'कश्मीर फ़ाइल्स' देखिए या मत देखिए, लेकिन ये काम बिल्कुल मत कीजिए!
कश्मीर फ़ाइल्स की The End प्लेट के बाद कोई ना कोई खड़ा होकर मुट्ठी भींच ले रहा है.
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कश्मीर फ़ाइल्स. एक फ़िल्म, एक नाम, एक कीवर्ड. कीवर्ड क्यों? और कैसे? वो शब्द जो चाभी बन जाता है. हर दिन सोशल मीडिया के अबूझ ताले को एक चाभी चाहिए होती है. वो शब्द जो दीवार पर अलगनी की तरह लोगों की क़मीज़ तौलिए संभाले रखता है. सोच समझ की क़मीज़. सीने की धौंकनी से चलकर कान तक पसरता जाता है. कीवर्ड की तबीयत ऐसी ही होती है. मंच पर गोल चौंधियाती रौशनी में खड़ा कलाकार. सबकी नज़रें इसी कीवर्ड पर.
नज़र का एक और खेल है सिनेमा. जो रील से पर्दे तक लांघते फ़ांदते नज़रिया भी बना सकता है. देखने वालों के दिमाग़ में, गहरे तक. कश्मीर फ़ाइल्स जब सिनेमा घरों में उतरी तो अपनी नज़र और नज़रिए के साथ आई. विवेक अग्निहोत्री का निर्देशन और अनुपम खेर की अदाकारी इस फ़िल्म के साथ नत्थी है. कई फ़िल्मों के पुराने निर्देशक और अदाकार हैं दोनों. देखे दिखाए. लेकिन इस बार मामला कुछ अलग है. लोग सरपट फ़िल्म देखने की बात कह रहे. नंदू की चाय का ठीया हो या अग्रवाल स्वीट हाउस, बात इसी फ़िल्म की चल रही है.
कश्मीरी पंडितों के विस्थापन पार बनी ये फ़िल्म इतना जाबड़ कीवर्ड है कि फ़िलवक़्त हर पहेली की चाभी बना हुआ है.
अगर ये फ़िल्म देखनी हो तो अगले के पास इसे बेपैसा देखने का भी जुगाड़ है. जत्थों में कश्मीर फ़ाइल्स देखने जा रहे लोग तैयार हैं कि अगर कोई देखना चाहे तो अपने खर्च पर दिखाएंगे. सोशल मीडिया पर खुले निमंत्रण हैं. आइए, साथ चलकर फ़िल्म देखिए. कई लोग इसे घर-घर दिखाने के मिशनरी मोड से लैस हैं. ऐसा आपके साथ आख़िरी बार कब हुआ था? सोचिए.
सिनेमाघरों की बात. क़रीबन 2 घंटे 50 मिनट फ़िल्म देखने के बाद आमतौर पर क्या होता है? या किसी भी फ़िल्म के The End के बाद सिनेमाघर की स्थापित परंपरा क्या है? घर जाना. चिल टाइम बीतने और आने वाले काम की सोचकर उदास होते हुए टपरी पर चाय पीना. चाय पीते-पीते जीवन के दुख का बोल कर पार्ट टाइम दार्शनिक हो जाना. फिर अगले दिन आयोडेक्स मलना और काम पर चलना. यही तो है रिवाज़?
लेकिन कश्मीर फ़ाइल्स की End प्लेट के बाद ऐसा अमूमन हो नहीं रहा. फ़िल्म के पूरने पर कोई ना कोई खड़ा होकर मुट्ठी भींच ले रहा है. भाषण वाले मोड में चला जा रहा है. क़रीबन दो घंटे 50 मिनट बाद लोगों की पर्सनल शॉर्ट फ़िल्म शुरू हो जा रही है. जनता को रोक कर अपना ‘मैसेज’ देने की नई रीत.
आप फ़िल्म देखिए. एक नहीं दो बार देखिए. तब तक देख सकते हैं जब तक आपकी निजी अर्थव्यवस्था मुंह बिचकाकर आपके सामने खड़ी नहीं हो जाती. बटुआ जितनी बार इजाज़त दे, उतनी बार देखिए. लेकिन कुछ काम हैं जो आपको नहीं करने चाहिए. आप फ़िल्म देखें या ना देखें, इन कामों से दूर रहें.
