-60 डिग्री टेंपरेचर वाला सियाचिन, जहां फौजी भी कांप जाते हैं, वहां अब आम लोग भी जा सकेंगे
राजनाथ सिंह के इस फैसले से पाकिस्तान और चीन दोनों को झटका लग सकता है.
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रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 21 अक्टूबर को ऐलान किया कि अब सियाचिन ग्लेशियर को आम लोगों के लिए भी खोल दिया गया है.

सियाचिन ग्लेशियर का तापमान -60 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है, लेकिन हमारे जवान ऐसे माहौल में भी तैनात रहते हैं.
ऐसे माहौल में तैनात सैनिकों के साहस की सैकड़ों घटनाएं हैं, जो हम किताबों में, अखबारों में और फिल्मों में पढ़ते-देखते आए हैं. लेकिन अब इस माहौल को और करीब से या यूं कहें कि ग्राउंड ज़ीरो से महसूस किया जा सकता है. वो इसलिए क्योंकि भारत सरकार ने सियाचिन में टूरिस्टों को जाने की मंजूरी दे दी है. 5 अगस्त, 2019 से पहले सियाचिन जम्मू-कश्मीर के लद्दाख इलाके का हिस्सा था, जहां पर सेना की तैनाती थी और आम लोगों के जाने की मनाही थी. लेकिन जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक के पास हो जाने के बाद ये सियाचिन अब केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख का हिस्सा बन गया है.
कैसा है सियाचिन?
सियाचिन ग्लेशियर की सबसे ऊंची पोस्ट का नाम है बना पोस्ट. इसकी ऊंचाई करीब 23,000 फीट है. इस ग्लेशियर की लंबाई 76 किमी है, जो दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा ग्लेशियर है. यहां पर भारत और पाकिस्तान का लाइन ऑफ कंट्रोल है. 1947 में जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ था, तो ये तय नहीं हो पाया था कि सियाचिन ग्लेशियर किसके हिस्से में होगा. तब तक किसी भी देश की सेना यहां पर तैनात नहीं होती थी. 70 के दशक में पाकिस्तान ने अपने पर्वतारोहियों को सियाचिन की चढ़ाई के लिए भेजना शुरू कर लिया. पर्वतारोहियों के साथ पाकिस्तानी आर्मी का एक अधिकारी भी जाता था. 1978 में भारत ने भी अपने पर्वतारोही भेजने शुरू कर दिए. लेकिन 1984 में पाकिस्तान ने जापान की एक टीम को चोटी मापने की इजाजत दे दी. भारत को लगा कि जापानी टीम को तो भारत से परमिशन लेनी चाहिए थी. ऐसा इसलिए भी था, क्योंकि ग्लेशियर के पूर्वी छोर पर अक्साई चीन था. भारत इसपर भी अपना दावा जताता है, लेकिन फिलहाल वो चीन के कब्जे में है. भारत को लगा कि अगर सियाचिन पर पाकिस्तान का दावा होता है, तो भारत कमजोर पड़ जाएगा. इसलिए भारत ने ग्लेशियर को अपने कब्जे में लेने की योजना बनाई. ऑपरेशन का नाम रखा गया ऑपरेशन मेघदूत. 13 अप्रैल, 1984 तक करीब 300 सैनिक ग्लेशियर की ऊंची चोटी तक पहुंच गए थे. और उन्होंने सियाचिन ग्लेशियर पर अपना कब्जा कर लिया. इसके बाद से ही भारतीय सेना के जवान सियाचिन में तैनात रहते हैं.

