'कुली नंबर वन' के रीमेक की बुराई करने वालों, ओरिजिनल कौन सी महान फिल्म थी?
एक खराब फिल्म का और भी ज़्यादा ख़राब रीमेक बनाया है डेविड धवन ने.
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कुली नंबर 1 25 दिसंबर को ऐमज़ॉन प्राइम विडियो पर रिलीज़ हुई है.
मेरी बात को यूं समझिए. बचपन में आर्ट की क्लास में मैं वो नदी, पहाड़, पेड़, सूरज और नाव वाली पेंटिंग बनाती थी. एक बार ऐसी बन गई कि उसे बहुत तारीफें मिलीं. कमाल तो नहीं बनी थी, लेकिन मेरी उम्र और टैलेंट के हिसाब से ठीक-ठाक बन पड़ी थी. मैंने उसे संभालकर रख लिया.
लॉकडाउन के दौरान मैंने सोचा कि यार वो वाली पेंटिंग मैंने बढ़िया बनाई थी. फिर से बनाती हूं. इस बार बड़ा वाला चार्ट पेपर लेकर आई, और कलर्स भी पहले से बढ़िया वाले लेकर आई. मैंने पेंटिंग बनाना शुरू किया. बहुत मेहनत की. यूट्यूब पर टेक्नीक्स भी सर्च किए, उनका इस्तेमाल भी उस पेंटिंग में किया. लेकिन वो कूड़े से ज्यादा कुछ नहीं बन पाई.
कुछ ऐसा ही हुआ है 'कुली नंबर वन' और उसकी रीमेक को लेकर डेविड धवन के साथ.
दोनों फिल्मों की कहानी कुछ ऐसी है:
पंडित हीरोइन के लिए कम अमीर परिवार का रिश्ता लेकर आया. हीरोइन के बाप ने उसकी बेइज्जती की. पंडित ने उसे सबक सिखाने की ठान ली. पंडित मिला राजू कुली से, जो शादी करने की हड़बड़ी में था. राजू कुली को लड़की की फोटो देखकर प्यार हो गया. राजू की शादी हीरोइन से कराने के लिए पंडित प्लान बनाता है. उसे सिंगापुर के बहुत अमीर आदमी का नकली बेटा बनाता है. खुद रूप बदलकर उसका सेक्रेटरी बन जाता है. इसके बाद राजू अपनी अमीरी का चारा लड़की के पिता को डालता है. वो फंस जाता है. और फिर हीरोइन और राजू की शादी हो जाती है. दोनों फिल्मों में गानों के भरपूर इस्तेमाल से ये दिखाया गया है कि लड़की को भी राजू से प्यार हो जाता है.
दिक्कत क्या है?
इस पूरे घटनाक्रम में दिक्कतें ही दिक्कतें हैं. सबसे बड़ी दिक्कत तो यही है कि फिल्म की कहानी में एक लड़की और उसके परिवार को इतना बड़ा धोखा देकर शादी की गई. और पूरी फिल्म में धोखा देने वालों को कोई सज़ा नहीं हुई. उल्टे हीरोइन के पिता को, जो किसी भी आम पिता की तरह अपनी बेटी के लिए अच्छा सम्पन्न परिवार चाहता था, ज्ञान दिया गया कि ऐसे लालच नहीं करना चाहिए.
आम बॉलीवुड फिल्मों की तरह इसमें भी लड़की का कोई स्टैंड ही नहीं दिखा. शादी हो गई. बंदी की पूरी लाइफस्टाइल चेंज हो गई. ठीक-ठाक बड़े घर में रहने वाली, बिना किसी सवाल के एक कमरे के घर में झाड़ू लगा रही है, खाना बना रही है. पति रात-रातभर लौट नहीं रहा, उसकी झूठी कहानियों पर बिना किसी सवाल के यकीन कर रही है. मतलब पति ही सबकुछ. वो धोखा दे तो भी ठीक, झूठ बोले तो भी सच्चा. मेरा पति मेरा देवता टाइप्स.
