The Lallantop
Advertisement

विक्रम सेठ: जिसकी किताब के बचे पन्ने देख दुख होता है

एपिक इंडियन लव स्टोरी लिखने वाले विक्रम और उनके कैरेक्टर्स की कहानी यहां पढ़िए.

Advertisement
Img The Lallantop
फोटो - thelallantop
pic
लल्लनटॉप
21 जून 2016 (Updated: 21 जून 2016, 02:03 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
विक्रम सेठ राइटर हैं. फिक्शन राइटर हैं. मंडे देर रात याद आया कि 20 जून को तो विक्रम का बड्डे होता है. बहुत दिनों से उनके बारे में सोचा नहीं था. अचानक से उनकी कविताएं और किताबें सब याद आ गईं. क्या खूबसूरत लिखते हैं! अब उनकी याद आ ही गई तो उनकी बात किए बिना रह पाना मुश्किल होगा, बर्थडे भले ही बीत चुका हो उनका.
NCERT की इंग्लिश की किताब में बरसों से एक कविता पढ़ाई जाती है. कोर्स का ख़ासा हिस्सा उलट-पलट दिया जाता है, लेकिन विक्रम सेठ की कविता 'Frog and Nightingale' को हटाने के बारे में सोचा भी नहीं जाता.
कविता बहुत सिंपल है. एक बुलबुल की कहानी, जो बहुत अच्छा गाती है. जंगल-भर के जानवर उसे सुनने आते हैं. फटे बांस जैसी आवाज़ वाले मेंढक को ये बिल्कुल पसंद नहीं आता. वो एक्सपर्ट बनते हुए बीच में कूद पड़ता है. बुलबुल को चार शब्द सुना देता है संगीत के और बुलबुल रानी बेवकूफ बन जाती हैं. पहले तो मेंढक गुरु बनकर खूब पैसे बटोरता है, फिर गाने गवाकर बुलबुल की हालत ख़राब करवा देता है. अंत में बुलबुल मर जाती है और मेंढक दोबारा उस इलाके का इकलौता गायक बनकर, टर्राना शुरू कर देता है. दसवीं क्लास में ये पढ़ा तो कोई ख़ास वजह नहीं मिली कि इसे क्यों पढ़ा ही जाए. हां कविता की बनावट और बोलकर पढ़ने पर निकलने वाली एक सुंदर लय, ये दोनों बहुत पसंद आए थे. बाद में विक्रम सेठ की ही एक किताब पढ़ी, 'अ सूटेबल बॉय'. ये एक 1500 से ऊपर पन्नों की ऐसी किताब थी, जिसके बाकी बचे पन्ने कम होते देखकर दुख होता था. कहानी यहां भी सिंपल सी है. लता नाम की लड़की है, जिसकी मम्मी, यानी मिसेज मेहरा उसकी शादी किसी सूटेबल लड़के से करवाना चाहती हैं. इतनी सी कहानी को जिस दुनिया में बसाया जाता है, वो किताब ख़तम होने पर ख़तम नहीं होती. बहुत दिन पहले पढ़ी थी. ढंग से कुछ भी नहीं याद. लेकिन किताब की ये दुनिया कुछ ऐसे बुनी गई थी कि पढ़ते वक़्त आपका एक हिस्सा उस बुनाई में शामिल हो जाता है. किताब में एक जगह जब मिसेज मेहरा अपने स्वर्गवासी पति और बीते ज़माने को याद करती हैं, तब उनके बारे में कहा जाता है कि "सब कुछ उन्हें सब कुछ की याद दिलाता है".
दो-तीन साल बाद भी 'अ सूटेबल बॉय' की कोई चीज़ अचानक ही कुछ करते, सोचते, याद आ जाती है. और ये याद वहीं ख़तम नहीं होती, ये भी आपको सब कुछ की याद दिलाएगी. और अगले कई मिनट तक आप सोचते रह जाएंगे उसी बारे में.
