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देश के किसानों और अर्थव्यवस्था की हालत पर दो रिपोर्ट्स आई हैं, जानें मौसम कितना 'गुलाबी' है

दो में से एक रिपोर्ट तो स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया (SBI) की है, जिसमें MSP के दायरे के बाहर की फसलों के लिए कृषि बाज़ारों और ग्रामीण हाट जैसे वैकल्पिक सिस्टम बनाने की वकालत की गई है.

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भारतीय किसान. (सांकेतिक तस्वीर - PTI)
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सोम शेखर
10 जुलाई 2024 (Published: 23:24 IST)
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इस साल की फ़रवरी में फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की लीगल गारंटी को लेकर किसानों ने प्रदर्शन किया था. विपक्षी घटक ने भी स्वामीनाथन रिपोर्ट के तहत MSP की गारंटी देने का वादा किया था. अब इस लंबित बहस के बीच स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट आई है, जिसमें सुझाव दिया गया है कि सरकार को आगामी केंद्रीय बजट में किसानों की सहायता के लिए वैकल्पिक सिस्टम बनाना चाहिए. रिपोर्ट के मुताबिक़, सरकार फसलों के कुल उत्पादन का लगभग 6% हिस्सा ही ख़रीदती है. इसके मद्देनज़र बाक़ी 94% उत्पादन के लिए कृषि बाज़ारों और ग्रामीण हाट जैसे वैकल्पिक सिस्टम बनाने की ज़रूरत है.  

भारत की कृषि से संबंधित एक और रिपोर्ट आई है. अंतरराष्ट्रीय न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स ने छापी है. इसके अनुसार, पांच महीने की गिरावट के बाद जून में भारत में उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फ़ीति (CPI) बढ़ सकता है. कारण? सब्ज़ी-तरकारी के दाम बढ़ गए हैं. कारण? ख़राब मौसम के चलते उत्पाद को नुक़सान हुआ है.

एक-एक कर समझते हैं, दोनों रिपोर्ट्स क्या कह रही हैं?

SBI की रिपोर्ट में क्या है?

केंद्र सरकार 23 जुलाई को केंद्रीय बजट पेश करने की तैयारी कर रही है. ऐसे में SBI ने एक शोध रिपोर्ट छापी है. सतत आर्थिक वृद्धि और विकास को बढ़ावा देने वाली कई सिफ़ारिशें हैं. अलग-अलग क्षेत्रों में. कृषि को लेकर भी उनके ऑब्ज़र्वेशन्स हैं.  

1. अगर सरकार सभी फसलों पर MSP की गारंटी दे दे, तो सरकार को 13.5 लाख करोड़ रुपये का नुक़सान हो सकता है. इसके इतर MSP की गारंटी देने से MSP के दायरे से बाहर जो फसले हैं, उनकी उपेक्षा हो सकती है, निजी निवेश रुक सकता है, प्रतिस्पर्धा कम हो सकती है और व्यापार लफड़े बढ़ सकते हैं.

2. MSP की लीगल गारंटी के अलावा भी विकल्प हैं. मसलन, प्राइवेट ख़रीदारों को बाध्य किया जाए कि वो MSP से ऊपर ही फसल ख़रीदें. या फिर मूल्य कमी भुगतान सिस्टम (price deficiency payment system) में काम हो. इसमें सरकार किसान को MSP नहीं देती. लेकिन अगर वो MSP से कम दाम पर पैदावार बेचता है, तो MSP और सेलिंग प्राइस का अंतर पाट देता है. इससे सरकारी बटुवे पर बोझ भी कम पड़ता है और किसान को भी घाटा नहीं होता.

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3. भारत के किसान को समर्थन देने के लिए नीति निर्माताओं को बेहतर कृषि इंफ़्रास्ट्रक्चर बनाना चाहिए. फसलों का विविधीकरण करना चाहिए. ज़्यादा दाम वाली जलवायु-अनुकूल फसलों को बढ़ावा देना चाहिए.

4. सरकार को आने वाले बजट में MSP मुद्दे को संज्ञान में लेना चाहिए. किसानों से सीधे उपभोक्ता तक पहुंचने के लिए ज़्यादा मंडियां बनानी चाहिए. इन बाज़ारों से किसान अपनी उपज सीधे कस्टमर को बेच सकेंगे, जिससे उनकी आय और बाज़ार तक पहुंच में सुधार होगा.