साल 1984 में भारतीय सेना ने सियाचिन ग्लेशियर पर अपना कब्जा जमाया था.
सरकार का फैसला क्या है?
21 अक्टूबर को देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और आर्मी चीफ जनरल विपिन रावत सियाचिन पहुंचे थे. वो सियाचिन की चीन से लगती सीमा से करीब 42 किमी की दूरी पर बने कर्नल चेवांग रिनचेन ब्रिज का उद्घाटन करने पहुंचे थे. पुल के उद्घाटन के बाद राजनाथ सिंह ने कहा-
''लद्दाख के सांसद ने इस क्षेत्र को टूरिजम के लिए खोलने के लिए कहा था. मुझे यह बताते हुए खुशी है कि मोदी सरकार ने सियाचिन बेस कैम्प से लेकर कुमार पोस्ट तक का एक रास्ता टूरिस्टों के लिए खोलने का फैसला किया है.''
Delighted to dedicate to the nation the newly constructed ‘ Colonel Chewang Rinchen Bridge’ at Shyok River in Ladakh.
This bridge has been completed in record time. It will not only provide all weather connectivity in the region but also be a strategic asset in the border areas pic.twitter.com/cwbeixGOCR
— Rajnath Singh (@rajnathsingh) October 21, 2019
Delighted to dedicate to the nation the newly constructed ‘ Colonel Chewang Rinchen Bridge’ at Shyok River in Ladakh. This bridge has been completed in record time. It will not only provide all weather connectivity in the region but also be a strategic asset in the border areas pic.twitter.com/cwbeixGOCR
— Rajnath Singh (@rajnathsingh) October 21, 2019
क्या-क्या देख पाएंगे टूरिस्ट?
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के मुताबिक, टूरिस्ट सियाचिन के आधार शिविर से लेकर कुमार पोस्ट तक जा सकेंगे. सियाचिन का आधार शिविर करीब 12,000 फीट की ऊंचाई पर है. यहां का न्यूनतम तापमान -60 डिग्री तक होता है. वहीं कुमार पोस्ट 18,875 फीट की ऊंचाई पर है. अब पर्यटक इस पूरे क्षेत्र में पूरे साल जा सकेंगे. वो देख सकेंगे कि किन परिस्थितियों में हमारे सेना के जवान काम करते हैं. हालांकि 2007 से साल में एक बार आम लोगों को इस क्षेत्र में ट्रैकिंग की इज़ाजत थी. लेकिन अब पर्यटक साल भर इस क्षेत्र में घूम सकेंगे.

लद्दाख में कर्नल चेवांग रिनचेन ब्रिज का उद्घाटन करने के बाद राजनाथ सिंह ने कहा कि सियाचिन आधार शिविर से लेकर कुमार पोस्ट तक टूरिस्ट जा सकेंगे.
क्या होगा फायदा?
सियाचिन को आम लोगों के लिए खोलने के कई फायदे हैं. पहला तो यही है कि इस क्षेत्र में टूरिज़्म बढ़ेगा, तो रोजगार बढ़ेगा. बड़ी-बड़ी कंपनियां यहां पर निवेश करेंगी. जो सियाचिन अभी आम लोगों से कटा हुआ है, लोग अब उसकी खूबसूरती देख पाएंगे. इसके अलावा सियाचिन का खुलना पाकिस्तान और चीन दोनों के लिए एक संदेश भी है. संदेश ये कि अब सियाचिन भी भारत के और दूसरे हिस्सों की तरह है, जहां पर भारत के आम नागरिक कहीं भी और कभी भी आ-जा सकते हैं. इसके अलावा एक फायदा ये होगा कि जब नौजवान सैनिकों को इन मुश्किल परिस्थितियों में काम करता हुआ देखेंगे, तो सेना के प्रति उनका रुझान बढ़ जाएगा. हालांकि अब तक सियाचिन प्रदूषण से बचा हुआ है और टूरिस्ट्स के जाने से वहां प्रदूषण फैल सकता है.

ये तस्वीर इसी साल मई की है, जब दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट पर ट्रैफिक जाम हो गया था, क्योंकि ज़रूरत से ज्यादा लोग एक साथ पहुंच गए थे.
जब पर्यटक यहां पहुंचना शुरू करेंगे, तो अपने साथ पॉलिथीन और कागज जैसी दूसरी चीजें लेकर जाएंगे, जिससे प्रदूषण का खतरा बना रहेगा. उत्तरी कमान के पूर्व प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल बीएस जसवाल ने भी कहा है कि पर्यटक पहुंचेंगे तो कचरा बढ़ेगा और इससे ग्लेशियर को खतरा होगा. एक आंकड़ा ये कहता है कि सियाचिन में सैनिकों की मौजूदगी की वजह से अब भी हर रोज करीब 1 हजार किलो कचरा रोज बढ़ता है.
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