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डीयू का वो प्रोफेसर जिसे संसद भवन पर हमला करने के लिए फांसी हुई और सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया

प्रोफेसर का नाम था सैयद अब्दुल रहमान गिलानी, जिनका 24 अक्टूबर को देहांत हो गया.

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पुलिस की गिरफ्त में दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर सैयद अब्दुल रहमान गिलानी. 24 अक्टूबर को उनका निधन हो गया. (फाइल फोटो)
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सिद्धांत मोहन
25 अक्तूबर 2019 (Updated: 25 अक्तूबर 2019, 02:27 PM IST) कॉमेंट्स
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सैयद अब्दुल रहमान गिलानी. दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर. साल 2000 के बाद ये नाम बहुत चर्चा में रहा. गिलानी पर आरोप लगा कि वे संसद भवन पर हमले की साज़िश में शामिल थे. उन पर केस चला. सज़ा हुई. लेकिन बाद में सबूतों के अभाव में गिलानी को बरी कर दिया गया. 24 अक्टूबर को गिलानी का निधन हो गया. उनकी मौत के कारणों के बारे में उनके साथ मौजूद लोगों ने बताया है कि उन्हें सीने में तेज़ दर्द उठा, उसके कुछ देर बाद उनकी मौत हो गई.
गिलानी दिल्ली यूनिवर्सिटी के जाकिर हुसैन कॉलेज में अरबी भाषा पढ़ाते थे. उनके परिवार में उनकी एक पत्नी और दो बेटियां हैं. गिलानी का नाम सबसे पहले आम लोगों और मीडिया के बीच आया था साल 2001 में. इस साल 13 दिसंबर को भारत के संसद भवन पर आतंकी हमला हुआ था. हमला करने वाले लोग लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों से जुड़े हुए थे. इस हमले में पांच आतंकी मारे गए थे. उनके साथ ही दिल्ली पुलिस के छः जवान, संसद भवन के दो सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए थे, जबकि संसद भवन का एक माली भी आतंकियों की गोली का शिकार हो गया था.
प्रोफेसर गिलानी का नाम संसद भवन पर हमले के आरोपी के तौर पर सामने आया था. निचली अदालत ने फांसी की सजा दी थी, लेकिन बाद में हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफेसर गिलानी को बरी कर दिया था.
प्रोफेसर गिलानी का नाम संसद भवन पर हमले के आरोपी के तौर पर सामने आया था. निचली अदालत ने फांसी की सजा दी थी, लेकिन बाद में हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफेसर गिलानी को बरी कर दिया था.

जब इस घटना की तफ्तीश शुरू हुई तो जांच एजेंसियों ने चार लोगों को गिरफ्त में लिया. अफज़ल गुरु. शौकत हुसैन गुरु, शौकत हुसैन गुरु की पत्नी नवजोत संधू उर्फ़ अफसान गुरु और सैयद अब्दुल रहमान गिलानी. गिलानी इस समय दिल्ली यूनिवर्सिटी में लेक्चरर के पद पर कार्यरत थे. जांच पूरी हुई. जांच एजेंसियों ने CrPC के सेक्शन 173 के तहत चारों आरोपियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर दी.
इस समय सुनवाई स्पेशल कोर्ट में चला रही थी. गिलानी के साथ-साथ चार लोगों के मामले की सुनवाई छः महीने के भीतर पूरी कर ली गयी. गिलानी के साथ-साथ अफज़ल गुरु और शौकत हुसैन को सेक्शन 121, 121A, 122, 120B, 302, 307 और पोटा के तहत आरोप तय हुए. तीनों को स्पेशल कोर्ट ने फांसी की सज़ा सुना दी, जबकि नवजोत संधू को पांच साल का सश्रम कारावास सुनाया गया.
गिलानी ये मामला लेकर दिल्ली हाई कोर्ट गए. अक्टूबर 2003 में दिल्ली हाई कोर्ट ने उन्हें इस मामले में आरोपों से बरी कर दिया. कोर्ट ने कहा कि जांच एजेंसियों के पास गिलानी पर आरोप सिद्ध करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं थे. फिर जांच एजेंसियां गिलानी के खिलाफ मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट गईं. सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2005 में हाई कोर्ट का फैसला बरकरार रखा, लेकिन PTI की रिपोर्ट की मानें तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोर्ट को उनके रोल पर संदेह हो रहा है.
संसद भवन पर हमले के दोषी अफजल गुरु को तो फांसी हो गई, लेकेिन कोर्ट ने प्रोफेसर गिलानी को सबूतों के अभाव में रिहा कर दिया था.
संसद भवन पर हमले के दोषी अफजल गुरु को तो फांसी हो गई, लेकेिन कोर्ट ने प्रोफेसर गिलानी को सबूतों के अभाव में रिहा कर दिया था.

