यूं ही नहीं कोई यूसेन बोल्ट बन जाता है, एथलेटिक्स के नाम पर कब तक तमाशा देखेंगे हम?
श्रीनिवास गौड़ा जैसे लोगों में बोल्ट को खोजना ये दिखाता है कि एथलेटिक्स को लेकर हमारी समझ कितनी कम है.
Advertisement
यह एक अच्छी कहानी थी, भले ही इसे एक फेक न्यूज़ के ज़रिए सामने लाया गया हो. इस वाक्य से शुरू हो रहे आर्टिकल में ब्रिटिश अखबार द गार्डियन ने भारत के नए 'यूसेन बोल्ट' वाली फेक न्यूज़ की पोल खोली है. लगभग 200 साल पुराने इस अखबार ने इस एक आर्टिकल के जरिए एथलेटिक्स की हमारी समझ को पूरी तरह से नंगा कर दिया है. इस आर्टिकल ने पूरी दुनिया को बता दिया है कि एथलेटिक्स के मामले में ना सिर्फ खिलाड़ी बल्कि भारतीय फैंस का लेवल भी बहुत नीचे है.
यह नया नहीं है. पिछले कुछ महीनों में हमारे यहां कम से कम दो यूसेन बोल्ट निकल चुके हैं. अगस्त 2019 में मध्य प्रदेश के एक 'युवा' रामेश्वर गुर्जर को बोल्ट बताया गया था. सड़क पर नंगे पांव भागते रामेश्वर का वीडियो वायरल हुआ. मध्य प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार दोनों में रामेश्वर से ओलंपिक गोल्ड खींचने की रेस लग गई. अंत में यह रेस जीती मध्य प्रदेश सरकार ने. मध्य प्रदेश के मंत्री जीतू पटवारी ने रामेश्वर को अपने घर बुलाकर फोटो सेशन कराया. बड़ी-बड़ी बातें कीं.
तमाम ख़बरों में सिर्फ 19 साल के बताए गए रामेश्वर ने भी कहा कि उचित सुविधाएं मिलने पर वह बोल्ट का वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ देंगे. भारी चर्चा और पीयर प्रेशर के बाद ट्रायल हुआ. इस ट्रायल में रामेश्वर अंतिम स्थान पर आए. स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAI) के भोपाल सेंटर में हुए इस ट्रायल के बाद केंद्रीय खेल मंत्री किरण रिजिजू ने रामेश्वर का बचाव किया. रिजिजू ने कहा कि कुछ वक्त की ट्रेनिंग के बाद वह अच्छा करेंगे. हालांकि उस ट्रायल के बाद उनकी कोई खबर नहीं है.
Rameshwar Gurjar और Jitu Patwari (फोटो सोशल मीडिया से साभार)
# बेकार की चीजें
ट्रायल में भले ही रामेश्वर अंतिम नंबर पर थे, लेकिन हमारी मूर्खता अभी भी नंबर वन है. तभी तो इसके कुछ ही महीनों बाद हमने एक नया बोल्ट खोज निकाला. इस बार नंबर था कर्नाटक के 28 साल के कंबाला जॉकी श्रीनिवास गौड़ा का. धान के खेत में भैंसों के पीछे भागते गौड़ा ने 142 मीटर की रेस 13.42 सेकेंड्स में पूरी की. इस दौरान उन्होंने इस रेस के एक सेक्शन में 100 मीटर सिर्फ 9.55 सेकेंड्स में पूरे कर लिए. अब ये साफ नहीं है कि यह शुरुआती 100 मीटर थे या फिर स्टार्ट मिलने के बाद के.एथलेटिक्स में स्टार्ट का बड़ा रोल होता है. 100 मीटर स्प्रिंट में लिए गए वक्त में स्टार्ट भी शामिल होती है. और इंसान तो इंसान, मशीन भी शुरू होकर रौ में आने में वक्त लेती है.
Kambala Jockey Srinivas Gowda को सम्मानित करते कर्नाटक के चीफ मिनिस्टर Bs Yediyurappa
ख़ैर आगे बढ़ते हैं. गार्डियन के इसी आर्टिकल में 100 मीटर में पूर्व स्पैनिश रिकॉर्ड होल्डर आन्हेल डेविड रॉड्रिगेज़ का बयान है. 100 मीटर में 10.14 का बेस्ट प्रदर्शन रखने वाले रॉड्रिगेज़ के मुताबिक,
'वह 100 मीटर की रेस को 11 सेकेंड के अंदर पूरी कर सकता है. लड़का तेज है, उसका शरीर मज़बूत है लेकिन सीधे देखिए, भैंसें मनुष्यों से तेज होते हैं इसलिए उसका काम उन्हें सीधा रखना और नीचे गिरने से बचना था. मेरे लिए यह भारतीय संस्कृति की एक मज़ेदार स्टोरी है, ना की एथलेटिक्स की.'9.85 सेकेंड में 100 मीटर पूरी करने वाले ओलुसोजी फासुबा को ट्रेन कर चुके फ्रेंच एक्सपर्ट पिएरे-जीन वाज़ेल कहते हैं,
'हर महीने, इन बेकार की चीजों पर एक स्टोरी आ ही जाती है.'वाज़ेल ने कहा कि जिस तरीके से गौड़ा इतनी तेज़ भागे वह पहले भी कई स्प्रिंटर्स प्रयोग में ला चुके हैं. साल 2008 ओलंपिक से पहले ट्रेनिंग के दौरान इलास्टिक की एक खींचने वाली डिवाइस का प्रयोग कर पुर्तगाल के फ्रांसिस ओबिक्वेलु ने 100 मीटर की रेस 9.1 सेकेंड में पूरी कर ली थी. बोल्ट की टॉप स्पीड 44 किलोमीटर प्रतिघंटा है लेकिन फ्रेंच स्प्रिंटर जिमी विकॉट ने एक ट्रेनिंग सेशन में 47 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार निकाली थी. इस दौरान उन्हें एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस खींच रही थी.
