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रेयर अर्थ मटेरियल पर दुनिया में हायतौबा, मगर ये होता क्या है? जेब में लेकर घूमते हैं आप और हम!

What are Rare Earth Elements: हर इलेक्ट्रिक कार में जो मोटर लगती है, उसमें नियोडायमियम और डिस्प्रोसियम जैसे रेयर अर्थ लगते हैं. मांग इतनी बढ़ रही है कि आने वाले पांच-सात सालों में दुनिया को इनकी दो गुनी जरूरत होगी, और जब ये पूरी सप्लाई एक देश के हाथ में हो, तो बाकी देशों की नींद उड़ना लाज़मी है.

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Rare earth materials
रेयर अर्थ पर मचा है दुनिया में हंगामा… और ये खज़ाना आपके घर में भी मौजूद है!
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दिग्विजय सिंह
23 अक्तूबर 2025 (Updated: 23 अक्तूबर 2025, 04:06 PM IST)
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हम रोज कान में ईयरफोन लगाकर गाने सुनते हैं, मोबाइल से फोटो खींचते हैं, टीवी देखते हैं या कार चलाते हैं. लेकिन शायद ही किसी ने सोचा हो कि इन सब चीज़ों के अंदर ऐसे धातु (metals) छिपे हैं, जिन पर आज दुनिया की सबसे बड़ी खींचतान चल रही है. अगर नहीं पता तो जान लीजिए, वो चीज़ है- रेयर अर्थ.

नाम थोड़ा भारी है, लेकिन काम ऐसा कि इसके बिना आज की दुनिया चल ही नहीं सकती. आपका मोबाइल, लैपटॉप, टीवी, फ्रिज, इलेक्ट्रिक स्कूटर, यहां तक कि मिसाइलें. सब कहीं न कहीं इन "रेयर अर्थ" धातुओं पर टिके हैं.

आखिर ये "रेयर अर्थ" है क्या बला?

"रेयर अर्थ" सुनकर लगता है कोई एलियन धातु होगी जो सिर्फ मंगल ग्रह पर मिलती होगी. पर सच्चाई ये है कि ये 17 खास तत्वों का परिवार है, जो धरती में मौजूद तो हैं,  लेकिन बहुत मुश्किल से अलग किए जा सकते हैं.

इनके नाम थोड़े जटिल हैं - लैंथेनम, सेरियम, नियोडायमियम, समेरियम, डिस्प्रोसियम, यूरोपियम वगैरह. अब नाम छोड़िए, काम सुनिए-

  • नियोडायमियम वो है जिससे आपके ईयरफोन और मोबाइल स्पीकर के चुंबक बनते हैं.
  • सेरियम आपकी कार के एग्जॉस्ट सिस्टम में प्रदूषण रोकता है.
  • समेरियम और डिस्प्रोसियम से पवनचक्की और इलेक्ट्रिक गाड़ियों के मोटर चलते हैं.
  • मतलब साफ़ - चाहे गाना सुनना हो या कार चलाना, कहीं न कहीं आप रोज रेयर अर्थ के संपर्क में हैं.
"रेयर" क्यों कहा गया, जब ये धरती में मौजूद हैं?

असल में ये "रेयर" उनकी मात्रा से ज़्यादा निकालने की मुश्किल की वजह से हैं.  धरती में ये खूब बिखरे हुए हैं, लेकिन एक जगह जमा होकर खदान बनने लायक मात्रा में नहीं मिलते. जैसे आपकी रसोई में नमक तो हर डिब्बे में थोड़ा-थोड़ा होगा,  पर एक किलो नमक निकालने के लिए सारे डिब्बे खंगालने पड़ें. बस वैसा ही मामला है. इन धातुओं को अलग करने की प्रक्रिया जटिल, महंगी और पर्यावरण के लिए नुकसानदेह होती है.   इसलिए कई देशों ने इसे छोड़ दिया, और एक देश ने इस पर कब्जा जमा लिया.

Rear Earth
रेयर अर्थ खनिज की भारी मांग है
चीन - रेयर अर्थ का "बॉस"

दुनिया के करीब 80 प्रतिशत रेयर अर्थ उत्पादन पर चीन का कब्जा है. वो सिर्फ खनन नहीं करता, बल्कि इन धातुओं को रिफाइन करके चुंबक और इलेक्ट्रॉनिक पार्ट्स भी बनाता है. 

