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जब घबराई हुई सोनिया गांधी से इंदिरा ने कहा, 'डरो मत, मैं भी जवान थी और मुझे भी प्यार हुआ था'

इंदिरा गांधी के बड्डे पर पढ़ें उनकी सोनिया से पहली मुलाकात का किस्सा.

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सोनिया गांधी ने इंटरव्यू में कहा था कि अगर इंदिरा नहीं होतीं तो वह राजनीति में कभी नहीं आ पातीं.
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विशाल
19 नवंबर 2020 (Updated: 19 नवंबर 2020, 12:05 PM IST) कॉमेंट्स
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सोनिया गांधी ने इंडिया टुडे को इंटरव्यू दिया था. राजदीप सरदेसाई के साथ इस इंटरव्यू में सोनिया ने अपनी और इंदिरा गांधी की जिंदगी के उन पहलुओं को उजागर किया था, जो अभी तक गांधी परिवार की दीवारों के पीछे ही रहते थे. कुछ बेहद खास बातें, सोनिया की जुबानी...

जब पहली बार इंदिरा से मिलना हुआ

1965 में जब उन्हें मेरे और राजीव जी के बारे में पता चला, तो उन्होंने मुझे बुलाया. मैं नर्वस और बहुत घबराई हुई थी, लेकिन वो बिल्कुल नॉर्मल थीं. मुझे इंग्लिश नहीं आती थी अच्छे से, इसलिए वो मुझसे फ्रेंच में बात करने लगीं. तब वो प्रधानमंत्री नहीं थीं. उन्होंने मुझसे कहा था,

'घबराओ मत. मैं भी जवान थी और मुझे भी प्यार हुआ था. मैं समझती हूं.'

मैं बिल्कुल अलग कल्चर से आई थी. भारत आने से पहले राजीव जी मेरे पापा से मिले थे. वो राजीव जी से बहुत इंप्रेस थे, लेकिन अपनी बेटी को लेकर फिक्रमंद भी थे. भारत आने पर मेरी सास ने कहा कि जब हम लोगों ने साथ रहने का फैसला कर लिया है, तो हमें शादी कर लेनी चाहिए. तब तक मैं बच्चन परिवार के साथ रही थी और शादी के बाद मैं राजीव जी के घर आ गई.

इंदिरा जी जैसी दिखती थीं, वो उससे बिल्कुल अलग थीं. वो मेरी परेशानी बहुत अच्छी तरह समझती थीं. वो मेरे खाने तक का ध्यान रखती थीं, जैसे कोई मां अपने बच्चे का ख्याल रखती है. उनकी वजह से मुझे कभी महसूस नहीं हुआ कि मैं बाहरी हूं. कई बार हम लोग घर के बारे में भी बातें करते थे.

इंदिरा ने आपकी राजनीति को कैसे प्रभावित किया

अगर वो न होतीं, तो शायद मैं कभी राजनीति में न आती. उन्होंने अपने परिवार के किसी भी सदस्य पर कभी भी राजनीति में आने का दबाव नहीं डाला. मैं कभी राजनीति में नहीं आना चाहती थी और राजीव जी भी एक पायलट के तौर पर बहुत खुश थी. लेकिन अपनी सास, अपने पति और अपनी पार्टी के प्रति अपना कर्तव्य निभाने के लिए मैं पॉलिटिक्स में आई. अगर मैं ऐसा न करती, तो कायर कहलाती. इंदिरा जी पर भारत के लोगों की जिम्मेदारी थी. उनके लिए लोग ही सबसे पहले थे.

राजनीति में आने पर...

उस समय मेरे जेहन में कुछ भी नहीं था, सिवाय इसके कि मुझे अपनी मां (सास), अपने पति और पार्टी के आदर्शों को बनाए रखना है. सेक्युलरिज्म ही इंदिरा गांधी का आदर्श था. उनके लिए हर भारतीय बराबर था. वो चाहे किसी भी बैकग्राउंड या धर्म. मैंने भी उन आदर्शों का पालन किया.

इमरजेंसी

मुझे नहीं पता कि आज के दौर में वो इमरजेंसी को किस नजरिए से देखतीं, लेकिन अगर उस समय वो इमरजेंसी से असहज न हुई होतीं, तो वो चुनाव न करवातीं. राजीव जी उस समय पायलट थे. लोग उनके पास आते थे और बताते थे कि बाहर क्या-क्या हो रहा है. जब वो वही बातें इंदिरा जी को बताते थे, तो मैं समझ सकती हूं कि उन्हें कैसा महसूस होता था. अगर मैं कभी किताब लिखूंगी, तो इस पर विस्तार से बात करूंगी. अगर मैं लिखूंगी तो.