हीरो को हीरो दिखाने के लिए हीरोइन का इतना डंब रिप्रेजेंटेशन! ये पता चलने के बाद भी कि उसने धोखा दिया, हीरोइन उसे बचाने के लिए गिड़गिड़ा रही है. मतलब बेवकूफी की भी कोई सीमा होती है भाई!
गोविंदा वाली कुली नंबर वन उस टाइम पर बहुत चली थी. कुछ उसके गानों की वजह से. कुछ कादर खान, शक्ति कपूर और गोविंदा सरीखे ऐक्टर्स की कॉमिक टाइमिंग की वजह से. और कुछ उस समय के ऑडियंस की वजह से. क्योंकि फिल्म में जो पंच या जोक्स हैं वो नाइंटीज़ में चलते थे, लोगों को उनमें रस मिलता था. लेकिन अब वो नहीं चलने वाले. ये 2020 है. 21 आने वाला है. यहां सेक्सिस्ट, रेसिस्ट, बॉडी-शेमिंग वाले जोक्स की कोई जगह नहीं होनी चाहिए. लेकिन डेविड धवन उन्हें जबरन इस दौर में ले आए हैं.

डेविड धवन सेक्सिस्ट, रेसिस्ट, बॉडी-शेमिंग वाले जोक्स जबरन इस दौर में ले आए हैं.
नई वाली फिल्म की समस्याएं
डेविड धवन और उनका कुनबा नब्बे के दशक से बाहर निकलता नहीं दिखता. नए चेहरों के साथ वही कहानी, वही जोक्स रीमेक के नाम पर उन्होंने परोस दिए. नतीजा वही हुआ जो मेरी पेंटिंग का हुआ था.
एक तो डिट्टो कॉपी. ऊपर से पूरी फिल्म में ऐसा लगता रहा कि सारे एक्टर्स अपने डायलॉग रट के आए हैं और इंतज़ार कर रहे हैं कि आगे वाले का खत्म हो तो अपनी लाइन बोलकर काम खत्म करें. एकदम मेकैनिकल.
बेसिकली, पुराने माल को उसके खराब पार्ट्स के साथ नई पैकेजिंग में डालकर शोरूम में उतार दिया गया.
नई वाली 'कुली नंबर वन' बिला शक एक बेकार कॉपी है. लेकिन, पुरानी वाली कुली नंबर वन में ऐसा कुछ था ही नहीं कि उसे दोबारा परोसा जाता.
हां, डेविड धवन एक भूल सुधार कर सकते थे. कुली नंबर वन के कॉन्टेंट को 2020 के हिसाब से अपडेट कर सकते थे. अच्छा लगता अगर ‘बाला’ की परी मिश्रा की तरह ‘कुली नंबर वन’ की मालती अपने धोखेबाज पति के खिलाफ कड़ा ऐक्शन लेती. कहती कि ये कितना भी अच्छा क्यों न हो, इसने मुझे धोखा दिया है, मैं इसके साथ नहीं रह सकती. या फिर अगर राजू शादी से पहले मालती को सच बता देता और फिर भी दोनों शादी कर लेते. मालती के पिता से सच छिपाने की जद्दोजहद को कॉमिक रूप में परोसा जाता.
वैसे ज्यादा अच्छा तो ये होता कि अपनी ही पुरानी फिल्मों की घिस चुकी कहानियों को, एक बार हिट हुई डिश को बार-बार पकाने की बजाए और अपने बेटे को नाइंटीज़ के हिट एक्टर्स का डुप्लीकेट बनाने की बजाए डेविड धवन कोई नई कहानी लिखकर ले आते.
कुल मिलाकर बात ये कि दोनों ही 'कुली नंबर वन' पर्याप्त खराब फ़िल्में हैं. और दूसरी वाली ने पहले वाली का कोई ज़्यादा अपमान नहीं किया है. दोनों ही फ़िल्में बेकार हैं. दोनों के एक्टर्स के कैलिबर का फर्क है बस.