# ऐसा हाल क्यों ?
अब सवाल यह है कि भारत में ही ऐसा क्यों होता है? इसका सीधा जवाब तो यह है कि खेलों के बारे में ज्यादातर भारतीयों की समझ शून्य है. क्रिकेट की पिच से उतरते ही हम दिशाहीन हो जाते हैं. और दिशाहीन समाज चमत्कार की खोज में रहता है. ऐसे में कहीं से भी कोई उठकर आता है और हम उसे 'यूसेन बोल्ट' मान लेते हैं.गांव में जैसे झाड़-फूंक वालों से लोग उम्मीद लगाए रहते हैं वैसी ही उम्मीदें इन 'यूसेन बोल्टों' से भी लग जाती हैं. ना उन बाबाओं को कभी डॉक्टर्स के आगे परखा जाता है ना इन बोल्टों को कभी ढंग के स्प्रिंटर्स के आगे. कभी यह परख हो तो इन दोनों की ही पोल खुल जाती है. जैसे रामेश्वर ट्रायल्स में फेल हुए और गौड़ा ने बेहतर समझ दिखाते हुए इनमें जाने से ही मना कर दिया.
समस्या सिर्फ हमारी समझ की ही नहीं है. हमारे यहां खेलों की संस्कृति, सिस्टम जैसा कुछ नहीं है. एथलेटिक्स में हमने जो भी हासिल किया है वह हमारे एथलीटों के व्यक्तिगत संघर्षों का परिणाम है. देश के खेल मंत्रालय या फिर सरकार ने उनकी मदद के नाम पर कुछ ऐसा नहीं किया जिससे उनकी हालत सुधर सके. ग्राउंड लेवल पर तो हमारे यहां क्या होता है यह एक बड़ा रहस्य है.Srinivas Gowda reached SAI centre, Bangaluru and was felicitated for his good performance in Kambala. He told that he has 3 more races to compete in till March. After that he will come to SAI centre for the scheduled trials. He had dinner with SAI centre people and left.. https://t.co/XdLhPNjbZG
— Kiren Rijiju (@KirenRijiju) February 18, 2020
pic.twitter.com/SzlWniLYj7
खेल मंत्री किरण रिजिजू अब तक सोशल मीडिया के जरिए कई लोगों को SAI ट्रायल्स के लिए बुला चुके हैं. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि ऐसे ही किसी रैंडम व्यक्ति को ट्रायल्स में बुलाने की जगह हम क्यों नहीं बेसिक्स पर ध्यान देते? क्यों नहीं हमारे यहां खेल संस्कृति विकसित करने पर ध्यान दिया जाता है? अगर हवा से ओलंपिक गोल्ड पैदा करने की जगह हमारे खेल मंत्री बेसिक्स सुधारने पर ध्यान देते तो शायद अगले 5-10 ओलंपिक बाद हम एथलेटिक्स में ओलंपिक मेडल जीत ही जाते.
# जरूरत है Champs की
वहीं दूसरी ओर हाल के सालों में एथलेटिक्स की बात करें तो जमैका का नाम खूब सुनने में आता है. क्रिकेट फैंस जहां इसे क्रिस गेल, आंद्रे रसेल, कोर्टनी वॉल्श, जेफ डुजों, माइकल होल्डिंग, फ्रैंक वॉरेल की धरती के रूप में जानते हैं वहीं बाकी की दुनिया इसे उसेन बोल्ट, योहान ब्लेक और असफा पॉवेल के देश के रूप में.हाल के सालों में जमैका ने एथलेटिक्स में अमेरिका को पछाड़ दिया है. एक जमाने में जहां एथलेटिक्स में अमेरिका की तूती बोलती थी वहीं अब जमैका ने इसे अपना गेम बना लिया है. सिर्फ 4213 स्क्वॉयर मील वाले इस द्वीप में ऐसा क्या खास है? असली वाले बोल्ट की मानें तो इस द्वीप का स्पोर्टिंग कल्चर गज़ब का है. यहां क्रिकेटर्स, फुटबॉलर्स नहीं स्प्रिंटर्स सबसे बड़े स्टार होते हैं. यहां 'Champs' नाम का सालाना स्कूली एथलेटिक्स कम्पटिशन होता है.
बोल्ट के मुताबिक इस कम्पटिशन के दौरान स्टेडियम पूरी तरह भरे होते हैं. इसे टीवी पर भी दिखाया जाता है. इस कम्पटिशन में स्कूल लेवल के एथलीट दूसरे कई देशों के नेशनल चैंपियंस से भी बेहतर होते हैं. खुद बोल्ट भी इन्हीं Champs से निकले हैं.A teenage @usainbolt
— JUST SPORTS (@JustSportsTweet) March 27, 2019
running 45 seconds in the 400m🏃🏾♂️🔥 in high school #CHAMPS
🇯🇲pic.twitter.com/TU1uDE8K35
चलते-चलते बताते चलें कि इसी कंबाला में निशांत शेट्टी नाम का जॉकी श्रीनिवास गौड़ा से भी आगे निकल गया है. अब इंतजार है उस हेडलाइन का जिसे हम गर्व से पढ़ सकें-
'ओलंपिक 100, 200, 400 और 4*400 मीटर स्प्रिंट में पक्के हुए भारत के चार गोल्ड और चार सिल्वर मेडल्स'
IPL से पहले इन स्पोर्ट्स लीग में होता आया है ऑल स्टार मैच