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सूर्यग्रहण लगा तो लोगों को कयामत क्यों याद आ गई ?

एक पौराणिक कहानी सुनी के अनुसार देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया. जिससे हलाहल विष निकला. इस विष को भगवान शिव ने “ग्रहण” किया और नीलकंठ कहलाए. समुद्र मंथन से आखिर में निकला अमृत. जिसे देवताओं में बांटा गया. हालाँकि इसी बीच एक असुर ने अमृत पी लिया.

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solar eclipse conspiracy
अंतरिक्ष में अनंत संभावनाएं हैं (फोटो- एआई)
9 अप्रैल 2024 (Updated: 9 अप्रैल 2024, 11:19 IST)
Updated: 9 अप्रैल 2024 11:19 IST
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आइंस्टीन से पहले हमें पता था कि ग्रेविटी नाम का एक फ़ोर्स होता है. जो चीजों को एकदूसरे की ओर आकर्षित करता है. हालांकि आइंस्टीन से पहले हमें ये नहीं पता था कि ये काम कैसे करता था. फिर साल 1915 में आइंस्टीन ने एक थियोरी दी. जिसे, थियोरी ऑफ जनरल रिलेटिवटी कहते हैं. मोटा माटी कहें तो आकाश और समय के ताने बाने से बना है स्पेस टाइम. ये एक चादर है जो सम्पूर्ण ब्राह्माण में फ़ैली हुई है. इसी चादर में जब कोई भारी चीज राखी जाती है. तो स्पेस टाइम की चादर में सिलवटें पड़ जाती हैं. और इसी कारण पैदा होती है ग्रेविटी. आइंस्टीन की इस थियोरी ने दुनिया के बारे में हमारी समझ में क्रांतिकारी बदलाव किया. हालांकि कमाल की बात ये है कि आइंस्टीन की इस थोयोरी ओर शुरुआत में किसी ने भरोसा नहीं किया. कुछ चार साल बाद फिर एक रोज एक खगोलीय घटना हुई. जिसने आइंस्टीन की बात जो सही साबित कर दिया. ये खगोलीय घटना थी एक सूर्य ग्रहण. सूर्य ग्रहण अपने आप में एक दिलचस्प घटना है. लेकिन इससे भी विचित्र होता है, पूर्ण सूर्य ग्रहण. यानी. टोटल सोलर eclipse. साल में वैसे तो 2-5 बार सूर्य ग्रहण लगता है. लेकिन टोटल सोलर eclipse धरती के एक कोने में चार सौ साल में एक बार होता है.  
तो जानते हैं कि कि सूर्य ग्रहण के पीछे की साइंस क्या है? ये पूर्ण सूर्य ग्रहण से कितना अलग है. अमेरिका  में इस बार सूर्य ग्रहण अपने साथ कौन सी कॉन्सपिरेसी थियोरीज़ लेकर आया है?

एक पौराणिक कहानी सुनी के अनुसार देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया. जिससे हलाहल विष निकला.  इस विष को भगवान शिव ने “ग्रहण” किया और नीलकंठ कहलाए. समुद्र मंथन से आखिर में निकला अमृत. जिसे देवताओं में बांटा गया. हालाँकि इसी बीच एक असुर ने अमृत पी लिया. भगवान् विष्णु ने उसका सर काट दिया. और तबसे ये दो हिस्से दो अलग अलग नामों से जाने गए. एक राहु दूसरा केतु. आज भी मान्यता है कि राहु जब सूर्य को निगल लेता है. तो सूर्यग्रहण हो जाता है. कुछ यही तरीका है चंद्रग्रहण का भी. बहरहाल पौराणिक कहानियों से आगे बढ़ते हुए समझते हौं सूर्यग्रहण की साइंस को.

ग्रहण की साइंस

धरती सूर्य के चक्कर लगाती है. और चंद्रमा धरती के चक्कर लगाता है. हम सब जानते हैं कि धरती को सूर्य के चक्कर लगाने में 365 दिन लगते है. और चंद्रमा. वो कितने दिनों में धरती के चक्कर लगाता है. लगभग 29 दिन.

चांद पृथ्वी के चक्कर लगाता है, और पृथ्वी सूरज के. यही वजह है कि चांद का साइज़ हमें घटता बढ़ता दिखता है. उसके जितने हिस्से में सूरज की रोशनी पड़ती है, पृथ्वी से हम चांद का उतना ही हिस्सा देख पाते हैं. फिर 29 दिनों में एक दिन (या रात कह लीजिए) ऐसा आता है, जब हम पूरा चांद देखते हैं, यानी पूर्णिमा की रात होती है. ऐसा तभी होता है, जब सूरज और चांद पृथ्वी से ऑपोज़िट डायरेक्शन में होते हैं. यानी अगर सूरज पृथ्वी के दाहिनी ओर है, तो चांद बाईं और रहे.

अब ऐसी ही किसी एक रात को पृथ्वी जो है वो सूरज और चांद के एकदम बीचोंबीच आ जाती है, एकदम सीधी लाइन में या फिर करीब-करीब सीधी लाइन में. इस कंडिशन में पृथ्वी की छाया चांद पर पड़ने लगती है, इसे ही चंद्र ग्रहण कहते हैं.

सवाल- हर पूर्णिमा में ग्रहण क्यों नहीं होता?

क्योंकि 'चंदा मामा' का जो पृथ्वी वाला चक्कर है, यानी जो ऑर्बिट है, वो पांच डिग्री झुका हुआ है. इसलिए सूरज, पृथ्वी और चांद के एकदम सीधी लाइन में आने के मौके कम ही बनते हैं. और जब बनते हैं, तब ग्रहण होता है.चंद्रग्रहण समझ लिया. अब सूर्यग्रहण समझना भी आसान है. सूर्यग्रहण एक प्रकार की स्पेशल अमावसया है.    

