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थैंक्स सलमान खान, हमारी भाषा की नंगई दिखाने के लिए

दिक्कत सलमान खान की नहीं है. दिक्कत उस भाषा की है, जो इस सोसाइटी में घुली हुई है.

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फोटो - thelallantop
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प्रतीक्षा पीपी
21 जून 2016 (Updated: 21 जून 2016, 10:31 AM IST) कॉमेंट्स
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"शूटिंग के 6 घंटों में खूब उठा-पटक करनी होती थी. ये मेरे लिए बहुत मुश्किल था. क्योंकि 120 किलो के आदमी को 10 बार 10 अलग-अलग एंगल से उठाना पड़ता था. और उतनी ही बार ज़मीन पर रखना पड़ता था. जबकि असल कुश्ती में ये इतनी बार रिपीट नहीं होता. जब शूटिंग के बाद मैं रिंग से निकालता, मुझे ऐसी औरत जैसा महसूस होता जिसका रेप हुआ हो. मैं सीधा नहीं चल पाता था. खाना खाता, फिर ट्रेनिंग के लिए लौट जाता. हम ट्रेनिंग नहीं रोक सकते थे."
'स्पॉटबॉय-इ' को एक इंटरव्यू देते हुए सलमान खान ने बताया कि सुल्तान की शूटिंग करते वक़्त उन्हें कितनी मेहनत लगी. हमें यकीन है, मेहनत लगी होगी. आखिरकार सलमान स्टार हैं. फैन्स को उनसे उम्मीदें हैं. लोग उन्हें अपना आदर्श मानते हैं, उनके जैसा बनना चाहते हैं. फैन्स का भी ये जानना जरूरी है सलमान ने सुल्तान के लिए कितनी मेहनत की.
बस सलमान का तरीका गलत हो गया.
मैं एक मिडिल क्लास लड़की हूं. हमेशा बस से स्कूल गई. हमेशा हॉस्टल में रही. कभी बाहर गई, तो हमेशा रात 10 के पहले वापस आ गई. मेरे साथ कभी कोई हिंसा नहीं हुई, किसी भी तरह की. मेरा कभी रेप नहीं हुआ. लेकिन ऐसा काफी कुछ हुआ है, जिसने मुझे रुलाया है, जिसके खयालों ने रात को मुझे सोने नहीं दिया है.
मैं और मेरी जैसी लड़कियां जब पब्लिक ट्रांसपोर्ट लेती हैं, कई लोग होते हैं जो घूरते रहते हैं. इस तरह से, कि पा जाएं तो अगली लड़की को नोच खाएं. ऐसा भी हुआ है कि लड़के बाइक पर आए, ब्रेस्ट्स को दबाकर या कमर के नीचे पीछे से हाथ मारते हुए निकल गए. न बाइक का नंबर नोट करने का मौका मिला है, न लड़कों की शक्लें देखने का. ऐसा भी होता है कि खचाखच भरी बस में कोई आपको जगह-जगह छूता रहता है, और सवाल पूछने पर मुस्कुराकर जवाब देता है, 'मैडम भीड़ बहुत है.'
फिर मैं सोचती हूं किसी ऐसी लड़की के बारे में जिसको कोई मर्द पकड़ लेता है. किसी सुनसान सड़क पर, किसी कमरे के अंदर, गाड़ी के अंदर, या बिस्तर पर. उसे पीटकर असहाय कर देता है. फिर जबरन उसकी योनि में अपना लिंग डाल देता है. आधे वाकयों में मर्दों की संख्या एक से ज्यादा होती है. 2, 5, 10. मैं सोचती हूं ये सब एक लड़की का रेप करते हैं. फिर उसे पीटते हैं. कैसे करते होंगे? बालों से पकड़कर? थप्पड़ मारते होंगे? कितना रोती होगी लड़की? कितना दर्द होता होगा?
दिल्ली गैंग रेप के बाद मैं मुझे महीने भर सोने में तकलीफ होती रही. ऐसा लगता जैसे कोई यूट्रस को पकड़कर ऐंठ रहा हो. रेप के बारे में सोचना भर ही रीढ़ की हड्डी में सिहरन पैदा करता है, शरीर को ठंडा कर देता है.
