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रूस यूक्रेन युद्ध की असली कीमत ये चुकाएंगे!

यूक्रेन से लोगों का विस्थापन जारी, स्थिति गंभीर होने वाली है

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यूक्रेन से लोगों का विस्थापन जारी, स्थिति गंभीर होने वाली है (AP)
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अभिषेक
25 फ़रवरी 2022 (Updated: 25 फ़रवरी 2022, 06:11 PM IST) कॉमेंट्स
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क्या मुश्किल दौर में भी गीत गाए जाएंगे? हां, गाए जाएंगे. उस दौर में मुश्किलों के गीत गाए जाएंगे. जर्मन लेखक और कवि बर्तोल ब्रेख़्त ने ये कविता दशकों पहले लिखी थी. हालांकि, इंसान के भीतर जीवटता इस दुनिया की शुरुआत से ही भरी होगी. ब्रेख़्त ने उन भावनाओं को शब्द दिया. बात मुश्किल दौर की हो तो युद्ध से बड़ा उदाहरण और क्या ही होगा? जैसा कि कहा गया है, Only Dead has seen the end of war. युद्ध का अंत उन्हीं के लिए है, जो हमेशा के लिए फ़ना हो जाते हैं. यानी, इस ज़िंदगी में युद्ध का अंत देखना लगभग नामुमकिन है. तमाम बाधाओं के बावजूद दुनिया टिकी हुई है. उसने इन्हीं रास्तों के बीच से उम्मीदों के लिए भी जगह निकाली है. अगर उन कहानियों को आत्मसात किया जाए तो युद्ध के नाम पर तालियां पीटने वाली उन्मादी भीड़ को हक़ीक़त का अहसास हो. अहसास इस बात का कि युद्ध नेताओं के लिए आंकड़ों का खेल हो सकता है, लेकिन किसी व्यक्ति, परिवार या समाज के लिए अकल्पनीय खालीपन छोड़ जाता है. जिसकी भरपाई किसी सांत्वना, मुआवजे या विचारधारा से नहीं की की जा सकती. आज हम बात करेंगे, युद्ध की असली कीमत किसे चुकानी पड़ती है? और जानेंगे, रूस-यूक्रेन युद्ध में नया क्या हुआ? ये झगड़ा कब तक चलेगा? और, दुनिया के सामने क्या चुनौतियां है? आइरिश लेखक जॉन बॉयन ने 2006 में एक मशहूर उपन्यास लिखा. बाद में इसपर फ़िल्म भी बनी. The Boy in the stripped Pyjamas. कहानी दो बच्चों की है. एक बच्चा जर्मन है, दूसरा यहूदी. हिटलर के शासनकाल में ये पहचान ज़मीन-आसमान का अंतर पैदा करती थी. हिटलर कथित तौर पर अशुद्ध नस्लों से नफ़रत करता था. खासतौर पर यहूदियों से. उसने यहूदियों को पहले कैंपों में रखा और जब कैंपों में भीड़ बढ़ने लगी, तब उन्हें गैस चैंबर्स में झोंकना शुरू कर दिया. नाज़ियों के सरेंडर तक हिटलर ने पूरे यूरोप में लगभग 60 लाख यहूदियों की हत्या की. जॉन की किताब इसी होलोकॉस्ट का काल्पनिक चित्रण है. कैंप के अंदर क़ैद यहूदी बच्चे और बाहर आज़ाद रहने वाले जर्मन बच्चे की मासूम बातचीत है. आपको एक दफ़ा ये किताब ज़रूर पढ़नी चाहिए या हो सके तो फ़िल्म भी देख सकते हैं. किताब में एक जगह जॉन लिखते हैं,
‘सिर्फ़ पीड़ित और सर्वाइवर्स ही उस काल और परिस्थिति की भयानकता का सच्चा आकलन कर सकते हैं. बाकी की दुनिया घेरे के दूसरी तरफ़ रहती है. ये दुनिया अपनी आरामगाह में बैठकर भद्दे ढंग से इन सबका मतलब निकालने की कोशिश करती है.’