सूर्य ग्रहण= स्पेशल अमावस्या 

स्पेशल अमावस्या कैसे है? सूर्य ग्रहण तब लगता है जब चन्द्रमा धरती और सूर्य के बीच में आ जाये. धरती से देखने पर ये नजारा ऐसा लगता है मानो चन्द्रमा ने सूर्य को थोड़ा या पूरा ढक लिया है. 
ऐसा इसलिए लगता है क्योंकि चन्द्रमा की परछाई धरती पर पड़ती है. ऐसा कैसे होता है? इसको समझने के लिए आपको अंतरिक्ष  का थोड़ा सा गणित समझना जरुरी है. अगर आप जमीन पर 3 गेंद रखें तो तीनों जमीन से एक बराबर ही टच में रहेंगी यानी सब एक प्लेन में हैं. प्लेन को एक सपाट चादर की तरह मान लें.  लेकिन अंतरिक्ष में जमीन नहीं होती है. वहा सभी प्लेनेट सूर्य और चंद्रमा. गुरुत्वा आकर्षण या ग्रैविटी की वजह से लटके होते हैं. इस वजह से सबका प्लेन अलग अलग होता है. प्लेन अलग अलग होने के कारण अमूमन जब आम अमावस्या होती है.  चन्द्रमा धरती और सूर्य के बीच में होता है. तब उसका जो हिस्सा धरती की तरफ फेस करता है उसपर रत्ती भर भी सूरज की रौशनी नहीं पड़ती. इसलिए ऐसी रात में चन्द्रमा बिलकुल नहीं दिखाई देता. हालांकि चूंकि तीनों का प्लेन अलग अलग है. इसलिए आम अमावस्या में सूरज पर कोई असर  नहीं दिखाई देता. 
अब फ़र्ज़ कीजिए एक रात जब चन्द्रमा धरती और सूर्य के बीच में हो. यानी अमावस्या  हो. लेकिन साथ ही सूरज, चन्द्रमा और धरती, तीनों एक प्लेन पे आ जाएं. मतलब तीनों जैसे एक सपाट चादर पर रखे हुए हों. ऐसा होने पर चन्द्रमा सूरज और सूरज बिलकुल एक सीध में आ जाएंगे. और सूरज का कुछ हिस्सा हमें दिखाई देना बंद हो जाएगा. इसी को कहते हैं - सूर्य ग्रहण. अब ये सूर्य ग्रहण भी अलग अलग प्रकार के हो सकते हैं.      
 

सूर्य ग्रहण के प्रकार

जब चन्द्रमा कुछ हद्द तक धरती और सूर्य के बीच सेम प्लेन में आता है. तब उसे पार्शियल सोलर eclipse कहते हैं. और जब चन्द्रमा पूरी तरह से धरती और सूर्य के बीच आता है और पूरी तरह से एक ही धरती और सूर्य के बराबर वाले प्लेन में होता है तब उसे टोटल सोलर eclipse कहते हैं. साल में 2 से 5 बार सूर्य ग्रहण की सिचुएशन बनती है लेकिन ज्यादातर चन्द्रमा पूरी तरह से धरती और सूर्य के प्लेन में नहीं पहुंच पाता. ये सभी पार्शियल सोलर eclipse होती हैं. लेकिन हर 18 महीने में एक बार पूरी तरह से चन्द्रमा धरती के बराबर वाले प्लेन में आता है तब टोटल सोलर एक्लिप्स होती है. लेकिन आपको एक रोचक बात पता है? हर 18 महीने में एक बार टोटल सोलर एक्लिप्स होती जरूर है लेकिन धरती के किसी एक हिस्से में अगर एक बार टोटल सोलर एक्लिप्स होती है तो दुबारा उसी जगह 400 साल के अंतराल के बाद ही होगी. क्योंकि ये टोटल सोलर eclipse अमेरिका और कुछ आसपास के देशों में 400 साल बाद पड़ने वाली है. इस वजह से अमेरिका में इसको लेकर कई conspiracy theory चल रही हैं. 
 

अमेरिका में Conspiracy Theory 

अमेरिका की एक कांग्रेस वोमन है. माने वहां की सांसद हैं. रिपब्लिकन पार्टी की इन सांसद का नाम है, Marjorie Taylor Greene. इन्होंने प्लैटफॉर्म x पर एक पोस्ट किया है.  
 

“God is sending America strong signs to tell us to repent. Earthquakes and eclipses and many more things to come.I pray that our country listens.”  
 

इसका मतलब है, भगवान अमेरिका को कड़े संकेत दे रहा है. जिससे अमेरिकी अपने पापों का प्राश्चित करें. सबसे पहले भूकंप फिर ये सूर्य ग्रहण अभी और भी चीज़ें होनी बाकी हैं. अब इनको कौन समझाए कि ये सोलर एक्लिप्स समय की गणित के तहत ही होता है. 400 साल पहले जब अमेरिका में कुछ नहीं था तब भी हुआ था और आज जब अमेरिका एक सुपरपावर है तब भी हो रहा है. बाकि अमेरिका के लोग तो इसे देखने के लिए एकदम आतुर है. ये सोलर एक्लिप्स अमेरिका में जिन जगहों से गुजरने वाला है उन जगहों में होटलों के रेट बढ़ गए हैं. क्योंकि अमेरिका के लोग इस खास मौके के शाक्षी बनना चाहते हैं. ऐसे किस्से तो होते रहेंगे लेकिन आप अपने अंदर एक वैज्ञानिक चेतना को ज़िंदा रखें. 

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