'अ सूटेबल बॉय' को एपिक इंडियन लव स्टोरी का दर्जा दिया जाता है. जो इस किताब का सबसे बड़ा हिस्सा है उस पर काफी देर से ख्याल जाता है. जैसा उस कविता के साथ भी होता है. ये किताब हर तरीके के प्रेम को कभी आपस में बांध देती है तो कभी एक-एक गिरह सुलझा कर रख देती है. एक पॉइंट पर जब ये किताब प्यार के सटल वॉयलेंस की तरफ इशारा करती है तो बहुत बेरहमी से सच्ची हो जाती है. किताब में आम लोग हैं, जो आपस में मोह और लगाव से जुड़े हैं, लेकिन प्रेम कभी भी एक निष्कर्ष या उपाय की तरह नहीं आता है. जब मिसेज मेहरा की बहू मीनाक्षी को समझ नहीं आता कि अपने पति अरुण के अलावा जिस एक आदमी को वो पसंद करती है, उसे क्या समझा जाए, तब वो अपने भाई से पूछती है कि क्या दो लोगों से प्यार कर पाना संभव है? लता कबीर नाम के लड़के से प्यार करती है और उससे शादी करने के लिए एक समय पर कुछ भी करने को तैयार रहती है. लेकिन बाद में वो ख़ुद कबीर से शादी नहीं करना चाहती. नवाब खान का बेटा जिस तवायफ की बेटी को दिल दे बैठता है, वो उसकी बहन निकलती है. फिर उसे समझ नहीं आता कि आखिर उसका प्यार किस शक्ल में था, और अब वो कैसी शक्लें ले कर उभर आएगा. ऐसे ही बहुत सारे लोग हैं, जिन्हें प्रेम हमेशा एक सवाल या एक अपरिचित सपने की तरह दिखा है. और उन्होंने वही किया है जो आम लोग करते हैं. ये एपिक लव स्टोरी तो है, लेकिन इसमें कोई हीरोइज्म नहीं है. ये अपने कंटेंट और नैरेटिव की बनावट से बना एपिक है. लता जब कबीर से शादी के लिए इनकार करती है तो उसके पास कुछ वजहें होती हैं. उसे नहीं पसंद जब वो कबीर के बगल में रह कर हर मिनट कुछ खोने के डर से डरी रहती है, कबीर का ध्यान ख़ुद से हटने से चिढ़ती है. प्यार कर के उसका काम पूरा हो चुका है. अब उसका डर, उसकी अनिश्चितताएं लेकर घूमना पड़े, तो क्या फायदा. इसे एक अजीब लॉजिक मान सकते हैं. खास तौर पर जब इसे देने वाली लड़की घबराहट या नर्वसनेस होने पर कुछ ऐसा पढ़ना या देखना चाहती है जो उसे समझ न आता हो, और उसके दिमाग की दही कर सके. जो लाइब्रेरी में अचानक से कबीर के दिख जाने पर हड़बड़ाहट में मैथ्स की बुक उठा लेती हो. लेकिन ये दलील कहीं से भी गलत नहीं लगेगी. लता प्यार के वायलेंस को एक्नॉलेज करती है. एक बार नहीं, कई बार. इस किताब में प्रेम को कोई ख़ास स्थान या पहचान नहीं दी गई है. ये वैसे ही है जैसे खाना और सोना. उतना ही ज़रूरी, उतना ही सामान्य और उतना ही बिना मतलब. 'अ सूटेबल बॉय' में प्रेम को हर सवाल से जोड़कर देखा गया है. और कहीं भी हम पक्के तौर पर नहीं बोल पाते कि प्रेम ने कोई माकूल जवाब दिया था. कुछ लगाव भर की कहानियां हैं, कुछ चंद पलों के नज़र मिलने की कहानियां हैं और कुछ बिना किसी ख़ास वजह के 'बस ऐसे ही कर ली गईं' शादियां हैं. साथ में कुछ बायोलॉजिकल सवाल हैं. ये चुगताई के प्रेम या आकर्षण को मन, बायोलॉजिकल शरीर और ह्यूमन बॉडी के सामाजिक मायनों. तीनों से जोड़कर देखने के तरीके से मिलता जुलता है. लता के दिमाग में उसके उस रिश्तेदार की याद आ जाती है जो उसे अंगूर खिलाने के बहाने सेक्शुअली मोलेस्ट करने कि कोशिश करता है, और उसे अंदर से लगता है की वो कबीर से शादी नहीं करना चाहती. उसे लगता है कि हर प्रेम एक ही जगह शुरू हो और एक ही जगह तक पहुंचे, ये ज़रूरी नहीं. वो प्रेम की हिंसा का शिकार बनने से इनकार कर देती है.
'अ सूटेबल बॉय' चार बड़े परिवारों की बड़ी सी कहानी है. और ज़ाहिर सी बात है कि इतने सारे किरदारों में बातचीत और लेन-देन होगा तो उस टाइम और स्पेस की पूरी संस्कृति और सोसाइटी हमारे सामने निकल कर आएगी.