पहला, हेट स्पीच ना दें
कश्मीर फ़ाइल्स जिन सिनेमाघरों में चल रही है वहां से कई वीडियो आ रहे हैं. सोशल मीडिया पर बंटते इन वीडियो में जो दिख रहा है वो ख़तरनाक है. सिनेमा देखने परिवार के साथ आए लोगों को डराइए मत. ये मत बताइए कि आने वाले पांच-सात-दस बरसों में उनका भी नंबर आएगा. ऐसा कर के आप अपने हमारे सिस्टम को नाकारा साबित कर रहे हैं. लॉ एंड ऑर्डर जिसे सुचारू तौर पर चलाते रहने के लिए हम आप दिन रात मेहनत करते हैं, टैक्स देते हैं. और ये टैक्स सारा भारत देता है. याद रखने लायक़ चीज़ है.
जैसे ये वीडियो देखिए-
दूसरा, डेमोक्रेसी का मज़ाक़ मत उड़ाइए लोगों को ‘उन लोगों’ से सावधान रहने की भावुक अपील की ज़रूरत नहीं. लोगों ने फ़िल्म देख ली. उन्हें इसका तिया पांचा समझने दीजिए. एक वीडियो में शख़्स समझा रहा है कि लोगों ने पंजाब में ग़द्दारों को जिता दिया. 'टुकड़े-टुकड़े गैंग' जैसे वॉट्सऐप रेफ़रेंस देते हुए हॉल में कहा जा रहा कि लोग ‘बिजली पानी पर बिक गए’. ऐसा करके आप अपने लोकतंत्र का ही मज़ाक़ उड़ा रहे हैं. वो लोकतंत्र जिस तक पहुंचने के लिए अनगिनत शहादतें हुईं. अनगिनत लोग इस लोकतंत्र की नींव में ईंट बनकर खप गए. ये भी याद रखा जाना चाहिए.After watching The Kashmir Files at Varun INOX in Vizag, former CRPF officer Purushothama Rao shared with the audience: "I worked at the CRPF Control Room in Delhi during the genocide and expulsion of Kashmiri Pandits. We recorded everything but the govt did nothing." Part 1 pic.twitter.com/3qNITEr8av
— Rakesh Krishnan Simha (@ByRakeshSimha) March 15, 2022
Cinema theaters are not easily accessible to majority of rural people. Hence it must be shown on TV by DD & patriotic TV channels. Movie must be aired regularly on different dates at different times. It must be translated in all regional languages. @vivekagnihotri #KashmirFiles pic.twitter.com/H4izM0fZDj — 🇮🇳 राम वंशज विनिष वरमानी (@vinish_ind) March 15, 2022तीसरा, मजबूरी मत बनाइए ये वीडियो देखिए, इसमें सिनेमा घर के मालिक से फ़िल्म पर तमाम सवाल पूछे जा रहे हैं. ये नहीं भूलना चाहिए कि सिनेमा आख़िरकार कारोबार है. जैसे हमारे आपके अपने कारोबार हैं.
चौथा, निराधार बातों से बचिए इस वीडियो को देखिए. आमिर खान, शाहरुख़ खान, सलमान खान की फ़िल्मों समेत पूरी फ़िल्म इंडस्ट्री का बायकॉट करने की अपील की जा रही है. इसका क्या आधार है, ये आप समझ सकते हैं. अगर आपका दावा है कि कोई सच आप तक लाया गया है तो उसका माध्यम भी वही सिनेमा है जिसका आप बायकॉट करने की बात कह रहे.अगर देश में रहना होगा, ‘कश्मीरी फाइल्स’ देखना होगा … pic.twitter.com/qKp7sukBVO
— Om Thanvi (@omthanvi) March 15, 2022
“Teach your children to hate Muslims…Don’t vote for anybody else other than BJP.” This is the radicalizing effect the newly released Hindu terrorist propaganda film #kashmirFiles is having on Hindu movie goers across India. pic.twitter.com/GFmrcAfXTl — CJ Werleman (@cjwerleman) March 15, 2022पाँचवा, किसी के डर की वजह मत बनिए.