गिलानी को जब आरोपों से बरी किया गया, तो कई लोगों ने जांच एजेंसियों पर सवाल उठाए. कहा कि गिलानी को आतंकवाद के आरोपों में फ्रेम किया गया था, लेकिन एजेंसियों ने ये ध्यान नहीं दिया कि उन्हें कोर्ट में आरोप सिद्ध भी करने हैं और इसलिए उनके पास सबूत उपलब्ध नहीं थे. गिलानी के बरी होने के बाद वेंकटरमा रेड्डी और पीपी नावलेकर ने इस मामले पर आउटलुक पत्रिका में 7 हिस्सों में रिपोर्ट की थी. इसमें लिखा गया था कि शौकत के मकानमालिक ने इस हमले में शामिल आतंकवादियों के साथ गिलानी और शौक़त को देखा था. गिलानी के बारे में ये भी कहा गया कि वे लम्बे समय से अफ़ज़ल गुरु के सम्पर्क में थे. और 12 दिसम्बर 2001, यानी संसद पर हमले के ठीक एक दिन पहले - गिलानी ने फ़ोन पर शौक़त और अफ़ज़ल गुरु से बात की थी. इसके बारे में जब गिलानी से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उन्होंने सिर्फ़ शब-ए-क़द्र की बधाई देने के लिए फ़ोन पर बात की थी. जांच एजेंसियों के हवाले से ये भी कई मौक़ों पर लिखा गया कि गिलानी-शौक़त और अफ़ज़ल गुरु के बीच कई मौक़ों पर बातचीत हुई. 13 दिसम्बर की रात को भी. ये बात भी कही गई कि गिलानी ने शौक़त और नवजोत संधू की शादी में शिरकत की थी. लेकिन अदालत में इन बातों और बहुत सारी दूसरी बातों  का 13 दिसम्बर की घटना से कोई सीधा संबंध नहीं बैठ सका.
लिहाज़ा अदालतों ने गिलानी को आरोपों से बरी कर दिया, फिर भी एक संशय बरक़रार रहा. गिलानी को न्याय दिलाने में दो वकीलों का नाम लिया जाता है. इन दो वकीलों ने फांसी के फंदे से उतारकर गिलानी को एक स्वस्थ और आज़ाद जीवन दिया. नंदिता हकसार और राम जेठमलानी. इन दोनों ही वकीलों ने गिलानी का केस लड़ने की वजह से बहुत विरोध झेला. राम जेठमलानी के मुंबई दफ़्तर पर शिवसेना ने तोड़फोड़ की, ऐसी भी ख़बरें भी चलीं.
साल 2016 में प्रोफेसर गिलानी एक बार फिर से चर्चा में आए थे. उनके ऊपर देशद्रोह का केस दर्ज हुआ था. हाई कोर्ट से जमानत पर बाहर थे.
साल 2016 में प्रोफेसर गिलानी एक बार फिर से चर्चा में आए थे. उनके ऊपर देशद्रोह का केस दर्ज हुआ था. हाई कोर्ट से जमानत पर बाहर थे.

संसद हमले केस में बाहर आने के बाद गिलानी 2016 में फिर से चर्चा में आए. उन पर देशद्रोह का मुक़दमा दर्ज हुआ. क्यों? क्योंकि उनपर आरोप थे कि उन्होंने नई दिल्ली के प्रेस क्लब में अफ़ज़ल गुरु के समर्थन में कार्यक्रम आयोजित कराया था. इसके पहले ही जेएनयू में इस तरह के कार्यक्रमों को लेकर बवाल खड़ा हो चुका था. मुक़दमा दर्ज हुआ और कुछ दिनों बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने गिलानी को ज़मानत दे दी. इसके बाद से ही गिलानी जमानत पर रिहा थे. लेकिन 24 अक्टूबर को हुआ सीने का दर्द उनकी आखिरी मुसीबत बना. इसके कुछ ही देर के बाद उनकी मौत हो गई.

आतंकी अफजल गुरु का इंटरव्यू: संसद पर हमले की साजिश कैसे रची गई?

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