जब किताब का विस्तार बढ़ता है तो रिश्तों और लगाव से बना नेटवर्क भी फैलता है. और तब ये नितांत निजी दिखने वाली चीज़ें सार्वजनिक शर्म और पॉलिटिक्स का कारण बन जाती हैं. तभी ये किताब इंडियन लव एपिक से इंडियन एपिक बनने लगती है. अगर पूछा जाए कि एक शब्द में ये किताब किस बारे में है, तो सारे विश्लेषण के बाद एक ही चीज़ कही जा सकती है. ये किताब इंडियन मिडिल क्लास के बारे में है. यहां 'मिडिल क्लास' एक ब्रॉड टर्म है. लोगों को उन समूहों में बांटने की एक कोशिश से निकला टर्म, जिन समूहों को नाम देने के बाद भी हम आज तक डिफाइन और रीडिफाइन कर रहे हैं. ये कतई वो नैरेटिव नहीं है जहां आप हर चीज़ को 'मिडिल क्लास मेंटैलिटी' का नाम देकर सस्ते में निकल सकते हैं. या जहां आप टिपिकल आंटियों के रिश्ते खोजने और स्पा जाने या पे पैकेज पूछने को पक्का मिडिल क्लास करार देकर हाथ झाड़ सकते हों. यहां मिडिल क्लास है, लेकिन इस समझ के साथ कि इस क्लास में 'एक क्लास' नहीं है. यहां बीते ज़माने के नवाब हैं, ढलती उम्र में पेट भरने के लिए जूझती तवायफें हैं, यंग प्रोफेसर हैं, सेंट स्टीफेंस से पढ़े इंटेलेक्चुअल्स हैं और जूते के नए डिजाइन बनाकर बेचने वाले दुकानदार हैं. यहीं पर वो परिवार भी है जो उस मॉडर्निटी की तरफ बढ़ रहा जिसकी नक़ल करने का आरोप मिडिल क्लास पर लगाया जाता है. जहां फ्रेंडली पार्टी से लौटकर सास के खोये कंगनों का जवाब देने की खींचतान है, और मन में चलता सवाल है कि ये जो किसी और से भी हो चुका है ये प्यार ही है या कुछ और. 1940-50 के वक़्त के भारत में बहुत कुछ हो रहा है. हर 'क्लास' नए तरीके से ख़ुद की कीमत और एहमियत को जान-समझ रहा है, 'सफलता' के मायने निकाले जा रहे हैं, आज़ादी और ज़िम्मेदारी के बीच में नया लेने और पुराना छोड़ने की उधेड़बुन भी है. 'अ सूटेबल बॉय' में मिडिल क्लास का मतलब हमेशा अगले पायदान पर देखने की चाहत और ज़रुरत से अधिक है. यहां गहरे मानसिक सवाल हैं जो बरसों से इकठ्ठा हुई कुढ़न की बेबसी और झल्लाहट के रूप में सामने आते हैं. जो पूछ देते हैं कि पैसे, जाति और धर्म के भेद क्यों हैं. लेकिन जवाब में एक मानसिक फीलिंग भर दे जाते हैं. यहां मिडिल क्लास के 'ट्रेंड' में बह जाने की घिसी-पिटी रामकहानी भी नहीं है.
2016 में इस किताब के अगला पार्ट, 'अ सूटेबल गर्ल' के पब्लिश होने की खबरें थीं. कब तक आती है ये किताब, अभी तक कुछ पता नहीं ठीक से.
विक्रम सेठ के लिखने के तरीके को कुछ लोग चार्ल्स डिकेन्स जैसा मानते हैं. एक सिंपल नैरेटिव से हलके-फुल्के सवालों में गहरे जवाब दे जाना, वो जवाब जो सवाल को ख़तम न होने दें, उन्हें और तीखा बनाकर सामने रख दें. ऐसा ही कुछ है जो दोनों के लेखन में देखा जा सकता है. और हां, 'Frog and Nightingale' पढ़ना ज़रूरी था. वैसे ही जैसे कछुए-खरगोश की कहानी सुनना, जैसे बंदर-मगरमच्छ की कहानी सुनना ज़रूरी था. बचपन में पूछा जाए तो हम बोल पाते थे कि इन कहानियों से क्या क्या सीख मिलती है. अब शायद बता ही न पाएं कि क्यों ये बेसिक कहानियां ज़रूरी हैं. विक्रम सेठ की ये कविता भी उतनी ही बेसिक है, कि आप कुछ बोल न पाएं उसके बारे में लेकिन कोर्स से हटा भी न सकें.
(ये स्टोरी पारुल ने लिखी है)

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement