लड़कियां पदक जीत रही हैं, यहां लोग चुन्नी से आगे नहीं बढ़ रहे
चुन्नी के बिना बाहर जाने पर आसमान टूट जाता है? चुन्नी के साथ जाने पर सीरिया में लड़ाई रुक जाती है?
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फोटो - thelallantop
फिर मुझे अचानक से गांव की बात याद गई. इज्जत. छोरियां. हाथ सिकोड़े. चुन्नी ओढ़ने की बात. कोई घर आए तो लड़के ख़ुशी से खड़े हो स्वागत करते हैं. लड़कियां अन्दर भागती हैं चुन्नी लेने. कित म्हारी छोरी खुले कपड़े मै पहलवानी कर री सै अर कित गांवों मह कोई छोरी चुन्नी ओढ़ना सीख री सै.

क्या औरतें कभी लड़की नहीं थीं जो मर्दों की तरह ही बात करने लगती हैं?
तो गांव में चाची, ताई, मम्मी सब बैठे हैं. बात चल रही है. लड़कियों के रहन-सहन की. चाची की दो बेटियां हैं. चाची बड़े गर्व से बता रही हैं: 'हमारी छोरियों को एक बार समझाया था इनके बाप ने. उस दिन का दिन है और आज का . हमेशा गले में चुन्नी होती है. कभी शिकायत का मौका नहीं मिला. बड़ी वाली तो कभी-कभार भूल भी जाती है, लेकिन छोटे वाली एक-दम समझदार है, हमेशा चुन्नी गले में रहती है .'फिर कहीं तीन-चार लुगाइयां दोपहर की चुगलियों का कोटा पूरा कर रही हैं. अचानक से राकेश की छोरी की बात चल पड़ती है. राकेश की छोरी लोअर और टॉप पहनती है. पर चुन्नी के बिना बाहर नहीं निकलती.
'ह्म्म्म , समझदार छोरी है.' एक बोलती है. 'छोरी बहुत सही है वो .' दूसरी.
चुन्नी के बिना बाहर जाने पर आसमान टूट जाता है? चुन्नी के साथ जाने पर सीरिया में लड़ाई रुक जाती है?
सही बात है. समझा दिया है. और लड़कियों ने मान लिया. पर अगर बिना चुन्नी के बाहर चली गई, तो क्या होगा?किसी आदमी की बुरी नज़र पड़ गई तो ? किसी आदमी ने घूर के देख लिया तो? या किसी आदमी ने कोई कमेंट ही कर दिया ? तो क्या इज्जत रह जाएगी घर की? पर किसी ने ये नहीं पूछा कि चुन्नी में सिमट कर बड़ी होती बच्चियां कैसे अखाड़ों में उतरेंगी?
ग्रामीण परिवेश में पलने वाली लड़की को यह बात चौदह-पंद्रह साल होते-होते तक समझा दी जाती है. कि चुन्नी और लड़की का गहरा रिश्ता होता है. चुन्नी फैशन के लिए नहीं, सूट से उभरते स्तन ढंकने के लिए होती है. शहरों में चुन्नी ओढ़ने के मायने अलग हो सकते हैं. पर गांव में चुन्नी से रिश्ता तोड़ा तो बड़ी बदनामी हो जाएगी.
चाची को ये कहते कभी नहीं सुना कि: 'इनके बाप ने छोरे को भी समझा दिया है. बिना चुन्नी की लड़कियों को घूरना गलत बात है. चुन्नी ओढ़े ना ओढ़े , ये उनकी मर्ज़ी है. तुम्हारे घूरने की वजह से उन्हें चुन्नी ओढ़नी पढ़े वो गलत बात है.' अगर कह दें तो शायद बहनों को सारा टाइम चुन्नी गले से बांधने की जरूरत नहीं पड़े. बाप तो छोड़ो, मां ने भी किसी लड़के को नहीं समझाया है ऐसा.
चुन्नी की हिस्ट्री क्या है? कैसे उसकी इतनी औकात है कि लड़कियों के गले में फंदा डाले रहती है?
चुन्नी पर पढ़ने को ज्यादा कुछ मिलता नहीं है. इतिहास में पहली बार चुन्नी किसने ओढ़ी ? क्या पुरुष भी चुन्नी ओढ़ते थे? क्या कारण थे? फैशन के तौर पर ओढ़ी जाती थी या देह ढकने के लिए? इन सब सवालों के इतने जवाब नहीं हैं.पर लोगों के पास ये ज्ञान जरूर है कि बाहर के लोग बहू-बेटियों को उठा ले जाते थे. ऐसे में बहुओं से दो गज का घूंघट निकलवा दिया गया. और बेटियों के गले में चुन्नी लटका दी गई. धीरे-धीरे चुन्नी और घूंघट जरूरी हो गए. बाद में चलकर चुन्नी एक शालीनता का प्रतीक बन गई. चुन्नी ओढ़नें वाली लड़कियां संस्कारी मानी जाने लगी.और इस तरह 'चुन्नी' नें लड़कियों की सुरक्षा की.
आश्चर्य की बात है कि समाज ने उठा कर ले जाने वाले आदमियों के खिलाफ़ कुछ नहीं किया. औरतों नें खुद को मजबूत करने की बजाय चुन्नी ओढ़ ली. घूंघट निकाल लिया. लड़ना सीखती तो उठाने वालों को एक मुक्के में चित करती. जैसे साक्षी ने किया है.
चुन्नी से दिक्कत क्या है?
चुन्नी आप सिर्फ एक कपड़े की तरह ओढ़ें तो कोई गलत बात नहीं है. धूप या जाड़े से बचने से के लिए हो तो भी कोई दिक्कत नहीं है. दिक्कत होती है उसके पीछे की मानसिकता से. क्या औरत का शरीर सिर्फ आदमियों को आकर्षित करने के लिए बना है? अगर 'बाहरी मर्दों से खतरा' वाला तर्क मान भी लिया जाए तो घर में क्यों चुन्नी? क्या घर में पिता और भाइयों से भी डर है?सबको यह मालूम है कि औरत के स्तन होते हैं. चाहे टॉप पहनो, चाहे सूट पहनो, चाहे चुन्नी से ढंक दो. चाहे तो लोहे के कवर चढ़वा दो. रहेंगे तो वैसे ही. वहीं. तो फिर समाज कपड़ों से ऊपर चुन्नी क्यों लगवा देता है? स्तन होना कोई बुरी बात तो नहीं ? या हम अपनी लड़कियों को बताना चाहते हैं कि उनके सूट से उभरती चीज़ अच्छी नहीं है. ढंकने लायक है.
कितना समय और लगेगा इस बात को समझने में कि औरतों के स्तन चुन्नी ओढ़ने लेने भर से मिट नहीं जाते?
ये स्टोरी ज्योति ने लिखी है.