रूस-यूक्रेन के झगड़े पर लहालोट हो रही जमात को युद्ध की वीभीषिका के बारे में जानना ज़रूरी है. हमने दुनियादारी के एक ऐपिसोड में विश्वयुद्ध की कुछ चिट्ठियों की कहानियां सुनाईं थी. उन कहानियों में युद्ध का वो हिस्सा दर्ज़ है, जो नेताओं के लंबे-चौड़े उद्घोष में दबा रह जाता है. आज हम जानने की कोशिश करेंगे कि 20वीं और 21वीं सदी की लड़ाईयों ने दुनिया से क्या कुछ छीन लिया? - बीसवीं सदी का पहला बड़ा झगड़ा जुलाई 1914 में शुरू हुआ. सरायेवो में चली एक गोली ने ऑस्ट्रिया-हंगरी साम्राज्य और सर्बिया के बीच युद्ध शुरू कराया. जल्दी ही सहयोगी देश एक-दूसरे की तरफ़ से युद्ध में कूदते गए. कुछ ही समय के भीतर ये सब पहले विश्वयुद्ध में बदल चुका था. पहले विश्वयुद्ध में मरनेवालों की संख्या का कोई निश्चित आंकड़ा नहीं है. अनुमान लगाया जाता है कि पहले विश्वयुद्ध में चार से दस करोड़ लोगों की जान गई. इनमें से आधी संख्या आम नागरिकों की थी. लाखों सैनिक युद्ध के बाद अपाहिजों की ज़िंदगी जीने के लिए मजबूर हुए. अनगिनत लोगों को विस्थापन का शिकार होना पड़ा. - पहले विश्वयुद्ध ने दूसरे विश्वयुद्ध की नींव तैयार की थी. हिटलर फ़र्स्ट वर्ल्ड वॉर में जर्मनी की तरफ़ से लड़ा था. वहां घायल होने के बाद बिस्तर पर पड़ा था, जब उसे जर्मनी के सरेंडर की ख़बर मिली. तभी उसने ठान लिया था कि जर्मनी का गौरव लौटाना है. उसके मन में यहूदियों के प्रति भयानक नफ़रत थी. हिटलर यहूदियों को जर्मनी की दुर्दशा के लिए ज़िम्मेदार बताता था. 1939 में हिटलर की सनक ने दूसरा विश्वयुद्ध शुरू कराया. ये लड़ाई 1945 तक चली. दूसरे विश्वयुद्ध में पांच से छह करोड़ लोगों की मौत हुई. दो करोड़ से अधिक लोग युद्ध के चलते हुए बीमारियों से मारे गए. पूरे यूरोप से यहूदियों का पलायन हुआ. उन्हें अपने लिए नए मुल्क़ की तलाश करनी पड़ी. इसे बाद में इज़रायल के नाम से जाना गया. - 1950 के दशक में कोरियन युद्ध ने 70-80 लाख लोगों की जान ली. इस लड़ाई के कारण कभी सहोदर रहे दो मुल्क़ों में दुश्मनी शुरू हुई. ये दुश्मनी आज तक बरकरार है. - अगला नंबर वियतनाम युद्ध का है. इस लड़ाई ने भी लाखों आम लोगों की जान ली. अमेरिका के लगभग 60 हज़ार सैनिक युद्ध में मारे गए. अमेरिका ने वियतनाम और कंबोडिया में इतने बम गिराए कि रेकॉर्ड बन गया. उनमें से बड़ी संख्या में बम नहीं फटे. आज भी आम लोग उन बमों का शिकार हो रहे हैं. वियतनाम वॉर के दौरान अमेरिका ने एजेंट ऑरेंज का इस्तेमाल भी किया था. तब मिलिटरी हेलिकॉप्टर्स से केमिकल जंगलों पर गिराए जाते थे. केमिकल से ज़मीन और पानी के स्रोतों में पॉल्युशन फैला. इसके चलते वियतनाम के कई इलाकों में अपंगता की समस्या हुई. - 1990 के दशक में इराक़ ने कुवैत पर हमला किया. जल्दी ही अमेरिका के नेतृत्व में गठबंधन सेना ने इराक़ को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया. मोर्चे