उस समय हमारे परिवार पर बहुत ज्यादा फोकस नहीं था. ऐसे में उन्होंने मुझे और राजीव जी को सब कुछ समझने का मौका दिया.

इंदिरा गांधी और नरेंद्र मोदी की तुलना पर

मैं इससे सहमत नहीं हूं. जब इंदिरा जी को पार्टी अध्यक्ष बनाया गया था, तब लोगों ने उनका मजाक उड़ाया था. उनका अपमान किया था, लेकिन वो उन सारी चीजों से उबर कर बाहर आईं. राजनीति के हर दौर की अपनी समस्याएं, नेता और विपक्ष रहा है. अवचेतन में शायद मैं उनसे प्रेरणा लेती हूं. मुझे अपने बच्चों पर भरोसा है कि वो खुद अपना मुकाम बना सकते हैं. हमसे बहुत ज्यादा उम्मीदें की जाती हैं, क्योंकि हम एक खास परिवार से ताल्लुक रखते हैं और इससे हमें ताकत मिलती है. मुझे पूरा भरोसा है कि हम 44 सीटों से उठकर उतनी सीटों तक पहुंचेंगे, जितनी संसद में सरकार बनाने के लिए जरूरी हैं. राजनीति में हम हारते हैं, जीतते हैं.

इंदिरा गांधी और नरेंद्र मोदी की तुलना से मुझे कोई दिक्कत नहीं है. मेरा नजरिया इस बारे में बिल्कुल साफ है. इंदिरा गांधी की तुलना किसी से नहीं की जा सकती. हमारे परिवार में हर कोई उनसे प्रभावित है, लेकिन हर किसी की अपनी सोच भी है.

राहुल गांधी, क्या वो राजनीति में नेतृत्व संभालेंगे

इस सवाल का जवाब देने के लिए मैं सही व्यक्ति नहीं हूं.

जिस दिन इंदिरा गांधी की मौत हुई थी...

उस दिन मैं घर पर थी. वो एक इंटरव्यू देने जा रही थीं, भी मैंने बाहर आवाजें सुनीं. मुझे कुछ अजीब महसूस हुआ. मैं हमारे लिए काम करने वाली एक महिला को बाहर भेजा. ये वही था, जिसके बारे में उन्होंने हमें बताया भी था. उन्होंने तो राहुल को भी बताया था. मैं बाहर गई, तो देखा उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया गया था. हम उन्हें अंबैस्डर से हॉस्पिटल ले जा रहे थे, लेकिन सड़क पर बहुत ट्रैफिक था, जिसकी वजह से हमें हॉस्पिटल पहुंचने में वक्त लग गया. मैं कार में उन्हें थामे हुए बैठी थी. उसका सबसे बड़ा योगदान देश के लिए उनकी निष्ठा और समर्पण था. उन्हें लोगों की पहचान थी.

1971 में बांग्लादेश बनने के दौरान इंदिरा

पूर्वी बंगाल के लोगों के लिए वो बहुत खुश थीं. इससे पहले तक हमने वहां के लोगों बारे में बेहद डरावनी कहानियां सुनी थीं कि उनके साथ क्या-क्या हो रहा था. लेकिन इंदिरा जी ने खुद को कभी मां दुर्गा जैसा नहीं समझा. लोगों को उनकी तरफ देखना चाहिए कि कैसे एक महिला सिर्फ और सिर्फ अपने देश के लिए समर्पित रही.

वो आजादी के लड़ाई के दौरान ही बड़ी हुईं. उन दिनों की बात करते हुए वो हमें बताती थीं कि उन्होंने एक वानर सेना बनाई थी, जो इन्फर्मेशन फैलाने का काम करती थी. कुछ-कुछ दिनों के लिए ही सही, लेकिन उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा. उनका सेंस ऑफ ह्यूमर बड़ा अच्छा था. वो लिखती बहुत अच्छा थीं. परिवार के हर सदस्य के लिए वो अक्सर लेटर लिखा करती थीं.

हमें अब भी उनकी बहुत याद आती है.


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