रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच में पुतिन को क्या हो गया?
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का आगे का प्लान क्या है?

कहते हैं, समय के साथ युद्ध का कोहरा घना होता जाता है. सिर्फ़ बड़े और चौंकाने वाले आंकड़े सुर्खियों का हिस्सा बनते हैं. और, घायलों को ख़बरों से बाहर कर दिया जाता है.
लगभग यही कहानी रूस-यूक्रेन युद्ध की रही है. युद्ध अब चौथे महीने में पहुंच चुका है. धीमे-धीमे युद्ध की तीव्रता कम होने लगी है. साथ में युद्धक्षेत्र से आने वाली ख़बरों की भी.
आज हम जानेंगे,
- 96 दिनों के बाद रूस-यूक्रेन युद्ध कहां पहुंचा?
- रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का आगे का प्लान क्या है?
- और, क्या कभी ये युद्ध रुक पाएगा?
- 22 फ़रवरी 2022 को रूस ने दोनेश्क और लुहान्स्क की आज़ादी को मान्यता दी. ये दोनों इलाके पूर्वी यूक्रेन का हिस्सा हैं. यहां पर 2014 से अलगाववादियों और यूक्रेन की सेना के बीच झगड़ा चल रहा था. इन अलगाववादियों को रूस का समर्थन मिला हुआ था.
रूस लंबे समय से ये आरोप लगा रहा था कि यूक्रेन डोनबास में नरसंहार कर रहा है.
- इसी आरोप को आधार बनाकर 24 फ़रवरी की सुबह पुतिन ने यूक्रेन में ‘स्पेशल मिलिटरी ऑपरेशन’ चलाने का आदेश दिया. इस आदेश के बाद रूसी सेना यूक्रेन की सीमा में घुस गई. उन्होंने राजधानी किएव समेत कई शहरों पर हवाई हमले शुरू कर दिए. हमले के बाद यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेन्स्की ने देश में आपातकाल लगाने का ऐलान किया. इसके तहत, 18 से 60 वर्ष के पुरुषों के देश छोड़ने पर पाबंदी लगा दी गई.
- 28 फ़रवरी को दोनों पक्षों के बीच पहले दौर की बैठक हुई. यूक्रेन-बेलारूस बॉर्डर पर. इसमें दोनों पक्ष अपनी-अपनी मांगों पर अड़े रहे. रूस यूक्रेन को डिमिलिटराइज़ करने की मांग कर रहा था. जबकि यूक्रेन रूसी सैनिकों की वापसी की मांग से पीछे हटने को तैयार नहीं हुआ. इसके बाद से रूस और यूक्रेन के बीच कई राउंड्स की बातचीत हो चुकी है. यूनाइटेड नेशंस समेत कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं और देश शांति की अपील दोहराकर थक चुके हैं. लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकल पाया है.
- हमले की शुरुआत में रूस ने किएव पर क़ब्ज़े की कोशिश की थी. हालांकि, वे कभी अंदर घुस पाने में कामयाब नहीं हो सके. अप्रैल में रूस ने किएव से अपनी सेना पीछे हटा ली. माना जा रहा था कि रूस अपने सैनिकों को वापस बुला लेगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. कुछ समय के विराम के बाद रूस ने छोटे-छोटे यूक्रेनी शहरों को निशाना बनाना शुरू किया. उनका फ़ोकस पूर्वी और दक्षिणी यूक्रेन पर केंद्रित हो चुका है.

अब जानते हैं, यूक्रेन में फिलहाल क्या हो रहा है?