5. राज्य सरकारों को शहरी हाट बनवाने चाहिए, ताकि किसान सीधे ग्राहक से जुड़ सकें.

MSP व्यवस्था के अंदर निहित मुद्दों - जैसे अनावश्यक राजनीति, निजी निवेश को हतोत्साहित करना, ग़ैर-MSP फसलों की उपेक्षा, निर्यात प्रतिस्पर्धा में कमी और व्यापार विवादों का बोझ - पर गंभीरता से विचार किए जाने की ज़रूरत है.

6. सरकार गेहूं और चावल (धान) का सबसे बड़ा हिस्सा पंजाब और हरियाणा के किसानों से ख़रीदती है. धान के स्टॉक के लिए पंजाब से 92.8% और हरियाणा से 73.6%. गेहूं के उत्पादन का 72% और हरियाणा से 56.6% हिस्सा आता है.

7. कृषि और संबद्ध गतिविधियों के लिए लिया गया क़र्ज़ बढ़ा है. वित्त वर्ष 2013-14 में 6 लाख करोड़ रुपये था, जो 2023-24 में बढ़कर 20.7 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है. बावजूद इसके, MSP प्रणाली में बाधाएं आ रही हैं.

8. रिपोर्ट में किसानों की क़र्ज़ माफ़ी की आलोचना की गई है. लिखा है कि क़र्ज़ माफी भले ही किसानों को कुछ देर के लिए राहत दे दे, वो कृषि फ़ाइनैंस सिस्टम की स्थिरता को कमज़ोर करती है.

रॉयटर्स की रिपोर्ट क्या कहती है?

अंतरराष्ट्रीय न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स ने 54 अर्थशास्त्रियों से एक सर्वे करवाया है. इसमें अनुमान लगाया गया है कि भारत में चार महीनों तक जो महंगाई कम थी, जून महीने में बढ़ सकती है. इसकी मुख्य वजह ख़राब मौसम है. ख़राब मौसम मतलब फसलों को नुक़सान. मतलब सब्ज़ी-तरकारी की क़ीमतों में उछाल. उत्तर भारत में गर्मी और बाढ़ के चलते टमाटर, प्याज़ और आलू जैसी प्रमुख खाद्य आइटम्स के दाम तेज़ी से बढ़े हैं. जो उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति (CPI) मई में 4.75% थी, रिपोर्ट के अनुमान के मुताबिक़ जून में 4.8% हो सकती है.

महंगाई में एक बड़ा हिस्सा खाद्य की वजह से होता है. अर्थशास्त्री कनिका पसरीचा का कहना है कि एक तरफ़ तो अंडे, फलों और मसालों की क़ीमत कम हुई है, मगर सब्ज़ियों, अनाज और दालें महंगी हो गईं.

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कोर मुद्रास्फ़ीति के 3.10% पर रहने का अनुमान है. इससे पता चलता है कि अर्थव्यवस्था के 8% से ज़्यादा बढ़ने के बावजूद, लोग कुल-मिलाकर बहुत ज़्यादा ख़रीदारी नहीं कर रहे हैं. माने लोग अपनी जेबें कसे हुए हैं.

एक बात और. हाल ही में दूरसंचार शुल्कों में बढ़ोतरी हुई है. इससे आने वाले महीनों में महंगाई बढ़ सकती है. अर्थशास्त्री साजिद चिनॉय का मानना है कि इससे कुल मुद्रास्फ़ीति में लगभग 0.2% की वृद्धि हो सकती है. 

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की अपेक्षा है कि मुद्रास्फ़ीति 4% के अंदर रहेगी. मगर इस रिपोर्ट में ऐसी आशंका जताई गई है कि आंकड़ा इसके पार जाएगा. इस वजह से मुमकिन है कि RBI ब्याज दरों में उतनी कमी न करे, जितनी कुछ लोगों ने उम्मीद की थी. 

वीडियो: खर्चा-पानी: सरकार ने किसानों को जो ऑफर दिया वो स्वामीनाथन रिपोर्ट से कितनी अलग है?

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