से भागते सद्दाम के सैनिकों ने तेल के कुओं में आग लगा दी. ये आग कई हफ़्तों तक जलती रही. इसकी वजह से पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचा था. - 21वीं सदी में पहला बड़ा युद्ध अफ़ग़ानिस्तान में शुरू हुआ. 9/11 के हमले के बाद अमेरिका ने तालिबान पर हमला किया. ये लड़ाई 20 सालों तक चली. अगस्त 2021 में तालिबान वापस सत्ता में आ गया. अमेरिका की घर वापसी हो गई. इस लड़ाई में लगभग तीन लाख लोगों की मौत हुई. लाखों विस्थापित हुए. मूलभूत इंफ़्रास्ट्रक्चर खत्म हो गए. इसी युद्ध की बदौलत अफ़ग़ानिस्तान की आधी से अधिक आबादी भुखमरी के कगार पर पहुंच चुकी है. लोग ज़िंदा रहने के लिए किडनियां बेच रहे हैं. ऐसे ही कई और भी उदाहरण हैं. इराक़, सीरिया, लीबिया, यमन, इथियोपिया आदि. युद्ध ने सिर्फ़ छीनना सीखा है, देना नहीं. इसकी असली कीमत सिर्फ़ और सिर्फ़ आम इंसानों को चुकानी पड़ती है. ये कीमत सिर्फ़ पैसों से नहीं जुड़ी होती है. युद्ध की मानवीय कीमत सबसे वीभत्स होती है और उसकी गणना करना नामुमकिन. रूस-यूक्रेन युद्ध के साथ भी यही होने वाला है. अभी से ही यूक्रेनी नागरिकों ने देश छोड़ना शुरू कर दिया है. पोलैंड, हंगरी, रोमेनिया समेत कई पश्चिमी देशों ने उन्हें शरण देने की तैयारी भी शुरू कर दी है. इन लोगों का भविष्य अनिश्चित हो चुका है. हर मायने में. हम दूर बैठकर उनका आकलन भर कर सकते हैं, जिनके ऊपर बीतती है, वही युद्ध की कीमत जानते हैं. मशहूर फ़िलीस्तीनी कवि महमूद दार्विश की कविता का ये अनुवाद सुनिए.
एक दिन युद्ध रुक जाएगा नेता आपस में हाथ मिलाएंगे बूढ़ी मांएं क़ुर्बान हो चुके अपने बेटों का इंतज़ार करती रहेगी प्रेमिकाएं अपने प्रेमियों का और, बच्चे अपने नायक पिताओं का.
मुझे नहीं मालूम कि किसने हमारी मातृभूमि को बेचा लेकिन किसने इसकी कीमत चुकाई, उन्हें मैं बहुत अच्छे से जानता हूं. सोचने की बारी आपकी. आप तय करिए कि क़यामत के रोज़ आप किस तरफ़ खड़े होंगे? अब हम रूस-यूक्रेन युद्ध के अपडेट्स जान लेते हैं. यूक्रेन के अंदर क्या चल रहा है ? - रूस-यूक्रेन युद्ध लगातार दूसरे दिन भी जारी है. 25 फ़रवरी को लड़ाई और भीषण हो गई. यूक्रेन सरकार के अनुसार, पहले दिन की लड़ाई में उनके 137 नागरिकों की मौत हो गई. हज़ारों लोग घायल हुए हैं. रूस की तरफ़ से अभी तक हताहतों की आधिकारिक संख्या जारी नहीं की गई है. - यूक्रेन में अफरा-तफरी मची है. लोग बॉर्डर पार कर पश्चिमी यूरोप जा रहे हैं. - यूएन रेफ़्यूजी एजेंसी के मुताबिक, अभी तक एक लाख से अधिक यूक्रेनी नागरिक विस्थापित हो चुके हैं. ये संख्या कई गुणा तक बढ़ सकती है. हज़ारों की संख्या में लोगों ने मेट्रो स्टेशन और बॉम्ब शेल्टर्स में शरण ले रखी है. मार्शल लॉ के तहत, 18 से 60 बरस के किसी भी यूक्रेनी पुरूष को देश छोड़ने की इजाज़त नहीं है. - आज रूसी सैनिक यूक्रेन की राजधानी किएव में भी पहुंच गए. यूक्रेन आर्मी का दावा है कि राजधानी पर मिसाइल से हमला हो रहा है. 