- इस समय सबसे भीषण लड़ाई सेवरोदोनेश्क शहर में हो रही है. ये शहर पूर्वी यूक्रेन के दोनबास इलाके में पड़ता है. रूसी सेना के हमले में शहर का 90 प्रतिशत से अधिक इंफ़्रास्ट्रक्चर तबाह हो चुका है. लुहान्स्क के गवर्नर ने कहा कि सेवरोदोनेश्क में बिजली और पानी की सप्लाई खत्म हो चुकी है. शहर की आबादी लगभग एक लाख लोगों की है. यूक्रेन की सेना जवाब तो दे रही है. लेकिन वे लंबे समय तक रूसी सैनिकों को नहीं रोक पाएंगे. ऐसे में स्थानीय नागरिकों के फंसने की आशंका बढ़ गई है.
- 29 मई को यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेन्स्की ने ख़ारकीव का दौरा किया. हमले की शुरुआत के बाद से पहली बार ज़ेलेन्स्की राजधानी किएव से बाहर निकले थे. दौरे के दौरान उन्होंने ख़ारकीव के सिक्योरिटी चीफ़ को बर्ख़ास्त कर दिया. आरोप ये कि हमले के समय वो शहर की बजाय अपनी चिंता करने में व्यस्त थे. इस समय ख़ारकीव शहर का एक-तिहाई हिस्सा रूस के नियंत्रण में है.
- 30 मई को फ़्रांस की विदेश मंत्री कैथरीन कोलोना राजधानी किएव पहुंची. किएव में उन्होंने ज़ेलेन्स्की से मुलाक़ात की. कैथरीन की यात्रा ऐसे समय में हो रही है, जब फ़्रांस पर यूक्रेन की मदद करने का दबाव बढ़ रहा है. रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से किसी फ़्रांसीसी मंत्री का ये पहला यूक्रेन दौरा है.
- अगला अपडेट अनाज की चोरी से जुड़ा है. सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, रूस लगातार यूक्रेन के क़ब्ज़े वाले इलाकों से अनाज की चोरी कर रहा है. सेटेलाइट इमेजरी से मिली जानकारी के मुताबिक, चुराए गए अनाज से लदा पहला जहाज 27 मई को सीरिया के तट पर पहुंचा. यूक्रेन ने आरोप लगाया है कि रूस इस महीने चार लाख टन अनाज की चोरी कर चुका है.
ये तो हुई यूक्रेन की बात. रूस में क्या हो रहा है?
- फिलहाल, रूस का फ़ोकस कहां पर है?
इस सवाल पर रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव का बयान आया. उन्होंने कहा कि रूस पूरे डोनबास को यूक्रेन से आज़ाद कराने के लिए तैयार है. ये मकसद पूरा करने से पहले उनकी सेना पीछे नहीं हटेगी.
- अगला सवाल, राष्ट्रपति पुतिन किस हाल में हैं?
पिछले कुछ समय से पुतिन की बीमारी की चर्चा ज़ोर-शोर से चल रही थी. कहा जा रहा था कि पुतिन को ब्लड कैंसर है. डॉक्टरों ने उन्हें तीन साल का समय दिया है. उन्हें देर तक खड़े रहने में परेशानी होती है. उनके हाथ कांपते हैं. जिस मीटिंग में उन्हें घंटों तक हिस्सा लेते दिखाया जाता है, असल में वे मीटिंग्स कई टुकड़ों में बंटी होतीं है. ख़बर ये भी थी कि पुतिन को सर्जरी की सलाह दी गई है. कहा गया कि इलाज के दौरान पुतिन अपने किसी भरोसेमंद को देश की कमान सौंप देंगे.
लावरोव ने इन चर्चाओं पर भी लगाम लगाया है. फ़्रांस के एक चैनल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने इसे सफेद झूठ बताया. बोले,
“मुझे नहीं लगता कि किसी समझदार शख़्स को उनके अंदर किसी बीमारी के लक्षण दिखते होंगे. आप उन्हें रोज़ाना टीवी पर देख सकते हैं. उनके भाषण पढ़ और सुन सकते हैं.”