और इसलिए. सिर्फ इसीलिए मैं 'रेप' शब्द का आम जिंदगी में किसी भी तरह की हिंसा के प्रतीक के रूप में उपयोग नहीं कर पाती. या किसी भी तरह के दर्द को बलात्कार के बाद होने वाले शारीरिक दर्द की तरह नहीं देख पाती. मुझे लगता है कि जब किसी मर्द का मेरी मर्ज़ी के बगैर मुझे बस छू कर निकल जाना भर, 'बस' छू कर निकल जाना भर नहीं लगता. बल्कि कई दिनों तक परेशान कर सकता है. तो रेप की शिकार हुई एक औरत को किस तरह की मानसिक और शारीरक पीड़ा को झेलना पड़ता होगा, ये सोचना डरावना है. इसलिए 'रेप' शब्द को लेकर सेंसिटिव होना औरतों में शायद नैचुरली आता है.
सलमान खान ने कभी रेप को महसूस नहीं किया. ऐसा हम मानते हैं, और चाहते भी हैं. उन्होंने कभी पब्लिक ट्रांसपोर्ट में उस तरह का मोलेस्टेशन नहीं झेला जिसे अखबारी भाषा में 'छेड़खानी' कह दिया जाता है.
ये पहली बार नहीं है जब 'रेप' शब्द को इस तरह यूज़ किया गया हो. खेलों में जब टीम, दूसरी को हराती है, उसे रेप या गैंगरेप कहकर उसपर चुटकुले बनाए जाते हैं. किसी की 'मार लेना' या फिर 'ले लेना' हमारी रोज़ की भाषा में शामिल है. हम सब जानते हैं कि इसका अर्थ रेप ही होता है. कई बार हम 'रेप' शब्द का प्रयोग करते हुए केवल इसलिए रुक जाते हैं, क्योंकि हमें लगता है इससे किसी औरत की 'इज्जत' जुड़ी है. वहीं 'ले लेना' जैसे शब्द का इस्तेमाल करते हुए हम कुछ भी नहीं सोचते.
कुछ समय पहले 'बेबी' नाम की एक फिल्म आई थी. इसमें अक्षय कुमार जेल में एक आरोपी से पूछताछ करने जाते हैं. उसे धमकाने के लिए उसके सामने एक डब्बा रखते हैं. और हाथ में एक छड़ी. उसके बाद मुजरिम से कहते हैं, 'ये जेल है, और ये रॉड.' और आरोपी तुरंत अपना गुनाह कबूल कर लेता है. एक पुलिस वाले की एक कैदी को दी गई रेप की धमकी पर पूरे हॉल में तालियां बजती हैं. तीन वजहों से. पहली, अगर वो कैदी है, तो उसके साथ यौन हिंसा करना कोई बुरी बात नहीं. दूसरी, वो पुरुष है, और उसके रेप के साथ किसी तरह की 'इज्जत' नहीं जुड़ी हुई है. तीसरा, इससे पुलिस वाले यानी हमारे हीरो का पुरुषत्व एस्टैब्लिश हो जाता है. वही 'माचो' हीरो, जो बनियान के ऐड में लड़कियों की 'इज्जत' बचाकर भी अपना पौरुष साबित करता है.
हमारी अधिकतर गालियों में यौन हिंसा दिखाई पड़ती है: पिता, बेटे या भाई को मां, बेटी या बहन का रेपिस्ट बताते हुए. या मैं तुम्हारी मां का रेप कर दूंगा के अर्थ वाली. यहां गालियों के ऊपर से नैतिक रूप से 'बुरा' होने के बोझ को मानते हुए, उसमें छुपी रेप की भावना को देखना जरूरी है.
सलमान खान जब ये कहते हैं कि उन्हें 'रेप्ड' महसूस होता है, असल में वो उस शारीरिक और मानसिक हिंसा के बारे में सोच ही नहीं रहे होते जिससे होकर वो औरत गुजरती है जिसका रेप किया जाता है. ये उनकी असंवेदनशीलता नहीं, बल्कि मात्र उनका अज्ञान है. जिस तरह हम सब गाली देने के पहले, या 'मार लेना' और 'ले लेना' शब्दों के इस्तेमाल के पहले इसे इसके शाब्दिक अर्थ से जोड़कर नहीं सोचते हैं. हम नहीं सोचते कि अगर ये गाली हमारी पर्सनल लाइफ में सच हो जाए, और अगले की मां का रेप हो जाए, तो क्या होगा.
सलमान दूध के धुले नहीं है. इसी इंटरव्यू में सलमान ये भी कहते हैं, 'जब दो बुराइयां सामने हों, तो उनमें से एक छोड़ देता हूं. अब शराब और औरतों के बीच औरतों को छोड़ने की बारी है.' ये बात भी उसी पुरुषवादी सोच का नतीजा है जिसकी वजह से हमारी भाषा से औरत और उसके प्रति की जाने वाली हिंसा गायब है.
25 बरस पहले एक बच्चा बना सलमान का दोस्त. कहानी अभी जारी है...

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