मतलब- अगर आज किसी कंपनी को मोबाइल, कार या पवनचक्की बनानी है,  तो उसे किसी न किसी रूप में चीन की धातुओं की ज़रूरत पड़ेगी. इसी वजह से अगर चीन एक्सपोर्ट पर लगाम लगाए,  तो अमेरिका से लेकर यूरोप तक की फैक्ट्रियों के पेंच ढीले हो जाते हैं.

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दिलचस्प है रेयर अर्थ मैटेरियल का विज्ञान
अमेरिका और जापान क्यों बेचैन हैं

दुनिया इलेक्ट्रिक गाड़ियों और ग्रीन एनर्जी की तरफ बढ़ रही है.  हर इलेक्ट्रिक कार में जो मोटर लगती है, उसमें नियोडायमियम और डिस्प्रोसियम जैसे रेयर अर्थ लगते हैं. मांग इतनी बढ़ रही है कि आने वाले पांच-सात सालों में दुनिया को इनकी दो गुनी जरूरत होगी,  और जब ये पूरी सप्लाई एक देश के हाथ में हो, तो बाकी देशों की नींद उड़ना लाज़मी है. इसीलिए अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अब भारत भी नई खदानें ढूंढने और रीसायक्लिंग टेक्नोलॉजी पर अरबों रुपये झोंक रहे हैं.

भारत की कहानी - खजाना है, पर चाबी नहीं

भारत के पास भी रेयर अर्थ का अच्छा खासा भंडार है, खासकर केरल, ओडिशा, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश की समुद्री रेतों में.  मोनाज़ाइट नाम के खनिज में ये धातुएं खूब मिलती हैं. समस्या यह है कि भारत के पास अभी इन धातुओं को  निकालने और शुद्ध करने की उन्नत तकनीक नहीं है.  
हम कच्चा माल निकाल तो लेते हैं, लेकिन उसे  चुंबक और इलेक्ट्रॉनिक पार्ट्स में बदलने की फैक्ट्रियां बहुत कम हैं. सरकार अब इस दिशा में तेजी से काम कर रही है.
"इंडिया रेयर अर्थ्स लिमिटेड (IREL)" को विस्तार दिया जा रहा है,

करीब 1300 करोड़ रुपये की योजना "मेक इन इंडिया" के तहत तैयार की जा रही है. ताकि भारत अपने ही रेयर अर्थ से अपनी ही तकनीक चला सके.

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हमारी रोजमर्रा की ज़िंदगी में होता है इस्तेमाल
बाजार कितना बड़ा है

2024 में दुनिया का रेयर अर्थ बाजार करीब 12 अरब डॉलर, यानी लगभग एक लाख करोड़ रुपये का था.  और 2030 तक ये तीन गुना तक बढ़ सकता है. भारत में ये बाजार अभी छोटा है - करीब 3 से 4 हजार करोड़ रुपये,  लेकिन इलेक्ट्रिक वाहनों, मोबाइल, टीवी और रक्षा उपकरणों की बढ़ती मांग इसे तेज़ी से ऊपर ले जा रही है.

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तो फिर इतना हल्ला क्यों मचा है

क्योंकि आज की दुनिया तेल नहीं, तकनीक पर चलती है,  और तकनीक की जड़ में है ये रेयर अर्थ मेटल्स. एक तरफ इनकी मांग आसमान छू रही है,  दूसरी तरफ सप्लाई कुछ ही देशों के हाथ में है.  यही वजह है कि अब रेयर अर्थ नई "जियोपॉलिटिकल करेंसी" बन चुकी है.  जो इसे कंट्रोल करेगा, वही कल की टेक्नोलॉजी और इकॉनमी कंट्रोल करेगा.

आख़िरी बात- मिट्टी से निकला नया "सोना"

आज जो धूल, मिट्टी या रेत में छिपा पड़ा है,  वही आने वाले दशक में तेल जितना कीमती साबित होगा. रेयर अर्थ अब सिर्फ धातु नहीं रहा, ये "ऑयल 2.0" है.  जिसके बिना न फोन बजेगा, न कार चलेगी, न मिसाइल उड़ेगी.

वीडियो: दुनियादारी: चीन ने अमेरिकी नीतियों का तोड़ निकाल लिया, ट्रंप अब क्या करेंगे?

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