- 28 मई को पुतिन की फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और जर्मनी के चांसलर ओलाफ़ शॉल्ज़ के साथ मीटिंग हुई. ये मीटिंग लगभग डेढ़ घंटे तक चली. इस दौरान हथियारों और अनाजों की सप्लाई पर चर्चा हुई. पुतिन ने चेतावनी दी कि यूक्रेन को हथियारों की सप्लाई बंद कर दी जाए. वरना, हालात और बिगड़ सकते हैं.
मीटिंग में मैक्रों और शॉल्ज ने पुतिन से एक अपील भी की. बोले कि ओडेसा बंदरगाह पर लगा ब्लॉकेड हटा लिया जाए. ताकि वहां से अनाज का निर्यात चालू हो सके. पुतिन ने कहा कि वो सप्लाई शुरू कराने के लिए तैयार है. बशर्ते पश्चिमी देश उसके ऊपर लगा प्रतिबंध हटा लें.
रूस और यूक्रेन मिलकर दुनिया की कुल ज़रूरत का 30 प्रतिशत गेहूं उपजाते हैं. इसके अलावा, यूक्रेन यूरोप को सनफ़्लॉवर ऑयल की सप्लाई भी करता है. युद्ध के कारण प्रोडक्शन और सप्लाई बाधित हुई है. जिसके चलते दुनियाभर में खाने-पीने के सामान महंगे हो गए हैं. अफ़्रीकी देशों में लोग गेहूं के लिए डेढ़ गुनी रकम का भुगतान कर रहे हैं. एक उदाहरण सोमालिया का है. युद्ध से पहले तक सोमालिया की ज़रूरत का 90 प्रतिशत गेहूं रूस और यूक्रेन से आता था. अब उन्हें दूसरे अनाजों पर शिफ़्ट होना पड़ा है.
- मीटिंग के दौरान दोनों नेताओं ने पुतिन से दरख़्वास्त की कि वो जे़लेन्स्की से सीधी बातचीत करें. इस पर पुतिन बोले,
हमने बातचीत का दरवाज़ा खुला रखा है. मॉस्को किएव के साथ मीटिंग का सिलसिला दोबारा शुरू करने के लिए तैयार है. हालांकि, उन्होंने ज़ेलेन्स्की का नाम नहीं लिया.
ये तो हुई रूस और यूक्रेन की बात. इस युद्ध को लेकर बाकी दुनिया में क्या घट रहा है?
- 29 मई को ब्रुसेल्स में यूरोपियन यूनियन के नेताओं की बैठक शुरू हुई. इस बैठक में दो मुद्दे सबसे अहम रहने वाले हैं,
- रूस के गैस और तेल का अल्टरनेटिव क्या होगा?
- दूसरा मुद्दा, यूक्रेन को और मदद कैसे पहुंचाई जाए?

पहले दिन रूस के तेल पर एम्बार्गो लगाने को लेकर कोई समझौता नहीं हो सका. बैन में सबसे बड़ा रोड़ा स्लोवाकिया, चेक रिपब्लिक और हंगरी अटका रहे हैं. स्लोवाकिया और चेक रिपब्लिक रूसी तेल को चलन से बाहर करने के लिए अधिक समय मांग रहे हैं. जबकि हंगरी इस मुद्दे पर किसी तरह की चर्चा के ख़िलाफ़ है. हंगरी के राष्ट्रपति विक्टर ओर्बन ने यूरोपियन काउंसिल को एक चिट्ठी लिखी थी. इसमें उन्होंने कहा कि तेल की सप्लाई पर प्रतिबंध लगाने का कोई सवाल ही नहीं उठता. ये वैसा ही होगा, मानो किसी ने हमारी अर्थव्यवस्था पर परमाणु बम गिरा दिया हो. हम इसके लिए कतई तैयार नहीं हैं.
यूरोपियन यूनियन की बैठक 30 और 31 मई को भी जारी रहेगी. यूक्रेनी राष्ट्रपति ज़ेलेन्स्की भी इस बैठक को संबोधित करने वाले हैं.
