला जाता है और प्रेस से लेकर केंद्र तक जांच आरंभ हो जाती है.

इसलिए असली दुनिया में ऐसा होना लगभग असंभव है कि कोई प्लेट उठाकर गाड़ी में बैठे और बॉर्डर की ओर निकल जाए.

नोटों में छिपे सिक्योरिटी फीचर

धुरंधर की कहानी में नकली नोट मार्केट में आते दिखाए गए. असली जीवन में नकली नोट पकड़ने के लिए ही नोटों में दर्जनों फीचर लगाए जाते हैं. कुछ आम आदमी देख सकता है, कुछ सिर्फ मशीनें पहचान सकती हैं.

वॉटरमार्क: लाइट में देखने पर गांधीजी की तस्वीर और नंबर दिख जाता है.

सिक्योरिटी थ्रेड: नोट के बीच में एक चमकदार थ्रेड होता है जो कोण बदलने पर रंग बदलता है.

उभरी छपाई: महात्मा गांधी की तस्वीर, रिजर्व बैंक की मोहर और कुछ नंबर उभरे हुए महसूस होते हैं.

माइक्रोटेक्स्ट: कुछ लाइनों में इतनी बारीक छपाई होती है कि सामान्य आंख से नहीं दिखती.

कलर शिफ्ट इंक: कुछ जगह इंक रंग बदलती है.

currency security
हर नोट में सुरक्षा के इंतजाम 

इसके अलावा कई लेयर ऐसी होती हैं जिनकी जानकारी सिर्फ आधिकारिक अधिकारियों को होती है.

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नोट छपाई पर चौबीस घंटे पहरा

फिल्मों में पुलिस की एंट्री जब भी होती है, देखने में मजा आता है. लेकिन असली नोट सिस्टम में पुलिस से कहीं ज्यादा तकनीक और नियमों का पहरा होता है.

  • हर प्रेस में सीसीटीवी कवरेज
  • हर चरण पर लाइव मॉनिटरिंग
  • हर शिफ्ट में ट्रिपल साइन वाला डॉक्यूमेंटेशन
  • नकली नोट से संबंधित किसी भी सूचना पर तुरंत केंद्रीय एजेंसियों की रिपोर्टिंग

ये सब मिलकर एक ऐसा सिस्टम बनाते हैं जिसमें गलती की गुंजाइश बहुत कम बचती है.

फिल्म की दुनिया और असली सिस्टम

धुरंधर जैसी फिल्में मजेदार होती हैं क्योंकि वे दर्शक को रोमांच देती हैं. लेकिन असली दुनिया में नोट छपाई इतनी संवेदनशील प्रक्रिया है कि दस कदम चलने पर भी चेकपॉइंट मिल जाता है. प्लेट की चोरी, नकली नोटों की बाढ़ और सीमा पार साजिशें- ये सब कहानियों में तो अच्छा लगता है, लेकिन जमीन पर इन्हें अंजाम देना आसान नहीं. यही वजह है कि भारत सालों से अपने करेंसी सिस्टम को सुरक्षित रखने में सफल रहा है.

अंत में बस इतना समझ लें कि फिल्म में खलनायक प्लेट चुराकर भाग सकते हैं. लेकिन असली जिंदगी में प्लेटें ताले, टीम और टेक्नोलॉजी की कई परतों में बंधी होती हैं. एक लाइन में कहें तो- कहानी का रोमांच अपनी जगह, सिस्टम की सख्ती अपनी जगह.

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