24 फ़रवरी को रूसी सेना किएव के मुहाने पर उड़ान भर रही थी. - रूसी सैनिकों ने चेर्नोबिल न्युक्लियर प्लांट पर क़ब्ज़ा कर लिया है. यहां 1986 में रिएक्टर में दुर्घटना हुई थी. इसकी वजह से रेडिएशन फैला. उस समय पूरे इलाके को खाली करवा लिया गया था. न्युक्लियर प्लांट को डिकमीशन करना पड़ा. बाद में यहां पर परमाणु कचरा रखा जाने लगा. सोवियत संघ ने लंबे समय तक इस आपदा को छिपाने की कोशिश की. लेकिन एक बार जानकारी बाहर आई तो बवाल मच गया. चेर्नोबिल न्युक्लियर डिजास्टर ने सोवियत संघ के ताबूत में एक और कील ठोंक दी थी. जानकारों की माने तो चेर्नोबिल बेलारूस से किएव तक पहुंचने के रास्ते में आता है. यूक्रेन पर नियंत्रण के लिए राजधानी को जीतना ज़रूरी होगा. चेर्नोबिल को जीतने से उनकी राह आसान हो जाएगी. - यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लादिमीर जे़लेन्स्की ने कहा कि वो रूस के दुश्मन नंबर एक हैं. हालांकि, उन्होंने राजधानी छोड़कर जाने से मना कर दिया है. - 25 फ़रवरी को ज़ेलेन्स्की ने एक वीडियो संदेश जारी किया. इसमें उन्होंने पश्चिमी देशों पर साथ ना देने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि हमने नेटो के सभी सदस्य देशों से बात की. हर कोई डरा हुआ है. कोई भी नेटो में शामिल करने की तय तारीख़ नहीं बता रहा है. हमें अकेला छोड़ दिया गया है. - इस समय जे़लेन्स्की पूरी दुनिया से मदद जुटाने की कोशिश कर रहे हैं. वो लगातार कई देशों से बात कर रहे हैं. हालांकि, उनको वादे के अलावा कोई ठोस मदद मिलती नहीं दिख रही है. रूस में क्या चल रहा है? - 24 फ़रवरी की शाम रूस में राष्ट्रपति पुतिन के ख़िलाफ़ प्रोटेस्ट हुए. रूस की राजधानी मॉस्को समेत कई बड़े शहरों में हज़ारों प्रदर्शनकारी इकट्ठा हुए. वे युद्ध का विरोध कर रहे थे. वे अपने साथ में ‘नो टू वॉर’, ‘पुतिन इज रशियाज़ शेम’, ‘रशिया डोन्ट वॉन्ट वॉर’ लिखी तख़्तियां भी लेकर आए थे. जेल में बंद पुतिन के आलोचक अलेक्सी नवलनी ने भी रूस के हमले का विरोध किया है. उन्होंने लोगों से सड़क पर उतरने की अपील की. पुलिस ने अभी तक एक हज़ार से अधिक लोगों को गिरफ़्तार किया है. प्रोटेस्ट करने वालों को गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी भी दी गई है. - रूस ने ब्रिटिश एयरलाइंस को अपने एयरस्पेस से बैन कर दिया है. जब तक बैन रहेगा, तब तक ब्रिटेन के हवाई जहाज रूस के ऊपर से नहीं उड़ पाएंगे. इससे पहले ब्रिटेन ने रूस की सबसे बड़ी एयरलाइन एयरोलॉफ़्ट को अपने एयरस्पेस में घुसने पर रोक लगा दी थी. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कई रूसी उद्योगपतियों और संस्थाओं की संपत्ति को फ़्रीज़ करने का आदेश भी दिया था. रूस ने चेतावनी दी है कि अगर और प्रतिबंध लगाए गए तो वो जवाबी कार्रवाई करेगा. - ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, हमले के पहले दिन रूस के अरबपतियों को लगभग तीन लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. कई उद्योगपतियों की संपत्ति घटकर आधी रह गई. 25 फ़रवरी की शाम पुतिन ने 30 दिग्गज उद्योगपतियों को मिलने के लिए बुलाया. इस दौरान उन्होंने सपोर्ट देने की अपील की. इस पंक्ति को ऐसे भी कह सकते हैं कि पुतिन ने सपोर्ट देने का आदेश दिया. - 25 फ़रवरी की शाम रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव का बड़ा बयान भी आया. लावरोव ने यूक्रेन को एक ऑफ़र दिया. उन्होंने कहा कि अगर यूक्रेन आर्मी हथियार डाल दे तो रूस बात करने के लिए तैयार है. - यूक्रेनी राष्ट्रपति के एक सलाहकार ने कहा है कि यूक्रेन बातचीत के लिए तैयार है. इसपर क्रेमलिन के प्रवक्ता दमित्री पेस्कोव का बयान आया है. पेस्कोव ने कहा कि रूस बातचीत के लिए अपने प्रतिनिधि मिंस्क भेज सकता है. बशर्ते, यूक्रेन डिमिलिटराइज़ेशन के लिए राज़ी हो जाए. बाकी दुनिया में क्या चल रहा है? - अमेरिका ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंधों का दायरा बढ़ा दिया है. अमेरिका पूर्वी यूरोप में अपने सैनिक भी भेज रहा है. लेकिन सिर्फ़ नेटो के सदस्य देशों की सीमा में. हालांकि, उसने साफ़ कर दिया है कि उसके सैनिक यूक्रेन में लड़ने नहीं भेजेगा. नेटो पहले ही यूक्रेन में सेना भेजने से इनकार कर चुका है. यानी, यूक्रेन को उसके हाल पर छोड़ दिया गया है. जानकारों ने अमेरिका और नेटो के पीछे हटने की कई वजहें गिनाई जा रहीं है. पहली, यूक्रेन नेटो का सदस्य नहीं है. इसलिए, वे उसकी सैन्य मदद करने के लिए बाध्य नहीं हैं. दूसरी वजह न्युक्लियर वॉर की आशंका से जुड़ी है. अमेरिका और नेटो रूस के साथ सीधी लड़ाई में आकर परमाणु युद्ध नहीं छेड़ना चाहते. पुतिन ने चेतावनी दे रखी है कि वो अपने मकसद को हासिल करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं. - सीरिया ने रूस को सीधे सपोर्ट की बात कही है. सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद ने कहा कि रूस का हमला इतिहास को सुधारने की कोशिश है. सीरिया के सिविल वॉर में रूस असद सरकार की मदद कर रहा है. - नेटो के एक सदस्य तुर्की ने संगठन की उपयोगिता पर सवाल खड़े किए हैं.. उसने रूस के हमले की आलोचना की थी. अब तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने नेटो को लताड़ लगाई है. उन्होंने कहा कि नेटो और यूरोपियन यूनियन सिर्फ़ सलाह दे रहे हैं, कोई कुछ कर नहीं रहा. अर्दोआन ने कहा,
यूरोप के देश नेटो को सुझाव दिए जा रहे हैं. इससे किसी का भला नहीं होता. नेटो की बैठक निंदा और सुझावों का त्यौहार बनकर ना रह जाए.
रूस-यूक्रेन युद्ध पर हमारी नज़र बनी रहेगी. आप बने रहिए लल्लनटॉप के साथ.

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