- अगला अपडेट नेटो से जुड़ा है. पूर्वी यूरोप में नेटो सैनिकों की तैनाती पर डिप्टी सेक्रेटरी जनरल मिर्सिया जियोना का बड़ा बयान आया है. जियोना इस समय लिथुआनिया के दौरे पर हैं. उन्होंने कहा कि नेटो अपने सैनिकों को पूर्वी यूरोप से पीछे रखने के लिए बाध्य नहीं रह गया है.
दरअसल, 1997 में नेटो और रूस के बीच फ़ाउंडिंग ऐक्ट पर दस्तख़त हुए थे. दोनों पक्षों में इस बात पर सहमति बनी कि मध्य और पूर्वी यूरोप में कन्वेंशनल फ़ोर्सेज की तैनाती नहीं की जाएगी. ये भी कहा गया कि ऐसा कुछ नहीं किया जाएगा कि दोनों पक्षों के बीच तनातनी की स्थिति पैदा हो. जियोना ने कहा कि रूस ने यूक्रेन पर हमला करके पुराने समझौते को तिलांजलि दे दी है. अब नेटो भी अपने हिसाब से काम करने के लिए स्वतंत्र है.
अभी ये पता नहीं चला है कि नेटो पूर्वी यूरोप के सदस्य देशों में कितने सैनिक तैनात करेगा. जून के अंत में मैड्रिड में नेटो की बैठक होने वाली है. इसमें एक्स्ट्रा ट्रूप्स की तैनाती पर विचार होने की संभावना है.
- अगली अपडेट मदद से जुड़ी है. लिथुआनिया के लोगों ने यूक्रेन की मदद करने का अनोखा रास्ता निकाला. उन्होंने यूक्रेन के लिए क्राउडफ़ंडिंग के ज़रिए तीन दिनों में लगभग 40 करोड़ रुपये जुटाए हैं. इन पैसों से यूक्रेन के लिए हथियार खरीदे जाएंगे.
इस मामले में जो भी अपडेट होंगे, उन्हें हम आप तक पहुंचाते रहेंगे.
अब सुर्खियों की बारी.पहली सुर्खी नेपाल से है. नेपाल में 29 मई को गायब हुआ प्लेन हादसे का शिकार हो गया है. सेना ने प्लेन का मलबा ढूंढ लिया है. सभी यात्रियों की लाशें बरामद हो चुकीं है. प्लेन में 22 यात्री सवार थे. इनमें 04 भारतीय और 02 जर्मन नागरिक भी थे.
29 मई को तारा एयर के विमान का एयर ट्रैफ़िक कंट्रोल से संपर्क टूट गया था. ये विमान पोखरा से जोमसोम जा रहा था. उतरने से पांच मिनट पहले ही विमान रडार से गायब हो गया. संपर्क टूटने के बाद नेपाली सेना ने सर्च एंड रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया. लेकिन ख़राब मौसम के चलते उन्हें अपना अभियान रोकना पड़ा. 30 मई को सर्च ऑपरेशन दोबारा शुरू हुआ. उन्हें जोमसोम के पास मलबे की जानकारी मिली. हादसा ऐसी जगह पर हुआ है, जहां सिर्फ़ एक हेलिकॉप्टर उतर सकता है. इस वजह से बचाव अभियान चलाने में मुश्किल आ रही है. शुरुआती जांच में पता चला कि कोहरे की वजह से विमान पहाड़ की चोटी से टकरा गया.
ऐविएशन सेफ़्टी में नेपाल का इतिहास बहुत अच्छा नहीं रहा है. इसी वजह से 2013 में यूरोपियन यूनियन ने नेपाली एयरलाइंस पर बैन लगा दिया था.

दूसरी सुर्खी इज़रायल से है. ईस्ट जेरूसलम में यहूदियों और मुस्लिमों के बीच तनाव एक बार फिर बढ़ गया है. 29 मई को हज़ारों कट्टर यहूदियों ने मुस्लिमों के इलाके में रैली निकाली. इस दौरान उन्होंने मुस्लिम-विरोधी नारे भी लगाए. इज़रायल ने किसी तरह की हिंसा रोकने के लिए 03 हज़ार पुलिसवालों को तैनात किया था. बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, इज़रायली पुलिस ने रैली वाले इलाकों से फ़िलीस्तीनी नागरिकों को ज़बरदस्ती हटा दिया था.
इस तकरार का ऐतिहासिक पहलू क्या है? दरअसल, इज़रायल पूरे जेरूसलम को अपनी राजधानी बताता है. फ़िलिस्तीन और दुनिया के अधिकतर देश इस धारणा को मान्यता नहीं देते हैं. फ़िलिस्तीन का दावा है कि ईस्ट जेरूसलम भविष्य में उनकी राजधानी बनेगी. इसी को लेकर दोनों पक्ष आपस में भिड़ते रहते हैं. इज़रायल ने 1967 के सिक्स-डे वॉर में में ईस्ट जेरूसलम पर क़ब्ज़ा कर लिया था. उसी क़ब्ज़े की याद में यहूदी हर साल जेरूसलम डे मनाते हैं. इस दौरान मुस्लिमों के इलाके में रैली निकाली जाती है. नारेबाज़ी होती है. कभी-कभार झड़प की नौबत भी आ जाती है. 2021 में रैली से शुरू हुआ झगड़ा इज़रायल और हमास के बीच फ़ुल-स्केल वॉर में बदल गया था. 11 दिनों तक चली लड़ाई में दोनों तरफ़ से लगभग तीन सौ लोग मारे गए थे.
इस साल जेरूसलम डे से पहले ही दोनों तरफ़ आग भड़की हुई है. पिछले एक महीने में इज़रायल में आम नागरिकों पर कई आतंकी हमले हुए हैं. इन हमलों में 19 लोग मारे गए हैं. इज़रायल की जवाबी कार्रवाई में 30 से अधिक लोगों की मौत हुई हो चुकी है. 11 मई को गोलीबारी की एक घटना में अल-जज़ीरा की वेटरन पत्रकार शिरीन अबू अक्लेह की जान चली गई थी. इस हत्या का आरोप भी इज़रायल पर लग रहा है. इज़रायल ने मामले की जांच में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है. इसको लेकर भी फ़िलिस्तीन में लोग नाराज़ चल रहे हैं.
आज की तीसरी और अंतिम सुर्खी कोलोंबिया से है. कोलोंबिया में राष्ट्रपति चुनाव के पहले चरण का नतीजा आ चुका है. नतीजों में किसी भी उम्मीदवार को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है. स्पष्ट बहुमत मतलब 50 प्रतिशत से अधिक वोट. अब 19 जून को दूसरे चरण का चुनाव होगा. इसमें पहले चरण में टॉप-2 में रहे उम्मीदवारों के लिए वोट डाले जाएंगे. जिन दो उम्मीदवारों ने दूसरे चरण के लिए क़्वालिफ़ाई किया है, उनमें से एक गुस्ताव पेत्रो अतीत में चरमपंथी रह चुके हैं. पहले राउंड में उन्हें 40 प्रतिशत वोट मिले. दूसरे उम्मीदवार रोडोल्फ़ो हर्नाण्डीज़ उद्योगपति हैं. उन्हें कोलोंबिया का ट्रंप भी कहा जाता है. हर्नाण्डीज़ को पहले राउंड में लगभग 28 प्रतिशत वोट मिले.
इस चुनाव में गुस्ताव पेत्रो को राष्ट्रपति पद का प्रबल दावेदार बताया जा रहा है. अगर पेत्रो चुनाव जीतने में कामयाब होते हैं, तो वो कोलोंबिया के इतिहास में पहले वामपंथी राष्ट्रपति होंगे.
दुनियादारी: रूस-यूक्रेन युद्ध के ताज़ा हालात क्या हैं? युद्ध का नतीजा कब निकलेगा?